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सब फरेब है | Sab fareb hai

सब फरेब है  चलैया मैं चलैया, चलैया भर मन में फरेब मैं । चला ना कहीं सिक्का ये रखे ऐब है ।  कहैया मैं कहैया, सब जग सुनैया । सुनेया ना बनिया रे, सिक्का मेरा खोटा रखे ऐब ये ।। मोह के धागे बांधे, बांधी है डोर मैले में । खिंचे जाये चीज सारी अनमोल ये ।। पाना जो चाहूँ कुछ, कुछ लेना चाहूँ । छुना पाऊँ लेना चाऊँ भरी ऐब ये, लगे सब फरेब है ।। मैला खिचें मोह, खिंचे धागे नयनों के तीर ये । पास जाऊँ लगे सब फरेब ये, सिक्का मेरा खोटा रखे ऐब ये ।। सुनैया मैं सुनैया, प्रेम की पीड़ा अनमोल है । लगे मन में रोग ये, लगे मन को रोग ये ।। चलैया मैं चलैया, चलैया भर मन में फरेब मैं । चला ना खोटा सिक्का, सिक्का ये रखे ऐब ये ।।  गया था दूर कभी, दूर हूँ बहुत अभी । अभी है जीवन मजबूत ये, जग में सब लगे फरेब है ।। छोड़ी-कोड़ी जोड़ी मोह की माया जोड़ी । जुड़ी नहीं मन की प्रीत रे, चला ना खोटा सिक्का रखे ऐब ये ।। खोटा मैं सिक्का रखुं ऐब में,  रखुं सब फरेब मैं ।। Kavitarani1  166

खिंच ना तार | Khinch na taar

खिंच ना तार  मोहब्बतां के तार ना खिंच कुड़िये, सुर मेरा बिगाड़ दिया है । आँख विच सुरमां चढ़ाके छोरिये, आशिक का दिल मार दिया है । होती दूरियाँ मन समझ रहा, दूरियाँ ना किस्सा सुनादे बलिये । मोहब्बतां के तार ना खिंच सोनिये, दिल दा गिटार टुट रहा है । चाहिए ना कुछ-कुछ ना देवे, मिठ्ठा-मिठ्ठा बोल सुनादे माही वे । हुण रेण दे गले लगना, छुने की कोई गल रहन दे । होंठा नू लगा के रंग गोरिये, प्यारी सी मुस्कान दिखा दे बलिये । गलती होवी जो माफ करिजें, बोरियत मेरी तू भूल जा सोनिये । देख मोहब्बत का खुमार छोरिये, ला के दूँ जो मांगे एक बार बोलिये । रूठ ना बेवजह ऐसे तू , गलती हो तो सुना छोरिये । मोहब्बतां के गिटार नूं बजा कुड़िये,  मधुर धुन तू बना दे सोनिये । खिंच ना मोहब्बतां के तार ज्यादा तू, सुर नूँ चलने दे प्यार भरे सोनिये ।। Kavitarani1  163

फिर तुम वापस आई | Phir tum vapas aayi

फिर तुम वापस आई  यूँ जो जी रहा था मैं, कोई अर्थ नहीं था जीने में । सुखे हुए होठो से, पपड़ीयाँ उखाड़ रहा था मैं । यू तो जी रहा था मैं, कोई रस नहीं था जीने में । अपनी धुन में चल रसा था मैं, कोई अर्थ नहीं था जीने में  ।। फिर जैसे रोनक आई, खोई मुस्कान वापस आई । थोड़ी रोनक जगी वापस, कुछ रस आया वापस । कुछ आस लगी जीने की, कुछ प्यास जगी जीने की । जब तुम वापस आई, जब तुम आई ।। महिनें भर का सुखा राहत पा गया, बारीश सी हो गई । चेहरा खिल सा गया, मुस्कान छा गई । जो रूठा सा नीरस हो गया था मैं, रसमय हो गया । कुछ देर ही सही वापस आ गया मैं, खुश हो गया मैं ।। यूँ तो लाइफ कट रही थी, समय रूक नहीं रहा था । अब जब तुम आई जी रहा हूँ जैसे मैं । अब जाना ना यही कहना है,  कैसे भी हो खुश ही रहना है ।। Kavitarani1  161

आप बेमिसाल हो | Aap bemishal ho

आप बेमिसाल हो  वो अदाऐं बेमिसाल है,  वो हुस्न लाजवाब है । जिसे देखते ही मुस्कुरातें है हम, वो लब लाजवाब है ।। वो जुल्फें कायनात है , वो काजल पाताल है । जिस मखमल को पाने की रही हसरतें,  वो बाहें जन्नत है ।। वो हँसी यादगार है, वो शर्माना दिल के पार है । जिस बात पर मरते है हम, वो हर चाह आप में हैं ।। वो सावन आप में है, वो बसंत आप में है,  जिस मिजाज में रही जीने की चाह, वो राह आप में है ।। वो शराफत आप में है,  वो बदमाशी आप में है,  जिस हुनर पर दिल मरता है,   वो अदाऐं आप में है ।। वो लम्हें खुशनसीब है, वो लोग भाग्यशाली है,  जिनसे मिले आप सफर में,  वो सफर यादगार है ।। Kavitarani1  160

मैं बैठा हूँ | main betha hun

मैं बैठा हूँ  मैं बंद पलको को कर बैठा हूँ । अपने ख्वाबों को समेट बैठा हूँ । रंगहीन दिख रहा सबको मैं । अपने अंदर इंद्रधनुष छुपाये बैठा हूँ ।। ख्वाहिशें दबाये बैठा हूँ । सपने सजाये बैठा हूँ । मैं बारिश को रोके हूँ । मैं बसंत को रोके बैठा हूँ ।। कुछ गुलाल छुपाये रखी है । पानी में रंग घुलाये बैठा हूँ । मैं साफ कपड़े रखे हूँ । मैं तुम्हारे इंतजार में हूँ ।।  बंद कमरे में ही बैठा हूँ । जग से खुपा बैठा हूँ । अपनों से दूर रूका हूँ । मैं अपनी होली छुपाये बैठा हूँ ।।  कुछ पल अद्भूत रखे है । सपने रंगीन बनाये रखें है । तस्वीर खुशनुमा रखें हूँ । मैं तेरे लिये रूका हूँ ।। मैं तारे सारे छुपाये बैठा हूँ । अँधेरे में छुपा बैठा हूँ । कोई देख ना ले इस होली ये । तेरे लिये रूका बैठा हूँ ।। Kavitarani1  158

ये सब यहीं रह जायेगा | Ye sab yahi rah jayega

   ये सब यहीं रह जायेगा  ये सब दुनियाभर की माथापच्ची, भूल लोगो की मनमनी, चालबाजियाँ रहने दे पिछे, हॅसी ठिठोली भूला दे रे, कुछ साथ नहीं जायेगा, तु कोशिशें कर, ये सब, सब बदल जायेगा । कुछ काम ना ये आने वाला, कुछ साथ ना ये जाने वाला, कुछ पास ना ये रहने वाला,  रह तु अपनी धुन का,  रह तु मतवाला, ये सब जो हुआ,  ये सब जो हो रहा,  सब किस्सा बन जायेगा, सब यहीं रह जायेगा । कुछ मेहनत कर जी तोड़ कर, कुछ जग ले चिंता छोड़कर,  कुछ पाने की प्यास जगा, रूका हुआ है क्यूँ तू, उठ खुद को भागा, अपनी करनी से राहत पायेगा, रूक ना इन छोटी-मोटी बातों से, ये सारी बातें और ये लोग, इनकी करनी और हरकते, सब यहीं रह जायेगी, कुछ साथ नही जायेगी,  ये सब यही रह जायेगा, ये सब यहीं रह जायेगा ।। Kavitarani1  154

जोश चाहिये | Josh chahiye

जोश चाहिये  मैं उठ तो गया हूँ, पर जोश नहीं है । करना क्या है अभी होंश नहीं है । आशाओं के दीप बुझे, सुरज की रोशनी मध्यम लगे । मैं सोंच रहा ऊर्जा कहाँ से पाऊँ अब । मुस्कान नहीं, कैसे मुस्कुराऊं मैं । मुहँ धोने से चमक नहीं आई है । चिंता मेरे भविष्य की माथे पर चढ़ आयी है । रेखायें बढ़ती उम्र की मोहताज ही । और में बैठा अभी भी नदी के किनारे ही । अब आगे जैसे रास्ता नहीं । नदी पार करूँ बह जाऊँ डर है ही । पिछे वापस जाने की हिम्मत नहीं । किनारे पर ठहलूँ पर कब तक । सोंच रहा कोई आये पतवार बनकर । कोई पुल बनादे तेज बहाव पर । मेरे तैरने की अब ताकत नहीं । होंसलो की उड़ान अब रही नहीं । उड़कर पार करूँ दरिया, हिम्मत नहीं । कोई आये साहस दे, बुझ रहे दीपक को ईधन दे । भर जोश ज्वाला से, फिर ना डरूँ डूबने और बहने से । यहाँ रहने से घूटने से अच्छा है । मैं जाऊँ कोशिश करूँ पार करूँ दरिया को । हाँ मैं तर जाऊँ दरिया को । मुझे जोश चाहिये, काम ले सकूँ तन-मन होश चाहिये । आगे बढ़ना है, मुझे तो दरिया का दुसरा किनारा चाहिये । बढ़ना है तो ताकत और उम्मीद का दुसरा किनारा चाहिये । बढ़ना है तो ताकत और उम्मीद का जहान चाहिय...

समस्याऐं मेरी | samasyayen meri

  समस्याऐं मेरी  जो लग रही थी छोटी, वो अब भी डटी पड़ी है । बाधायें पथ की बनकर, मेरे हर पग पर पड़ी  हैं ।। दिखने में है ये छोटी, पर समस्यायें ये बड़ी है । मेरे रास्तों को रोक, ये विकराल रूप ले खड़ी है  ।। जो शब्दों के जाल थे, अब उनपे पहेलियाँ जुड़ी है । दुविधा भरे जवाब पर, अब प्रश्नों की लड़ी  है ।। पहले ही अनसुलझे ढाल थे, अब सीधी चढ़ाई खड़ी है । मुश्किलें पहले ही आम थी, परेशानियाँ अब हर मोड़ पर खड़ी है ।। जो अपने अजनबी मिले, हर किसी के चितायें जड़ है । अब तक सामान्य सी लग रही, वो समस्यायें बडी-बड़ी हैं ।। मंजिल को पाने के शौर में, भौर से दुपहर तक मेरी अड़ी हैं । पथरीली राह पर जीवन ढोर में, काँटो की सेज से बनी लड़ी है ।। जो लग रही थी छोटी, वो राह बहुत ही कड़ी है । थक गया हूँ इसपे चलकर, रवि-किरण क्षितिज पर खड़ी है ।। चेहरे पर मुस्कान बन, मन पर कुण्डलि डाल पड़ी है । रूकावटें दुख बनकर, मेरे हर लम्हें पर मोतियों सी जड़ी है ।। दिखने में हो सकती छोटी, ये चतुर चालाक बड़ी है । मेरे जीवन सफर के हर मोड़ पर, समस्यायें विकराल रूप में पड़ी हैं ।। Kavitarani1  103

खुश रह | Khush rah

खुश रह  खुश ही था दिन भर का, अपना काम कर रहा था मन से मैं । सोंचा चलो किसी का भला सोंचे, अपने दिये काम से ज्यादा कर ले । पर जानता था मुक्त की चीज की कदर कहाँ,  कौन पुछे भलाई को यहाँ । वही हुआ समझने की नौबत रही, बात खुद पर ही आती रही । क्यों ज्यादा सोंच काम करता हूँ,  जिन्हें जरूरत नहीं उनकी सोचता हूँ । क्यों मैं अपनी शक्ति खो रहा, दुखी मन लेकर क्यों दिन खो रहा । कदर पैसों वालों की है जग में,  मेहनत बिन पैसे करना फिजुल है । जमाना कलयुग का है रवि, क्यों सतयुग सा मन लेके जीता है । खुश रह बस अपने हिस्सा का लेकर, मान पर बस अपनी सुनकर । कठोर ना बन सके तो छोड़ दे, अपना काम कर, कुछ समय पर छोड़ दे । उनके भाग का वो खायेंगे,  वो अपना का कर्म पायेंगे । तु अपना काम करना अब, व्यर्थ धर्म पर ना पड़ना अब । सिख समय की काम ले, खुश रह और रब का नाम ले ।। Kavitarani1  152

असहाय | Asahay

  असहाय  हाय विपदा भारी, मन की हारी । हाय कहाँ छूपाऊँ, मन का मारा बेसहारा । खुद लिखूँ मिटाता जाऊँ, असहाय मैं । हाँ लगता है अब; असहाय मैं ।। बोझ पहले भी था, मन से तड़प भी था । पनपा भी था मैं, रेगिस्तान में । हाँ भरे कोहरे मे भी चला था मैं । पर बोझ बदले है उम्र बदली है । पहले जोश भरा था मन में मेरे । अब लग रहा असहाय मैं ।। डर है कल कौन अपनायेगा । अँधेरे में गये रवि को कौन ला पायेगा । कौन कहेगा फिर ये सवेरा है । चलना दिन भर है अभी दुपहर सा जलना है । अभी बाकि है दिन तेरे, और हौंसले के बिन है । हाँ शायद तुझे लग रहा मैं असहाय । हाँ मैं असहाय सहायता मांग रहा ।। कोई आये ऊर्जा दे, जकड़ा जा रहा राह पकड़ दे । दे आशा कि किरण की जल जाऊँ मैं । भरा पड़ा हूँ ज्वाला से बस फिर से सुलग जाऊँ मैं । हाँ मुझे जरूरत है, किसी अपने की जरूरत है । हाय कोई राह दिखा दे, मुझे गले लगा ले ।। ये विपदा भारी, मन की हार भी । जीने के सारे रास्ते है । मुझे आगे बढ़ने से रोके है । हाय कैसी फैली मन पर महामारी । लगता असहाय, प्रहार हुआ भारी ।। Kavitarani1  136

शिक्षक है हम भूल ना जाना | Shikshak hai hum bhul na jana

शिक्षक है हम भूल ना जाना  जीवन संघर्ष में दौर कई आते है । किताबों से लड़-लड़ कुछ लोग आगे बढ़ जाते है । विद्या ध्यान पाकर विधारागी बनते हैं । पथ का गौरव पाकर हम गुरू जानते है । दान - दक्षिणा के हकदार नहीं अब । सरकार के नौकर है हम सब । पैशे से जनता के सेवक है अब । लोगों के भावी भविष्य बुनते है हम सब । हमें समाज सुधारक बन काम करना है । देश के युवाओं का उद्धार करना है । मार्ग दर्शक है हम, मार्गदर्शन सबको कराना है । पैसों में उलझ कर्त्तव्य ना भूल जाना है । शिक्षक है हम भूल ना जाना है ।। Kavitarani1  101

दुविधा में Duvidha mein

दुविधा में  पहले से असुविधा में,  मैं जाने कैसे काट रहा अपने दिन । फिर आये दिन की परेशानियाँ,  आये दिन समझता खुद को हीन ।। हॅस के गुजारता दिन, और मन में रहते कहर दुर दिन । फिर भी मैं दीन हीन कोशिशों से, आज भी गिन रहा दुविधा के दिन ।। पकड़ हाथ अपनों का चलूँ, साथ लेकर सबको मैं बढूँ । सबकी बात करते ,उठते और बढ़ते,  मैं कभी उढूँ कभी गिर पढूँ ।। आज इसमें उलझा, मैं कल था उसमें जा उलझा । यहीं सोंच लेता कभी-कभी कि, मैं था कब सुलझा ।। एक उम्र की विधा में,  आशाओं की ओर सुविधाओं में । जाता हूँ लौट आता हूँ,  लगता है मैं हूँ दुविधा में  ।। Kavitarani1  101

आसान नहीं | Aasan nahi

  आसान नहीं  अकेले बंद कमरे में रहना । भीड़ में सुने बिना रहना । अँधेरे में चलते रहना । कोई पूछे और चुप रहना । आसान नहीं । आसान नहीं ।। कर्म पथ पर धर्म से बचे रहना । धर्म में राजनीत का ना रहना । अंधे अनुकरण कर्त्ताओ को समझाते रहना । अज्ञानी की हठ को भूल कहते रहना । आसान नहीं । आसान नहीं ।। लोगों में रह लोगों सा दिखते रहना । सपनों को छोड़ बस दौड़ में रहना । खाना और काम पर जाते रहना । खाली समय यूँ ही टहलते रहना । आसान नहीं । आसान नहीं ।। सब समझते हुए ना समझ रहना । सब जानते हुए अनजान रहना । पागलों में पागल बने रहना । अहमीयों में अहम् से बचे रहना । आसान नहीं । आसान नहीं है ।। अच्छी बातों को छोड़ते रहना । बुरी बातों को सहते रहना । बिन कहे किसी को समझते रहना । बिन दिखे नतीजे कहते रहना । आसान नहीं । आसान नहीं ।। मुर्खो की टोली में मुर्ख बने रहना । समझदारों को ज्यादा दिन सहते रहना । आसान नहीं । आसान नहीं  । Kavitarani1  91  

क्यों | Kyon

क्यों  ? कभी आ रहे हो, कभी जा रहे हो, क्यों ना मुझे समझ पा रहे हो । शर्मा रहे हो, मुस्कुरा रहे हो, क्यों ना मन की कह पा रहे हो । बता रहे हो, सुन रहे हो, क्यों मन की कर पा रहे हो । दिख रहे हो, छुपा रहे हो,  क्यों ना मुझे अपना रहे हो,  बन रहे हो, बिगड़ रहे हो, क्यों ना मेरे लिये सँवर पा रहे हो । बता रहे हो, छुपा रहे हो, क्यों ना मुझे अपना पा रहे हो । क्यों दुनिया से डरे जा रहे हो ।। Kavitarani1  87

तुम्हें मेरी याद नहीं आई | Tumhe meri yad nahi aayi

तुम्हें मेरी याद नी आई  सबको मेरी याद आई, दूर खड़ी दीवार भी मुस्कुराई । पास पड़ी चार पाई भी समझ पाई, पर तुझे मेरी याद नी आई ।। सुबह को सुरज मिलने आया, शाम को चाँद शर्माया । तारों की रोज बरातों सी आई, पर तु नी मिलने आई ।। सर्दी लिपट कर चढ़ आई, कोहरे ने रास्ते पर पलकें बिछाई । सर्द हवायें गालों को चूम कपड़ो में भर आई, पर तु नी आई ।। दिन को धूप सिर पर चढ़ आई, किरणों ने रोज राह दिखाई । शाम को सूर्यास्त की सुनहरी भी मिलने आई, पर तु नी आई ।। रात को अँधेरे को मेरी याद आई, डर ने भी मेरी पकड़ी कलाई । नींद ने तो बाँहे मेरे लिये ही फेलाई, पर तुम्हें मेरी याद नी आई ।। सपनों की हर परछाई पास आई, अधूरी ख्वाहिशें भी मिल आई । अलार्म को भी समय की समझ आई, पर तुम्हें मेरी याद नहीं आई ।। Kavitarani1  87

मन मेरा | man mera

मन मेरा  कहने को जग है साथ में,  पर मन को कहाँ कोई भाता । सुनने को सब है पास में,  पर मन को कहाँ समझ आता । कुछ ही लोग मिलते है जीवन में । जिन पर मन आता ।। बोल मेरे बड़े बेमैल होते, हर कोई इन्हें कहाँ समझ पाता । शब्दों का झोल भरा होता इनमें,  हर कोई कहाँ इन्हें तोल पाता । कुछ ही संयोग आ टकराते हैं, जिन्हें मन आसानी से समझ जाता ।। मन मोहक छवि लेकर रस भरी बोली जाते, आँखो में चमक भर प्यारी सुरत दिखाते । हर मोड़ पर मिल जाते है लोग प्यारे से, अपनी अदाओं का जाल बिझाते दिखते । हर को हर मासुम चेहरा कहाँ भाता ।। बड़े अनमोल है ये चुनिंदा कुछ लोग मेरे, जिन्हें समय साथ मैं खोता जाता । कुछ अड़े रहते जिद पर अपनी, कुछ को मैं नहीं समझ पाता । कहता रहता लड़ते झगड़ते ही, न माने ये तो खुद मान जाता ।। आखिर एकान्त वासी बना बैठा हूँ,  और मन को कहाँ समझ पाता ।। Kavitarani1  85

मेरी दबी हॅसी | Meri dabi hasi

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मेरी दबी हॅसी  मेरी शामें रूकसत सी रहती है । मेरी दबी हॅसी अक्सर मुझसे कहती है । कहाँ खोया हुआ मन तु रहता है । क्यों ना मुझसे सब कहता है ।। क्या हुआ जो वो तुझसे रूठा है । खास था पर कहाँ जग से छुटा है । भूल जा बुरे लम्हों को मस्त रहा कर । कोई ना मिले कहने को मुझे कहा कर ।। मैं शांत शीतल सब औझल करने वाली । सुरज की तेज गर्मी को भी हरने वाली । तेरे प्रताप, आवेश को भी हर लूँ । आ पास बैठ मैं तेरे दिन की सुन लूँ ।। खुलकर हॅस मुझे दबाये रख ना ज्यादा । मुझे छुपाने से घट रहा वजन आधा । कहूँ तुझसे तु मान लिया कर । हॅसकर हरपल मेरे साथ जीया कर ।। मैं दबी हॅसी तुझे याद करती हूँ । हर शाम और सुबह तुझसे दूर रहती हूँ । दिन भर और व्यस्त रह कहीं खोया तु रहता है । कोई पूछे मन तुझे तु झूठ कहता है ।। आ पास साथ जी ले हम । शाम के मनमोहक दृश्य सी ले हम । किसी की जरूरत फिर हमें कहाँ । स्वार्थ भरे जग में मन का कहाँ ।। आ हॅस ले साथ में फिर । शामें गुजर रही और उम्र के दिन । ढलते दिन शामें रूकसत करती है । मुस्कुरा हमेशा जिन्दगी कहती है ।। Kavitarani1  84

मन का बोझ भारी | Man ka bojh bhari

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मन का बोझ भारी  हाय ! बोझ भारी । कैसी काया ये ?  भावनाओं का रहता ज्वार भारी । हाय ! बेरी मन का तो बोझ भारी ।। साथ जग सारा,  कहता और देता सहारा । पास अपनों के अपने स्वार्थ भारी । अपनी धुन का धुनी मन मेरा, सुनता रहता बाहरी । लेता सबके शब्दों को मन पर, जब है खुद के दुखड़े भारी । हाय ! मन के ऊपर बढ़ते बोझ भारी ।। कैसी करनी ?   कैसी भरनी ?  अपनी नाव करनी वैतरणी । बोध सबका ज्ञात, अज्ञात की जानता जात । करता ना भेद-पात, दात देता और समझता बात सारी । समायोजन, समाज और आजीविका का, उसपे स्वार्थ करता प्रहार ही । चलता रहता काया का काल भी, और मन पर आरी । हाय ! मन पर बोझ भारी ।। कंचन काया काँच सी चमके, खींच चमक तन भी चमके । मोह-मोह के मोह में उलझे, नासमझि में समय बीते । बीते दिन, महिने, साल और जीवन प्रहरी । सोंच ! मन पर मोह भारी ।। कल का कोरा कागज आज, जगह नहीं लिखने की । सुर नहीं, ताल नहीं,  तो लिखता-मिटाता गीत खुद  ही । खुद ही लिये चल रहा, भु ल रहा की ये मन किसकी करता सवारी । तेज गति भाग रहा है इसके शौक भारी । बढ़ती उम्र और बढ़ती बातें करतीं रहती उलझनें ही । मन क...

तेरी कमी है | Teri Kami hai

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तेरी कमी है  शब्दों की माला में,  प्यार के फुलों की कमी है । मेरे गीतों की लत में,  तेरे अश्रों की कमी है । यूँ तो कई अफसानें हैं मेरे,  पर सबमें तुझसे जज्बातों की कमी है । मेरी जिन्दगी की बसंत अधुरी है,  मेरी बारिश में बुँदों की कमी है । मेरे गालों की नमी में,  बस तेरी कमी है ।। साँझ का सुरज निहारे,  क्षितिज में तेज की कमी है । भौर की दौड़ पुकारे,  दिन में होंसले की कमी है । यूँ तो भरे पड़े है सपनें कई,  पर आशा की मध्यम होती जोत में ईधंन की कमी है । मेरी जीवनवृत की कहानियों में,  पूर्णांक और सार की कमी है । अधुरी रही ख़्वाहिशों की तह में,  बस तेरी कमी है ।। पथरीले रास्तों में,  जोश की कमी है । अँधेरी रातों में,  साहस की कमी है । तेज धूप वाले दिनों में,  तेरे आँचल की कमी है । मेरे बेबाक बोल में,  तेरी सटीकता की कमी है । मेरे मंजिल के पाने पर भी, बस तेरी कमी है ।। एकान्त, शांत मन बोझिल जो अहसास तेरी कमी है । उदास, क्लाँत मन भारी जो ज्ञात तेरी कमी है । हताश,भ्रांत मन चोटिल जो जान तेरी कमी है । यूँ तो सब है होने को ...

मेरा भाग्य | Mera bhagya

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मेरा भाग्य  कट गई रात करवटों में,  बह गये दिन सलवटों में,  बदल गई दुनिया दौड़ भाग में,  पर कुछ रह गया बदलना, वो मेरा भाग्य  । कल भी चाह में किसी की था, कल भी सपने सुकून के देखता था, होती थी बातें गाड़ी, पैसे और बगंले की, एक साथी और खुशियों की,  बहुत कुछ सोंचा था बदल देने की, बहुत कुछ बदला है, ये नहीं,  समाज, घर, लोग, बोली सब बदलें है, पर एक जो रह गया बदलना बाकि, वो मेरा भाग्य है ।। पलको को नम कर गम छिपाये, डायरी में लिखे लोगों से छिपाये, मुस्कान चेहरे पर रख दुःख दुर रखा, एकान्त में बैठ सुख का मनन किया, सब कुछ छुट गया पिछे अपनी मातृ भूमि के साथ,  कुछ नहीं छुटा पिछे वो था, भेरा भाग्य ।। कट जायेंगे दिन-रात उम्र के साथ,  जैसे नदिया मिलती सागर में लहरों के साथ,  हिरे मन के भी अंतिम मुकाम तक जायेंगे,  जो घटना है छूटेगा और साथ रहेगा, वो मेरा भाग्य  ।। Kavitarani1  76

तुझे पता है | tujhe pta hai

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तुझे पता है  ये बस मुझे पता है और तुझे यकीन है । सब जो समझते है वो सब खाली भ्रम है ।। जी रहा हूँ मैं अकेले पर सुनापन भी है । खुशी दिखती है पर मुस्कान खफा है ।। तुझ बिन रह रहा हूँ ये सवाल सा है । रह ना पाता हूँ तुझ बिन ये जवाब है ।। ये बस मुझे समझ आता है, और तुझे पता है । सब जो सोंचते है वो सच कहाँ ।। मैं अधूरा हूँ बिन तुम्हारे हमेशा से । और दौड़ रहा हूँ तुझसी पाने को मैं ।। तु नहीं चाहिये मुझे ये मुझे पता है । तुझसी ही मुझे चाहिये ये तुझे पता है ।। कोशिशें बेहतरी की नाकाम है । आजमाइशें प्यार की बेकार है ।। रहनुमा में सासों का जो चल रही है । तेरी चाह बिझड़ने से जल रही है ।। हालात बदतर जब यादें तन्हा हैं । लम्हे खौफजदा जब बातें तन्हा है ।। अन्दाज महसूस एकान्त जिन्दगी मजा है । शब्दों का सार बस तुझे पता है ।। चल रही खुशी से जिन्दगी ये फंसाने है । अपनी आप बस मुझे पता है  ।। कैसे कट रही जिन्दगी में बस मुझे पता है । ये बस मुझे पता है और तुझे और खबर है ।। Kavitarani1  74

अस्तांचल लुभाये | Astanchal lubhaye

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अस्तांचल लुभाये  कोरे नैना ख्वाब सजाये । एकान्त मन तुझे बुलाये । पूर्वांचल से चला रवि । अस्तांचल में मन लुभाये ।। कोई कागज़ शब्द सजाये । मन का बोझ उतरा जाये । शीत हवा सिहरन बढ़ाये । बैठा एकान्त मुझे अस्तांचल लुभाये ।। ज्ञान वेदी सास पढ़ी । पूर्वांचल से याद जुड़ी । सपनों में लक्ष्य आये । शांत मन को अस्तांचल लुभाये  ।। दिन की दौड़ भाग । चरम पर अपनी आग । सुर्योदय सी आभा दिखाये । जब अस्तांचल रवि लुभाये  ।। दिन, पहर, साल गुजरे । देख दृश्य कई दृश्य गुजरे । कई नये मित्र दिन में मिल जाये । शाम को एकान्त अस्तांचल लुभाये  ।। अधुरे लब्ज, अधुरे शब्द । अधुरा ज्ञान मुझे झुकाये । अस्थिर दुनिया-जीवन को । दिखता समझाये, अस्तांचल लुभाये ।। Kavitarani1  71

कोई पग फेरी कर जाये | Koi pag pheri kar jaye

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कोई पग फेरी कर जाये  विरान महल पड़ा हुआ,  उजड़े खलिहान सा ही गया । मेरे मन पर अब जोर नहीं,  तन पर मन भी हावी हुआ । कोई राग कहे, कोई रोग कहे । कोई कहे ये शांत हुआ,  कोई इसे अशांत कहे । मेरे मन को फिर खिला जाये । कोई आये पग फेरी कर जाये ।। जो धुल चड़ी है मैदान पर, अपने पग निशान छोड़ जाये । कोई आये तो महक लाये, कुछ बीज अनोखे छोड़ जाये । वृक्ष बनू हरियाली होए,  सब और फिर खुशहाली होए । मन करे विलाप, रोये, आखी-आखी रात जगे । सुबह से बौर करे, भौर ये बरबाद करे । मेरे पर काबु  कर जाये, कोई खैले, खैल खिला जाये । कोई भूले भटके से सही,  कोई पग फेरी कर जाये ।। आराम नहीं पल भर का, अब राम भजू, जीवन या । करे विनती हर रोज यूं ही, या पड़ा रहे विरान सा । मेरे मन पर जाले पङ रहे अब, खलिहान बंजर हो रहा अब । धूल उड़ रही, मिट्टी उड़ रही,  सपने जीवन के हवा हुए । कोई पानी की फुहार बने, फिर से मिट्टी की पकड़ बने । हरियाली की आस जगे, कोई आये मन लगा जाये ।। मैं ख्वाब सोंच रहा सारे, होये नहीं पूरे वो सारे । अधूरे रह गये कुछ जो, कुछ को पाया है कुछ पास है । जो मन की आस रह गई, वो ...

क्यों हम मिले नहीं | Kyon hum mile nahi

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क्यों हम मिले नहीं  कितने साल बित गये दोनों को बात करते-करते ? क्यों एक दिन साथ ना बिताया है ? कितने महिने बित गये दोनों को प्यार का इजहार करते-करते ? क्यों रह जाता सफर अकेले में ? जब वादे होते साथ-साथ जाने के । कुछ सवाल बने रह गये मेरे । क्या इनका जवाब तुम्हारे पास है ! मैं अकेला अपनी धुन का चलता आया हूँ । पतझड़, सावन, बसंत, बहार के मौसम देखते आया हूँ । कोई मौसम मन का साथ किसी के गुजरा नहीं । सोंच रहाँ हूँ इस बार कहीं चलें और चलो तुम भी । क्या छुपा रह गया जो तुमने बताया नहीं ? क्या कोई राज रह गया कहीं राज ही ? क्यों इतने सालों बाद भी हम है जैसे नये ही । बातों में भी दिखती नहीं गहराई हीर रांझे सी । कहीं रोमियों-जुलियट बनने का ख्वाब नहीं । ना सोनी-महिवाल की मैंने बात कही । एक ही जिंदगी पास तेरे-मेरे । फिर क्यों हम कभी मिलते नहीं । कितनी इच्छायें रह गयी मन में मेरे । कितनी बातें आई और अब गुम गई । कब वो स्पर्श याद रहेगा मुझे । जो कभी कहते-कहते तुम हॅसी थी । बात मन में अब सवाल बनी है । क्यों इतने साल बाद भी हम मिले नहीं  ।। Kavitarani1  59

खामोशी | khamoshi

खामोशी  मुझे खोमोशियाँ जगाती है । याद नहीं कब शांत जगह रहा मैं,  पता नहीं कहाँ गया था मैं । शौर में ही दिन गुजरें है । मैं शांति में नहीं रहा हूँ । शायद इसीलिए शांति अन्दर से खाती है । खामोशियाँ डराती है । कोई बोलता तक पंसद ना आता, शौर मेरे समय को खाता, चिल्लाहटें आस-पास रही है,  मेरे आस-पास खामोशी नहीं रही है । इसीलिए आदत नहीं है । खामोशी घबराहट लगातार है । पर शांति की तलाश में था मैं । और शांति में जीना चाहता था मैं । आगे बढ़ने के लिये शांत होना जरूरी है । मुझे इसकी आदत जरूरी है । मुझे ख्वामोशी जगाये रखे । शांत कर आगे बढ़ये रखे । इस नयी जगह का मैं आदी होऊँ । ध्यान लगाऊं आगे बढूँ । मुझे खामोशी की जरूरत है । खामोशी मुझे जगाती है ।। Kavitarani1  58

मोहब्बत को फुर्सत की जरूरत है | mohabbat ko fursat ki jarurat hai

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मोहब्बत को फुर्सत की जरूरत है  उल्फत-ए-राज कई दफन है । मोहब्बत को फुर्सत की जरूरत है । गुल है गुलिस्तान में तो हैरान जग है । नजर ढुंढती गुल को गुलिस्तान की जरूरत है । नशा चाहिये मदमय होने को । मय की, मयखाने की, राहगीर को तलाश है । फिक्र-ए-उम्र व गुजरते जमाने की । हुस्न पर समय और वक्त की जरूरत है । अरसा बित गया नूर-ए-दीदार को । सुकून-ए-चाहत को अदाओं की जरूरत है । दर-बदर भटकते मन को जरूरत है । बाहों के कोमल हार की जरूरत है । अश्को के मोती सस्ते बहुत । मोतियों के हार को जौहरी की तलाश है । शुष्क हुई गालों की लाली वक्त के असर से । रह गई कसर पूरी करनी है  । टुट कर आइना अब चेहरा दिखता कई । हर हुस्न की तालिम और अल्फाज समझने की जरूरत है  । यूँ कई परियाँ जन्नत से निकली है हमारे लिये । पर नूरं-ए-फिदा मन को एक की जरूरत है  । हिम्मत कर पास जाये आग के । दूरी से तप रहे अब जलने की कसमकस है । बात दफन है गुल से गुफ्तगु के लिए । मोहब्बत से रूह जिन्दा करने की जरूरत है  । उल्फ़त-ए-राज कई सारे है । एक दिलदार के दीदार की जरूरत  । है हुस्न सब ओर दिखता । मोहब्बत को फुर्सत की जरूरत ...

बातें हो जाने दो | Batein ho jane do

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  बातें हो जाने दो  बातें ही तो है, हो जाने दो । कुछ ही ख़्वाहिशें है, पूरी करने दो । मिलते नही कभी ऐसे हम, सपनों में साथ रहने दो । जो गया गुजर वो समय भूल जाने दो । बातें ही तो है, हो जाने दो ।। कट रही है घडियाँ, जिन्दगी भी । बट रही है खुशियाँ, और कमियाँ भी । गम के सागर में गोते रोज लगातें है । जो है मन में कह देने दो । बातें ही तो है हो जाने दो  ।। वो ख्वाबों का शहर, अनदेखा रह जाये । बगंले, कारें और आराम रह जाये । मेरे काम और काम के फुर्सत के पल साथ गुजारने दो  । पास नहीं हो फोन से बताने दो । बातें ही तो है हो जाने दो । मन की बाहर आ जाने दो । सब्र के फल मिलने दो । अपने हाल सुनाने तो दो । मिलना ना हो कोई बात नहीं । बातें ही तो है, हो जाने दो ।। कुछ ही ख़्वाहिशें है, पूरी करने दो । मिलना मुमकीन होता नहीं, तो कहने दो । बातें ही तो है, हो जाने दो ।। Kavitarani1  56

मैं अभागा | main abhaga

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मैं अभागा  जग में भागा - भागा फिरता हूँ । मैं अभागा - अपने भाग से फिरता हूँ ।। ठोर तलाशता, मैं जागता और सोता हूँ । अपनी उम्मीदों को समेटता, मैं मिटता और गाता हूँ ।। मोह का धागा - धागा बुनता हूँ । मैं अभागा - अपने भाग्य से लड़ता हूँ ।। छोर घूमता मैं, उस ओर घूमता मैं । अपनी मंजिल का पता पूछता रहता मैं ।। मन का मारा, बेसहारा फिरता हूँ । मैं हारा, विजय पथ की पूछता हूँ ।। एक अधूरा बनना चाहूँ पूरा, मैं जग घूमता हूँ । अपनी अमर कहानी लिखने को मैं ढोलता रहता हूँ ।। मायाजाल से दूर रहता, खुद मन जाल में उलझता हूँ । अपनी कथनी पूरी करने को, मैं कर्म पथ पर चलता हूँ ।। मैं अनाथ, अपना नाथ खोजता हूँ । साथ मिले मन का बस यही कोशिश करता हूँ ।। इस जन - कभी उस जन मैं चलता रहता हूँ । मन की आवाज के दबाता मैं आधी राह चलता हूँ ।। जग का भागा, मैं अभागा फिरता हूँ । अपनी मंजिल की तलाश को चलता रहता हूँ ।। Kavitarani1  54

जीवन साथी | Jivan sathi

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जीवन साथी  तुम आये नहीं अब तक, ओ जीवन साथी मेरे । क्यों आये नहीं अब तक ? कब से मैं, बैठा रूका तुम्हारे लिये । कब से मैं, राह तखता तुम्हारे लिये । मन में छुपाया हूँ प्यार बहुत सारा ।। मन में आने नहीं दिया कोई,  कोई बनाया ना सहारा । मेरा सहारा बनों तुम,  कब से राह निहारूँ मैं ? पूछूँ जग से, क्यों आये नहीं तुम ? तुम आये नहीं अब तक, ओ जीवन साथी मेरे । कब से रोज तकता मैं सवेरे । प्रेम का सागर भर - भर छलकता । प्रेम का बना गुड्डा - गुड़िया को तकता । मिट्टी का बना नम ही रहता । सुखी जाये मिट्टी अब, नम तु कर जा । कब से मैं बैठा रूका तुम्हारे लिये । आओ साजना बात करें बैठे साथ । रह गई जिन्दगी, रहते उदास । मुस्कान बन आओ, मन पर छाओ आज । मेरी दुनिया बन, मुझको भाओ आज । इंतजार में कट गई उमरिया । दिन कटे, रात कटी, भौर-शाम कटी हाँ । तुम आये नहीं अब तक, ओ जीवन साथी मेरे । क्यों आयें नहीं अब तक  ।। Kavitarani1  53

आयेगी खुशियाँ | Aayegi khushiyan

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आयेगी खुशियाँ  आयेगी खुशियाँ, खुशियों की राह सजाता मैं । जैसे भी मिले जिन्दगी, जिन्दगी जीता मैं । ख्वाबों की गलियों में, घर बनाता मैं । मृगतृष्णा से जाके प्यास में ऐसा,  जिसको कहूँ मैं जीवन है कैसा । कोई नहीं है साथ में ऐसा,  जिसके गोद सर रख सोऊ वैसा । मिलेगा कहीं कोई साथी मन का,  मन मेरा देख रहा सपना । आयेगी खुशियाँ, राह सजाता मैं । गम को भूलाके बस खुशियाँ गाता मैं । कोई कमी है, जो रोके रस्ता मेरा । कोई कमी है, जो रोके रहते हॅसकर जीना । दुखों के झरने मिले करते गीला । आयेगी खुशियाँ, राह सजाता हूँ । अपने प्यार को पाने के ख्वाब जगाता हूँ । जाती जिन्दगानी, कटती जवानी, उम्र का बढ़ना, वक्त गुजरना, जाती यादें सारी, जाते ख्वाब, टुटते नींद मेरी, टुटती उम्मीद,  सोंचने के करते, होना क्या है खुब, खुब मैं सोंचता खुशियों की, याद आती, यादें पुरानी । आयेगी खुशियाँ,  खुशियों की राह सजाता मैं  । जो भी मिले हॅस के गले लगाता मैं । आयेगी खुशियाँ  ।। Kavitarani1  52

कब आओगे मित मेरे | kab aoge mit mere

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कब आओगी मित मेरे  जेठ गया तपते - तपते, आषाढ़ सुना बिता, बित है कोरा सावन, बित गये दिन-रेना, बिते दिन रेना । कितने सावन बिते, कितने दिन रिते । कितने महिने छुटे, कितने बरस जीते । अब यादों के सहारे जीना हुआ मुश्किल । जीना हुआ मुश्किल । कब आओगे,  मेरे मित तुम कब आओगे । गिन - गिन काटे दिन अब,  कब आओगे मित मेरे । कहाँ से लाऊँ सपने, कहाँ से लाऊँ यादे मैं । सुखे पतझड़ के गिरते मेरे आँसु से सुखे । सुख गई है बातें अब याद नहीं कोई यादें । अब आओ तुम तो समझ सकूँ । कुछ दिन - साल है जो जी सकूँ । मैं पूँछू इस हवा से, कहाँ है मित मेरा रे । कब आओगे मित मेरे । कब आओगे मित मेरे ।। Kavitarani1  302

मैं मन का मारा | Main man ka mara

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मैं मन का मारा  एक एकान्त का लेकर सहारा । बन रवि फिरूँ मारा - मारा । था कभी जो मन आवारा । लगता है जैसे अब है हारा ।। हाय लगे कभी लगे अभागा । बोझ बेवजह लगता सारा । कभी ठोकर जग पग - पग देता आ रहा । लगे कभी मैं मन का मारा ।। नित कर्म का मैं मारा । लगा रहता पुरा दिन सारा । कुछ मन में सोंचा ना जा रहा । बस समय सा चलता जा रहा ।। है अधुरा अभागा भाग्य का । जग चतुर, मन मेरा नादान रहा । नित नियम में चलता जा रहा । बस मन का मैं मरता जा रहा ।। शांत साँझ मध्यम हवा । मन ढुंढे जग दवा । जग जब औझल करे जा रहा । मन पर बोझ बढ़ता जा रहा ।। है रवि अथक पथ पर जाता । दिन भर मन रथ पर पाता । बोझ भावी जग के उठाता । लगता कभी-कभी मैं मन का मारा ।।  Kavitarani1  300

सबक सिखाना है | sabak sikhana hai

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सबक सिखाना है  मिली है मंजिल,  पर सपनों तक जाना है । जो दे तकलीफ उन्हें सबक सिखाना है । ईरादा कुछ बेहतरीन करने का । भीड़ से अलग होकर नाम कमाना है । परेशानियों से पार पाना है । जो लोग बुरे है उन्हें समझाना है । आसान नहीं सफर मेरा । क्योंकि अब मंजिल नई सफर नया, उद्देश्य शामिल है अपनी ऊँचाई के साथ । जो देते है तकलीफ , जो बेवजह सताते है । जो आलम और लापरवाही करते । जो मजबुरों को लाचार करते । जो लुटतें है लुटे हुए को । जो गरीबों को याचक बनाते है । जो परों को काटने का काम करते । जो असहायों पर दुख मड़ते । उन्हें अपने घुटनों पर लाना है । उन्हे सबक सिखाना है । मुझे उस औहदे तक जाना है । मुझे उस पद को पाना है । मुझे उन सबको सुधारना है । खुद को मजबुत करना है । कुछ लोगो को सबक सिखाना है ।। Kavitarani1  299

शिखर पर | Shikhar par

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शिखर पर  श्रेष्टता के शिखर को त्याग कई । राह मुश्किल बड़ी,  दिक्कतें आम कई । शिखर पर जाकर सुविधायें कई । रुक कर रहना शिखर पर,  आसान नहीं । मानवता के मार्ग में उपाय जीने के कई, सफलताओं के आयाम कई । मिले आसान कुछ,  सबकी सोंच रहती यही । चलते रहने में समझ मेरी,  रूकना मेरी फितरत नहीं । एक जीवन, एक सार,  मिले मंजिल ऊँचाई भरी । पाना है शिखर बस,  अब जीने की राह यही । जानता हूँ शिखर को पाने हेतु त्याग कई । और राह पर आगे भी मुश्किल कई । Kavitarani1  297

ये शाम | Ye shaam

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ये शाम  पर्वत स्थिर अपनी जगह  पर, आबु पर छाई घटायें बहुत हैं । गर्जन करते बादल पर्वत शीर्ष को छुपाते, मैं परित्यक्ता के गाँव की छत पर बैठा हूँ । लग रहा जैसे सुर्यास्त आज नहीं हो रहा ,  और अभी तो ये आषाढ़ ही चल रहा । मन शांत है, खुश सा है । कोई गम नहीं जीवन में ना कोई दम सा है । सब शांत है, ये शाम शानदार है । बादलों से कुछ बुँदे हल्की हो गीर गई । तन-मन पर शीतलता का माहौल कर गई । बादलों से छायादार मौसम खुशमिज़ाज है। सब देख मन कह रहा है। ये शाम शानदार और माहौल आलीशान है। ये शाम मजेदार है ।। Kavitarani1  29 5

वही गर्मी है | Vahi garmi hai

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वही गर्मी है  फर्श मार्बल का है,  मजबुत मकान है । पंखे नये है,  हवायें दे रहे है । अभी आराम महसुस कर ही रहा था । अभी बचपन को भूल ही रहा था । कि मौसम हुआ महरबान । लगने लगी उमस, बङी गर्मी । और याद आ गया वो जहान । वही गर्मी, वही मकान । वो खेलू की छत,  वो मिट्टी की दीवारें,  वो सीमेंट का उखड़ा फर्श । वो चार पाई,  वो असंग की सुगंध । वो लू के थपेड़े, वो जुगाड़ी पंखे की हवा । वो मेरा आराम करना । बिना शिकायत पढ़ते रहना । ठीक वैसे - जैसे पढ़ रहा अभी । वही गर्मी है । ये वैसे ही गर्मी है । Kavitarani1  290

हम वही सताये हुए रहे | Hum vahi sataye hue rahe

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हम वही सताये हुए रहें  महफिलें विरान, फिर से परेशान,  हम वही गम खाये हुए,  हम वही सताये हुए रहे फिर । वो कल ही मिली थी, जिसकी खुब तारीफें की थी, वो जो लगने लगी ही थी अपनी, फिर हुई अनजान, हम समझ भी ना सके, हम समझ भी ना सके फिर, क्या हुआ गुनाह ? क्या रही बात ? बस रह गये अकेले,  हम फिर से उन्ही में अभी,  वही सताये हुए । गये जो उनका गम नहीं,  इच्छायें जगी बात वही, वही रास्ते अलग हुए,  जो जीवन भर साथ रहने वाले से मिले थे, छोड़ गये हमें कर किसी के लिये कुरबान, हम बैठे यूँ ही गम खाये हुए,  हम वही सताये हुए  ।। Kavitarani1  289

पंछी | Panchhi

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पंछी  है कैद से आजाद,  है खुद में आबाद, घूम रहा पंछी मतवाला, बस वो और उसका है ऊपरवाला,  जानता है सब सब मानता है । है कुछ आसमां में,  जमीन को पहचानता है । है क्या मन में,  क्या उमंग में,  समझ रहा है, कह रहा है,  खुद को, जी रहा है जग को, लगता अभी कुछ कमी है,  जङो ने उसे छोड़ा नहीं है,  टहनियों में भी उलझा है,  है अभी भी अटका कही, पंछी भटका है, अटका कहीं । कहने को आजाद है,  जुल्म से आजाद है , पर पहरेदार कई, लग रहा है, पहरेदार कई । Kavitarani1  286

जैसा तुम कहो / jaisa tum kaho

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  जैसा तुम कहो  प्यार नी होना फिर, बात नी होनी । कहने दे जो तुझको है कहनी । अब वापस में आऊँ और कहूँ बात जो तुम्हें सुननी । जैसे तुम कहो अब वो बात नी होनी । सुन ली बहुत, अब सुननी नहीं । दूर-दूर, रह-रह दूरी ही रखनी । बनायी थी जो बात अब बिगड़ गई । जैसा तुम कहो, अब मुझे नहीं कहनी । सीधी-साधी चल रही, चलने ना दी । मासुमियत मेरी, तेरे दिल में नी गयी । दोस्तों के चक्कर में खोई रही । अच्छे से रहते - रहते बुरी हुई । यही तुम्हें पंसद तो यही सही । जैसे तुम कहो, वैसे ही होनी । अब बात खत्म बस यही कहनी ।। Kavitarani1  285