दुश्मन ये भी हैं | dushman ye bhi hai
दुश्मन ये भी हैं
सरहदों पर देखे हैं।
गोलियों के वार देखे हैं।
जो है दुश्मन वो साफ नजर आते।
जो नजर ना आये साफ।
ऐसे दुश्मन अन्दर से खाते है ।
दुश्मन ये भी है, दुश्मन ये भी ।।
बात हुई कई बार घर के भेदियों की।
जेलों में बंद होते कई कैदियों की।
ये समाज कंटक देश की प्रगति खाते है।
मिलता कुछ ना इन्हें पर इतराते है।
मुख पर मिठा बोलते ये कितने शातिर है।
पर है दुश्मन ये समझा जाते आखिर।
देश के अहित पर खुश होते है।
देश की प्रगति में रुकावट ये होते है ।
दुश्मन वो सरहदों के भी।
दुश्मन कुछ ये भी है।।
कहना इनका भी कई बार होता है।
मेरा कहना कुछ और नये दुश्मनों पर है।
दुश्मन वो जो सरकार के धन को खाते है।
बातें करते बड़ी- बड़ी और चोरी कर जाते है।
वो जो शिक्षा के मंदिर में होड़ में देश का भविष्य खाते है।
वो जो किसी सत्य मार्गी को तड़पाते है।
जो कर रहा काम अच्छा उसकी रुकावटें बनते है।
आये दिन छोटी-छोटी बातों पर देश पर तंज कसते है।
दुश्मन ये भी हैं।।
हाँ दुश्मन ये भी हैं।
शिक्षा के मंदिर पर अखाड़ा बनाये रखते है ।
अच्छे कर्मों को कहते और बुरे कर्म करते है।
किसी की हँसी छिनते है ये।
और रुकावटें लोगों की बनते है।
समझते है की नुकसान कैसे देश को ऐसे।
पर अपनी करनी से मजबुर बुरे कर्म करते है।
कैसे समझायें इनको दुश्मनी देश से जो करते है।।
ना कहना है काम ना करें।
हाँ कह कर काम में देर ना करें।
फाइलों को अटकाकर दुख ना दे ।
जो लगा सत्य कर्म पर उसको दुख ना दे ।
वो कर्म में बाधा पाता है।
देश का लाल उलझ जाता है।
अपने मन की शांति खोता है ।
कैसे कहूँ अपने ना करने से वो ,
मन ही मन रोता है।
आँसु उसके दुख देते है ।
देश की उन्नति को रोक देते है ।
वो जिससे उन्नति रूकी है ।
वो बाते बड़ करते है।
और देश के पीछे रहने पर तंज कसते है ।
दुश्मन ये भी हैं। ।
Kavitarani1
30,31
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