फिर तुम वापस आई | Phir tum vapas aayi



फिर तुम वापस आई 


यूँ जो जी रहा था मैं, कोई अर्थ नहीं था जीने में ।

सुखे हुए होठो से, पपड़ीयाँ उखाड़ रहा था मैं ।

यू तो जी रहा था मैं, कोई रस नहीं था जीने में ।

अपनी धुन में चल रसा था मैं, कोई अर्थ नहीं था जीने में  ।।


फिर जैसे रोनक आई, खोई मुस्कान वापस आई ।

थोड़ी रोनक जगी वापस, कुछ रस आया वापस ।

कुछ आस लगी जीने की, कुछ प्यास जगी जीने की ।

जब तुम वापस आई, जब तुम आई ।।


महिनें भर का सुखा राहत पा गया, बारीश सी हो गई ।

चेहरा खिल सा गया, मुस्कान छा गई ।

जो रूठा सा नीरस हो गया था मैं, रसमय हो गया ।

कुछ देर ही सही वापस आ गया मैं, खुश हो गया मैं ।।


यूँ तो लाइफ कट रही थी, समय रूक नहीं रहा था ।

अब जब तुम आई जी रहा हूँ जैसे मैं ।

अब जाना ना यही कहना है, 

कैसे भी हो खुश ही रहना है ।।


Kavitarani1 

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