वो तुम थी / vo tum thi



वो तुम थी


वो सुर्ख होंठ और उनपे छाई लाली, वो स्पर्श कोमलता, वो मादकता, वो मधुरता।

याद मुझे बाहों में भरकर उसका चुमना।

वो बङी-बङी आँखें, वो काजल, वो आँखों की गहराई, वो शर्माना, वो ईतराना।

याद है मुझे घण्टों तक नयन लङाना।

वो माथे की बिन्दी, वो धनुष जैसी बोहें, वो इठलाती लट, वो गले की माला, वो गाल डिंपल।

याद है मुझे उसकी सादगी और रहना बङा सिम्पल।

वो दंभ भरना, उसका हॅसना, उसका रोना, उसका भाव खाना और बहाना बनाना।

याद है मुझे एक-एक पल प्यार का मेरे बढ़ते जाना।

वो मेरे लब्ज, वो उसके उलझे शब्द, वो मेरी तारिफें और उसकी मुझे खो देने की गुंजाईशे।

याद आता है  मुझे उसका बरताव बदलते रहना।

वो उसका बहाना बनाना, वो मुझे अकेले में बुलाना, बातों से बलट जाना, मुझसे लङते जाना।

याद है मुझे उसका मुझे लगातार ना अपनाना।

वो तेरी फितरत, और मेरी कुदरत, वो तेरा बार-बार बदल जाना, वो मेरा हर बार मनाना।

याद है मुझे अपने रिश्तों का बिगङ जाना।

वो मेरा टुटना, मिन्नतें बार-बार करना, वो तुम्हारा कठोरतम रुख अपनाना।

याद है मुझे तुम्हारा मुझे मरते छोङ जाना।

वो करके बहाना याद करना, झठा दुख सुनाना, वो तुम्हारा मुझे दोष दिये जाना।

याद है मुझे तुम्हारा दुसरों के साथ रिश्ता निभाना।

वो जलना, वो घुटना, वो तङपना, वो जान निकलना, वो चिखना, वो रोना।

याद है मुझे मेरा तिल-तिल करके मर-मर कर जीना।

वो तेरा खुश रहना, सजना और सँवरना, मौज में दिन गुजारना और मुझसे दुख जताना।

याद है मुझे तेरा रंग बदलना।

वो दिन, वो महिनें, वो साल, वो मेरा तुझसे जुङना और बिछुङना।

याद है मुझे मेरा सुधरना और बिगङनाः मेरा जिन्दा रहना।

वो सिख जो मिली सबक बन, वो तुम थी जिससे मिली जिन्दगी मौत बन।

याद है मुझे, हाँ याद है मुझे।।


-कवितारानी।



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