आखी-आखी रात मैं तारे गिनना | Akhi Akhi rat main Tare ginta
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आखी-आखी रात मैं तारे गिनता
दिन बितता थका हारा।
हारा मन का तन लगता।
भूल दुखड़ा आज चुनता।
चुनता बैठ अकेला शाम।
गोधुलि की धुल बैठी।
रात चढ़ी, चढ़या अंधेरा।
सोंच रहा कल क्या होगा।
आ रहा कल क्या हुआ ।
रात बितती उम्र बितती।
बितती घडिया जीवन की।
बैठ अकेले जब कुछ नी सुझता।
आखी -आखी रात मैं तारे गिनता।।
बचपन याद करता रहता।
अपना तारा खोजता रहता ।
दुनिया दुसरी में याद करता।
करता बात खुद से, खुद जवाब देता।
जो चमक रहा ज्यादा उसे देखता।
गायब होने को सोंचता।
सोंचता कितने आये, कितने गये।
इन तारों में कितने बने रहे।
फिर नहीं समझता क्या था सोंचा।
बस आखी आखी रात मैं तारे गिनता।
बड़ा सुकुन सा उस अँधेरे में दिखता।
जब आखी-आखी रात मैं तारे तकता।।
अकेले में जब मेरा मन नहीं लगता।
फिर आखी-आखी रात मैं तारे गिनता।।
Kavitarani1
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