राह मेरी मुश्किलों भरी | Raah meri mushkilo bhari
राह मेरी मुश्किलों भरी
मैं पथिक पुराना अपनी धुन का,
पथरीले पथ का रहा पारखी।
जानता हूँ जाना कहाँ-कहाँ रूकना,
राह भले हो मेरी मुश्किलों भरी।।
एक ठौर रुकना मैने सिखा नहीं,
मेरे ईश्वर का उपकार भूला नहीं।
माटी से उठ आगे तक आया,
राह मेरी मुश्किलों भरी रही पर ये बढ़ आया।।
अब सुन्दर सपना और नजदीक है।
राह मेरी काफी कट चुकी है।
सीढ़ियों सा जान निचे देख रहा हूँ।
मैं मुश्किलों भरी मेरी राह निहार रहा हूँ।।
मैं पथिक भ्रष्ट और श्रेष्ठ समूह का,
हर जन को समझा परखा हूँ।
जानता हूँ कौन कितना बुरा है।
कौन मेरे काम का है और कौन नाम का है।।
मैं सबको साथ लेकर चलता,
रुकता पल भर और आगे बङता हूँ।
जानता हूँ दूर तक जाना है।
राह भले हो मुश्किलों भरी मुस्कुराना है।।
एक ठोर पर अभी रुका हूँ।
समय से सही होने के फेर में हूँ।
जानता हूँ कब आगे बढ़ना है।
राह मेरी मुश्किलों भरी साहस भरना है।।
-कवितारानी।
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