प्रेम, Prem


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प्रेम


जब पनपे मन में तो एक निर्मल तालाब है ।

अपने आस पास सबको शीतल करता है ।।


जब ढुबे प्रेम में तो लगता अथाह सागर है । 

सारी अल्हड़ता और जवानी की थाह लेता है। ।


सारे दर्द भूला देता जब इसका स्वाद होता है । 

इसीलिये इसे कहते ये सारे भोगो का भोग है ।।


जब हो जाता प्रेम तो बन जाता ये योग है ।

बना देता रोगी सा प्रेम एक जोग है ।।


एक नशा है अनचखा सा, और दर्द भरी दवा है । 

अनचाहा खयाल है और कभी विदेशियों की सजा है ।।


प्रेम आत्मा की अनुभूति है सारी उम्र का मजा है ।

देह का सुख है और दुःखो में सबसे बढ़ा दुख है ।।


प्रेम बाहों की कोमलता है यादों का हार है ।

हो जाये तो प्रेम जीवन पर एक प्रहार है ।।


प्रेम जीवन का सच है यही एक दुनिया है ।

छल है, निश्छल है, एक बादल है, ये अन्त है, यही सार है ।।


यही उदय, यही अस्त, यही व्यस्त, ये आवारा, ये पागल है ।

प्रेम सन्तुष्टि है, देह की तुष्टि है, जीवन की सृष्टि है, यही राश है ।।


प्रेम है नर, प्रेम है नारायण, प्रेम ही चाह है, यही राह है ।

यही दुर्लभ है, यही सुलभ है, अनमोल है ।।


प्रेम कोई गाना है, आनन्द का तराना है ।

प्रेम ही आदि है, प्रेम ही अनन्त है ।।


प्रेम पराकाष्ठा है, प्रेम अँधेरा की डगर है, प्रेम अनजाना जग है ।

प्रेम पहचान है, प्रेम पियुष है, प्रेम जहर है, प्रेम ही पूर्ण है ।।


प्रेम मनोरथ है, प्रेम सारथी है, प्रेम सरिता है ।

सागर है, आकाश है, जहाँ प्रेम है वहीं जीवन है ।।


Kavitarani1 

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