शिक्षक | shikshak
शिक्षक
जो मिले जीवन में सब ज्ञानी लगे।
मुझे शिक्षक बनकर भी सब महाज्ञानी मिले।
मैं भूल जग को अपनी कहता हूँ।
मैं अपनी कक्षा में रहकर ही खुद को शिक्षक कहता हूँ।।
शिक्षा का सार गहरा, पूरी दुनिया पर है इसका पहरा।
जो ज्ञान सागर तट पर ठहरा, उसका ध्वजा रहता लहरा।
मैं सूक्ष्म से परिचय देता, है जो पास मेरे शिष्य को देता।
मैं अपनी किसी से ना कहता, अपनी दुनिया ही मैं सिमटा रहता।।
मेरे शिष्य मेरा धन है, मेरी आजीविका भले कम है।
मेरा विषय सब ज्ञान है, भले जग में फैला विज्ञान है।
मैं क्रूर बनूं या मृदुल बनूं, पर अपने शिष्यों का भविष्य बुनूँ।
मैं विद्यालय में रहूँ या समाज में रहूँ, पर मैं अपने देश की कहूँ।।
मन से जुङाव गहरा रखता हूँ, मैं शिष्य-शिष्या को समान देखता हूँ।
अमीरी-गरीबी से दूर रहता हूँ, मैं हर प्रभाव में एक सा रहता हूँ।
मैं शिक्षक हूँ, शिक्षा देता हूँ, शिक्षा कहता हूँ, प्रश्न सुनता हूँ।
मैं शिक्षक हूँ, सुधार करता हूँ, आधार बनाता हूँ, देश बनाता हूँ।।
मितव्ययी हूँ, मैं समाजसुधारक हूँ, मैं विद्या दाता हूँ।
प्रशंसक हूँ, बुराई का कंटक हूँ, मैं अच्छाई देने वाला हूँ।
मैं शिक्षक हूँ, भावी भाग्य निर्माता हूँ।
मैं शिक्षक हूँ, विद्यार्थियों के लिए गुरु हूँ।।
-कवितारानी।

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