समझ रहा हूँ / main samjh rha hun
समझ रहा हूँ
सबको अपनी पड़ी है,
सब अपनी सोंचते है,
अपने स्वार्थ के काम खोजते,
लोग अपनी अलापते हैं ।
मैं कहना चाहूँ जो सुनते नहीं,
जो समझना होता समझते नहीं,
कहीं रूक ना जाये जिन्दगी,
सोंच यही सुनता अपनी; गाता हूँ ।
ये मेरी कहानी है,
ये मेरी जिन्दगानी है,
कुछ समझना बाकि है,
पर सबको कहाँ फिकर है,
सबको अपनी फिकर है,
सब बस अपनी कहते,
अपनी ही धुन में रहते ,
सब्र कर चल रहा हूँ,
मैं सब समझ रहा हूँ ।।
Kavitarani1
202
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