सुनी भाग-4 विध्यालय में / suni part-4 vidhyalay mein
सुनी भाग-4 विध्यालय में घुँघुँरु की मधुर धुन से, चहलकदमी के शौर तक, आँगन-आँगन से अब, विध्यालय की ढेळ तक। अपने गाँव की शाला में, जाती है रोज बन बाला ये, अक्षर ज्ञान से तुरंत परिचित, मधुर मुस्कान चिरपरिचित। प्रथम पाठ पुरा हुआ तेज से, द्वितीय में दिखा कुछ वेग से, तृतीय तक थी कुछ आनाकानी, चतुर्थ में नियमित हुई सयानी। पांचवी तक आते-आते, दिखा दिया ज्ञान मन भाते-भाते, सबकी बनी चहेती सी, कुछ औसत कुछ तेज सी। तिसरी-चौथी पंक्ति भाति, कभी कभार अंतिम पंक्ति हो जाती, प्रथम पंक्ति दुर्बर दिखी, शैतानी भी की पढ़ाई भी की। मधुर बातें ही अक्सर सुनी, वो बाला अक्षर की हुई धुनी, सब कुछ रट झट याद करती, सबसे पहले रहने को मरती। रोज तैय्यार होके जाना, अपने जमें पर रोब दिखाना, दो चोटी में प्यारी गुङिया, मंजरी आँखों वाली वो भुरी गुङिया। कभी माँ कभी पापा आते, कभी भाई, बहिन ले जाते, छोटी थी अनजानी थी सुनी, आवाज देती कहती मेरी नहीं सुनी। अपने मन की रानी थी, जिद जब-जब उसने ठानी थी, चाॅकलेट पैसों से काम ना चलता, पापा की फटकार से मुॅह चिढ़ता। रोज समय पर काम करती, विध्यालय में आदर्श सी बनती, कोई श्रेष्ट जो उसस...