झील किनारे | Jheel kinare
झील किनारे
बन दो पंछी छांव ढूंढे,
एक दूसरे में आस ढूंढे,
कभी शहर किनारे,
कभी झील किनारे,
हम समय बिताये बन मतवाले।
कौन, क्या सोचे, फिक्र क्यों ?
किससे, क्या लेना, जिक्र क्यों ?
हम अपने दम पर, अपने किराये,
शांत रहे, बैठे- घूमें, झील किनारे। ।
-कविता रानी।
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