मैं अभागा | main abhaga




मैं अभागा 


जग में भागा - भागा फिरता हूँ ।

मैं अभागा - अपने भाग से फिरता हूँ ।।


ठोर तलाशता, मैं जागता और सोता हूँ ।

अपनी उम्मीदों को समेटता, मैं मिटता और गाता हूँ ।।


मोह का धागा - धागा बुनता हूँ ।

मैं अभागा - अपने भाग्य से लड़ता हूँ ।।


छोर घूमता मैं, उस ओर घूमता मैं ।

अपनी मंजिल का पता पूछता रहता मैं ।।


मन का मारा, बेसहारा फिरता हूँ ।

मैं हारा, विजय पथ की पूछता हूँ ।।


एक अधूरा बनना चाहूँ पूरा, मैं जग घूमता हूँ ।

अपनी अमर कहानी लिखने को मैं ढोलता रहता हूँ ।।


मायाजाल से दूर रहता, खुद मन जाल में उलझता हूँ ।

अपनी कथनी पूरी करने को, मैं कर्म पथ पर चलता हूँ ।।


मैं अनाथ, अपना नाथ खोजता हूँ ।

साथ मिले मन का बस यही कोशिश करता हूँ ।।


इस जन - कभी उस जन मैं चलता रहता हूँ ।

मन की आवाज के दबाता मैं आधी राह चलता हूँ ।।


जग का भागा, मैं अभागा फिरता हूँ ।

अपनी मंजिल की तलाश को चलता रहता हूँ ।।


Kavitarani1 

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