अनजान ही अच्छा | Anjan hi achha


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अनजान ही अच्छा 


हर मन दबा हुआ जहर से खुद के,

दिखावे में मिठास भरा हुआ । 

मुस्कान झुठी ले चल रहा,

गहरा लिये जख्म चल रहा ।

हर दिन एक नया रूप बदलता ।

चेहरा एक जो लिया हुआ । 

विश्वास करूं किस पर यहाँ, 

भ्रम में है संसार भरा पड़ा । 

अनजान था बचपन में सबसे, 

लग रहा था अनजान ही अच्छा, 

नादान था बचपन में अच्छा । 

अच्छा है बना हुआ हूँ अब भी नादान यहाँ । 

हर तन ढका हुआ है यहाँ,

दिखावा किया जा रहा ।

हर चेहरा है छुपा हुआ । 

हर मुस्कान झुठी है यहाँ, 

हर दिन मुश्किल हो रहा,

सब जानकार में इनकार हो रहा ।

अनजान ही अच्छा था मैं, 

अनजान ही अच्छा ।।


Kavitarani1 

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