रवि; दिन की गाथा | Ravi din ki gatha
रवि मैं: दिन की गाथा
उठ जाग ज़रा देख पूरब,
रवि आया लेकर एक हब।
नयी जोत है नया उजाला,
उमंगो से रंगा है सवेरा।
कहता है कि मैं दिनकर,
लिख चुका हूँ शुभकर।
उठो! जागो मुँह धो लो,
अपने जन्मदाता के चरण धो लो।
मुझे अर्पित जल है भाता,
मुझसे पहले प्रणाम विधाता।
छोटो को अब प्यार बांटना,
बङो को तुम आशीष ताकना।
मधुर मुस्कान होंठो पर हो,
क्षमा भरा आज मन हो।
आगे अब मित्र आयेंगे,
शुभकामनाओं के गीत गायेंगे।
मुँह मिठा सबका है करना,
खुश होकर स्वागत करना।
कोई जो रुठे मनाना तुम,
अपनी धुन में ही गाना तुम।
आज किसी की सुननी नहीं,
जो मन आये करना वही।
बेबस कक्षा में हारना ना,
खाली समय बिगाङना ना।
मैं चल रहा हूँ नित निरंतर,
आगे का प्लान का रहे अंतर।
मित्रों के साथ खुलके मौज हो,
खर्चे पर कोई फिक्र ना हो।
आज का दिन सबसे उत्तम,
भुल जाना कल का गम।
गुरूजनो को प्रणाम कहना,
कोई रुठे उखङे छोङ देना।
हमें नहीं रूकना आज,
मैं चल रहा साथ चलना आज।
दोस्त माने तो घूम आना,
जहाँ कहे मन वहीं जाना।
निर्धन लाचार पर दया करना,
बच्चों बुढ़ो को प्यार करना।
अब ढलता हूँ मैं इतना कह,
खुब खुशनुमा रहेगा दिन।
संध्या बैला सबसे प्यारी,
मंदिर पर जाकर शीश नवाना।
कुछ मनोरंजन पार्टी भी होने देना,
अपनों के संग सेल्फी जरूर लेना।
हर पहर एक याद बनेगी,
हर तस्वीर कहानी कहेगी।
अंधेरा होगा शांति जब,
संगीत बजाना सब को जगाना।
मौज मस्ती का ये समय,
दिन भर का अंत चरण है।
नाचना खुद भी औरों को भी नचाना,
बहाना करे कोई तो खिंच लाना।
सबको शुक्रिया जब होगा कहना,
बैठ देखना दिन घङिया गीन।
किसी बुरे लम्हे को मन ना लाना,
दिन बिता अब खुश होके सो जाना।
ऐसे बनायी है रेखा,
मैं दिनकर फिर आउगा।
अगले दिन फिर जगाऊगाँ,
हमें तो रोज चलते जाना।।
-कवितारानी।

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें