कुछ ना कहो / kuchh na kaho
कुछ ना कहो
कुछ ना कहो कोई मुझसे, कुछ ना कहो।
मैं भुल रहा हूँ औकात अपनी, उलझ रहा हूँ कहीं और कहीं।
मुझे उससे निकलने दो, मुझे मुझमें आने दो।
अभी कुछ ना कहो, कुछ दिन कुछ भी ना कहो।।
रह गया मुझमें दबा, मेरा जलता जीया।
जल गया जीते हुए, मेरा प्यारा पीया।
जल गया है सपना, रहा ना पास कोई अपना।
मुझे अपने आप से आकर मिलने दो।
मुझे खुद से सवाल करने दो, रहने दो।
मुझे खुद में रहने दो, कुछ ना कहो अभी।
कुछ ना कहो।।
आयी हवा बह-बह के पुरब से, मैं बैठा अकेला यहाँ।
पश्चिम में, पर्वत के नीचे दबा जा रहा हूँ मैं।
अपने वजुद को खोता जा रहा हूँ मैं।
चिंता कर रहा अब कहीं मिट ना जाऊँ मैं।
मुझे अपने गाँव-शहर जाने को, मन करता है मेरा।
लुट जाने को, लुट जाने दो, मुझे लुटने दो।
खुद को पहचान सकुँ इतना मौका दो।
अभी कुछ कहो, कुछ दिन, कुछ ना कहो।।
हो गयी पीर पराई, आँसुओं से लङाई।
मुस्कान छोङ गई, छोङ गयी खुशी भी।
दुःख के दिन बीते, अब उलझन नई।
नई-नई उलझनों को सुलझानें दो।
जिन्दगी की लय में उतर जाने दो।
जीने दो अकेले मुझे, मुझे अकेले रहने दो।
अभी कुछ ना कहो, कुछ दिन कुछ ना कहो।
कुछ ना कहो।।
-कवितारानी।

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