मन का मैला / Man ka maila
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मन का मैला
मन का साफ मैं,
रहना चाहूँ पाक मैं ।
पर नापाक हरकतें उकसाती है,
कुछ लोगों की आदतें डराती है ।
हूँ अन्दर से मैं भी खराब ।
खुद पर काबू रख ना पाता आज ।
हवाओं से ठिठूर जाता हूँ ।
धूप में रूखा हो जाता हूँ ।
है छाँव पसंद मुझे पर गंद ना भाती ।
सुगंध की अधिकता बोंहे सिकुड़ाती ।
सुन्दर रहना ही चाहूँ मैं ।
अतिशयोक्ति और दोहरान सुन चिढ़ जाऊँ मैं ।
मैं सुनता सबकी आम बात ।
साफ शब्द ही कहना चाहूँ मैं ।
मैं रहना चाहूँ साफ,
रहना चाहूँ पाक ।।
कदर ढूँढ रहा, बिछोने मैले है ।
रोटी बेले तो काले - काले घेरे है ।
आस पास लोग मटमैले है ।
जो कोई देखे सोचें सुने मेरी पहले रे ।
बस हँसमुख रूप देख आते ।
पैसे सोंच देख इठलाते ।
पास आकर सोंचे ये ठेला है ।
मन का खाली और मैला है ।
अब साफ लब्ज कहे तो सुनता नहीं ।
ये जग है चुप रहे तो रहने देता नहीं ।
मैं भी आगे बढ़ना चाहूँ ।
इस जग में खुश रहना चाहूँ ।
रहना चाहूँ मैं मन का साफ ।
रहना चाहूँ भरापुरा और पाक ।।
Kavitarani1
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