तू ना समझे | tu na samjhe
तू ना समझे
कब तक देखूँ रास्ता, कब तक तुझे देखूँ।
ना दिखती तू कहीं, ना नजर है मिलती।।
कब तक सुनूँ तुझको, कब तक पास रखूँ।
ना मिलती कभी मुझको, ना हाथ बढ़ाती हो।।
तेरी चाहतों का सिला मिल गया है।
तू नहीं मेरा ये समझ आ गया है।।
दूर ही रहूँ तुझसे यही भला है।
तू नहीं मेरा यही समझ आ रहा है।।
कब तक इंतजार करता रहूँ मैं, कब तक तुझे पढ़ता रहूँ।
ना कभी तू आई मिलने, ना समझ तु आ रही है।।
कब तक सपने सजाऊँ, कब तक आस रखुँ।
ना नींद उङती मेरी, ना इच्छा पूरी होती।।
कब तक मनुहार करूँ, कब तक मनाऊँ मैं।
ना तू समझ पाती कभी, ना मैं मना पाऊँ।।
जितने थे दिन साथ, पूरे हुए हैं।
तू अपनी राह चल, मुझे अपनी राह रहने दे।।
रह तू खुश अपनी जिन्दगी में।
रह लूँगा मैं अपनी खुशी में।।
-कवितारानी।

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