देख राहों को | dekh raho ko



देख राहों को


फुल देखुँ मैं, देखुँ पत्तो को।

धुप देखुँ मैं देखुँ तारों को।

कितनी निराली है ये दुनिया, दुनिया देखुँ जो।

सुन मुसाफिर फिर मैं कहता जो।

अपनी धुन मैं चल पर देख ले राहों को।

कहीं छाँव घनी, कहीं देख तङागो को।

चमकती धुप में देख-देख रेत के पहाङो को।

जाना है तो छा भले पर निहार ले राहों को।

कहीं है ढेर मिट्टी का कहीं ऊँचे है पर्वत। 

कहीं है घाँस की राह कहीं है पत्थर जो।

पानी की आयी राह, रूक खैल राहों को।

जाना है दुर राही देख ले राहों को।

मस्त है गाँव के सुन ले इनके गानो को।

पहनावा है अनमोल मोल ना लगे राहियों को।

कुछ पल रुक रहा तो सोंच ना काँटो को।

निकल गया दुर अब तो सोंच ना गुजरे लोगो को।

रहने दे पत्थर की ठोकर को रख अनुभवों को।

पग-पग बदले रंग धरा-तु देख राहों राहों को।

जाना अभी बहुत दुर लगा मन राहों को।

कोई बने साथी ले चल साथ लोगों को।

अच्छा लगे तो सुन चुन ले खास बाहों को।

ले कोई बोझ रख बस ओज वालों को।

जो रहे भेद में उसे रख भेद वालों को।

जाना है दूर तक तो चल मौज में, राहो को।

मौज में चल ऐ राही देख दिखे जो राहों को।।


-कवितारानी।


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