खुश रहो तुम / khush rho tum
खुश रहो तुम
मिलते रहते लोग कई सफर में।
मिली कई तुम जैसे सफर में।
कुछ खास था तुममें जैसे था कईयों में।
अच्छी चली बातें अपनी दोनों में।
कोई छुपी बात ना थी दोनों में।
फिर कुछ यूँ हुआ,
कि तुम लङकियों जैसे भाव खाने लगी।
स्वाभाविक ही तुम बदल जाने लगी।
कोई तो आया था बीच में।
या मन भर गया था इस रीत में।
ज्यादा कुछ कहता उससे अच्छा था दुर जाऊँ।
जितना समझता था, समझा पाऊँ।
पर तुम मान चुकी थी अब कुछ नहीं है।
अपने बीच था ही क्या और क्या ही है।
तो मैंने भी मान लिया जो तुमनें माना।
खुश रहो तुम यही कहना सयाना।
अब बात ना होगी कुछ प्यार सी अपनी।
जैसे गये लोग तुम भी जाओ।
खुश रहो तुम, खुब मुस्कुराओ।।
-कवितारानी।

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