फर्क पड़ता है | Fark padta hai




फर्क़ पड़ता है -वीडियो देखे

फर्क पड़ता है 


मैं चाहूँ जिसे वो बात करे किसी और से,

मैं सोंचु जिसे वो सोंचे किसी और को,

मैं देखूँ जिसे वो देखे किसी और को,

मैं ढुंढुं जिसे वो ढुंढे किसी और को,

मैं मिलु जिसे वो मिले किसी और को,

और वो कहती है; क्या फर्क पड़ता है?

पर मुझे फर्क पड़ता है ।।


जलता नहीं मैं पर जलन सी होती है।

गुस्सा नहीं करता मैं पर गुस्सा आता है।

चिढ़ता नहीं मैं पर चिड़न होती है।

डरता नहीं मैं पर डर लगता है।

और वो कहती क्या फर्क पड़ता है।

पर मुझे लगता कुछ फर्क पड़ता है।।


मैं कहुँ कि उससे ही मिलो, ये भी नहीं  चाहता।

मैं बोलू वही करो ऐसा भी नहीं चाहता।

मेरी हर जिद् मानों ऐसा भी नहीं।

मेरी हर बात मानों ऐसा भी नहीं।

पर मुझे फर्क पड़े उसका क्या करें।

मुझे कहना भी नहीं आता।

क्यों फर्क पड़ता है समझ नहीं आता।

पर मुझे फर्क पड़ता है।

कभी-कभी मन समझ जाता है ।।


Kavitarani1 

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