शिकायत है | shikayat hai


 

शिकायत है


मेरे लब्ज अधूरे रह जाते है।

और मन के भाव अनछुए रह जाते है।

तुम तो अपनी बातें कहला लेती हो।

और मेरी एक भी ना सुनती हो।

तुम्हें जो बोलना होता बोल देती हो।

और जब मुझे बोलना होता है टोक देती हो।

कोई काम या मन का बहाना बनाती हो।

बस मेरी बारी में ही चली जाती हो।।


तुम्हें जो देखना होता है देखती हो।

मेरी इच्छा होती वो देखने से रोकती हो।

मेरे मन के भाव अधूरे रह जाते हैं।

ऐसे हर बार मेरे काम भी अधूरे रह जाते है।

मन रूठ जाता है रोज मन में रखकर।

और जब तुम्हें सुनाता हूँ तुम नहीं सुनती हो।

ऐ जिन्दगी बहुत शिकायतें है तुमसे।।


पर बहुत प्यारी हो तो नहीं करते।

छोङ नहीं सकते जानती हो।

तभी तो अनदेखा करके रखती हो।

पर फिर भी मेरे मन में दबी रही।

और जो कही ना गई वो सब बाकि है।

शिकायतें है।।


-कवितारनी । 



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