मेरा विरह | mera virah
मेरी विरह
शांत हवा तुफान बन गयी,
लहरें अब विकराल बन गयी,
जो दीप जलाये थे ज्योति को,
वो ज्वालायें बन गयी ।
में विक्रान्त रूप लिये बैठा ,
बिन मिले ही विरह जी बैठा,
मेरा एकान्त परेशान है,
मेरा दिल हैरान है ।
किसे कहूँ- कहाँ जाऊँ,
विरह गीत लिखूँ और गाऊँ,
अपने मन को समझाऊँ,
मैं कैसे अपना हाल बताऊँ ।
वो मन मोहकता जलाती है,
मधुर बातें तड़पाती है,
मेरा अकेला मन रूसता है,
सब देख मन खिजता है ।
मैं कैसे एकान्तवासी बन जाऊँ,
भरा इच्छाओं से कैसे अधुरा गाऊँ,
मैं कैसे स्व विरह जी पाऊँ,
मैं कैसे सब बताऊँ ।।
Kavitarani1
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