कब आओगी | Kab aaogi


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कब आओगी 


ओ ! भौर सुहानी, मन की रानी, मन को भाती कब आयेगी ।

कब आओगी, मुझे जगाओगी ।।

मैं सोया कब से, सोई जवानी, तब की प्यास बढ़ रही ।

कब बुझाओगी, मुझे तर कर जाओगी, कब आओगी ।

ओ ! भौर सुहानी, कब आओगी ।।


रोज उगता सुरज, रोज ढुबता है, चाँद की सुरत बदलती। 

अंधेरा होता है, होती सुबह हर दिन ही, दिन गुजरता है ।

गुजरती जिंदगानी, जिंदगी वो भौर ही दिखी नहीं ।

सोंच उस भौर को, बुलाती कमी, कब आओगी, 

कब आओगी, भौर सुहानी कब आओगी  ।।


उठते ही जीने का मजा रहे, जिंदगी हँसे, गम दुर रहे।

दुर रहे वो सब जो कमी कहे, भौर आये जीवन की।

भौर आये मन की जीवन कहे, कहे मन कब आओगी।

ओ ! भौर सुहानी कब आओगी, कब आओगी ।।


खुद में  उलझा मैं, अनजान तुझसे।

हर कहीं देखूँ सोचूं मिला तुझसे।

तेरी ही ताजगी महसुस करता हूँ ।

दिन चढ़ता, पता चलता, भ्रम में जी रहा हूँ।

जी रहा हूँ भ्रम में, तेरी सोंच में ।

कब आओगी मेरे जीवन में ।

ओ भौर सुहानी, कब आओगी ।

ओ भौर सुहानी ।।


Kavitarani1

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