मन बावरा | man bavra
मन बावरा
मन बावरा बन पतंगा उड़-उड़ जले ।
दीप जले अपनी धुन में फर्क ना पड़ ।
मन बन भंवरा बगीया -बगीया भटकता फिरे ।
फुल सुगंधित खिले ,मस्त रहें, फर्क ना पड़े ।
बन चकोर घनी रात मन ताकता रहें ।
चाँद अपनी धुन में चाँदनी को फर्क ना पड़े ।।
मन राझा बन बावरा जग नापता फिरे ।
हीर अपनी दुनिया में, कोई फर्क ना पड़े ।
है जग के बोल अनेक मन तोल ना करे ।
जो समझे जग को उसे फर्क ना पड़े ।
मन बावरा क्षितिज का रवि पकड़ता फिरे ।
एकांत शांत धरा को कोई फर्क ना पड़े ।
एक जोत जले एक ज्वाला में मन मिले ।
परमात्मा सा मन लिये उसे फर्क ना पड़े ।
जग फेरे उलझे मन भगता फिरे ।
मोह के धागे उलझाये उन्हें फर्क ना पड़े ।
मन बावरा हो शांत क्यों शांत तलाश करे ।
तन को सुख मिले दु:ख में फर्क पड़े ।।
मन पतंगा बन जलता जले ।
जलते दीप को एक बार फर्क ना पड़े ।
Kavitarani1
37
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें