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मुझे नफरत है | mujhe nafara hai

  मुझे नफरत है जो अपने आप में सिमटे हैं । अपनी ही बस दम भरते हैं । दुसरों से ईर्ष्या करते हैं । अपनी ही बस कहते हैं । मैं कैसे इनसे मिलकर रहूँ । मैं कैसे इनसे प्रेम करूँ ।। साफ मन और साफ इरादे पाये हैं । एक लक्ष्य और संघर्ष अपनाये हैं । मैं साफ मन लोगों से आया हूँ । मैं दिल में बस प्रेम बसाया हूँ । फिर कैसे मैं ईर्ष्यालुओं को अपनाऊँ । फिर कैसे मैं बैरियों से मन लगाऊँ । कैसे मैं अपने विरोधियों को सहुँ । मैं बस इनसे नफरत करूँ ।। मुझे नफरत इंसानो से नहीं । मुझे नफरत मन मौजियों से नहीं । मुझे नफरत है पीठ पिछे बुराई करने वालो से । वो जो मुझसे जल जल कर मरते हैं उनसे । वो मुझे निचा दिखाना चाहते हैं उनसे । उनसे जो मेरी खुशी में दुख भरते हैं । मुझे नफरत है परपीङा में खुशी ढुंढने वालों से । मुझे नफरत है पिछे पङे हुए शैतानों से । मुझे नफरत है इन राह के पङे हुए पत्थरों से । मुझे नफरत है मेरे दुश्मनों से ।। -कवितारानी।

मैं पीर पूछूं | main peer puchhun

मैं पीर पूछूं पीर पीङा को कहते या कहते देव जन को । मैं तो पूछूं पीर को ।   पीर पराई जाने जो, जाने दुख जन के । दुख ही पीर है, मैं पूछूं पीर को । पीर जाने पीङा सारी, सारी पीर जाने है । जाने यहाँ पीर है देव ही । तो ही पीर है तो दुख दर्द ही है पीर यों । मैं पीर पूछूं जग से । पीर में देव है, देव ही है पीर ये । क्या पूछ रहा हूँ मैं, भ्रमित हूँ खुद ही मैं । मैं पीर पूछूं यूँ जग से । मैं पीर पूछूं ।। -कवितारानी।

नयना | Nayana

नैना  शब्द सहेज सांझ गाता, मैं भंवरा फुल पर मंडराता । सहज सरल मधुर दिखते, नयना कुसुम से दिखते ।। नयना वो मद के प्याले हैं, मधुशाला से अधिक रस वाले हैं । भृकुटि पर और जमते हैं, तिरझे होकर देखते घाव करते हैं ।। अधरों पर ध्यान जाता, मैं चकोर चाँद पर गाता । सुन्दरता फिर आकर्षण में होती, मधुर मुस्कान मन से होती ।। नयना क्षीर सागर से गहरे हैं, अमृतपान से ये लगते हैं । पीर पंछी बन है रमती, आनंद की छवि तन पर जमती ।। दर्द पुरानी फिर औझल है, नयनों में ये कैसा जादू है । एक टक जो मिल जाये ये, हृदय स्पन्दन बढ़ा जाये ये ।। नयना प्रेम मार्ग होते हैं, इनसे ही जीवन प्रेम मय होते हैं । बङा आनंद की अनुभूति देते हैं, जो रस नयनों से पिये होते हैं ।। -कवितारानी।

चुनों अपनी राह | Chuno apni rah

  चुनो अपनी राह लोग क्या कहते हैं परवाह छोङ । अपनी मंजिल के लिए चुनो अपनी दौङ । चुनो अपनी राह की भविष्य निहार रहा । अपने आज में क्यों तू खुद को बांध रहा । नये युग का आगाज है । सपनों की नई उङान है । खुद को ना यूं तू रोक । अपनी मंजिल के लिए खुद को झोंक । वो कल तेरा रास्ता निहार रहा । सुबह का सुरज तुझे देख रहा । अंधेरे को दर किनार कर । बन रवि तू आगे बढ़ । हे राहगीर सच्चा मान कर । रास्ता चुनना थोङा संभाल कर । हर रास्ते की एक मंजिल है । तू रूकना ना एक बार चलने पर । साथी बने राहगीर तु घुलना ना । राह के आरामगाहों में तु रुकना ना । तेरी मंजिल बङी व्याकुल है तु रुकना ना । यही सोंच करती रहे तुझे व्याकुल तु रुकना ना । चुनो राह अपनी अब समय नहीं । मंजिल के मुसाफिर कई । जो तु ना बढ़ पायेगा । फिर कैसे युग तुझे गायेगा । चुनो राह अपनी । कि मंजिल बुला रही है ।। - कवितारानी।

झूठा साथी | Jhutha sathi

  झूठा साथी  साथी होता अजीब ये, दिखने में भी लगता अजीज ये । पर समझता अपने को नाचीज ये, खुद को मानता नामची ये । ये झुठा साथी, साथ ही रहता । ये झूठा साथी, खास ही कहता ।। पर इसके होते तर्क अजीब, करता रहता कुतर्क अजीब । लगता जैसे अपने को झूठा बतला रहा हो, जैसे अपने को नीचा दिखा रहा हो । ये खुस होता अपनी सफलता में, पर बखान नहीं करता । अपनी सफलता को छोटा कर, किस्से दुनियाभर के कहता । लोगो से अपनी मनवाने की होङ करता । साथी कहता अपने को पर, अपनी बात का हमेशा खंडन करता । ये झूठा साथी, झूठ के बल पर जीता । ये झूठा साथी, अपने मन मर्जी की करता । इसे फर्क नहीं पङता अपन ने जो कभी अपने हक की कहा । रहा जाता ना इससे एक पल को कुछ कहे । और हर कहने में खुद की ही इसने कहा । ना घर पर ये हमें ले कर चलता । ना अपने को कभी छोटा कभी दिखने देता । सुनता ना अपनी एक बात को, मन से कभी । स्वार्थ में सबसे आगे है ये रहता । ये झूठा साथी, मतलबी है बहुत।  ये झूठा साथी, अवगुणी है बहुत । कहीं दिखे ऐसे गुण किसी साथी में आपको भी । तो आगे बढ़ जाना उसे भुलाकर के ।। -कवितारानी।

मन मैले | Man mele

  मन मैले  कपङे होते तो धो लेता, साफ रहने की जो मुझे आदत है । मटमैले कभी पहने नहीं, यही मेरी एक आदत है । पर मन मैले लोग आजकल मिलते हैं, इनसे कैसे दूर रहूँ । मुझे तो मन मैलो में भी नहीं रहने की आदत है ।। तन के साफ रहते हैं, अपनी ही हरदम कहते हैं । सुनते नहीं एक पल को जो मेरी, यही मेरे मन की व्यथा भारी है । पर लगते बङे सयाने हैं, हर बात में गाते गानें हैं । मुझे तो ये मटमैले कपङो से भारी लगते हैं, मुझे ये मनमैले बुरे लगते हैं ।। हर दम मुख पर इनके बुराई रहती, नाक चिढ़ी और भोहें सिकुङी रहती । अपने चमचो की तादात बढ़ाते हैं, ये हर वक्त खुद की चलाते हैं । एक पल को जो सच की बात करो, गुस्से से भर ये जाते हैं । रिश्तो से ज्यादा अहम् है भाता, मन के मैल से भरे ये रहते हैं ।। मैथ एक पल को मन मारता हूँ, दुजी बार को कुछ नहीं कहता हूँ । तीजी बार मुझे भी चिढ़ होती है, फिर सत्य वचन पर तकरार होती है । मैं तर्क के साथ साक्ष्य लाता हूँ, और मन मैलो को खोया पाता हूँ । फिर बात पलट ये घूमते हैं, निचा दिखाने को मनमैले ये रहते हैं ।। सच्चे दुश्मन कहूँ या कहूँ जोंक इन्हें, चिपके भी रहते हैं ये । हर बार क...

बेधङक | bedhadak

बेधड़क  कोई रोके राह मेरी या आ खङा हो सामने जो, मैं भीङ जाता हूँ उनसे ही, मैं लङ जाता हूँ उनसे भी । बेधड़क अपनी मंजिल का राही मैं । अपनी धुन में चलने वाला हूँ । मैं अपनी दौङ-दौङता हूँ । मैं अपनी राह पर चलता हूँ । फिर भी कोई अनायास-प्रयास कर रोके तो । मुझे मेरी राह पर चलने से टोके तो । मैं बेधड़क टकरा जाता हूँ । मैं जैसे चाहे वो, वैसे लङ जाता हूँ ।। ये आज से नहीं, जमाने से होता आया है । लोग चाहते नहीं, आगे बढ़े कोई । बस करते कोरा दिखावा है । दुख में राही को झूठी सांत्वना बरसो से, जो पथिक निकला उनसे आगे तो, रूकावटे बनते वो ही है । मैं बेधड़क ऐसो से भीङ जाता हूँ । लङता हूँ अङता हूँ और आगे बढ़ जाता हूँ । मैं आगे बढ़ता जाता हूँ ।। समझौते में व्यवहार मैं करता हूँ । लोगो से ज्यादा खुद की परवाह करता हूँ । अपनी ही पहले सोंचता हूँ । अपने मन की ही सबसे पहले करता हूँ । ये लोग मेरी सफलता के साथी बस । यहाँ हूँ काम के वास्ते बस । इनसे मेरा क्या लेना, क्या देना है । मैं बेधड़क कहने वाला हूँ । मैं बेधड़क रहने वाला हूँ ।। -कवितारानी।

सोंच | Soch

  सोंच  कल की सोंच उलझे हो ? क्यों ऐसे रूखे से हो ? अपनी फिक्र करते हो । अच्छा है अपने दम पर जीते हो । सोचना अच्छा है, अपनी फिक्र अच्छी है । पर जो रोक दे कदम,  वो सोंच गहरी है ।। गहरी सोंच भटकाती है । कभी-कभी ये हमें डराती है । और डर के कौन अच्छे से जी पाया है । मन का हारा-हारा ही रह गया है ।। सोंचो तो इतना की, पंख ना रूक पाये । खुले आसमान में कोई ना रोक पाये । रुकावटों को हटाने के उपाय सोंच लो । करना क्या है जीवन में ये सोंच लो ।। अपने कर्म को निखारने की सोंचो । अपने धर्म को अडिग करने की सोंचो । सोंचो की साथ क्या ही जायेगा । याद रखो सब यही गाया जायेगा ।। मन को लगाम देकर रखो । विचारों को स्वतंत्रता से रहने दो । सपनों को पंख फैलाने दो । सोंचो और बेहतर करने की बस ।। - कवितारानी।

तभी जी पाओगे | Tabhi Jee Paoge

तभी जी पाओगे यदि कर सको तो सहन करो । यदि रह सको तो शांत रहो ।  यदि पी सको तो क्रोध पीओ । यदि खा सको तो अहम खाओ । यदि कह सको तो सच कहो । यदि सुन सको तो मधुर वचन सुनो । यदि कर सको सत्कर्म करो । यदि रख सको तो सम्मान रखो । और कुछ ना रख सको तो, खुद का मान रखो । आत्मा में अभिमान रखो । आँखो में प्रेम रखो । गालो पर सौन्दर्य रखो । होठों पर राम रखो ।। देखो फिर ये जग तुम्हारा होगा । देखो फिर ये कल तुम्हारा होगा । ये सब जो तुम देख रहे सब तुम्हारा होगा । ये सब तुम्हारा गुणगान करेगा । ये सब तुम्हारा ही सम्मान करेगा ।। और फिर तुम जीओगे, और सच में तभी तुम जी पाओगे । और तुम कहोगे यही तो वो जीवन है, जो पढ़ा था काताबों में । जो सुना था कभी अपनों में, जिसके थे गीत बने । जिसके थे कई मनमीत बने, अपने बने ।। कठिनाई से ना डरना तुम । आंसुओ से ना भरना तुम । आये मुश्किलें हजार लङ लेना । पर मंजिल की राह पर ना रुकना तुम । मैं रुकने की कहूँ ,या कहे मन हार के, तो भी चलना तुम । तभी जी पाओगे और मंजिल को पाओगे ।। -कवितारानी।

ऋत बदलती / Rit badalati

  ऋत बदलती नव दिन-आभा-भौर तिमिर से लङती । अठखैली, मटमैली सी दिन भर तेज चमकती । सप्ताह, मास, दिन कट जाते । ग्रीष्म गई, वर्षा गई, शीत संग फिर ऋत बदलती ।। ऋत भई भाई आई उबकाई भी । ठिठुरन से भौर हुई धूप बहुत खाई भी । नित कर्म काज में लगे चलते कल हम । शीत भई करते रहते फिर भी करते कलरव हम ।। नई ऋत का स्वागत गान करते । भावी भाग आज से लङते चलते रहते । कहते क्या आज, हर कहीं हर बात बदलती । कहते शीत लगी तो पता चला ऋत बदलती ।। पहरा प्रकृति का सब और है रहता । मन मानव ऋतु का रंग बदलता । बंद आशियानों में कहां मति कुछ कहती । व्यस्त, आरामपस्त, स्वार्थपूर्ण संसार में समझ मरती ।। सगे साथी अपने सब मतलब तक आते है । धर्म, अर्थ, काम स्वार्थ तक सब गाते हैं । बदलती फितरत का कभी ज्ञान होता । जब रंग अपना हल्का होता तो सब को अखरता । अखरते हुए रंग में फ़ितरत सबकी पता चलती । प्रकृति तो तब भी कहती ऋत तो हमेशा बदलती है । कुल करो अपने सामर्थ्य को, अनुकूल बनो तुम । लङो ना प्रकृति, प्रकार से अपने सत्कार करो तुम ।। गिन लेगी शीत भी, शीत भी रहे जो । कोई पुछेगा नही जग में डीट रहे तो । पत्ता पत्ता कर पेङ मजबुत कर लो । शीत...

खई बाकि | Khai baki

खई बाकि बचपण री बातां गी, बातां भूली मोटीयार री । पचपन री उमर होई, रातां धुली मुरझाई सी । खुण साथ, खुण परायो ह, सब जाण ग्यो । खई पास ह, खई-खई खोयो, खई बाकि जाण ग्यो ।। जाण ग्यो खई साथ नी जाव, जाव नी काया साथ । भाई-बन्धु, बेटा-बेटी, न लोग-लुगाई रे व पास । व अंत समय बस यादां रे व, वे भी रे जाव राख । खई बाकि, खई सोचूं, सब मिलेगा, होवगा राख ।। मन मारूं, ईच्छा मारूं, मारूं म्हारो इतिहास । जोर दिखाव बालक खदी-खदी सामं आव मोटीयार । समाज स लडू खदी-खदी खुद ही नी आऊं रास । खई बाकि रे ग्यो जद परिवार नी बैठ पास ।। देखूं लोगां ही, देखूं परिवार वालां नी, लगार आस । कदी खेऊं मन की और सुनूं जसा हो फटकार । हार नी मानूं उमर म बङो, तजुर्बो देव सास । खई बाकि बच्यो जग म, जद देखु यो संसार ।। अंत समय पास आव, लगाऊं स्वर्ग की अरदास । कर्म करूं, सतसंग करूं, करूं मानवता रो काम । नाम नी छाव, दन कट जाव, रेव थोङो आराम । खई बाकि हिसाब लगाऊं, बताऊं सब बस म्हारो राम ।। खई बाकि, खई बचायो, बचायो कमायो नाम । साथ रेव या राख होव, मन रेव राम, मन रेव राम ।। - कवितारानी।

होय सब जो राम राखा | hoy sab jo ram rakha

  होय वही जो राम राखा माई म्हारी छोङ गी जद, छोङ ग्यो उंजाळो । जग म ढोल पीट लोग, खैव मई बैचारो ।। आफत आई दुख बणक, जग म नी कोई सहारो । छोङ दुनियादारी रवि गायो, राम भजण ह प्यारो ।। खोई खेव बेबस्यो, तो खोई खैव लाचारो । मूं जाणु नादान नी जो, होव सब जो ह राम प्यारो ।। जीवण म होय सब जो भाग म लिख्यो म्हारो । होव सब जो सब जो राम न लिख्यो, होव सब राम को प्यारो ।। पोथी पढ़-पढ़ जग मुड्यो, प्रेम की बात न सुझ । भूल दिया बाती तेल, यो लो जल् क बुझ् ।। फुल खिल्यो ताजो ताजो, मुरझाणों ह इन एक दिण । ह अंधेरो रात न भल्, मटणो ह इण रात क बिण ।। रास्तो ह लम्बो घणों, इण काटणो ह चलत-चलत । सोंच काही की विचार कई फेर हो जाव सब रित् ।। जो मिले राम भाग माथे, जप ल राम नाम न । होय सब भाग माथे, होय सब जो राम राख ।। - कवितारानी।

Manavata sharmsar | मानवता शर्मसार

  मानवता शर्मसार  भेद कई हो गये जन-जन में अब । पीङा भरी रहती मन में अब । किसे कहे क्या है मन भय बना । सत्य की राह पर है नुकसान बना । मानवता शर्मसार है । दिल में भरी रहती हार है ।। जीते हैं जीत की उम्मीदों में । हारते हैं हार की उम्मीदों में । अपनी उम्मीदों पर भारी ओंरो की । लोगों की बङी दिक्कत ये ।। कोई अपनी धुन में चल नहीं पाता । अकेला रहे कहीं, क्यों रह नहीं पाता । वजह होती है हर चीज की जहाँ । बेवजह लोगों में कोई रह नहीं पाता । मानवता शर्मसार, दिल पर मार है ।। सब को मस्ती की पङी है । दुर्गम हो आसान हो । लोगों को बस स्वार्थ की पङी है । मानवता लाचार खङी है ।। - कवितारानी।

क्या राह दिखाऊं मैं | Kya rah dikhau main

क्या राह दिखाऊं मैं  मैं खुद दूविधा में उलझा, सुलझा ना खुद को पा रहा । कुकर्मियों के कर्म सुनता, सत्कर्म होते क्या भूलता जा रहा । अनजान नहीं अंजाम से, पर लचार खुद को पा रहा । क्या राह दिखाऊं मैं, खुद ही अपनी राह भूला जा रहा ।। जाल मैं फंसा हूँ अभी जैसे, उठता-गिरता झटपटा रहा । सच से दुख पाता गहरे तो, झूठ अपनाता जा रहा । ईमानदारी शूल सी चुबती तो, बेईमानी सिखते जा रहा । क्या राह दिखाऊं मैं, खुद मुशाफिर की पहचान खोते जा रहा ।। दिन के अंधेरे पर मौन रहता, रात के अंधेरे में ऊजाला पा रहा । भीङ की चुभती बातों से, मौन गले उतारता जा रहा । अज्ञानियों के ज्ञान से भर गया, ज्ञानियों को भूलता जा रहा । क्या राह दिखाऊं मैं, खुद पथ से भटकता जा रहा ।। ईर्ष्यालु नजरें दिल चीर गई, इस बार आत्मा को संभाल रहा । द्वेषी बेवजह के निचोङ गये, इस बार मन को मार रहा । बेईमानों के आगे खुद बेबस, अकेला मैं ईमान को तौल रहा । क्या राह दिखाऊं मैं, खुद जो ईमानदार ना रह पा रहा ।। चालाकों के कुचक्र में उलझा रहता, खुद को बचाये रख रहा । नालायकों के नजरों से खटका, खुद के कर्म संभाल रहा । भ्रष्टाचारियों के दबाव में जी रहा, अपन...

Main pareshan | मैं परेशान

  मैं परेशान  होङ नहीं किसी से, ना किसी से बैर मेरी । अपनी उलझनों में उलझा, जग में होते बैर कई । मैं जब अपनी धुन का राही रहता, कम ही किसी से हूँ कहता । फिर क्यों लोग आते हैं और परेशान मुझे कर जाते हैं ।। मैं अपने पंखो से उङान भरता, खुद के दम पर ही मान करता । मैं अपनी मंजिल का पारखी हूँ, मैं खुद की धून का धूनी हूँ । किसी से कुछ लेना- देना ना, फिर क्यों जग मुझसे ऐंठे । सोंच अकेले में करता रहता, मैं परेशान उलझा रहता ।। कुछ मतलबी आजकल मिलते हैं, कुछ स्वार्थ लेकर साथ चलते हैं । कुछ ईर्ष्या से नजर चुराते हैं, कुछ शब्दों के तीर चलाते हैं । कुछ बेवजह ही दुश्मन बन जाते हैं, कुछ मेरे खिलाफ लोगों को भङकाते हैं । कुछ कमी मैं अपनी ढूँढता हूँ, मैं परेशान अपने ढूँढता हूँ ।।  मेरी मंजिल कहीं रूठी है, मेरे सपने कहीं खोये हैं । मेरी आजादी पर बंदीशें लग रही, मेरी आवाज कहीं दबी है । मेरी राह कहीं गुम है, लगता है जैसे जीवन में बस गम है । मैं परेशान होकर बैठा हूँ, मैं राह फिर तलाश रहा हूँ ।। दौर पुराने देखे सारे मैने, अपने और पराये देखे सारे मैने । बुरे से बुरा होता आया है, मन मेरा दुख मेथ भी ...

Vishwash bada durlabh hua / विश्वास बङा दुर्लभ हुआ

  विश्वास बङा दुर्लभ हुआ फिरता जग में मैं आवारा हुआ । कहता अपनी खुद की मैं, मैं बावला हुआ । हुआ सच्चा मन का खुद का, खुद का सगा हुआ । खोजा जो भरोसा जग में फिर, दगा साथ मेरे हुआ । यही समझ आया, विश्वास बङा दुर्लभ हुआ ।। मैं साफ मन का, तन का साफ दिखता । मैं शब्दों से साफ, सीधा अपनी बोली रखता । खोजता आईना अपना, कोई अपना समाज में खोजता । सब पर विश्वास करता मैं, मैं खुद के दम पर जीता । आखिर दोखा खाता, समझता, विश्वास बङा दुर्लभ हुआ ।। जो जन्में आस-पास थे, हुए अब दूर कई । जो कर्म पथ पर मिले साथ थे, हुए नजरों से दूर कहीं । मैं उनमें अपनापन खोजता, मैं उनमें अपना खोजता । देता कर न्यौछावर सब ही, और फिर दोखा खाता । समझ आता आखिर कि, विश्वास बङा दुर्लभ हुआ ।। फिर मन का मारा, हारा मन का मैं होता । रोता था कभी जो रवि अब ना रोता । साथ जीवन साथी, अपनी मैं कहता रहता । सहता जग के बोल बङे, छोटे मनके सबको कहता । समझा जो जीवन में वही कहता, विश्वास बङा दुर्लभ हुआ ।। -कवितारानी।

जमाना | Jamana

  जमाना मैं बन शिक्षक भिक्षक लगता । कभी अपने शिष्यों को, तो कभी जमाने को तकता । थकता मैं काम करते, करता अपना काम मन से । धन से दूर नहीं पर चुनता शिष्य मन से । जो मनका होता वो जमता, शिष्य के लिए मैं काम करता । जमाना सोंचता मैं कंजुसी करता । मैं चुनता काम अपना ।। जमाना है बदला, बदला है मिजाज सबका । ज्यादा ज्ञान विद्या दो तो सुनता ना कोई । ज्यादा आराम करो, चिंता रहित रहो तो चुनता ना कोई । जो मौज में रोज रहता, जमाना चिढ़ता रहता । ईर्ष्या से अपशकुन करते, जमाने को मैं ना जमता । जमाना चाहता दुखी देखना । मैं चुनता काम अपना ।। दोपहर देखे साल हुए, जब देखे दोपहर अंधेरा होता । जीवन की भाग दौङ में मैं जवानी खोता । होता भला की छांव मिलती, घाव में दिन ढलता । अपनी रोजी को मैं भागा फिरता, जमाना इसे मौज कहता । रहूँ अपने में तो स्वार्थ कहता, सबसे कहूँ तो बावला कहता । जमाना चाहता अपना सा बनाना । मैं अपनी राह खुद चुनता ।। - कवितारानी।

Kya sikhau | क्या सिखाऊँ

  क्या सिखाऊं ? मैंने गुरू द्रोण और शुक्राचार्य सा भी बनना चाहा । चाहा भला मैंने अपने शिष्य का हर दम । हर दिन हर पहर खुद को खोया पाया । पाया नित पाठ सिखाये, कैसे-कैसे दे विद्या और ज्ञान इन्हें ।। मैंने खोजा कहीं कर्ण सा शिष्य पाऊँ । या पाऊँ अर्जुन सा और धन्य हो जाऊँ । या मिल जाये अनुकरण करने वाला साधारण कोई । मिला ना जिसे बना सकूं महान मैं ।। जो गुरू अवहेलना भर बैठे, और पिता के पैसों पर ऐंठे । जो अपने मत को महत्व देते, और ज्ञान को क्षीण कहते । कैसे ऐसे शिष्यों को प्रेरणा पाठ पढ़ाऊँ । मैं सोंचू हर पल कि मैं शिष्यों को क्या सिखाऊँ ।। क्या सिखाऊँ इन्हें जो बात मेरी काट देते । और एक कक्षा पढ़े नहीं की ज्ञान का बखान गढ़ देते । हवाओं में महल सजाते, अपनी धुन के दीवानों को । मैं अधीर गुरु होकर क्या सिखाऊँ इन मतवालों को ।। लिखा भाग्य पनपेगा और बनेंगे ये अपनी किस्मत से । जो बनना है बनेंगे, पढ़ेंगे ये बस अपनी धुन में । मैं अपना काम, काम तक करता जाऊँ । जो है बन चुके सारे अपने भाग्य के इन्हें मैं और क्या सिखाऊँ ।। - कवितारानी।

परपीङन सुखी | parpidan sukhi

परपीङन सुखी- विडिओ यहाँ देखे परपीङन सुखी मैं फुल खोजता फिरता हूँ, और कांटे आ जाते हैं । कदम रखता सुखी जमीन पर जो, पैर दलदल में गढ़ जाते है ।।  जो सोंचू हसीन वादियों की, मैं रेगिस्तान पाता हूँ । जो चाहूँ अच्छे लोग तो, परपीङन सुखी पाता हूँ ।। पर पीङा में सुख खोजते, ये परपीङन लगते मतवाले से । कलयुग की ही सोचूं तो, ये सही समय वाले ।। मैं एक बार को झांसे में आता, दुजी बार दुख पाता हूँ । जब कहूँ प्रतिउत्तर में, तो इन्हें दुखी कर जाता हूँ ।। कोई गीरा जमीन पर, बहा लहू देख हँसते हैं । गिरने के तर्क अजीब, कुतर्क से अङते हैं ।। सोंचते नहीं कोई पीङा में हैं, कोई घायल पङा पास है । कोई उलझे ना जो इनसे, हँसते अपने आप उल्लास से ।। कोई आनन्दित दिख जाता तो दुखी हो ये जाते हैं । अपने आप को संभाल ना पाते, बोखला और जाते हैं ।। मजाक बनाते और झगङते, तंग भी करने से बाज ना आते । एक समय बाद जब उसे दुखी देखते खुश हो जाते हैं ।। कैसे ऐसे लोग धरती पर फल फुल जाते हैं । दुखी ही रहते हमेशा बस हँसते दिखाते है ।। ना खुश रहते अन्तर्मन से ना दुसरों को रहने देते हैं । ये परपीङन सुखी लोग नर्क के ही वासी लगते हैं ।। -कव...

व्यथा मेरी | vyatha meri

व्यथा मेरी  मैं निज में सिमटा आज, राज मन के कहता हूँ । व्यथा से भरा पङा मैं, व्यथित व्यथा अपनी कहता हूँ ।। शिक्षक बन शिक्षा का सार जाना । शिक्षार्थि को अपना आधार माना । जीव जगत के सारे भेद खोले । ज्ञान सागर उलेङ अनमोल शब्द बोले । क्या-क्या ना संभाल बस शिक्षा दी । खुद की भी भूल बस शिक्षा दी । और बदले में, और बदले में, नाम कई पाये हैं । एक दिन के सम्मान को नजर झुकायें हैं । वो शिक्षक दिवस भी अब अधूरा रहा । जब विद्यार्थियों की नजरों में मान ना रहा ।। कोई कहेगा की सिखाने वाले ने ना सिखाया होगा । कक्षा में बैठ मोबाइल चलाया होगा । क्या-क्या ना अफवाहें इल्ज़ाम बनी होगी । जब किसी शिक्षक ने अपनी व्यथा कही होगी । मैं सबकी अपनी कहता हूँ । मैं व्यथित अपनी व्यथा कहता हूँ ।। मैंने पाया है मेरे कुछ शिष्य नीर हीन है, नजरों में उनके हम क्षीण हैं । कुछ नहीं दे पाया मैं भी उनको,  क्योंकि जङ में ही उनके कहीं कमी है । जो भूला हो उसे याद कराया जाता है, मंद बुद्धि हो उसे प्रखर किया जाता है । पर बुद्धि हीन हो उसे क्या कहा जाता है, जो निर्लज हो उसे क्या ही सिखाया जाता है । जो बन चुका जङ बुद्धि, जो बुद...

छत गिरी की ईमान | Chhat giri ki Iman

छत गिरी की ईमान दब गई सांसे, भविष्य की उम्मीदें और देश का मान । रह गई बाकि सुखी रातें, मां की खाली झोली और मन के अरमान ।। गिरी छत अबोधों पर, कमजोर थे उन कंधों पर । जो लेने आये थे ज्ञान का भंडार, वो हार गये जीवन से आज ।। रह गये सवाल ही सवाल, अनसुलझे थे, अनसुलझे है ये सवाल । प्रश्न हर साफ मन करता है, कोई इनके भी जवाब बताओ आज ।। सुना है छत गिरी है, सुना है दीवार गिरी है । सुना बहुत कुछ है पर क्या सच में बस छत गिरी है? बहुत कुछ जानते है लोग जग में वो बोल रहे भर भरकर ज्ञान । बोल रहे लोग ईमान गिर गया है, बोल रहे लोग ईमानदारी का मोल गिरा है ।। भाव किया होगा किसी ने, इस भवन का भी कभी । और पढ़ा होगा, सुना होगा दीवारों से आती आवाज ।। देखा होगा कभी तो किसी ने भी, इन दीवारों की सीलन और दरार । आज जब गीर गई छत और दीवार, बताओ ; छत गिरी है कि ईमान ? - kavitarani1  Om shanti 

पंक्तियाँ | panktiyan

  पंक्तियाँ जल जीवन है, जल है जहान सारा, प्रकृति के पंखो में सिमटा, ये जहान सारा । वृक्ष है जीवन के आधार,  वर्षा है जल का आधार,  हम है प्रकृति के रखवाले, हम से है प्रकृति के बोल सारे । संगीनी जीवन सार है, मित्र-संबंधी और प्यार है । वक्त आने के इंतजार में, मेरा जीवन बीत गया । आज भी ना इंतजार खत्म हुआ, ना मेरा वक्त आया ।। फिर कभी कोई ज्ञान दे, और कहे ये मेरे अनुभव है, तो सुनने का मन ना हो भले, पर उसका सुनाने का मन देख लेना । यूँ कोई नहीं बताता अपने जख्म किसी को, कुछ तो खाशियत दिखी होगी उन्हें मुझसें । मैं सुनता हूँ लोग सुनाये जाते है, बित कहे भी बताये जाते है । पर फिर कभी जो मैं पूँछू हाल तो, जाने क्यों मुझही से छुपाये जाते है ।। - कवितारानी।

निस्स्वार्थ प्रेम | Niswarth perm

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  निस्स्वार्थ प्रेम वो बचपन के दुश्मन अजीब, रोते विरह में बिलख- बिलख । जो छोङ ना पाते थे दुध आधा इंच, छोङ देते जवानी में सारी जमीन । वो खाते मार रोज माँ-बाप से, मर मिटते एक दुसरे की रक्षा खातिर । वो जो निस्स्वार्थ प्रेम है, वो प्रेम भाई-बहन का प्रेम है ।। भाई पूजे जवाई, जीजाजी के पैर धुलाये, बहिन भाभी को अपनी माँ सा सराहे । वो जो एक दुसरे से लङते थे रोज, अपने पुराने दिन बुलाये । वो जो दुसरे से जलते थे रोज, अपने पुराने दिन याद करे, बिलखाये । ये जो निस्स्वार्थ प्रेम है, ये भाई-बहन का प्रेम है ।। अपना सब त्याग बहिन प्रेम मांगे, रक्षाबंधन पर बस चाहे राखी बांधे । दूर पङा भाई अपनी बहिन बुलाये, राखी बंधा हाथ में, रक्षा वचन दोहराये । मिठाई खिलाते आपस में, मन में प्रेम रस घुल जाये । ये देख रवि चमक बढ़ जाये, ये निस्स्वार्थ प्रेम है, ये भाई बहिन का प्रेम है ।। -कवितारानी।

Rakhi | राखी

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राखी  कोई धागा कहे प्रेम का, कोई रक्षासूत्र पुकारे । भिन्न-भिन्न नाम से, भाई-बहन दुलारे ।। सावन की पूनम पुकारे । राखी है प्यारे ।। है देश अपना त्योहारों का, दीपों का ये रंगो का । कभी छतों पर पतंग उङाले, कभी आराम से बैठ राखी बंधा ले । सावन की हरियाली पुकारे । राखी मनाले ।। आ बैठ पास बहिन के, बुआ का आशीर्वाद ले ले । रक्षा का बंध बंधा कर, कुछ हित वचन ले ले । सावन का महिना पुकारे । रक्षाबंधन मना ले ।। है कोई टिस मन में, या रिस भरी है तन में । बचपन को थोङा निहार ले, शांत बैठ अपना प्रेम बङा ले । इस साल का जाता सावन पुकारे । राखी मना ले ।। आ भाई पास बैठ, हाथ बङा, तिलक लगा ले । कुछ मीठा लाई बहिन, आज रिश्तों में रस मिला ले । सावन है महादेव का आशीर्वाद ले ले । आ राखी मना ले ।। बदले में उपहार जरूर देना, भाई है रक्षा का वचन जरूर देना । कुछ ना दे धन में भले, मन से भाई प्रेम जरूर देना । ये जीवन अनमोल है, एक-एक दिन सजा ले । बंधा कलाई में राखी इसे सजा ले । रक्षाबंधन है प्यारे, आ राखी बंधा ले ।। - कवितारानी।

आओ प्रकृति से बात करें | Aao prakriti se baat karen

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  आओ प्रकृति से बात करें दौङ भाग भरी जिन्दगी में, कुछ पल साथ चलें । अपनी और अपनों की छोङ; चलो आओ प्रकृति की बात करें । आओ प्रकृति की बात करें ।। एक दिन छुट्टी लेकर वृक्षारोपण सब करें । बहते दरिया को रोके हम, जल संरक्षण की बात करें । बहती जमीन को रोके हम, मिट्टी का समाधान करें । रोज सोंचते रहते हैं जो, आओ उसी की बात करें । आओ प्रकृति की बात करें । आओ प्रकृति का संरक्षण करें ।। हम पढ़े लिखे, ज्ञाता हम, प्रकृति का अभिन्न अंग हम । हमसे है जग जीवन, हम से बिगङ रहा है पर्यावरण ।। जीव- जगत की रक्षा की बात करें । कुछ समय ही सही, जागरूकता का आव्हान करें । हम सुरक्षित हैं आज भले । हम कल और कल की पीढ़ी की सुरक्षा की बात करें । आओ प्रकृति की बात करें ।। - Kavitarani1 

sab sukhad ho / सब सुखद हो

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सब सुखद हो  अनुभूति में रस, अनुभव में आनंद हो । मन में उमंग, जीवन में रंग हो । सब कुछ मनमोहक, और अपनी हद में हो । मेरा ही नहीं, सबका जीवन सुखद हो ।। मत भेद रहे, रहे ना मन भेद कहीं । तर्कशील रहे, रहे ना तर्क हीन कोई । सब ज्ञानवान हो, आनंदित, प्रफुल्लित हो । मेरा ही मत नहीं, सबका तर्क- सब सुखद हो ।। ऋत बदले, ना रीति बदले । रिवाज बदले, ना संस्कृति बदले । सब पुरातन, प्राकृतिक, जीव हित हो । हम ही नहीं, हमारा जहान भी सुखद हो ।। शिक्षा में सार, व्यवहार में शालीनता हो । बङो में प्रेम, छोटों में सम्मान हो । सब जैसे सतयुग सा हो, सब गौरवान्वित हो । हम ही नहीं, हमारा संसार सारा सुखद हो ।। आधुनिकता में विज्ञान, धरातल पर विनम्रता हो । जग में एक सार, जगत का उद्धार हो । सब ईश्वर को समर्पित और जीवन रसमय हो । मेरा ही नहीं, इस जग में सबका जीवन सुखद हो ।। - Kavitarani1 

तुम खयाल रखना अपना | Tum khayal rakhna apna

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तुम खयाल रखना अपना  कहने को लोग कई सारे अपने । पर कोई दिल के ज्यादा करीब नहीं । जितना सुनना चाहूँ तुम्हें, उतना किसी से सुनता नहीं । वैसे सब रखते खयाल अपना, पर तुमसे ये खास कहना है । साथ रहना हो ना भले, पर यादों में साथ रहता । तुम खयाल रखना अपना, मेरा तुमसा कोई नहीं ।। ना मिलना, ना दिखना कभी, पर मन में कहीं रिश्ता रखना अपना । ना बात कर पायें, ना मिल पाये कभी, पर यादों में बसाये रखना तुम । कोई रहे ना रहे आस-पास भी तुम्हारे,  तुम खयाल रखना अपना । तुम खयाल रखना अपना, तुम सा मेरा कोई नहीं । यादों में बसाये रखना सदा, और कहीं मुझे रहना नहीं । सपनों में साथ रखना मुझे, और के साथ मुझे रहना नहीं । तुम पास रहना मेरे, मुझे कुछ और कहना नहीं । तुम बहुत खास हो मेरे लिये, इतना कोई खास नहीं । तुम खयाल रखना अपना...।। Kavitarani1  227

क्या है ये | Kya hai ye

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क्या है ये  हाँ शुरूआत में सब अच्छा था । अजनबी से शुरू हुए और फिर तु मेरा बच्चा था । तब मैं थोड़ा कच्चा था-था जो भी पर सब अच्छा था । तु भी समझती थी बात मेरी-मेरी भी आदत ना थी, ना चेप तेरी । थोड़ा-थोड़ा मैंने शुरूआत की और तुने बात की । दात देनी पड़ेगी क्या शानदार शुरुआत थी ।। मेरा था अकेलापन-रखता था अपनापन । पर तुने थे खैल-खैले मेरे जैसे रखे थे जाने कितने चैले । छैले से हम बन छबीले, बातें करने लगे जैसे रहते साथ-साथ खैले । कुछ दिन-महीने हुए और बातों के भी बखैरे हुए । हुई बात-बात पर मुलाकात पर कभी साथ ना मिले । दुर से ही आँखों के तार मिले-मिले ना हम । मिले ना हम-ना सच वाली मुलाकात हुई । कहती रही तुम लड़की हो, पर लड़की जैसी कोई बात ना हुई । हाँ यहाँ से सब बदला हुआ, जिद बड़ी मिलने की, और तुम थी अड़ी-अड़ी से फिर पड़ी पर हुई । बातें आगे बढ़ी और-और जिद बड़ी । क्या है ये, कैसे समझाऊँ । अपनी बात को कैसे मनाऊँ । कैसे समझाऊँ, क्या है ये ।। Kavitarani1  22 6

समझ जा | Samajh jaa

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समझ जा  ना कह कुछ-कुछ ना समझ । अपनी बात को खुद समझ जा । मैं अपनी कहूँ या कहूँ किसी की । तेरी मेरी बनती नहीं कहीं भी । इसीलिए मेरी बात को समझ जा । तु अपनी राह ले मुझे छोड़ जा ।। हाँ माना आसान ना होगा । होगा जो वो अच्छा होगा ।  कुछ दिन-दिल ना लगेगा । तेरा पता नहीं पर मेरा मन ना लगेगा । भरेगा मन तेरा-आम होगी जब परेशानियाँ । कुछ भी हो पर है ये मेरी हानियाँ । तेरा तो था मौज-ओज और बढेगा । ये जग है पता चला दुखी हूँ मैं तो, फिर कुछ नया किस्सा गढ़ेगा ।। है ये जीवन-जीवन ही है ये । रूके रहे तो भी आगे बढ़ेगा ।  तू साथ रही तो ठीक है । तू साथ नहीं तो भी चलेगा । तो सोंच अपनी ही तू, तू बात ना कर बेरी कुछ । कुछ भी हो-हो कुछ बी बात । आरोप मुझ पर लगेगा । तुझे जाना है तो जा, बस अपनी बात को खुद समझ जा । अब ना कह कुछ-कुछ ना समझा । अपनी बात को खुद समझ जा ।। Kavitarani1  225

मैं राही बन चलता हूँ | Main Rahi Ban Chalta hun

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 मैं राही बन चलता हूँ  अपनी किस्मत का मैं मारा-मारा फिरता । मैं अभागा-भागा-भागा फिरता ।। रंग देखता अंगो के, फिरता सतरंग देखता । अपनी धुन का धुनी मैं, खुले मन चलता-फिरता ।। है नील कण्ठ मुकुट ताज, मन पर करता वो राज । नाच-नाच मोह से हरता, मोर बन मैं नृत्य करता ।। है हरा रंग- लाल ढाल, नकल करता मन हरता । सुआ सुदंर बात करता, मैंना के लिये भागा फिरता ।। एक पथिक जान, हो अनजान मंजिल की राह चलता । देख अथक परिश्रम को, मैं उसपे नाज करता ।। एक जीवन सुलभ दिखता, धोरी रेत पर ढाणी पर पलता । दुर-दुर तक आगे बढ़ता, हिम्मत की ये बात करता ।। सब अपनी जीवन गाथा-गाते, आते जाते दिखते-मिलते । मैं अभागा-भाग से मिलता, भूलता दुख आगे बढ़ता  ।। रूका ना आगे रूकता, थकता-सोंचता और आगे चलता । बन पथिक सिखता रहता, तलाश में जीवन कटता ।। है राह और राही सा मैं, परिश्रमी तन और हिम्मत है । बटोर साहस आगे बढ़ता हूँ मैं भूल कल-आज चलता हूँ  ।। Kavitarani1  224

मोर नाचता | Mor nachta

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मोर नाचता  अपनी धुन में-मैं रहता अपनी धुन में । राह चुनता चलता मैं अपने गुन में । कोई कहे ना कहे सुधारता रहता हूँ । मैं मोर नाचता देखता हूँ । और खुद को सवाँरता रहता हूँ ।। है मोरनी की तलाश में । थिरक रहा पैर वो । पंखो को फैलाकर । नाच रहा है वो । थकता नहीं घुम-घुमकर । जोश में नाचता झूम-झूमकर । जो दिखे मोरनी की झलक कहीं । रूकता नहीं एक पल को । मनमोहक-मनभावन नाच है । मोर को तलाश है । इसी तलाश को पुरा करने को । मोर नाचता अपनी धुन में ।। देख मोर की चाल । मैं बदला अपनी ताल । कोशिशों को प्राथमिकता देता । सवँरता खुद और तलाश करता । नाच ना आता नाचता हूँ । मैं भी मोर सा रहता हूँ । वहाँ मोर नाचता अपनी धुन में । यहाँ मैं नाचता  ।। Kavitarani1  223

कैसे | Kaise

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  कैसे  मैं खुद मैं सिमटा औरों की परवाह करूँ कैसे । रहता हूँ बैसुध, सुझ की बात करूँ कैसे । जाने कैसे कट रही जिन्दगी पता नहीं । मैं जिन्दगी जीने की बात करूँ कैसे ।। एक भौर का तारा देखता हूँ, साँझ को निहारता हूँ । मोर का नाच देखता हूँ, पपीहे को सुनता हूँ । मैं अपने दुख का मारा, और का दुख दूर करूँ कैसे । मैं अन्त दुखी के दुख से, रूकूँ कैसे ।। फिर तलाश नये आशियानें की, मैं खण्डहर में रहूँ कैसे । बना रहा अपना घोंसला, होंसले से दूर रहूँ कैसे । सिखा पाठ हिम्मत का, किमत अपनी कहूँ कैसे । मैं खुद ही टुटा हुआ, रूठा जग से रहूँ कैसे ।। एक नीम का पेड़ छाँया देता कड़वा रहूँ जैसे । दुसरे को छाँव देता अंदर से खोखला रहूँ जैसे । आते बैठते लोग गुणगान करते दुख उन्हें सुनाऊँ कैसे । मैं अकेला शांत रहता अन्दर की अशांति कहूँ कैसे ।। Kavitarani1  222

पिया बावरी | Piya bawari

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  पिया बावरी पिया बावरी मैं, पिया बावरी । सुध-बुध खोयी, रोयी साॅवरी मैं, रोयी बावरी । अखियन से बैर कर, जागी पूरी रैन मैं । मनवा से बैर कर, हुई बैचेन मैं । सो ना सकी, थकी रोई मैं । पिया बावरी मैं, पिया बावरी ।। छत पर बैठा पपिहा, बुलाये मुझे ही । छत पर बैठी, पथराई मैं भी । देख रही, भौर भरी अखियन से । भौर भयी, दिन चढ़ने लगा है । जागी अखियाँ कह रही है । पिया बावरी मैं, पिया बावरी ।। जाती सदायें, साल बिते । बैठ ठोर एक-एक यौवन बिते । बित गया सावन, शीत जलाये । ग्रीष्म चिढ़ाये, मन भर आये । आये यादें, यादें सताये । बोल मनवा, मन बोल । पिया बावरी मैं, पिया बावरी रे । पिया बावरी मैं  ।। Kavitarani1  218

इंतजार करते जिन्दगी हारी | Intjar karte zindagi hari

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इंतजार करते जिन्दगी हारी  कब आयेगी नींद प्यारी,  कब मिलेगी किस्मत प्यारी, सोंच रही जिन्दगी दुखियारी, इंतजार करती जिन्दगी हारी । साल बिता बिस्तर पर, हाल बेहाल, निडाल होकर के, सारी जिन्दगी हुई दुसरों की, कैसे कटे जिन्दगी न्यारी । बोल अब सुख गये, आँखे जैसे पथरा गई, पानी पर अटकी साँसे हैं, कहाँ अटकी जिन्दगी सारी । मौत से जैसे ठन गई, जिन्दगी की उससे लड़ाई हो गई, जान अनजान अब पड़ी है, इंतजार करती जिन्दगी हारी ।  कब आये लेने यम, रोज घुटता रहता दम, मन पर तन पर बोझ भारी, इंतजार करते जिन्दगी हारी । काया का साथ रिश्ते मिलते, माया का मोह लोग मिलते, मिलती नही मौत प्यारी, इंतजार करते जिन्दगी हारी ।। Kavitarani1  215

यादें पुरानी | Yadein purani

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यादें पुरानी  मेरे अस्कों के निशान बताते है, मेरे बहते नैंनो की धार कहती है, मेरा आज मेरे कल पर कर्ज है, मेरे बचपन में किस्से बहुत दर्ज है । भूली बिसरी तस्वीर तस्वीरों संग, पलटती निगाहें कहती है,  तिरछी बोंहे बताती है,  मेरा मोल नहीं था यादों में  । मेरे दुख भरे लम्हों के हिस्से कहते है,  अधुरे रहे लम्हों के हिस्से कहते है,  कई साल खो दिये यूँ ही मैंने,  अब वो लम्हें वापस याद आते है । सुखी दिल की बातें सारी, सुखी नयनों की धार है, मेरे खोये बचपन सा ही, मेरा यौवन खोया ही है । मेरे अश्कों से पत चलता है, मेरे दुख का सिला मिलता है, सच-झूठ दूर की बातें रह गयी, सारी बातें यूँ ही रह गई।  बितता आज - कल पर भारी, कभी-कभी ही याद आती, पर जो साथ रहती है, वो खुशनुमा है बातें सारी ।। Kavitarani1  210

बदलता समय | Badalata samay

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बदलता समय  शक्लें बदल जाती है एक समय बाद को, और लोग आइनें को दोष देते है । बोझ लिये चलते है लोग कई सारा अपने मन पर, और दुसरों की कमियाँ देखा करते हैं । एक प्रेम की प्यासी दुनिया सारी, और लोग दुसरों की खुशियों से जलते है ।। एक दिया जलता अंधेरा मिटाने को, और बेमतलब के पंतगे आ गये जलने को । रोशन हुआ जग भला ! जली दिया की बाती क्यों ! आरोप लगाया रोशनी वालों ने जला दीया तू क्यों ! कर भला की कहे-कहे जग बुरे बोल, अपनी धुन में जला दीया, जले इसमें जो ।। मन की आयी हर बात बदली, और लोग कसते ये बदला क्यों ! संवेगो के वेग बदलते रहते, और कहे जग ये बदला क्यों  ? समझाना चाहे जिसे जितना वो समझे ना, रहे जिसे जैसे, रहे मन पर बोझ क्यों ? Kavitarani1  209

मुझसे मेरी हालत बयां नहीं होती | mujhse meri halat bayan nahi hoti

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  मुझसे मेरी हालत बयां नहीं होती  घर-घर घुमता हूँ,  पर दहलीजें पार नहीं होती, मुझसे मेरी हालत बयां नहीं होती । अक्सर सुलभ हो जाता हूँ लोगो को, शायद यही बात हजम नहीं होती, मुझसे मेरी हालत बयां नहीं होती । पंरिदो सा उड़ता हूँ,  पंखो की मुझे जरूरत नहीं होती,  हवाओं से टकराता हूँ, मुझे दीवारों की कमी नहीं होती, कमियाँ मुझमें समाई हुई,  जमाने की कोई कमी नहीं होती,  कमजोर मन बैठा पाता हूँ खुद को मैं,  बस यही बात हज़म नहीं होती, समझाना चाहूँ हाल अपने, पर मुझसे मेरी हालत बंया नहीं होती । मन लगाने को हर मन तक जाता हूँ,  मन लग जाता है हर घर पर, पर मुझसे उनकी दहलीजें पार नहीं होती, रूक जाता हूँ वहीं सब मैं,  सोंचता हूँ, समय बितता हूँ,  और यह साल बदलता नहीं,  मुझसे मेरी हालत बंया नहीं होती ।। Kavitarani1  208

मैं चल रहा हूँ | Main chal rha hun

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चल रहा हूँ  बहुत बोझ लेकर चलता हूँ,  मैं बहुत संभल कर चलता हूँ । हो जाती है गलतियाँ मुझसे, मैं गलतियों से सिखता हूँ । हाँ पसंद नहीं आते लोग मुझे,  चिड़ता हूँ और गुस्सा करता हूँ,  पर क्या करूँ कुछ मजबुर हूँ,  मैं आखिर इनके बीच जीता हूँ । होती है हो जाये खफा दुनिया,  संभल रही नहीं मुझसे दुनिया,  कोशिश सबको मनाने की करता हूँ, मैं अपनी धुन में चलता हूँ । काम आते है कुछ लोग मेरे, कुछ लोग चिढ़ाते है मुझे,  समझ रहा हूँ और बढ़ रहा हूँ,  आज भी शांति की तलाश में हूँ । सुकून की तलाश में आशियाना बना रहा, कैसे-कैसे कर किये जा रहा, सोचता हूँ कुछ बदलेगा जीवन में मेरे, बदलने की चाह में बदला जा रहा । बहुत बातें आती है मन में,  हर बात की सोंच आज चल रहा हूँ । मैं वैसे तो रूका हूँ यहीं,  पर आगे बढने की कोशिश कर रहा हूँ  ।। Kavitarani1  307    

होने दो जो होता है | Ho jane do jo hota hai

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  होने दो जो होता है  बातें कई हो गई अब काम करना है,  कुछ दिन ही यहाँ रहना है और क्या करना है । कहते है तो कहने दो, अब लोगों को रहने दो । अपनी जिन्दगी का एक चेप्टर है ये चल रहा, जो कोई हो आस-पास अपनी ही कह रहा । जीवन के लम्हे बनने दो, जो बने बात बनने दो । जाने के बाद भी कुछ तो बातें चलेगी ही, यहीं अच्छा है अपनी मोजुदगी कहेगी ही । हमनें क्या किया यह हम जानते है, दुनिया में रहते है सब जानते है । जो हो रहा वैसे ही इसे अब कहने दो । लोगों का काम है कहना अब कहने दो । कुछ दिन और रहना है,  कुछ बातें रहने दो । भूलना आसान नहीं सब जानते हैं,  जो बूला सके उसे भूलने दो ।। Kavitarani1  206

एक मैं अकेला | Ek main akela

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एक मैं  अकेला  बादलों का काँरवाँ, जा रहा है कहीं । पक्षियों का समूह, गा रहा है कहीं । कहीं से आवाजें आ रही हवाओं की । और मैं बैठा अकेला सुन रहा अकेला ही ।। मैं सुन रहा हूँ गुजारिशें । बादलों से आ रही बारिश की बुँदे । पेड़ो से पत्तिय की आवाजें । गुनगुना रही पेड़ों की साखे । एक मैं अकेला बैठा हूँ,  सुन रहा हूँ मन के शौर को । आवाजें बाहर है, है अंदर बहुत । कहूँ किससे क्या है मुझसे दूर ।। देख रहा हूँ जाते बादल । आता सुरज, जाते बादल । दिख रहा पेड़ो की शाखों पर पक्षी, उड़ते पंतगे और हवायें । एक मैं बैठा अकेला देख रहा । गुजारिशे मन से खुद करता ।। बारिश की बूँदें हल्की हुई है । अब आवाजें पक्षियों की बढ़ सी गई है । हवा है नम और बादलों के झुंड । एक मैं अकेला बुन रहा गुन । एक मैं अकेला बैठा हूँ यहाँ ।। Kavitarani1  304