काली अंधियारी रात / kali andhiyari rat
काली अंधियारी रात
काली अंधियारी रात डराये, बैरी मन आये पिया मन भाये।
अंखियन बैरी चैन ना आये, रात भर जगाये, भौर को सताये।।
चाहे क्या जानूं ना, समझुं ना, अंधियारा काला।
जाऊँ कहाँ जाऊँ, दिखे ना सहारा हारा।।
काली अंधियारी रैना नैनन छाये, पीङा मन लाये, ये क्रिडा कर जाये।
अंखियन घनी काली कर जाये, सपने ना आये, सपने समझ ना पाये।।
कहुँ भी किससे कभी मर्ज है इसका नहीं।
सहुँ भी तो कैसे कभी सह मैं पाऊँ नहीं।।
काली अंधियारी बातें बिसरावे, मति ना भावे ये मति समझ ना पावे।
अंखियन नित-नित नीर बन जाये, बिन बदला ये सागर बन बह जाये।।
जाऊँ चहुँ ओर कहीं चंदा रस पाऊँ मैं।
भुला बिसरा कोई राह टकराऊँ मैं।।
काली ्अंधियारी ये मावस चंदा छुपावे, तारों में अब राह कैसे पाये।
अंखियन पथराई देख-देख राह, ठोकर खायें, गिर उठ चल जाये।।
भय किया भय हुआ दिखे नहीं कोई चारा।
बैठा छौर अकेला मैं हुँ किस्मत हारा।।
काली अंधियारी रात गुजर जाये, बैरी मन माने ये तन को रिझावे।
अंखियन बैरी धीर धर जाये, चैन आये जो रोशनी आये।।
कट जाये अंधियारा सुबह जल्दी आये।
मन समझ जाये बैरी मन मान जाये।।
काली अंधियारी रात कट जाये तो चैन आये।।
-कवितारानी।

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