जीवन डगर आसान नहीं | Jeevan dagar asan nhi
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इस कविता में कवियित्री ने पथिक को गढरिये के रुप में प्रस्तुत किया है, यहाँ पथिक को समझाया जा रहा है कि जैसे एक गढरिये का जीवन आसान नहीं होता, उसे वर्ष पर्यंत कई प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पढ़ता है वैसे ही, अपने लक्ष्य पर अडिग पथिक को भी अपने जीवन सफर में कई सारी समस्याओं का सामना करना पढ़ता है।
जीवन डगर आसान नहीं
ओ रे बावरे, बावरे गढरिये।
चल अपनी राह,
राह मुश्किल रे, ओ रे बावरे ।
बावरे गढरिये ।
ऊँची-ऊँची चट्टानें,
ऊँचे पर्वत पर, तु जाना चाहे,
जाना चाहे शीर्षक पर।
शीर्षक पर बोझ है, ओ रे बावरे ,
बावरे गढरिये ।
भूल जायेगा, जाना कहाँ तुझे।
ठोकरे जो आयेगी,
मार पढ़- पढ़ जायेगी,
जायेगी ना जान, जान पर आयेगी ,
ओ रे बावरे, आना लौट के।
दूर कहीं है, मंजिल का ठौर नहीं है रे।
ओ रे बावरे ,बावरे गढरिये ।
ध्यान अपना रख, रख ध्यान गाढ़रिये का।
कहीं छुट ना जाये पिछे।
खो ना जाये रास्ता।
रास्ता मुश्किल रूक ना ना तु।
शाम होने को, डरना थोड़ा तु।
ओ रे बावरे ,बावरे गढ़रिये।
देख मुझको, मैं हूँ दूर तुझसे।
राह देख रहा, सुन ले मुझको।
ओ रे बावरे, बावरे गढ़रिये ।।
Kavitarani1
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