मोहब्बत को फुर्सत की जरूरत है | mohabbat ko fursat ki jarurat hai
मोहब्बत को फुर्सत की जरूरत है
उल्फत-ए-राज कई दफन है ।
मोहब्बत को फुर्सत की जरूरत है ।
गुल है गुलिस्तान में तो हैरान जग है ।
नजर ढुंढती गुल को गुलिस्तान की जरूरत है ।
नशा चाहिये मदमय होने को ।
मय की, मयखाने की, राहगीर को तलाश है ।
फिक्र-ए-उम्र व गुजरते जमाने की ।
हुस्न पर समय और वक्त की जरूरत है ।
अरसा बित गया नूर-ए-दीदार को ।
सुकून-ए-चाहत को अदाओं की जरूरत है ।
दर-बदर भटकते मन को जरूरत है ।
बाहों के कोमल हार की जरूरत है ।
अश्को के मोती सस्ते बहुत ।
मोतियों के हार को जौहरी की तलाश है ।
शुष्क हुई गालों की लाली वक्त के असर से ।
रह गई कसर पूरी करनी है ।
टुट कर आइना अब चेहरा दिखता कई ।
हर हुस्न की तालिम और अल्फाज समझने की जरूरत है ।
यूँ कई परियाँ जन्नत से निकली है हमारे लिये ।
पर नूरं-ए-फिदा मन को एक की जरूरत है ।
हिम्मत कर पास जाये आग के ।
दूरी से तप रहे अब जलने की कसमकस है ।
बात दफन है गुल से गुफ्तगु के लिए ।
मोहब्बत से रूह जिन्दा करने की जरूरत है ।
उल्फ़त-ए-राज कई सारे है ।
एक दिलदार के दीदार की जरूरत ।
है हुस्न सब ओर दिखता ।
मोहब्बत को फुर्सत की जरूरत है ।।
Kavitarani1
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