कोमल कलि | komal kali
कोमल कलि
रह दिन की तरह मेरी शुरुआत थी।
आज भी वही जिन्दगी की सौगात थी।
बस चल ही रहा था अपने काम को।
कि दिख गई कोमल कलि सुबह ही।
लगा ही जैसे कोई आम ना थी।।
सुडौल काया और सौम्यता लिये।
अपने काम में व्यस्त वो और हम मिले।
अहसास मेरे आने का हुआ उसे भी था।
पर गर्व से जीवन लिए उसने देखा ना था।
उसकी नित कर्म लय मुझे भा गई।
वो सुबह की मधुरता और वो कलि छा गई।।
मेरा दुखी सा चेहरा खिला था।
मेरे मन पर पङा सुखा आज गीला था।
खोई हुई राह पर में मंजिल को पहुँच गया।
आज कुछ क्षण देख मधुरता मन खिल गया।
लगा जैसे भीषण गर्मी में कुछ बुँदे गीर गई।।
एक अच्छी शुरुआत और दिन अच्छा।
काम में व्यस्त रहा मन लगा अच्छा।
जानता हूँ फुलों की उम्र दिन से ज्यादा नहीं होती।
यहीं सोंच की फिर दिखे तो देंखेगे और नहीं जाती।
जो मन की खुशी थी वो जी ली उसी क्षण को।
धन्यवाद ईश्वर का और उस कलि का जो थी सुबह को।
मैं रत फिर अपनी धुन में, वो कहीं अपनी धुन में।।
-कवितारानी।

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