मन भावन | man bhavan
मन भावन
हो चंचला चालाक तुम जैसे सावन।
चिढ़ती हो अनायास जैसे शीत पावन।
जीवन गहना है पहना हुआ जैसे ग्रीष्म रावन।
मृग मरीचिका आभास होती हो जैसे मनभावन। ।
अडिग, असहाय, असमंजस में।
अस्थिर, अनजान सी मन में।
रुप चन्द्र सा दिखाती हो हर सावन।
लगती हो अक्सर यूँ ही मनभावन।।
काली घटा घनघोर मेघ सी।
कैश कला प्रायः लगती निश्छल सी।
हरयाली नयनसुख बर्खा सी पावन।
देख तुम्हें बात आती यही कि तम हो मनभावन। ।
ध्यान, ज्ञान एकाग्रचित्त लिये।
मेगा बरसे वहीं जहाँ मन हुए।
सुनती कहाँ किसी की करती अपनी गायन।
हर पल देख तुम्हें मन यही कहे तुम हो मनभावन। ।
दूर दृष्टि तकती हरियाली पावन की।
भौर समय बिताता देखकर ही।
नयनाभिराम तुम अस्पर्श रही सुख सावन।
हर बार दुख हरती इसलिए मनभावन। ।
-कवितारानी।

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