आसान नहीं मनचाहा पाना | Asan nhi manchaha pana
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आसान नहीं मनचाहा पाना
हो राहें सुलभ सामनें ।
लोग खड़े हो होंसला थामने ।
पथ से भटका राहगीर विरले आता है ।
कंटीली झाड़ियों से टकराता है ।
राह के रोड़ो से मार खाता है ।
लडखङाता पथिक दृढ़ निश्चयी ही आ पाता है ।
भटकता अटकता समझ जाता है ।
आसान नहीं मनचाहा मुकाम पाना ।।
जो रहे अडिग लक्ष्य पर, वही मंजिल पाता है ।
बन साथी दुश्मन गले लगते है ।
मिठे बोल-बोल लोग जहर भरते है ।
पीठ पर वार करने वाले अलग चाल चलते है ।
सामने मुश्किल हो खड़ी की दोस्त बन घाव करते है ।
आसान नहीं ऐसे में ध्यान लगाना ।
होश में इन लोगों को अनदेखा कर पाना ।
आसान नहीं मनचाहा मुकाम पाना ।।
जो चुन रखी मंजिल उसे पाना है ।
खुद से पहले - फिर जग से भीड़ जाना है ।
कुछ अलग करके दिखाना है ।
कुछ अचरज कर जाना है ।
पर सोंच अप्रत्याशित रुकावटों को ।
छुपे हुए इन मधुर बने काटों को ।
लक्ष्य से भटकाते लोगों को ।
मन यही कहता और दोहराता है ।
आसान नहीं मनचाहा मुकाम पाना ।।
Kavitarani1
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