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सपनों के शहर में | Sapno ke shahar mein

सपनों के शहर में  सब मेरे अपने है, सारे मेरे सपने पुरे है, हर कोई खास है, जो चाहा वो पास है, प्यार है, बहार है, मौज है,  ओज है, मेरे सपनों के शहर में । किसी से कहना ना पड़ता, कोई ना आपस में लड़ता, जो मिलता अपना, जो सोंचो सब मिलता, ना कोई फरेब है, कोई ना ऐब है, खाओ जितने सेब है, सब कुछ यहाँ सेफ है,  मेरे सपनों के शहर में । हाँ मेरे अपनों के शहर में ।। Kavitarani1  263

मन में क्यों सुखा है | man mein kyun sukha hai

मन में क्यों सुखा है  बारिश है, सब तर है,  हवा शीतल और नम है, खुश है जीव सारे, खुशहाल है आलम सारा, फिर मन में क्यों सुखा है । हवायें तेज है,  बादलों में वेग है,  पर्वत भी नम है, बाहर बङी उमंग है,  फिर मन में क्यों सुखा है ।   शौर है पशु-पक्षियों का, लोगों की अठखेलियाँ है,  आनंद है मौसम का, तन का भी मौज है,  फिर मन को क्या खोज है । बुँदे बारिश की,  सुगंध है मिट्टी की,  गीत है पवन के, हरीयाली की चादर है, आनंद के सुर है, फिर मन क्यों असुर है । मन में क्यों असुर है । मन में क्यों सुखा है ।। Kavitarani1  261

बेपरवाह है | Bepravah hai

बेपरवाह  हो बड़ी बेपरवाह तुम । कहती हो क्या ? सब समझ आता है मुझे । कुछ कहता नहीं तो क्या । क्या-क्या ना कह पास लाता तुझे । हाँ, ये मेरी कमजोरी है । मिलती नहीं हमजोली है, मिल जाती टोली पर, हटके मिले जो चाहिये मुझे । तुझे परवाह नहीं,  और मुझे इसका गम नहीं । हूँ अकेला, छेला, अपनी जीवन बेला में, मैं रेला, जानता हूँ क्या; कब करना है,  वश नहीं मन पे, यही एक झमेला है । पर तु जो हो पास, कहती हो अपनी बात, बात में प्यार तो नजर ना आता, आता है प्यार साथ लम्हों पे, और तेरी बेपरवाह जिन्दगी पे, यही तो कुछ खास है, तु बेमिसाल है,  मैं जो बनूँ टोम, तू मेरी जेरी है,  तू बड़ी बेपरवाह है,  तू लापरवाह है ।। Kavitarani1 259

तुझे परवाह नहीं | Tujhe parvah nhi

तुझे परवाह नहीं  सुन ! कहता है क्या दिल, ख़्वाहिशों का जहान दिखाऊँ तुझे,  आ पास बेठ मेरे, सपनों का महल दिखाऊँ तुझे,  ज्यादा कुछ पास नहीं,  पाया है क्या-क्या खोया,  सुनाऊँ तुझे । हाँ, पता है मुझे,  मुझे नहीं आता रिझाना तुझे,  ना बातें प्यारी, ना प्यार जताना आता मुझे,  तुझे परवाह नही, नहीं पता मुझे,  चल छोड़ इसे, कुछ और सुनाऊँ तुझे । अपनी मैंने खुब कही, चल सुना अब सुन लू तुझे, क्या चल रहा लाइफ में,  कुछ अपने अंदाज में बताओ मुझे,  हाँ मुझे परवाह है तेरी, तुझे परवाह नही मेरी, इसे छोड़ साथ लम्हे और बताऊँ तुम्हें ।। Kavitarani1  258

भौर का आलम / bhor ka alam

भौर का आलम  सब भूल - भाल के, अन्तर्मन देखूँ जो । शीतरता, मधुरता, ताजगी, सादगी खोजूँ जो, प्रकृति की गोद में जाके जाऊँ में,  देख इसकी सुंदरता कहूँ,  इसके सिवा और चाहूँ नया । ये उगता सूरज, नम धरती, हरे पत्ते, ये पक्षियों की आवाजाही और चहचहाहट, पपिहे की आवाज और मोर का यूँ छतों पर नाचना, और मंद-मंद मुस्कान देती ताजगी भरी हवा, कुछ पल प्रकृति की गोद में बेठूँ, सब भूल एक सुकून चाँहू जो, अनायास ही सब मिलता है । यहाँ सब फूलों सा खिलता है । शांत मन, शांत तन, शांत हवा में,  सुबह की चाय की सिसकियों में,  कुछ खास नहीं बस मन के शब्द उकेरे है । ऐ जिन्दगी मैंने ये भौर के शब्द कहे है ।। Kavitarani1  257

शाम जरूर होगी | Sham jarur hogi

शाम जरूर होगी  है धुप तो क्या ?  शाम ना होगी । तेज बारिश है तो क्या ?  बारिश खत्म ना होगी । मिट गई सर्दी और गर्मी भी, क्या रात नहीं होगी । है भ्रम में जग सारा, है भ्रम में जग सारा, धुप है बहुत,  मै सब्र नहीं करता, पर जानता हूँ, शाम जरूर होगी । फिर दिन निकलेगा, फिर नयी उमंग होगी । है उमस बहुत अभी, ये गर्मी एक दिन खत्म जरूर । है धार तेज नदिया की, होगी खत्म बारिश तो, ये दरिया भी पार होगी । तु सब्र कर ऐ पथिक, तु हिम्मत रख है राही, है तेज धुप तो क्या,  शाम नहीं होगी । शाम जरूर होगी ।। Kavitarani1  268

मैं पथिक / main pathik

  मैं पथिक अशांत, एकांत, अधुरा, निर्जन वन का बसेरा, विचलित, भ्रमित, कसेरा, विरान् मन पर ठहरा, मैं पथिक पथ पर, चलता, दौड़ता और ठहरा । पथ भ्रम, मति भ्रम, भ्रमित जग का पहरा, हठ धर्म, नित कर्म, अथक मन का सहरा, स्थिर प्रज्ञ, होकर अज्ञ, चल रहा मैं पथिक सोंच गहरा । अंधकार, हाहाकार, प्रहार, जीवन भर तन कहता रहा, पीड़ा अपार, डोकर हार, मन कई  बार सहता रहा, जान सार, मान हार, मैं पथिक डर चलता रहा । स्व साहस, स्व स्वांस, स्व अनुयायी, बन खुद का अनुयायी, कर संभाल, पग संभाल, पथ सवांर, बस सहता, बढ़ता रहा, मैं पथिक अपनी मंजिल को बढ़ता और अपनी धुन में चलते रहा ।। Kavitarani1  253

मेरी थी क्या खता / meri thi kya khata

मेरी थी क्या खता  फिर से सुनाने को कोई नहीं पास । अपनें गम बतानें को आया नहीं कोई रास । फिर तुम्हें ही सुनाता हूँ ऐ जिन्दगी । तुही सुन क्या शिकायत है अपनी बंदगी ।। कहने को फिर खास थी । वो दोस्त जैसी मन की साफ थी । कर दिया काॅल अपनी बताने को । सुन रहा था जब तक था सुनने को । फिर मेरी बारी आयी कहने की । कही खुलकर अपनी ही । बस मान बैठा खास सा उसे । दिल से बता बैठा पास का उसे । मस्ती मजाक ही तो थी । चिढ़ गई और रूठ गई । अब तु ही बता ऐ जिन्दगी । इसमें मेरी क्या खता थी ।। दिलबर मान दिल के हाल सुनाना मुश्किल । अपना जान खिलखिलाना और मुश्किल । लड़ना-झगड़ना आम रहा था और क्या करता । बात ही तो की थी खुलकर और मेरी थी क्या खता ।।   Kavitarani1  249

मैरी जैरी है / meri jerry hai

   मेरी जैरी है  मस्ती खोर, शैतान है,  अपनी खुशियों से अनजान है,  है तो लड़की ही वो, पर कहने से लड़का है, खुब है और खुबसुरत है, मेरी लाइफ में एक जैरी है । समय साथ आती है,  बीस बरस की हूँ गाती है,  बात करो समझदारों सी तो, जाने क्यूँ मुँह फुला जाती है,  टिकती नहीं जगह एक, ना मन पर ज़रा सा काबु है, बहुत खुब है वो, वो मेरी जैरी है । दौड़ भाग करती रहती है,  बच्चों में खैलती, गिरती है,  दुबली - पतली सी है,  पर साड़ी में अम्मा लगती है,  बहुत मजेदार बोलती है,  आता नहीं ज्यादा पर, शब्दों को बड़ा तोलती है,  कहती है खास कई दोस्तों को,  पर खुद की ही उसे पड़ी रहती है,  अपने घर वालों की लाड़ली है,  जाने कैसे मेरे से आ मिली है,  सुनती है, सुनाती है, लड़ती है, हाँ  ! मेरे पास अभी मेरी जैसी है  ।। Kavitarani1  242

काश ! तुम होती साथ / Kash ! Tum hoti sath

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काश ! तुम होती साथ  देखो बादल छा गये । पर्वत पर मण्डरा गये । कुछ अठखेलियों सा कर रहे । कुछ बुँदे बरसा रहे । छायाँदार महोल हुआ । ठण्डाई का आलम हुआ । घुमने का मन कर रहा । काश ! तुम होती साथ । तो खुब मस्ती करते । पानी की बुँदो से लड़ते । हवाओं से बातें करते । बादलों की सवारी करते । झूमते - मौज करते । साथ में बहुत खुश रहते । अगर तुम साथ होते । कुछ बातें मन में सोंच । खुद ही निहारता बादलों को रोज । रोज नयी कहानी लिखता । तेरे जीवन में आने की राह तकता ।। Kavitarani1  241

तुम / Tum

तुम  हो गयी रात तब सवेरा ढुंढते हो । भरी चाँदनी छोड़ धुप तकते हो । कैसे समझायें ऐ - वक्त - से बेखबर यार मेरे । जो आज है उसे ही तुम कल ढुंढते हो ।। चली गयी बरसात अब नमी ढुंढते हो । रही हरियाली छोड़ फुल खोजते हो । कैसे बतायें ऐ - नादान दोस्त मेरे । जो है पास उसे ही तुम हर बार ढुंढते हो ।। ये हवायें कहती हे, सुनो क्या कहती है ? फिजाओं की तरह ऋतुऐं बदलती है । गुजर जाता है वक्त और ये बहारें सारी । समझो कि रह जाती है इनकी बस यादें सारी ।। बिगड़ गयी बात अब बहाने ढुंढते हो । अपनी जिद पकड़ बातें मोड़ते हो । कैसे समझायें ऐ मेरे यार । तुम खुशियों का रूख मोड़ते हो ।। Kavitarani1  239

मैं...कब / Main kab

मैं... कब मैं भी बड़ा मुर्ख हूँ,  खुद को खो रहा हूँ-  खुद को पाने के लिये,  जी सकता हूँ आजाद और, जी रहा हूँ जमाने की सोंच कर । बुरा लगता है खुद को कुछ,  पर जमाने को बुरा नहीं लगने देता हूँ,  बड़ा मुर्ख हूँ खुद की चिढ़ाई करता हूँ । कह अक्कल को काम लूँगा,  जमाने को छोड़ खुद का नाम लूँगा,  बढ़ाई सुन झुकना बंद कर, सीना तान हक की माँग करूगाँ,  जाने कब अपने मन का ही करूगाँ । सोंचता हूँ दुर हूँ, खुश हूँ,  जाने किस बोझ में दबा रहता हूँ,  इस बोझ को कब आजाद करूगाँ,  मैं कब आजाद होऊगाँ  । Kavitarani1  239

बदलते ठिकाने / Badalate Thikane

  बदलते ठिकाने  दर बदलते, दरबार बदलते,  वक्त के साथ हालात बदलते,  हो बारिश का मौसम जो, दरिया के रूप बदलते । सुर बदलते, सरताज बदलते,  समय के साथ हाल और हालात बदलते,  लोग बदलते, लोगों की बात बदलती,  हो बुरा दौर तो लोगों के शौर बदलते । तारे बदलते, सितारे बदलते,  हर दिन चाँद के आकार बदलते,  हो बात धरती की तो, पग - पग पर इसके रूप बदलते । मन बदलता, तन बदलता, जगह बदलने के साथ,  जग बदलता, ठिकाने बदलते,  मन के और तन के पहनावे बदलते । शहर बदलते, गाँव बदलते,  गुजरते जमाने के साथ,  घर बदलते आँगन बदलते,  रोज - नये आयाम बदलते । समय बदलता, ठिकाने बदलते,  लोगों के रहने के मिजाज बदलते,  हो अच्छे दिन तो, सुर लोगों के है बदलते है ।। Kavitarani1  238

जाना है / Jana hai

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जाना है  जैसे चलता रवि सुबह को पूरब से, और जाता है दिन ढलने पर पश्चिम ये, वैसे मेरा सफर शुरू होने को है । पूरब से पश्चिम रवि जाने को है  । अब कल तक की बात है , रात काटनी है यही बात है, जाना है कर्म भूमि को निरंतर चलते हुए,  पूरब से पश्चिम जाने को है ।  Kavitarani1  237

गलती / Galati

  गलती  हाँ, हाँ, मैं सब समझ गया । बातों में तेरी कुछ उलझ गया । पर मुझे सब याद है । अपनी वाट्स एप्प पर ही मुलाकात है । कहता रहा मैं अपनी बातों को,  दुःख - सुख की रही यादों को, और तुमने भी अपनी गाथाएँ सुनाई, बातों - बातों पर तुम चिढ़ी और हुई लड़ाई,  तुम रही जैरी मैं टोम ना हुआ, पर खाने का मन कई  बार हुआ । मानना पड़ा, मैं नहीं भारी, और कभी तो आयेगी मेरी बारी । गलती कभी होती है क्या ? मुझे समझ आ गया मामला है,  गलती होना ही गर्ल है,  चलो छोड़ो सब जाने दो, अब कभी तो मुझे, मुझे आगे बढ़ना तो तुम,  अपनी गलती रहने दो ।। Kavitarani1  236

किसे पड़ी है / kise padi hai

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तेरी किसे पड़ी है  क्या कहे किसी को ? क्या सलाह दें ? ऐसे भी कौन किसकीसुनता यहाँ ? जो कहता कुछ उसे कहने दे । सबको बस यहाँ अपनी पङी है । और अपनी अभी कटी पङी है । जेब मेरी, और नगदी सड़ी है , जैसे तेरी सोंच सड़ी है ।  कहना क्या सब समझते है । कहना क्यों सब समझते है । समझ ना आये तो हँसते है, फसते है, वो जो कहते कभी हम फसते नहीं,  यही बात मुझे अड़ी है, कहना क्या मुझे खुद की पड़ी है, सब जानते है दुसरों की किसे पडी है । जिसे आना है आयेगा, गाना है गायेगा, रोके कितना ही किसी को,  जिसे भाड़ में जाना है वो जायेगा । जाने वाले को मैं भी रोकता नहीं । अब फालतु की बातों से खुद को टोकता नहीं । जिसे टोकता हूँ उसे कहता हूँ । भाई समझ मेरे जिन्दगी बड़ी है । तुझे दुसरों की पड़ी है । और मुझे अपनी पड़ी है  ।। Kavitarani1  235

सुध है / Sudh hai

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Click here to see this in video सुध है  सुधबुध है मोहे, होंश है । जग से रिझा,तुझ से खिझ है । सुधबुध है... मोर अगंना, नाच रहा । शांत जग, हॅस रहा है । हवायें है मध्यम, चिड़ियों का गीत है । देख रहा जग को, होंश है । सुधबुध है.., सांझ सुबह छत पर बैठा । मन बावरा कहीं खोया है । खोयी है, गति है । जग से रिझा, खिंचा जाता । सपने पाने की कोशिश । सुधबुध है... अपनी धुन में मोर नांचे । गाये तराने नाच - नाच के । देख हिया उलझा है । शांत है सुबह, ओझल तारे । जाने को राहे सुलभ है । चढ़ता रवि, बढ़ता दिन भी । काम के बोझ में जीवन है । सुधबुध है...।। Kavitarani1  221

तेरे से खुब रही / Tere se khub rahi

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तेरे से खुब रही  तेरी भी खुब रही । आके रही पास मेरे, पर एक बात ना हुई । मुस्कुराई देख मुझे, पर फिर नजरें एक ना हुई । पड़ोसन लाजवाब मिली । पर पड़ती ना हुई । तेरे से भी खुब रही ।। बातें चार काम की ही कर लेते । मुलाकातें  आम ही कर लेते । देख लेते हॅसकर एक-दुजे को । पर रिश्ते की बात से दूर होते । जाने क्या तेरे साथ हुई । अकड़ में जो तू रही । शुरूवात ना मुझसे हुई । ऐसे अपनी खुब रही ।। दूर बैठ कभी मैंने देखा । तू कहीं बातों में खोई रही । बातें कुछ आम हुई । कभी घर वालों से तो । कभी मोहल्ले वालों से हुई । हमने तो दुजी हाथ सुनी । कुछ मन की मन में रही । ऐसे अजनबी से शुरूवात हुई  । अजनबी से ही खत्म हुई  । तेरे से भी खुब रही ।। Kavitarani1  220

ऐ जिन्दगी / E zindagi

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Click here to see video ऐ जिन्दगी  ऐ जिन्दगी ! तू हॅसकर गुजर,  गुजारिश है ये । आरजू है ये की तू खुश रहा कर । जहाँ मे आस कर रहा, कर काम कर । दुखों की सोचना कम कर । खुशी की बात कर । ऐ जिन्दगी ! तू यादगार बन । कोई लिखे जब तेरे बारे में  । जीना चाहे तुझे । जब कोई सुने तुझे ही । मेरी बात पर गौर कर । ऐ जिन्दगी तू मजेदार बन । जीना है तो जी । हर किसी के लिये ना मर । जो मिल रहा उसमें संतोष कर । जो नही मिल रहा,  उसकी परवाह ना कर । ऐ जिन्दगी तू अपनी बात कर । जैसे भी दिन हो । हॅसकर चल ।। Kavitarani1  211

फिर से / Phir se

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Click here to see video फिर से फिर से हवा में नमी है, हवायें तेज है,  आसमान बादलों से ढका है, फिर से उमंगे है,  एक नया जोश है, सनसनाहट है सासों में,  ताजगी है, मौसम खुशमिजाज है । मैं बन परिंदा उड़ना चाहूँ,  देख फिजायें महकना चाहूँ,  दूर तक एक छोर खोजूँ,  मैं अपनी धून में गाना चाहूँ,  आजाद हूँ आजाद रहना चाहूँ । फिर से वो पुरानी यादें हैं,  दिल में नयी उमंगे है,  रूकावटें है कई सारी, पर मस्त उड़ने की चाहत है,  राहत है कुछ दिल में,  कुछ मेरी चाहत है ।। Kavitarani1  200

कब दिन ढले / kab din dhale

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Click here to see video कब दिन ढले   पूरब की किरणें उठ खड़ी हुई । शांत, शीतलता लिये बढ़ी हुई । डाल - डाल चहक रही । हवायें मध्यम अब तेज हुई । मन बावरा खोया सा । किस्मत पर अपनी रोया सा । सोच रहा आगे की । कि कब शाम ढले । कब तक रोज - ऐसे जीये । कोई आस नहीं । कोई पास नहीं ।  एकान्त में कोई साथ नहीं । यौवन की ढलान में । जीवन की भौर याद आई । बैठ छत पर । मन कर रहा सवाल वही । खुब जीये और जी रहे । अब शाम हो और  कब दिन ढले ।। Kavitarani1  214

पथिक पुराना / pathik purana

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पथिक पुराना  धुप बढ़ गयी, अब लू तेज चलती है, आये दिन राह में साथ की कमी खलती है,  आते है मोड़ विकट राह खलती है,  बड़े - बङे गड्ढों संग चट्टानें भी मिलती है,  सुखी जमीन पर चलता है,  किचड़ में गिरता - फिसलता है, घने जंगल से गुजरता है,  रेगिस्तान में गड़ता चलता है । कोहरे से लिपटता है,  ठण्ड में सिकुड़ता है,  भरी बारिश में गलता है,  भीषण गर्मी में चलता है । पथिक पुराना है,  अनुभव का खजाना है,  हिम्मत से चलता है । आगे ही बढ़ता है । रूका नहीं ना रूकता है,  थका नहीँ ना थकता है,  साथ नहीं साथ देता है,  हर मौसम में चलता है । सुबह का मजा लेता है,  शाम का सार सुनता है,  अकेले गुनगुनाता है,  आगे बढ़ता रहता है ।। Kavitarani1  212

मेरे शहर में / mere shahar mein

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Click here to see video मेरे शहर में  आ गई तुम, फिर मेरे शहर में,  पलट कर देख रही हो, सब अच्छा चल रहा है ना, फिर क्यों जख्म खुरेच रही हो, क्या मैं हूँ वो जो याद आया, या मेरे शहर की मीनारों ने बुलाया, बहुत सुन्दर घर है देखने को,  क्यों मेरी कुटिया निहार रही हो, आ गई ना तुम, फिर मेरे जहन में,  भूल गया था मैं,  याद आ गई ना फिर, मेरे वहन में,  तुम रह लोगी पता है मुझे,  मुझसे ना हो पायेगा, इसीलिये तुम देखती रहो, मुझसे अब ना देखा जायेगा, फिर ना सहा जायेगा । खुश रहो तुम मेरे शहर में ।। Kavitarani1  211

समझ रहा हूँ / main samjh rha hun

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Click here to see video समझ रहा हूँ   सबको अपनी पड़ी है, सब अपनी सोंचते है, अपने स्वार्थ के काम खोजते, लोग अपनी अलापते हैं । मैं कहना चाहूँ जो सुनते नहीं,  जो समझना होता समझते नहीं,  कहीं रूक ना जाये जिन्दगी,  सोंच यही सुनता अपनी; गाता हूँ । ये मेरी कहानी है,  ये मेरी जिन्दगानी है, कुछ समझना बाकि है,  पर सबको कहाँ फिकर है, सबको अपनी फिकर है,  सब बस अपनी कहते, अपनी ही धुन में रहते , सब्र कर चल रहा हूँ,  मैं सब समझ रहा हूँ  ।। Kavitarani1  202

सब बदल जाते है, sab badal jate hai

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Click here to see video सब बदल जाते है  बहते दरियों के किनारे, रात बदलती बदलते तारे, मौसम का रूख बदलता, धरती का रूप बदलता, समय साथ आखिर कौन रहता है,  एक वक्त गुजर जाने पर, सब बदल जाते है । जन्मे सारे रूप बदलते, शिशु, युवा, वृध्द, बदलते, किस्से, कहानियाँ, सार बदलते, हर साल दर मिजाज बदलते, चेहरों के अब भाव बदलते, कौन रहता है साथ चाहने पर, सब बदल जाते है । बचपन के लिखे लब्ज बदलते, लिखावट के आकार बदलते, दोस्तों के हाव-भाव बदलते, जमीन के मोल भाव बदले, पोस्टर पर पद नाम बदलते, सपनों के आकार बदलते, प्रकृति अपना रूप बदलती है,  आदमी अपना मिजाज बदलता है,  सब बदल जाते है । आखिर सब बदल जाते हैं ।।  Kavitarani1  65

बहुत दिनों बाद / bahut dino bad

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  Click here to see video बहुत दिनों बाद  इस बार बहुत दिनों बाद,  पेन हाथ में पकड़ा है । कई दिनों बाद, शब्दों को डायरी में लिखा है । संवेग सोये जगे है, और समय मिला है खुद के लिये, सोंच रहा हूँ अपने जीवन की, बहुत दिनों बाद । आशायें जगी है । मेहनत सुकून लग रही है, लोग यूँ ही लग रहे, अकेला ही लग रहा है, लग रहा इस जीवन से जुड़ा हूँ,  कई दिनों बाद । लोग अपनें दूर हुए,  लोग अपने आभासी गायब हुए,  नये लोग नजदीक हुए है, नये लोग साथ हुए है , इस शाम अपने विचारों में खोया हूँ,  इस शाम खुद को पिरोया हूँ,  इस समय खुद का बना हूँ,  लग रहा जी रहा हूँ,  कई दिनों बाद,  अपनी चीर परिचित छत पर बैठा हूँ,  बहुत दिनों बाद ।। Kavitarani1  198

तट पर / Tat par

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Click here to see video तट पर  मैं रत हूँ अपनी धुन में,  बुन रहा अपना घोंसला,  गत है आसमान छुने की,  बना रहा अपना होंसला । मैं क्षितिज निहारता रहता, कहता कुछ - कुछ करता, अपनी उमंग बनाता मिटाता, मैं चलता अपनी धुन में गाता । आ चुका मध्य में,  बहता दरिया है तेज, देख रहा तट को छोर से, हूँ बैठा अब तट पर मैं । अब बह जाना है,  सब यहीं रह जाना है,  कहना है इस वेग से,  पार करना है दरिया ये । शौर बहुत इस तट पर, है बहुत बैचेनी भी, कहता कुछ - कुछ करता हूँ,  संशय मैं बैठा हूँ । अब सार सब छोड़ा है,  हर अपने को परखा है,  मुख पर कुछ - कुछ मन में,  अब देख रहा तट - तट पर मैं ।। Kavitarani1  197

सपनें मेरे / sapne mere

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Click here to see video सपनें मेरे  सपनें मेरे,  कभी लगता है मिल जायेंगे,  कभी लगता है नहीं मिलेंगे, कभी पाने को उन्हें भागता हूँ,  कभी ना चाहे तो भी ताड़ता हूँ,  सपने मेरे... औझल करने वाले मुझे ही, एक छोर टिकते ही नहीं,  कभी सबके मन पर छाने के,  कभी अधिकारी बन जाने के, कभी समाज सेवी बनने के,  कभी आराम की जिन्दगी जीने के,  एक हो तो जानूं इन्हें,  रूके कुछ पल तो जानूं इन्हें,  अनकहे - अनसुने सारे, आ जाते बन बहानें, सपने मेरे । संतोष मिले पाकर इन्हें,  आशा की किरण आये, बन मृगतृष्णा से, मेरी आँखों पर छाये, हाय किस्मत मेरी, ले जाती कहाँ मुझे,  और सपने मेरे,  दौड़ाते फिरते मुझे । सपने मेरे  ।। Kavitarani1  192

बढूँ मैं अपनी धून में / Badu main apni dhun mein

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Click here to see video बढुँ मैं अपनी धून में  मैं सत् पथ पर रत होकर,  अपनी ठोकर से खुद उठकर, चलूँ अपनी धून मैं,  बढुँ मैं अपनी धून में ।। मैं अथक, अर्पित तीर पर, अपनी मर्ज़ी और अपनी जिद पर, पाऊँ मंजिल आज मैं  बढुँ मैं अपनी धून में ।। मैं दूर कर अंधकार अपना, कर करके बस काम अपना, ज्योत बनूं अपनी धून में, बढुँ मैं अपनी धुन में ।। मैं राही अपने मार्ग का, अपनी चाह का चुनाव करूँ,  खुद की खुद ही राह चुनूँ,  बढुँ मैं अपनी धून में ।। मैं राही दुर का, जाना है दूर तक, पाना है अपनी मंजिल को,  बढुँ मैं अपनी धून में ।। Kavitarani1  191

बोझ / bojh

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Click here to see video बोझ  बोझ बढ़ गया है ! समझ नहीं आ रहा किसका ? जीवन तो चल रहा है । पहले से अच्छा दिख रहा है । आजाद परिंदा हूँ । खुले आसमान के तले उड़ रहा हूँ । फिर बोझ किसका ? सोंच रहा हूँ ! लगता है कुछ ज्यादा खोज रहा हूँ । कुछ ना पाया हुआ मिल नहीं रहा है । इसीलिये मन पर बोझ लग रहा है । वो सपनों का मकान बाकि है । जीवन की मधुर याद बाकि है । सबको साथ लेकर चलना है । सबके लिये कुछ करना है । यही मन पर बोझ बन रहा है । शायद आगे बढ़ना रूक गया है । ठहराव सा लग रहा है । यही बोझ बन रहा है । समझ नहीं आ रहा आखिर क्या ! क्या बोझ बन गया है  ।। Kavitarani1  172

बच्चा है / bachcha hai

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Click here to see video मन बच्चा है  हाँ मन का कच्चा हूँ,  कहते है लोग मैं बच्चा हूँ । सच ही थोड़ा जमता है, मुझपे थोड़ा जमता है,  कान का कच्चा हूँ,  मन का सच्चा हूँ । सबके लिए अच्छा हूँ,  शायद इसीलिए कहते है,  मैं अभी बच्चा हूँ ।। संभलता नहीं जाने क्यों, वश में रहता नहीं ये, नादान है अभी भी, शैतान है अभी भी, आ जाता बहकावे में , करता सब कहावे में ,  अच्छा ये लगता है,  बच्चा ये रहता है,  मन का बच्चा है,  रवि अभी बच्चा है ।। Kavitarani1  179

समझा ना पाऊँ मैं / samjha na pau main

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Click here to see video समझा ना  पाऊँ मैं  एक बैंचेन मन, एक उलझी जिन्दगी,  अधुरी सी खुशियों में,  मुस्कुरा ना पाऊँ मैं,  क्या बीत रही मुझ पे, समझा ना पाऊँ मैं । अन-चाही ख़्वाहिशें,  उलझा हुआ कल, अधुरी आस में जीता मैं,  हँसना चाहूँ आज मैं,  कल पर रोता जाऊँ मैं,  क्या व्यथा है मेरी, समझा ना पाऊँ मैं । टुटे से रिश्ते,  प्रताड़ित बचपन में,  दोखों के दोस्तों में,  स्वार्थी आज में रहता में,  सपने पुरे करूँ,  पर इनकी परवाह कर जाऊँ मैं,  है कैसा मन मेरा, समझ ना पाऊँ मैं । एक प्यार की प्यास,  सच्चे साथी की तलाश, एक जीवन सार, सब पाना चाहूँ मैं,  मन का उलझा मन की, समझा ना पाऊँ मैं  ।। Kavitarani1  178

जैसे तुम वैसे मैं / Jaise tum vaise main

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  Click here to see video जैसे तुम वैसे मैं  सच्चा था मैं, सच कहता था । अपनी जुबान पर अड़ा रहता था । पर तुम थे समझदार, धार से करते रहते वार । कहते कुछ - कुछ थे करते । मेरी अच्छाई पर थे लड़ते । करता क्या ! क्या-क्या में सहता । ठोकर खाकर संभला अब - अब तरसा करता । रहता जैसे तुम - वैसे मैं । अड़ता मैं जैसे तुम वैसे मैं । मान जाता हूँ रूक जाता हूँ, सुनता हूँ । चालबाजियों से चाल बचाता हूँ । मन मारता और भाव खाता हूँ । अच्छा बना रहता हूँ पर अब अच्छाई नहीं । दिन आये खुद पर ऐसी कोई नहीं । बस अब ज्यादा ना सुनता । बात पसंद आये बस उतनी करता । हरता मन की पीड़ा - क्रीड़ा करता । अब जैसे मिलते तुम वैसे मैं  । अब जैसे, तुम वैसे मैं  ।  Kavitarani1  175

भ्रमित सुबह है / Bhramit subah

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  Click here to see video भ्रमित सुबह है  भरी धुप में, दोपहर काटी है । साॅवन की फुहारों के साथ ही नहीं,  आँधियों में राते गुजारी है । शीतल हवा को सुना है समझा है, मैंने कड़ाके की शीत में सुबह गुजारी है । अब बदला मौसम है । सुहानी शाम है और शांत सुबह है । कैसे संभालू इन सबको, मन में सवाल है । बातें बहुत, काम बहुत है । जीवन के उतार - चढाव के अनुभव बहुत है । इसी सब के साथ सोंच रहा हूँ,  ये सुबह कैसे गुजारू । पढ़ने का मन नहीं,  आगे बढ़ने का होंसला नहीं,  रूकने का मन नहीं,  काम दिन का और कुछ नहीं,  कैसे, क्या करूं सवाल वही, इस सुबह भी वही । मेरी सुबह भ्रमित है ।। Kavitarani1  174

मैं बिन तेरे | main bin tere

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Click here to see video मैं बिन तेरे रोज नयी तस्वीरें, रोज नये किस्से आ रहे । नये-नये बधंनो में लोग बंधे जा रहे । कैसे रह रहे ख्वाब अधूरे मेरे, मैं जी रहा बिन तेरे । खतायें पता नहीं,  जिसके लिये माफि माँगू,  शिकायतें है, क्यूँ मैं अकेला रहूँ ? दरखास्त रहती कब सुकून की नींद हो, कब मैं भी जीऊँ,  अभी क्यों मैं बिन तेरे । पहले मौज करता था, दुसरों की शादी में खोज करता था, आज जैसे दर्द  हो, मेरे अंदर को टटोल रहे हो, क्योंकि अभी हूँ मैं बिन तेरे । सुबह को मिस करता हूँ, नामों को भूला करता हूँ,  रातों को खालीपन महसूस करता हूँ,  दिन को बैचेन रहता हूँ,  मैं बिन तेरे ।  स्वाद खाने का बिगड़ गया, सजना सँवरना छुट गया, बढ़ाई पर कोई ध्यान नहीं,  किसी की चाह और रही नहीं,  दिन की चाह और रही नही, दिन कट रहे और साँसे चल रही, मैं बिन तेरे, और तेरे बिन रही जिन्दगी ।। Kavitarani1  67

तेरे नैना / Tere naina

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विडिओ यहाँ देखें तेरे नैना  झूठे तेरे नैना, नैना तेरे झूठे, झूठी आस लगाये, लगाये झूठी आस ये । ओ ! बावरा मैं सुन धुन तेरी । तेरी गाऊँ सुरत ही ।। सुरत तेरी प्यारी  । प्यारी तु मेरी ।। झुठे तेरे नैना, नैना तेरे झूठे । बाल मन तेरा, तेरा मन भी बावरा । अठखैलियाँ करता, हरता मन मेरा । हरा मन मेरा, मन मेरा रंगा तेरे रंग में । मैं सांवरा था, हुआ बावरा तेरा । देखे जो नैन तेरे, तेरी सुरत जो देखी, सुनी जो बातें तेरी, मेरी गयी सुधी । झूठे तेरे बोल - बोल बदलते रहते  । छलिया तेरा रूप - रूप मेरा हरे । हरे मन मेरा, मैं एकान्त कह रहा । कह रहा तेरी । ओ झूठे तेरे नैना,  नैना तेरे झूठे। । Kavitarani1  170

सांझ सत्य / Sanjh satya

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विडिओ देखने के लिए यहाँ दबायें   सांझ सत्य एक सांझ सच, देख मन रत । सत्य श्याम रंग सांझ का । मैं जत कर - कर प्रयत्न अब थक रहा । जग झूठ, झूठ सब - सब करते है दिखावा । एक मन प्यास, करते रास जन जग करे बावरा । सुबह प्यारी, धूप न्यारी, धूप जलाये ग्रीष्म ही । शीत याद आये,  बरखा सताये, सताये अति जब हो रही । ढलती काया, और माया, दिखाती सत्य सांवरी । मन की बात, तन की प्यास,  बस रही मन ही । एक सांझ सच, देख मन रत, सत्य श्याम रंग सांझ का ।। Kavitarani1  169

प्रीत तुझसे / Preet tujhse

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Click here to see video - love you   प्रीत तुझसे मन मेरा, मन मेरा, लगता नहीं किसी ओर से,  लगी है - लगी जो, प्रीत मेरी तुझसे ।  होता नहीं जोर कहीं,  जाता नहीं ओर ये, मन को मेरी लगी जो, प्रीत तुझसे । बस नहीं मेरा कोई,  कोई नहीं प्रीत में,  जाऊँ कहाँ, जाऊँ करूँ प्रीत में,  लगी जो प्रीत मेरी तुझसे । बंधन ये प्रेम का, जोड़े ना जुङे झुठ से, लगी धुन मन की तुझसे । मन मेरा माने ना, ना दिल्लगी हुई किसी ओर से,  लगी जो प्रीत मेरी तुझसे । टुटे ना टूटे ये, जुड़ी ऐसी जोड़ से, लगी मुझे प्रीत तुझसे, लगी प्रीत तुझसे । लगी मुझे प्रीत तुझसे  ।। Kavitarani1  165

क्यों सोंचता इतना / kyon sochna itna

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Kyon sochta itna - click here to see video क्यों सोंचता इतना  अकेला चला था ना, अकेला ही रह ना फिर, क्यों आस लगाता है दुनिया से ? क्यों सोंचता है लोगो की ? क्यों सोंचता है वो भी याद करेंगे ? कि वो तुझसे बात करेंगे । कौन था पहले तेरी बता ? कौन सुनता था तेरी ? कौन था पास तेरे ? किसने आँसु पोंछे थे ? किसने प्यार से सहलाया था ? किसने दुलार किया था ? जो तु अब सोंच रहा है । चल रही है ना जिन्दगी तेरी । खुश है ना तु पहले से । कोई गम तो नहीं खा रहा ना तुझे, क्या कुछ बात सता रही तुझे । जो भी है मन में मुझे बता । क्या चल रहा तेरे मन में लिख जरा । ऐसे ना उदास हो । नहीं सुन रहा कोई तो रहने दे । अकेला ही था ना । अकेला ही रह ना फिर । क्यों सोंचता इतना । खुश रह ना, खुश रहना ।। Kavitarani1  164

नया सवेरा चाहिए | Naya savera

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  Naya savera chahiye- click here to see video नया सवेरा चाहिए  साल बित गये ऐसे ही रहते - रहते, अब कुछ बदलाव चाहिए । बहुत सोचता हूँ  मैं  ऐसे तो, पर कुछ सच में बदलना चाहिए । कड़ी धुप सह लूगाँ मैं,  बस ये अँधेरा हटना चाहिए  । यूँ तो खुब हिम्मत रखता हूँ,  पर अब कोई हमसफ़र साथ चाहिए । पथरीले रास्तों पर चल लूँगा मैं, बस राह दिखनी चाहिए । मंजिल का कोई मोह नहीं मुझे,  बस मुकाम पर मन संतुष्ट होना चाहिए  । बरस बीत गये आस लगाये, अब कुछ परिवर्तन होना चाहिए । खुब जी लिए एकान्त में रहकर, अब भीड़ होनी चाहिए । जी घबराता है शांति में अब, नये सवेरे संग अब शौर चाहिए । कुछ ज्यादा मांगा नहीं मैंने,  बस ये अँधेरा मिटना चाहिए । अब नया सवेरा चाहिए,  अँधेरा मिटना चाहिए ।। Kavitarani1  162

कब / Kab

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  Kab - click here to see video कब सावन बिते सुखे सारे । शीत बिती रिती मेरी । ग्रीष्म को ठण्डक नहीं  । त्यौहारों में रंग नहीं ।  कैसी ये जिन्दगी है । कैसी ये कट रही । कोई रंग घोले आके । कब से बैठा मैं नीरस । खोज रहा कलियाँ मैं । कोई नहीं जहाँ रस खाली सारा । सपने लगते आधे से । साधा रहता खुद मैं । आधा रहता खुद मैं  । बीत रही छड़ियाँ सारी । सारा यौवन बीता । सवाल रहे रीते सारे । मैं सुनता रीता सब । कब से नीरस एकान्त अब । सोंच रहा कब होगी । होली रंग भरी मेरी ।। Kavitarani1  159

बेवक्त त्योहार | Bewaqt tyohar

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Bewaqt Tyohar - kavita by Kavitarani1, see here बेवक्त त्योहार  वक्त, बेवक्त त्योहार आते रहे । खेलते जग में हम बैठे रहे । मन के बोझ तले सोंचते रहे । क्यों वीरानों में हम रहे । क्यों कहीं किसी को गले लगाया । जो पास आया क्यों ना उसे पाया । क्यों दूर जग से बने रहे । क्यों अपनी जिद पर अड़े रहे । वक्त, बेवक्त, बेअसर हम रहे । जख्म अपने खुद ही खुरेचते रहे । सोंचते रहे कोई आये खुशियाँ ले । सोंचते रहे सब अब बदलेगा । कोई आयेगा मुठ्ठी भर गुलाल ले । रंग देगा मुझे अपने रंग । बस यही ख्वाब सजाये रहे । बैठ अकेले निहारते रहे । वक्त, बेवक्त त्योहार जाते रहे । हम बेरंग बैठे रहे ।। Kavitarani1  157