फिर से ऐसे लोग ना मिले | Fir ese log na mile




 फिर से ऐसे लोग ना मिले 


पहली बार देख ही मन से उतरे हैं ।

महिनें भर साथ रह कर भी मन से ना जुङे हैं ।।

 

कोई एक ना उनमें ऐसा मैंने पाया । 

जिसे याद रखूँ, कहूँ हाँ मैने सच्चा साथी पाया ।।


मन के मारे, अज्ञानता के भरे सारे ये ।

बुरी आदतों से भरे, लोभी लगते सारे ये ।।


शिक्षा के मंदिर पर क्या ही सिखाते ये ।

अच्छा काम करे कोई तो बस उसे गिराते हैं ।।


आगे बढ़ने वालों से जलते जाते ।

मुख पर कोरी मिठास दिखाते रहते हैं ।।


छलावा कर साथ चलते, दिखावे में ढूबे लोग ये ।

झूठे बनते सामने, पीठ पीछे सच्चे लोग ये ।।


खुद की कमियों को नजरअंदाज करते।

बेहतर इंसान को निचा कहते हैं ।।


कमजोर समय में काम लेते, बिन लड़ाई  ईर्ष्या से मरते हैं ।

कैसे ये अपना जीवन चरते हैं, कैसे ऐसे ये रहते हैं ।।


रह लिया साथ, जितना था रहना इनके साथ ।

सिख गया इनसे भी बहुत, जितना सिखना था है वो खुब ।।


बस अब यही कहना है, फिर से ऐसे लोग ना मिले ।

यही दुआ करते यहाँ से जाना है, फिर से ना मिले ऐसे लोग।।


मिले मन के सच्चे साथी, मन समझे और रहे मन से साथी ।

काम करे, करे कम भले बातें, पर रहे मन से साथ ही ।।

मिले मन के सच्चे साथी।।


 Kavitarani1 

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