मेरा सफर / mera safar
मेरा सफर
उठते-बढ़ते, हॅसते-रोते, मिलते-बिछुङते, हम पार आ गये।
बदलते जमानें और चेहरों में भी हम खास हो गये।
कौन याद रखेगा कि मैं जीया हूँ मर-मर कर।
किसे फर्क पङेगा मैंने लिखा है जी-जी कर।
सब किस्से यूँ दफ्न हो जायेंगे।।
कहानियाँ कई पङी है, फिल्में कई देखी है, सबक बहुत सिखा है।
नादानियाँ बहुत की है, परेशानियाँ बहुत देखी है, जीया हुँ मुश्किलों को।
कौन ये सब किसी से कहेगा।
किसे फर्क पङेगा।
एक अनजान सफर शुरु हुआ था।
एक जान पहचान बनाकर खत्म होगा।
गये हैं कई आकर दुनिया में।
मेरा नाम भी यूँ गुँजेगा।।
काटी आधी, आधी और काटेंगे, जैसे भी हो जिंदगी काटेंगे।
करेंगे जो कर सके वो बेहतरीन, कि अनुवाद में बटेंगे।
कोई तो ध्यान देगा।
किसी से तो भाग जुङेगा।
कोई तो साथ होगा।
या ये सफर यूँ ही मिटेगा।।
आशायें आई गई, अपेक्षायें यूँ ही रही, बस यूँ रहा सफर मेरा।
पन्नों में बंटता रहा विचार, कौन समझा, कौन समझेगा दर्द मेरा।
वो सफर हसीन होगा।
वो नींद पुरी होगी।
जब जिन्दगी रुकी होगी।
और अंतिम मेजिल मेरी होगी।।
-कवितारानी।
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