रोज के किस्से | Roj ke kisse



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रोज के किस्से 


सुबह का सूरज रोज पुरब से उगता,

पश्चिम को अस्त होता है । 

रोज मौसम के अनुसार हवायें चलती,

शीत, ग्रीष्म ऋतु सी होती है ।

शाम को अँधेरा सालों से धीरे-धीरे बहता,

तारे खुब सारे और चाँद आसमान में चमकते है ।

शौर दिन भर गाडिय़ों के आते हैं । 

और धूप सेकते सर्दियों में दिन गुजर जाते है । 

संवेग रोज मन के हाव,

चाव को बदलते रहते है । 

कुछ दिन खुश रहता हूँ । 

मैं कुछ दिन उदासी में गुजार देता हूँ । 

रोज नये घटना क्रम बनते है,

शांति के भी रोज रोज किस्से बनते है ।

पढ़ता-पढ़ाता काम करता रहता,

मैं दिन काट देता हूँ । 

कभी कलम हाथ आये,

तो किस्से उतार देता हूँ । 

रोज के किस्से लिख देता हूँ , 

जैसे जिन्दगी गुजार देता हूँ ।। 


Kavitarani1 

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