बोझ / bojh
बोझ
बोझ बढ़ गया है !
समझ नहीं आ रहा किसका ?
जीवन तो चल रहा है ।
पहले से अच्छा दिख रहा है ।
आजाद परिंदा हूँ ।
खुले आसमान के तले उड़ रहा हूँ ।
फिर बोझ किसका ?
सोंच रहा हूँ !
लगता है कुछ ज्यादा खोज रहा हूँ ।
कुछ ना पाया हुआ मिल नहीं रहा है ।
इसीलिये मन पर बोझ लग रहा है ।
वो सपनों का मकान बाकि है ।
जीवन की मधुर याद बाकि है ।
सबको साथ लेकर चलना है ।
सबके लिये कुछ करना है ।
यही मन पर बोझ बन रहा है ।
शायद आगे बढ़ना रूक गया है ।
ठहराव सा लग रहा है ।
यही बोझ बन रहा है ।
समझ नहीं आ रहा आखिर क्या !
क्या बोझ बन गया है ।।
Kavitarani1
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