मैंने खुद को सच्चा पाया।
मैंने खुद को सच्चा पाया।
मेरे सुने लम्हों में,
मैंने खुद को सच्चा पाया।
पुछा तुमने जो,
मैंने दिल से बताया।
एक बंधन विश्वास का बना,
और तुझे संदेह हुआ।
सब जानते हुए भी,
मुझसे तु दुर हुआ।
इस भीड़ भरे जग मे,
क्या ना मैंने खोया।
कुछ लम्हों तक ही सही,
तेरा साथ मैंने पाया।
यादों की तस्वीरों मे,
तु भी इतिहास बन जा।
एक बची ढोर पहचान की,
अब उसे भी तोड़ जा।
मेरे एकांत में,
मैंने फिर खुद को समझाया।
इस बदलते जग में,
एक मन का खुद को पाया।
मैंने खुद को सच्चा पाया। ।
- कविता रानी।
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