समझ रहा हूँ / main samjh rha hun


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समझ रहा हूँ  


सबको अपनी पड़ी है,

सब अपनी सोंचते है,

अपने स्वार्थ के काम खोजते,

लोग अपनी अलापते हैं ।

मैं कहना चाहूँ जो सुनते नहीं, 

जो समझना होता समझते नहीं, 

कहीं रूक ना जाये जिन्दगी, 

सोंच यही सुनता अपनी; गाता हूँ ।

ये मेरी कहानी है, 

ये मेरी जिन्दगानी है,

कुछ समझना बाकि है, 

पर सबको कहाँ फिकर है,

सबको अपनी फिकर है, 

सब बस अपनी कहते,

अपनी ही धुन में रहते ,

सब्र कर चल रहा हूँ, 

मैं सब समझ रहा हूँ  ।।


Kavitarani1 

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