यादों में | Yadon main


 

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यादों में 


करवटों में रात बिती, यादों में दोपहर ।

आपकी यादों से निकले कैसे लगती है ये कहर ।।


दिन लगते है छोटे जैसे हो कोई पहर ।

कहने को है सब साथ पर हो जैसे जहर ।।


आसान नहीं रहना यहाँ गाँव हो या शहर ।

फिर अकेले दिन मुश्किल कर देता है पहर ।।


 हो चुका हूँ आदी दुखो का इनका नही असर ।

पर आ चुकी है यादें सामने कैसे ना हो असर। ।


यादों में खोये बैठे है बीती नहीं चार दोपहर ।

हर दिन लगने लग गया है जैसे हो कहर ।।


Kavitarani1 

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