पंछी | Panchhi



पंछी 


है कैद से आजाद, 

है खुद में आबाद,

घूम रहा पंछी मतवाला,

बस वो और उसका है ऊपरवाला, 

जानता है सब सब मानता है ।

है कुछ आसमां में, 

जमीन को पहचानता है ।

है क्या मन में, 

क्या उमंग में, 

समझ रहा है,

कह रहा है, 

खुद को, जी रहा है जग को,

लगता अभी कुछ कमी है, 

जङो ने उसे छोड़ा नहीं है, 

टहनियों में भी उलझा है, 

है अभी भी अटका कही,

पंछी भटका है, अटका कहीं ।

कहने को आजाद है, 

जुल्म से आजाद है ,

पर पहरेदार कई,

लग रहा है, पहरेदार कई ।


Kavitarani1 

286

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वो मेरी परवाह करती है | vo meri parvah karti hai

सोनिया | Soniya

फिर से | Fir se