भौर का आलम / bhor ka alam


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भौर का आलम 


सब भूल - भाल के,

अन्तर्मन देखूँ जो ।

शीतरता, मधुरता, ताजगी, सादगी खोजूँ जो,

प्रकृति की गोद में जाके जाऊँ में, 

देख इसकी सुंदरता कहूँ, 

इसके सिवा और चाहूँ क्या ।


ये उगता सूरज, नम धरती, हरे पत्ते,

ये पक्षियों की आवाजाही और चहचहाहट,

पपिहे की आवाज और मोर का यूँ छतों पर नाचना,

और मंद-मंद मुस्कान देती ताजगी भरी हवा,

कुछ पल प्रकृति की गोद में बेठूँ जो,

सब भूल एक सुकून चाँहू जो,

अनायास ही सब मिलता है ।

यहाँ सब फूलों सा खिलता है ।


शांत मन, शांत तन, शांत हवा में, 

सुबह की चाय की सिसकियों में, 

कुछ खास नहीं बस मन के शब्द उकेरे है ।

ऐ जिन्दगी मैंने ये भौर के शब्द कहे है ।।


Kavitarani1 

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