बेमैल/ Bemail
बेमैल
काया से काला हूँ, मन से हूँ मैला ।
लोग पुछे मेरे मन की सुने ना एक झमैला ।
मन का बोझ भारी, हारी रहे काया ।
सुनने को अब मन तरसे, कैसा है भाया !
आया ना कोई पुछने दर्द ने था जब खाया ।
रोज पुछे मन की मेरी, कैसा है ये दाया ।
गूढ़ मीठा, शक्कर मिठी, मिठे बोल सुनाया ।
अपनी बात ही सही सुनी, सुनी मेरी ना समझाया ।।
आँचल वंचित, मैं किंचित, सिंचित गाल रहा ।
एकांत में में बैठ शांत, अशांत निहार रहा ।।
जग कहे रोशन तु, रवि है अनोखा ।
दुख के दिन भूल बस देता जग को दोखा ।।
दोखा देता जग-जगा देता दिखा दोखा ।
फिर मुझसे क्या चाहिए, कैसा चाहेगा देखा ।।
मन का मैल, बैमेल करता रहता।
देख काया, भाया समझे, मैं अधुरा रहता ।।
जी लूँगा रे, जी लूँगा जैसे जीया अकेला ।
अब पूछना बंद कर दो जीने दो मुझे अकेला ।।
भाया ना कोई, ना भायेगा कोई है अंदेशा ।
भूलकर सब बातें फिर रहने दो संदेशा ।।
Kavitarani1
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