मेरे सगे कई | mere sage kai
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मेरे सगे कई
था अकेला : अकेला हूँ ।
सगे साथीयों के साथ खैला हूँ ।
अकेला हूँ, थोड़ा मन मैला हूँ ।
रहे कई साथ, मेरे से भगे भी कई ।
मिला जहाँ साथ, हुए मेरे से दगे भी कई ।
यहीं से जाना की नहीं सही यहाँ नहीं ।
मैं अकेला तो नहीं, पर मेरे सगे कोई नहीं ।
जब सुनूं लगता है सब बस मेरे हैं ।
देखुँ उनके चेहरे लगता मेरे लिये उकेरे है ।
पर कहता हूँ जब साथ देने की तो वो टेरे है ।
रहता नहीं फिर पास कोई और मैं कहता मेरे सगे कई ।।
दुख सुख भी तो कोई बात नहीं ।
दे सकूं इन्हे दात ऐसे हालात नहीं ।
नहीं सिखा किसी को सिला देना ।
जो पहना है मैंने सब अपना था लेना ।
अब मुझे भी किसी से लेना - देना नहीं ।
अब बस सब मेरे मन का है किसी का कहना नहीं ।
मिला साथ तो साथी कहूँगाँ ।
कहूगाँ ना गैर क्योंकि जानता हूँ मेरे सगे कई ।।
Kavitarani1
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