कलियुग | kalyug
कलियुग
कलि का समय होता है।
सूर्योदय भी समय पर होता है।
मानवता भी एक सी दिखती।
फिर कैसे ये पता होता।
कि मैं कलियुग में होता।।
कुछ सोंचा और जाना मैंने।
सोंच की अंतर है बड़ा ।
मानवता निराश खड़ी।
पशुचरता मानव में पड़ी।
कोई संवेग जब ना बचा होता।
वहीं से कलियुग होता।।
ना रिश्ते सगे होते।
ना नाते जीवन भर होते।
शिक्षा का ना सार होता ।
सत्कर्मी पर ही वार होता।
यही कलियुग होता।
यही कलियुग होता।।
Kavitarani1
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