ये शाम | Ye shaam
ये शाम
पर्वत स्थिर अपनी जगह पर,
आबु पर छाई घटायें बहुत हैं ।
गर्जन करते बादल पर्वत शीर्ष को छुपाते,
मैं परित्यक्ता के गाँव की छत पर बैठा हूँ ।
लग रहा जैसे सुर्यास्त आज नहीं हो रहा ,
और अभी तो ये आषाढ़ ही चल रहा ।
मन शांत है, खुश सा है ।
कोई गम नहीं जीवन में ना कोई दम सा है ।
सब शांत है, ये शाम शानदार है ।
बादलों से कुछ बुँदे हल्की हो गीर गई ।
तन-मन पर शीतलता का माहौल कर गई ।
बादलों से छायादार मौसम खुशमिज़ाज है।
सब देख मन कह रहा है।
ये शाम शानदार और माहौल आलीशान है।
ये शाम मजेदार है ।।
Kavitarani1
295
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें