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रोश (anger)

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  रोश । धरा,अनल धधकती रोज।  धाराओं में दुधती ओज। नित खोज में जीवन शोध। किससे कहूँ क्या मन में रोश।। धीर धरा-का ध्वस्त खास।  तन पर तेज पड़ता प्रकाश।  मन पर बोझ ना आता रास। रोश भरा जीवन आज।। शुष्क, शांत पवन निराश। बाधाओ से घिरा राज़।  आशाओं को उपवन की आस। रहा मन में बन रोश आज।। नव यौवन,नव परिवर्तन को। बैठा फिर पतंगा क्षितिज को। खोज रहा आराम आज। भर रोश कर रहा पल-पल का नाश ।। -कविता रानी। 

जो तुम पास हो। (jo tum pas ho)

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 जो तुम पास हो। जख्म पुराने सँवर गये।  यादों के पर्दे बदल गये। छायी थी जो धुल जीवन में।  वो बनकर हवा गयी कहीं वन में।  मैं अब आबाद महसूस करने लगा हूँ।  सादा जीवन जीवन जीने लगा हूँ।  जो तुम आये हो साथ में । जो तुम हो पास में।। मैं नये तराने लिखने लगा हूँ।  नये किस्से,कहानियाँ गढ़ने लगा हूँ।  यादों में सोंचा करता था जिसे मैं कभी।  उसे तुझमें देखने लगा हूँ।  अब वो किरदार साथ है।  ख्वाबों की सारी बात याद हैं।  अकेले में लिखे जो नज्मे-किस्से। अब वो बस एक राज हैं। । भूला ना कुछ-याद नहीं हैं कुछ।  साथ है सब-चाह नहीं ज्यादा अब। जीवन कुछ आसान लगने लगा है।  सब कुछ सच लगने लगा है ।  यही तो चाहा था सपनों में कभी।  जो तुम पास हो सब अपना लगने लगा है । सब सच लगने लगा है। जो तुम हो पास, जो तुम हो पास।। -कविता रानी। 

जाने दे। (leave it / jane de)

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  जाने दे चल जाने दे,  कोई खास नहीं कहने दे। रहने जो जैसा भी है । बहने दे जो जैसा भी है।  चल जानें दे,जो हुआ।  अपनाने दे,जो हुआ।  कई किस्से हैं जो, अनकहे रहे। कई कहानियाँ अनसुनी रह गयी। चल छोङ उन्हे,  रहने दे, चल जानें दे।  कभी फिर समय बदलेगा। कुछ अच्छा भी होगा। जो हो रहा होने दे। मन के बोझ उतार दे। जो रुके तेरे लिए, उन्हें रोक ले। जो जा रहा उसे जाने दे। चल जाने दे।। -कविता रानी।

मन की डायरी (man ki dairy)

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मन की डायरी। क्या लिखा बता ना पांऊगा। कोई पूछे अगर,क्या रूचि रखते हो! मैं कहुँगा, "लिखता हूँ। " कोई पूछे अगर, क्या लिखते हो ! मैं बता ना पाऊगाँ ! कोई कहे,बताओं क्या लिखा अब तक ? मैं छुपा ना पाऊगाँ । पर वक़्त मिला मुझे कहने का, तो भाव विभोर हो जाऊँगा।। मैनें लिखा नहीं जमाने के लिये।  मैनें लिखा नहीं किसी को सुनाने के लिये। ये शब्द है जो मन से निकले हैं।  ये अनकहे लब्ज़ है उकेरे हैं।  मैं चाहूँ भी की जग जानें मेरे मन को भी। पर मैं चाहूँ छुपाना की, क्या दशा है मेरे मन की।  आसान नहीं बता पाना ये। तभी तो मन मे आ जाता है आनायास ही। कि 'क्या लिखा है बता ना पाऊगाँ।  क्यों लिखा है बता ना पाऊँगा।। -कविता रानी।

छमियां (chhamiya)

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  छमिया रुप,रंग की, खूब ढंग की। जमती रहती, रमती रहती। कहती रहती, घूमती रहती। छमिया अपनी धुन में रहती।। कौन उसका ? कौन पराया? सब उसके, उसने सबको अपना बनाया। वक्त ने उसको है आजमाया। कभी कुछ उसको भाया, ले लिया सब जो उसको भाया। जो मन ललचाया,  मन घबराया, छमिया का मन झट पलट आया।  कौन सगा ?  कौन साथी ? सब उसके, वो सबकी साथी। कभी मन की बेबसी, कभी बेबस वो थी। फिर खुद को था आजमाया, और जो मिला उसे अपना बनाया। छमिया ने रास्ता नया बनाया। छमिया ने मुह पलटाया। वाह वाह रे छमिया।  वाह छमिया।। - कविता रानी।

तेरे लिए (tere liye)

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  तेरे लिये।  हाँ अकेला हूँ।  राहगीर हूँ अपनी धुन का, जलता खुद ही,  धुआँ मैं खुद का। आहुति देता अपने कल की , मैं सुनता नहीं किसी की। मैं राह तेरी आया हूँ,  पास आकर तेरे मुस्कुराया हुँ, रुका हुँ,  सोंचता हुँ, कुछ करना चाहता हूँ,  जो किया नहीं किसी के लिये,  जैसा  जिया नहीं किसी के लिये,  वैसा बनना चाहता हूँ, तेरे लिए।  वैसा बना रहना चाहता हूँ,  और किसी के लिये नहीं,  बस तेरे लिये।। -कविता रानी।

भाये हो तुम (bhaye ho tum)

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  भाये हो तुम। शर्माती नजरों के झूकने से,  पलको पर आती चमक से, गालों पर लाली के छाने से , लबों की मुस्कराहट से, दिल में जो एक छवि बनी हैं , आकर्षण की एक झड़ी लगी हैं , चाह कर भी नैन रुकते नहीं,  कुछ पल देखना चाहते ही, किस कदर ये जादू छाया हैं, मन ने अब तुम्हें चाहा हैं, लगता जैसे सालों बाद नजर आये हो,  ऐसे एक पल में ही देख भाये हो,  हाँ मुझे ऐसे भाये तुम।  - कविता रानी। 

तुम रोक ना पाओगे (Tum rok na paoge)

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  तुम रोक ना पाओगे। तुम रोकना चाहते हो, तुम नीचा दिखाना चाहते हो। तुम चाहते हो मैं गुलाम बनूँ। तुम कहो जैसा, वैसा करुँ।  करुँ ना कुछ भी अलग मैं। रहूँ बन दास मैं, चाहते तुम ये। तो ये संभव ना हो पायेगा। सफर मेरा अकेला ही देखा जायेगा। जो मेरे लिखे बोल सुनेगा। गाथा मेरे जीवन की समझ जायेगा।। था जीवन आसान मेरा तुम बिन। थी राहें सुगम तुम बिन। थी मंजिलें सारी आसान तुम बिन। बाधाओं से घेरे रखा, कैसे थे तुम।। मेरी आज़ादी छिन ना पाओगे। तुम चाहते हो स्वार्थ अपना। तुम चाहते हो नाम अपना। आलस, ईर्ष्या से क्या पाओगे। जो मै चाहता हूँ बनना, रोक ना पाओगे। तुम मुझे रोक ना पाओगे।। - कविता रानी।

जीये जब मान से (jiye jab maan se)

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  जीये जब मान से। बिन गलती के सुन लिया, काम जो दिया कर लिया। अपने हित को छोङ दिया, कर्म पथ को जो जिया। जीये जब मान से तो, सम्मान को चुन लिया। किया कुछ गलत नहीं, फिर भी गलत सुन लिया। जीये जब मान से तो, मन को मार जीया। किया जो वक्त  का किया, खुद को खुला छोङ दिया। फैसला अब समय करेगा, समय ही जब भाग्य हुआ। जीये जब मान से तो,  सब भूल गया।। -कविता रानी।

कर्म से विमुख (karm se vimukh)

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  कर्म से विमुख।  पथ पर चलने की बङी-बङी बात करते हैं। अपने मार्ग को सुगम ले चलते हैं। अपनी राग में किसी की नहीं सुनते हैं। लगना चाहते हैं कर्मठ अपने आप में ये। पर है कर्म से विमुख अनजान ये।। बङी-बङी बात करते हैं। अपने आप को ही बङा ये कहते हैं। अपने मन की ही ये गढ़ते हैं। पर जब बात आये कर्म पथ की जो। तो कर्म से विमुख ही लगते ये।। - कविता रानी।

काश मैं रवि होता। (kash main Ravi hota)

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  काश मैं रवि होता  काश मैं रवि होता,   बेपरवा,लगातार चलता रहता,  पास आता कोई भस्म कर देता,  अपनी ही धुन में चलता रहता,  काश मैं रवि होता। । रोशन जग करता,  सबका जीवन बनता, अंधेरा दूर करता, सिहरन दूर करता, सर्दी की दवा बनता,  लोगो की दवा बनता, आस बनता खास बनता,  काश मैं रवि होता। लोग रात भर मेरा इंतजार करते। वृक्ष भी रात भर मेरा इंतजार करते। दूर से ही मेरा दीदार करते। ईश्वर को मेरा धन्यवाद करते। मुझसे आस करते । मेरा ही विश्वास करते। काश मैं रवि होता।। बुराई मुझसे दूर होती। शैतानियाँ मुझसे कांपती होती। बुरी नजर मुझसे जल जाती। बुरे लोग मुझसे छुप जाते।। मेरे ताप से रोग सारे भाग जाते। नये फुल खिल जाते। पक्षी - पशु सारे खिलखिलाते। धारायें साफ नजर आती।। पहाङियाँ चमक जाती। नये रास्ते फिर सुलभ होते। आशाओं के दीप होते। लोग खुशी से झूमते गाते।। रवि को पाकर आह्लादित होता। मुझे पाकर खुश होते। काश ये सब सच होता। काश मैं रवि होता। काश मैं रवि होता।। -कविता रानी।

एकांत में। (shayari/ quotation)

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  एकान्त में••• अचरज नहीं हुआ कि तुने अपना असली रूप दिखाया। तुझे देख हीं संकेत मिल गया था कि तु दोखा देगा।। जहाँ अपने सगे-सगे ना बने रहे वहाँ तुझसे क्या उम्मीद करुँ। तु तो रक्त और जमीन से भी पराया है तेरा क्या विश्वास करुँ । कुछ खास है मेंरे सपनों में जो मुझे सोने नहीं देते। जब पाने को इन्हें मेहनत करुँ तो यही है जो रोने नहीं देते। एक मुकाम मिला है मिन्नतो के कबुल होने से। वरना मेहनत करते-करते तो सालों हो गये ।। लोग कहते है सब मेहनत से मिलता हैं।  पर जब भी पलट कर देखा पाया जैसे सब लिखा लिखाया है।। अपनी कलम और डायरी से सच्चा मित्र कोई बन ना पाया।  जो आया इसके सिवा, वो बस अपने स्वार्थ से आया।। कुछ खास नहीं बस अफसोस करते है।  पता है ये भी धोखा देगी, पर बात करतें हैं। । खुद ही लड़ना और खुद ही रुठ जाना, क्या ही फितरत है।  लडकियों की समझ से परे इनकी आदत है।। अगर कोई कहे मुझे दुनियाॅ हसीन दिखती हैं।  तो मैं कहूँगा तुझसे ख़ुशनसीब कोई नहीं हैं।  कोई दावा करे कि उसने असली प्यार पाया है।  तो मैं उसे लाख बधाई दूँगा कि क्या नशीब पाया है।। आसान है भरोसा पाना कि...

तुम याद आते हो। (tum yad ate ho )

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  तुम याद आते हो। जब तन्हाईयों में, मैं खोया रहता हूँ। बैठ अकेले सपने देखा करता हूँ। तो याद आता है कल का जमाना सारा। और फिर तुम याद आते हो।। वो तुम्हारे होंठो की मुस्कान याद आती है। वो तुम्हारे गालों की लाली याद आती है। वो तुम्हारे माथे की बिन्दिया याद आती है। वो  तुम्हारे सिर पर  लगा सिन्दूर याद आता है।। किसी की मुस्कान से तुम याद आते हो। किसी की बातों से तुम याद आते हो। किसी को देखने से तुम याद आते हो। किसी को सोचने से तुम याद आते हो।। जब बैठ अकेले खोने लगता हूँ। रह एकांत साथ महसूस करता हूँ। तब तुम्हें ही पास पाता हूँ। समझ आता कि मैं तुम्हें याद करता हूँ।। फूलों की खुशबु जब लेता हूँ। किसी मंदिर की सीढ़ी जब चढ़ता हूँ। कहीं घूमने जाने की जब सोंचता हूँ। तो बस पहले तुम याद आते आती हो।। मेरे जीवन सफर के बारे में सोंचने पर। मेरी मंजिल पर साथ रहने पर। मेरी दुनिया बसाये रखने के खयाल पर। बस तुम याद आते हो।। आजकल मुझे बस तुम याद आते हो। आजकल मुझ पर तुम छाये रहते हो। आजकल बस तुम याद आते हो। बस तुम याद आते हो।। - कविता रानी।

रूक गया हूँ मैं। ( ruk gya hun main)

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रुक गया हूँ मैं। रुकने का कभी मन नहीं किया। पर आज रुका हुआ हूँ मैं। मेरी पसंद की राह पर, एक जगह खङा हूँ मैं। रुकना मेरी ख्वाहिश नहीं, ना ये मेरी जिन्दगी का हिस्सा है। बस चलने को रास्ते बंद दिख रहे। यही अभी का किस्सा है। एक ओर पायदान चढ़ गया हूँ। पर लग रहा की कुछ ज्यादा रुक गया हूँ। अपने जीवन के सफर में, लग रहा की यहीं रुक गया हूँ मैं ।। - कविता रानी।

मुकाम (mukam)

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  मुकाम अब मुकाम मिल गया। जो चाहा था बचपन में कभी। वो सहारा बन गया। आज खङा हूँ जिस जगह मैं। आज पाया है आशियाना जो। वो सपना मेरा मिल गया। लग रहा अब मुकाम मिल गया। अब बंदिशे ज्यादा नहीं। अब बोझ ज्यादा नहीं। देख रहा हूँ जहाँ से मैं। लग रहा जीवन सफल हो रहा। आज खङा हूँ जहाँ। लग रहा मुकाम मिल गया।। - कविता रानी।

अब नया सवेरा (ab naya savera)

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  अब नया सवेरा।  थी रात लम्बी काली, कट रही थी बन मतवाली। अंधेरे कर पथ सारे मेरे, पथरीले पथ पर टकराते हारे।। हो चोटिल  चलता रहता मैं, भरे अधेरे में  बढ़ता रहा मैं।  आधी कटी आधी रह गयी बाकि,जिंदगी मेरी रही साथी।।  चढते अंधेरे बढ़ती रात संग,अधेरे ने ले लिये थे सारे रंग। थी जंग एक जैसे  जारी, मुसीबत आखिर मुझसे हारी। । घटने लगा ही था अंधेरा, आप मिले नया दिन मिला अब। अब नया सवेरा, अब नयी उमंग, अब हैं नया जीवन। । अब बातें सारी गुजरी पुरानी है, ये नयी जिन्दगानी है।  ये नये जीवन की फेरी है, अब नया सवेरा है। । -कविता रानी।

Sab bematalab (बेमतलब ) hindipoetry

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  बेमतलब  रोज़ का उठना , नहाना ,काम पर जाना। समय पर सब कुछ करते रहना। लगता है कुछ तो है मतलब। । जब कुछ हाथ आता हैं कुछ साथ जाता है।  पर जब बैठ अकेले जीवन की बात करता हूँ।  जीवन के बाद की सोचता हूँ।  लगता हैं, सब है बेमतलब। । रोज सबसे मिलना, बातें करना।  काम पड़े तो कहना,  काम ना पड़े तो भी साथ रहना।  सब लगता जैसे है मतबल।  जब छोड़ साथ,अकेले पड़ता है रहना। दूर रहकर याद ना करना ।  लगता है काटा था समय बस। लगता है सब बेमतलब।  सब बेमतलब।। - kavitarani1

शिक्षक हूँ (Teacher)

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शिक्षक हूँ। समाज का सहारा हूँ, देश की पीढ़ी को सवाँरता हूँ। समय से हारा हूँ, अपने  आप को बांटता हूँ।। अपेक्षाओ का मारा हूँ , घर ,स्कूल,समाज  में रहता हूँ।  हर जीत पर खुश होता हूँ,हर फेल पर मनोबल बनता हूँ।। गुरु हूँ गौरव देता हूँ, बुरे को भी अच्छाई देता हूँ।  कमाने को चुना काम जो ,मैं पाठ रोज  नये पढ़ता हूँ।  हर साल नये नाम सुनता हूँ, कभी गाली गलोच भी सुनता हूँ।  लग जायें बालक के तो,अभिभावको से भी लड़ता हूँ।  भला सोचता खुद का मैं, तो कंजूस कहला जाता हूँ।  ज्ञान बांटता सत्य  पर तो, विरोधी बन जाता हूँ।  भूल सब परेशानियाँ, फिर से कक्षाओं को सवाँरता हूँ।  हर आदेश का पालन करता, हमेशा कर्मठ बन जाता हूँ।  अपनी आदत का मारा हो चुका, शिक्षायें देता जाता हूँ।  मूल से शिक्षक बन गया, दिक्षायें देता जाता हूँ।  सरल हूँ, साहसी हूँ, सहज हूँ, मैं शिक्षक हूँ।  अपनी आदतों से शिक्षित लगता हूँ, मैं शिक्षक हूँ।  -कविता रानी ।  

Ye Jindagi (ये जिंदगी) hindi poetry

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 ये  जिंदगी यूँ ही कट जानी है ये जिदंगी। कुछ सपनों में रह,कुछ अपनों में रह। कोशिश कर पाने की दोनों को ;  कभी सपनों को, कभी अपनों को, यूँ  ही बट जानी हैं जिंदगी ये। । आशायें कभी छुटती नहीं जीने की। अभिलाषायें बनी रहती कुछ और पाने की। वक्त की रफ़्तार समझ नहीं आती। रह जाती ख़्वाहिशें कई जीने की।  सोच हर कल की चल जाती ये ज़िदंगी ।  रोज हर पल कट जाती ये जिंदगी ।। - कविता रानी। 

Jab sab thik ho (जब सब ठीक हो) hindi poetry

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  जब सब ठीक  हो।  जब मन भरा हो।  सब कुछ हरा हो । घाव भरा हो । और चाव चढ़ा हो । कुछ नया नहीं आता। मन नया नहीं चाहता । बस कट रहीं हैं अच्छी जिंदगी। बस चल रही है बदंगी। कुछ खास नहीं भाता। सब खास ही होता। यही कहता में जाता। और कुछ याद नहीं आता।  जब सब ठीक  हो। जब सब अच्छा हो । जब मन बच्चा हो। जब तन अच्छा हो। कुछ ज्यादा किया नहीं जाता।  कुछ जिया नहीं चाहता।  बस जीया है जाता।  बस चला है जाता। । - कविता रानी। 

Vo mera hi pyar hoga (वो मेरा ही प्यार होगा)

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  मेरा ही प्यार होगा। वो दूर कहीं देख रहे,  मेरा वो ख्वाब होगा। बाहों का उनका हार होगा। दिल में मेरा प्यार होगा।  सितारों भरी रात होगी। हम दोनों की बात होगी। जीवन का वो सार होगा। हमारा गहरा प्यार होगा। वो दूर कहीं खोये हुए।  मेरा ही ख्वाब होगा।  नजरों से इजहार होगा। दिल में मेरा ही प्यार होगा।  -कविता रानी। 

Bechain mai (बेचैन मैं) hindi poetry

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बेचैन मैं  सुबह का सुकून खोया है।  जैसे मेरा भाग्य सोया है। । कहीं गुम मेरा संतोष लगने लगा।  मैं जग में ठगा सा लगने लगा ।। अकेले बैठे रहने का अब वक्त नहीं।  रात तक सोंचने तक का समय नहीं। । मेरी सांसे कहीं , मेरी बातें कहीं।  लगे रहते काम में दिन भर,  बैचेन मैं और मैं कहीं ।। वक्त के साये में,  मकान किराये में।  रोज की भाग दौङ में, जीवन अब छोटा लगने लगा ।। सह रहा था अब तक जो, उसे अब जीने लगा। जिन्दगी को पहले से अलग,मैं जीने लगा।।   अब फिर नये मोड़ पर,  जिदंगी की होङ  पर। लग रहा हूँ जोड़ पर, और लग रहा है यहाँ कि, बैचैन मैं,  हाँ बेचैन मैैं।। - कविता रानी। 

Ek arsa bit gya (एक अरसा बित गया) हिंदी कविता

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  एक अरसा बित गया बचपन की शरारते खो गई । वो अल्हङपन खो गया । वो खैलने की रातें खो गई । बैठ अकेले जब पलट कर देखा । पता चला उम्र के साथ,  जीवन का एक अरसा बित गया।। वो बेबाक बातें बित गई । वो मस्ती भरी सोगातें बित गई । वो स्कूल की पढ़ाई बित गई । दोस्तों से होतीं  लड़ाई बित गई ।। बस याद है चेहरे कुछ । जीवन की दौड़ में देखा मैंने।  लोगों की रोनक बित गई । और पिछे मुड़कर देखा तो पाया।  जीवन का एक अरसा बित गया।  कोई पलट कर आया नहीं।  ना दिंन पुराने जी पाया कोई।  कभी पथराई आँखे सोई नहीं।  और जैसे किस्मत यादों में खोई रही।। सपनों भरी नज़रें जो दूर तक देखा करती थी।  आज वो मुड़कर ही देख रही। लग रहा एक जीवन बिता हुआ।   लग रहा है अभी कि, जीवन का एक अरसा बित गया।। - कविता रानी। 

Pragati path par (प्रगति पथ पर) hindi poem

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  प्रगति पथ पर जब चुन ली मंजिल, तो परवाह दुनिया की छोङनी होगी। प्रगति पथ पर आगे बढ़ने को, राह नयी चुननी होगी।। फिर कौन सगा? कौन पराया? सब रिश्ते नाते छोङने होंगे। पानी है  मंजिल तो , खुद की राह चुननी होगी।। प्रगति पथ पर, कांटे हैं, पत्थर है, कहीं खाई है। जो एक लक्ष्य दृढ़ निश्चय से बढ़ा, उसी ने मंजिल पाई है।। कौन क्या कहे? कौन, क्या सोचे परवाह छोङनी होगी। प्रगति पथ पर आगे बढ़ने को, अपनी कमियाँ छोङनी होगी।। ये दुनिया है मतलब की, ये आपको आगे बढ़ने ना देगी। जो चुनी राह हटकर तो, खुद अपनी राह बनानी होगी।। प्रगति पथ पर दुनिया से ज्यादा, खुद की सुननी होगी। मंजिल तक पहुँचने में राह से कठिन राहगीर की पसंद होगी।। पानी है मंजिल जो, होंसलो की उङान भरनी होगी। खुद को अपनी राह चुननी होगी, खुद की कमियाँ  दूर करनी होगी।। - कविता रानी।

स्कूल के दिन

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  स्कूल के दिन  वो सुबह-सुबह उठना, मन ना हो तो भी नहाना। और स्कूल की घंटी बजने से पहले प्रार्थना में पहूँचना।। प्रार्थना की वो लाइनें, खङे रहने मे करते बहानें। एक दूसरे से धक्का-मुक्की, वो कक्षा में एकदम की चुप्पी।। अध्यापकों के होमवर्क का डर, और काम ना करने पर मार। वो कक्षा की मस्ती, वो दोस्तों संग बनी हस्ती।। है स्कूल के दिन प्यारे, है स्कूल के सब दोस्त न्यारे। वो कुछ चहेते मास्टर, और मेरे स्कूल का फास्टर।। वो झण्डे के दिन का सजना, रंगोली बनाने वाली लङकियों के नखरे। डांस वाले साथियों के होते वखरे, और स्काउट वालों से होते झगङे।। वो स्कूल के दिनों का टूर, वो खुद से बनाये मोतीचूर। वो स्कूल मेथ बिना यूनीफोर्म के आना, प्रिंसिपल सर से मार खाना।। याद आते हैं उन दिनों के ये पल सारे। जैसे बुलाते हो स्कूल के दिन प्यारे।। - कविता रानी।

कुछ नहीं पास मेरे

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  कुछ नहीं पास मेरे। जो सुने कोई, सुना देता हूँ। जो पूछे कोई,  बतला देता हूँ। कोई देखे हॅसकर, हॅस देता हूँ। मैं अक्सर जैसे को जैसा देता हूँ।। ऐसा नहीं की ये नाटक है। ना ये कोई कोरा दिखावा है। ये तो बन गई मेरी आदत है। ये आदत ही मेरी फितरत है।। मधुर को माधुर्ययुक्त कहता हूँ। कर्मठ को कर्मयुक्त कहता हूँ। पापी को पुण्य मुक्त कहता हूँ। खुद को रिक्त रखे रखता हूँ।। क्या ही रखुँ पास मेरे जो है नहीं मेरा। क्या ही कहूँ बोल जो है नहीं मेरे। जो पाता चला गया जग से मैं। वो लुटाता चला गया तब से मैं।। शुरू से कुछ ना सहेजा मैने। कुछ नहीं पास मेरे।। - कवितारानी ।

जयकार हो

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  जयकार हो। अपनी आजादी पर सिर कई न्योछावर हुए। लङते-लङते वीरों पर घाव असहनीय हुए। हुए लाल जो शहीद देश पर उनकी शहादत को नमन हो। हर दिन तिरंगे का हो, हर दिन वीरों की जयकार हो।। लङ रहे जो सीमा पर वो वीर हमारी शान है। खङे हैं डटकर पहरे पर वो हमारी आन है। देश की खातिर आखिर कितनो ने ही है जान दी। दी जान जिन वीरों ने उनका सदा सत्कार हो,  उनकी हमेशा जय जयकार हो।। दुनियाभर में भारत मां का जो सिर ऊँचा करते हो। आज की इमारत को ही नहीं, जो इतिहास सहेज रखते हो। कर सेवा जीव जगत मां भारती के मन में जो बसते हो। हर उस भारती के लाल की भी हमेशा जयकार हो। भारत मां के सपूतों की हमेशा जय जयकार हो।। -कविता रानी।

दुर्लभ

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  दुर्लभ   वक्त-बेवक्त इत्तेफाक कई। मतलब-बेमतलब बातें कई। कई किस्से कहांनियाँ है बन रही। मै चाहूँ या ना चाहूँ कहना, मेरा आप ही कह रहा यही।। कोई खास नहीं, कोई पास नहीं। बंद ऑखो से कर सके विश्वास,  ऐसे इंसान कहीं मिलते नहीं।। ना है खुद्दारी, ना ही ईमानदारी कहीं। ना है सोंच, ना विचार कहीं। पहन रखे अपनेपन के मुखोटे बस। अपनेपन का कहीं अहसास नहीं। बेवजह एकांत की वजह ढूँढता हूँ। शांत जगह की है आस मेरी। साफ मन के लोग कहीं मिले नहीं। मैं ना न्याय चाहता, ना न्यायाधीश।  ना ईश्वर दूत चाहता, ना ईश। मैं बस समय साध इंसान चाहता, और कुछ नहीं। है दूर्लभ खोज मेरी, रहनी है अधूरी खोज मेरी। जैसे इंसान मै खोज रहा, है वो यहाॅ दूर्लभ ही।। - कविता रानी।

अक्सर

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  अक्सर    हिमालय सा मन रखता हूँ। कम ही राहगीर साथ चुनता हूँ। ज्यादा समझता नहीं गहराई रीश्तों की। पर अक्सर अच्छे लोग पास रखता हूँ।। मन की बस मन ही जाने। मन पहचान करता भाव से। जग की बस जग ही जाने। जग में मुखोटे बिकते चाव से। मुझे अक्सर नजरों से लोग भाये हैं। मुझे अक्सर अच्छे लोग भाये हैं। चालाकी आजकल सर्वोपरी है।  मुख पर राम बगल में छुरी हैं। मुझे तन से ज्यादा मन की बातें खाती है। और मन का हारा मैं हार जाता हूँ। ठोकर खाकर समझ आता कि; मैं अक्सर इंसानो को समझ नहीं पाता हूँ। - कविता रानी।

बुरा में नहीं।

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  बुरा मैं नहीं बुरा मैं नहीं, बुरा वक्त बन आया है। लगता है कहीं अंधेरे कोनो से निकल आया है। जैसे दुख का साया मंडराया है। मै खुशी की तलाश में था आगे बढ़ा। ये मेरे सिर पर था जैसे खङा। जब मै अपनी जिद् पर ही अङा। वक्त ने बताया कि वो मुझसे है बङा।। मैं हकलाया, भरमाया, शर्माया, लजाया। फिर उस समय कुछ ना समझ पाया। बचा फिरा फिर संभाल लाज। निकाला वक्त फिर कुछ बङा आज। आज फिर खुशी की तलाश में हूँ।  पर जैसे मन में कहीं उदास मैं हूँ। अब एक हिचक जैसे साथ है। लगता है निराशा कुछ ज्यादा खास है। मैं फिर सोंच विचार कर रहा। देख रहा, जाॅच रहा कि कौन ज्यादा खराब है। पता चला देख पिछे कि; बुरा मै नहीं, बुरा वक्त बन आया है।। - कविता रानी।

हिमाचल की यादें

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  हिमाचल की यादें वो गर्मियों की छुट्टियाॅ। वो हिमालय की मनमोहक वादियाँ।  वो पहाङों  के पेङ अलग। वो पहाङों पर की अठखेलियाँ अलग। वो पहाङी पगडंडीयों पर चलना। वो विदेशी पर्यटकों से मिलना। वो हिमालय की शीतल पवन। वो बादलों में की सेर अलग। खाली बैठे लम्हों में खो जाता हूॅ। मै हिमाचल की यादों में खो जाता हूँ। - कविता रानी।  

आगे बढ़ना होगा।

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  आगे बढ़ना होगा। हो धरा शुर्ख, तपती जमीन। आग बरसती हो आसमान से तो क्या। लगे प्यास जोर से तो भी जीना होगा। रहना है वजूद में तो आगे बढ़ना होगा।। हो दुर्गम राह, काँटो भरा जहान। हिम्मत तोङती रहे आती सर्द बया। रह अकेले सब यूॅ ही सहना होगा। रहना है वजूद में तो आगे बढ़ना होगा।। हो दौर तुफां का, कङकती हो बिजलियाँ। चाहे जल बन जाता हो जलजला। हो कठिन समय तो भी रुके रहना होगा। रहना है जो जीवन से जुङे, तो आगे बढ़ना होगा।। हो भीङ भारी, कम होती ईमानदारी। धक्के लगते भीङ में, ठोकरे रहे जो जारी। एक धुन बनाये, खुद ही अपनी राह बनाए चलना होगा। रहना है वजूद में तो आगे बढ़ना होगा।। -कविता रानी।