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हाँ भूल जाऊँगा मैं

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हाँ भूल जाऊँगा मैं  इस सुन्दर धरा के मनमोहक समा में।  खुश होते मन के साथ,दुःख के सायों का मण्डराना। स्वार्थी लोगों के पहरे को, और जलन करके मरने वालों को, हाँ भूल जाऊँगा मैं।  याद रखुगाँ; लोगों की नियत का बदलना। साथी कह कर मुझे गिराना। खुद के काम को श्रेष्ट कहना  मेरे श्रेष्टतर कार्य में ही कमियाँ दिखाना।। पीठ पीछे चुगली करना, सामने नकली मुस्कान दिखाना।  हितेशी बने रहे मार्गदर्शन करना, और काम पड़ने पर बहाने बनाना। मेरी कही बात को झूठा बताकर, कुछ ही देर बाद उसे अपनी बात कहना। मूर्खता को भूल जाऊँगा मैं।  और कैसे मेरे सपनों को रोंदा, भूल जाऊँगा मैं । हाँ, यहाँ याद रखने जैसा कोई नहीं।  आखिर इन लोगों को भूल जाऊँगा मैं।। - कविता रानी। 

यूँ ही रुकसत ना होऊगाँ

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  यूँ ही रुकसत ना होऊगाँ माना की साफ नहीं की क्या बनना है।  माना की राह मेरी लापता है। पर चल रहा हुँ मैं।  जो मिल रहा जीवन की बेहतरी के लिये।  ले रहा हूँ मैं, सहेज रहा हूँ मैं।। मन करता नहीं रूकने को। हर दिन, हर पल कोशिश करता हूँ जीने को। कि कर दिखाऊँ कुछ अद्वितीय सा हो।  मेरे समाज इस दुनियां में कुछ  खास हो।  अभी बाकि है सफ़र ज़िंदगी का बहुत।।  अभी सपने पुरे करने है मेरे बहुत।  यूँ ही रुकसत ना होऊगाँ दुनिया से। इस दुनियां में अपना नाम करना है। अभी बहुत काम करना है। -कविता रानी। 

आज बेहतर जी सकते हैं / Aaj behatar jee sakte hai

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Click here to see this motivational poem आज बेहतर जी सकते हैं  जरूरी नहीं हमेशा उड़ते पतंगे पकड़े। कहीं बेठी हुई तितलियाँ भी मन को भर सकती है। हवाओं के रूख बदलने की आस से अच्छा,  सर्दी की ठण्डक और गरमी की लू का भी स्वाद ले सकते है।  पूनम का चाँद दूर है अभी तो क्या?  अर्द्ध चाँद का दर्शन भी मन को भा सकता है। अपने मन को राजी करना भी जरूरी है, नजरों को नज़ारों के आनन्द के लिये मना सकते है । क्या ही हैं वश में इंसान के करने को, जो मिल रहा उसका स्वाद लिया जा सकता है।  किस्मत को कोसने से वक्त गुजरता, जो है अभी उसे अच्छे से जीया जा सकता है।  लश्य बड़े रखें जीवन में, आज कर्म पर ध्यान लगा,आगे बड़ा जा सकता है।  यूँ खोने की नहीं मिली ज़िंदगी,  जो है उसके साथ बेहतर जीया जा सकता है।। - कविता रानी। 

है मोहब्बत तो

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है मोहब्बत तो  कैसी मोहब्बत का आलाप करते। स्थिर चित् ना एक पल धरते। हरते रुप, धुप जग की रोज ही। कैसे अपना एक मन है कहते।। है मोहब्बत तो जलना सिखो। तेज धुप में अपनों की सुनना सिखो। है बंसत तो पतझड़ की याद रखो। है बारिश तो सुखे को ध्यान रखो। दूर बैठ ना ज्ञान बांटो। अपने अस्थिर मन को ना बांटो। है सत्य प्रेम तो मीरा बन जाओ। मिले प्रेमी से तो राधा बन जाओ।  एक ही मन को एक पर रखना सिखो। है मोहब्बत तो जीना सिखो।। - kavitarani1 

बह गया सब

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बह गया सब कब से पड़ा अङ रहा, अपने वजूद के लिए था लङ रहा। वो बेकार था जग के लिये अब, एक समय था काम में लेते थे सब। वह उपयोगी था,आनौखा था,जब था काम का, बस अब रह गया बिना नाम का। आयी बर्खा वो फिर बेबस, बह गया जो बना हुआ वो सब। था अकेला, दबा हुआ सा मैं भी, विचारों के वो भाव अब थे ओझल ही,  आयी धार तेज और बह गया सब, रहा बस जल। निर्जल- निर्जन हैं सब ही यों निर्जन सब जो जल ना हो। नयी उमंग हैं, नया जन्म और नया भाव, बह गया सब,जो बिजली चमकी, बहा जल बन धार। रह गया सब, जो नव अंकुरित करेगा,  बह गया सब, वो अश्रुपुरित करेगा।। - कविता रानी। 

वक्त भी बदलेगा

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  वक्त भी बदलेगा  बादल गरज रहे, बिजलियां चमक रही। मौसम भड़क रहा, बारिश बरस रही।  मैं बिन मौसम बैठा हुँ,  क्यों मैं ऐसे ऐठा हुँ। कही खोया हुआ सा मन मेरा, सोच रहा मैं आगे बढ़ने की। वो भाव मेरे औझल है,  सब और जल ही जल है। ये नहीं की मैैं हारा हूँ,  पर अपनों से बेसहारा हूँ।  मैं रोज नयी दौड़ चूनने वाला हूँ , जीवन में जोड़ नयी बुनने वाला हूँ।  इंतजार में हूँ कब बहुगाँ, बहता निर्मल दरिया बनुगाँ। सब कुछ प्रकृति पर है, मौसम भी बदलते है।  ये वक्त भी बदलेगा, मेरा वक्त भी बदलेगा।। - kavitarani1 

कमी है (प्रेम की कविता)

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  कमी है (प्रेम की कविता) बात तो कर लेता हूँ मैं। और मन भी लग जाता है। पंसद भी आने लगती है। और दिल भी धङकने लगता है।। पर जब बात करने का मन करता है। या जब देखने को जी चाहता है। या जब कुछ बताने का मन होता है। या कुछ सुनने का मन होता है। वो जो भाव खाती है। सुनती नहीं और जल्दी चिढ़ जाती है। किसी का फोन आये मुझे भूल जाती है। तब लगता है, कमी है।। अभी उसमें मेरी चाहत की कदर की। उस दिल में बसनें वाली की। उस हसीन चेहरे की। उस साफ दिल दोस्त की। मेरे विश्वास पर खरा उतरे उस लङकी की। मेरे जीवन साथी की। अभी कमी है।। वो मुझसे दुर है। ये मासुम और बात करने वाली है। पर ये वो नहीं , जिसकी मुझे तलाश है। मुझे उसी की तलाश है।। - कवितारानी।

काश तुम समझ पाते

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  काश तुम समझ पाते। माना की तुमनें कहा था। पर फिर भी प्यार है माना था। विश्वास जगाया था। हर बात को आगे होके बताया था। अब जब मन तुम पर आ गया। सब को मन बिसरा गया। तब तुम कहती हो हम दोस्त हैं। प्यार नहीं बस आकर्षण था। जो कहा अब ना कहना। और विश्वास है पर ये ना कहना। ये ना बताना, वो ना कहना। यही जब ओरों  को बताती हो। और मुझसे छुपाती हो। कितना दुख देता है। विश्वास कहीं टुटता है। दम कहीं घुटता है। कैसे समझाऊँ क्या-क्या होता है। काश तुम समझ पाते। कैसे विश्वास बनता है। और विश्वास बिगङता है। क्या मन पर आती है। और कैसे जान जाती है। काश तुम समझ पाते।। - कवितारानी।

नया दौर

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नया दौर  नये लोग, नयी हवा,नया पानी,नयी कहानी, मैं आया बहुत महीने बाद नयी जगह। ये दौर नया,यहाँ मेरे दौर नया, नयी उमंगे है,नये सपने हैं,  नयी आस संग,नई जगह हूँ।। नया दौर, नया जोर,जोश जगाना है,  जाना है नयी ओर। रूका नहीं कहीं अब तक, सवाल वही,कब रहूँगा यही।  नयी आस,नयी प्यास, अभी ठहरा ही हूँ, चाहूँ कुछ खास।  नयी उमंग है, नयी खानी हैं,  रूका हुआ लग रहा,  अपना सा लग रहा , सपना सा लग रहा, सपना सा लग रहा जो जीया अभी,  हैं सब वही, मैं हूँ वही, बस जोश नया, दौर नया।। - kavitarani1

इस दुनिया में

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  इस दुनिया में  इस भीड़ भरी दुनिया में,  मुझे कुछ ही लोग समझ आये। उम्र बंधन से दूर,  कुछ वृध्द,कुछ युवा ही भाये हैं । कुछ लोग मिले जो मुझसे थे, इस भ्रम जाल वाली दुनिया में,  मुझे कुछ ही सच्चे मिल पाये। इन्हें सहजने की कोशिश में,  इन्हें खोते हम आये । इस गुजरती दुनिया में,  बस अकेले में खुश रह पाये।। - कविता रानी।

जो बारिश हुई।

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  जो बारिश हुई।  तपती जमीन को सुकून मिला।  गर्म हवा शीतल हुई।  एक तड़प जो जीने की लगी थी, उस जुनून को जान मिली। कब से इंतजार कर रहें थे, इस सुखे का खत्म होने का। जलती धरा अब नम हुई,  कई दिनों बाद जो बारिश हुई। । चहरे खिल गये, रूह को राहत मिली। घबराहट जो बढ रही थी, उसे चाहत अपनी  मिल गई। लगता हैं जैसे मिन्नते पुरी हुई, कई दिनों बाद जो बारिश हुई। । - कविता रानी।

मैंने खुद को सच्चा पाया।

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मैंने खुद को सच्चा पाया।  मेरे सुने लम्हों में,  मैंने खुद को सच्चा पाया।  पुछा तुमने जो, मैंने दिल से बताया। एक बंधन विश्वास का बना, और तुझे संदेह हुआ।  सब जानते हुए भी,  मुझसे तु दुर हुआ।  इस भीड़ भरे जग मे, क्या ना मैंने खोया।  कुछ लम्हों तक ही सही, तेरा साथ मैंने पाया।  यादों की तस्वीरों मे, तु भी इतिहास बन जा। एक बची ढोर पहचान की, अब उसे भी तोड़ जा। मेरे एकांत में,  मैंने फिर खुद को समझाया। इस बदलते जग में,  एक मन का खुद को पाया।  मैंने खुद को सच्चा पाया। । - कविता रानी।    

जिन्दगीं

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  जिन्दगी सफ़र मेरा आसान  न था, ना आसान जिन्दगी जिया मैं कभी। अपनी परेशानियों से  आगे बडा में।  लड़ रहा चुनौतियों से अभी। पता है मुझे अंतिम लश्य यहाँ नहीं।  पर दुनिया छोड़ अभी जाना नहीं।  कहाँ  तक पहुँचा हूँ नहीं पता, बस रूका हुआ सा लग रहा हूँ अभी। आसान ना था पहला पड़ाव पाना, अभी बाकी हैं बढ़ाव सामने कई । कौन जाने कहाँ तक जायेगी। जिंदगी मेरी कब खुलकर मुस्कुरायेगी। अभी बस गीन रहे दिन  यूँ ही,  जिंदगी आसान है ,पर है रूकी हुई। सफर मेरा आसान था भी नहीं,  ना आसान जिन्दगीं जिया मैं कभी। । - कविता रानी।

याद रहेगा

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याद रहेगा (memories of mount abu) रहकर यहाँ प्रकृति  को जाना। नये ढंग में जीवन को पहचाना। भूलना फितरत है इंसान की पता  है ये। पर याद रहेगा यहाँ का जमाना। मेरे जीवन का एक साल दिया है।  अनमोल मेरे लम्हों को मैंने जीया है।  हाँ! मुझे यहाँ की आबो हवा भायी है।  मुस्कुराते चेहरे ओर ना समझ आने वाली बोली भायी है।  कुछ छुट गया वो जो मेरा नहीं है।  भूल गया वो जो दर्द भरा है। याद रहेगा हॅसी,ठिठोली का समा। यहाँ की हसीन वादियाँ। आबु पर्वत की देखी छवियाँ। पहनावा यहाँ का और बोलीयाँ। याद रहेगा यहाँ बिताया हर लम्हा।  -kavitarani1 

मैं वापस आऊँगा।

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मैं वापस आऊगाँ  बात छोटी सी है भले।  पर बात दिल पर लगी हैं।। माँगा अपने हक का था। वो कागज ना देना ईमान पर ठगी है।। मेरी मेहनत, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा को धक्का लगा है।  जो कर रहा हूँ मैं  मेहनत, उस पर ये पहरा सा लगा है।  जा रहा हूँ यहाँ से मैं। पर एक अधिकारी बन कर   आऊँगा। कोई भूल जाये मुझे भले।  मैं ना भूल पाऊगाँ।  इन ठगी और लापरवाह लोगों को, सबक सिखाऊँगा।  ये मिले ना मिले,  ये रहे या ना रहे। पर जो दिखेगा इन जैसा, उन्हें बताऊँगा।  मैं वापस आऊँगा।  मैं वापत आऊँगा।। - kavitarani1

काले मन वाले / kale man vale_ hindi poem

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  लोग काले मन वाले- वीडियो देखे काले मन वाले  मिठे-मिठे बोल इनके। मिठे-मिठे दिखावे।। हज़म ना होती इनकी बनावटे। हज़म ना होते इनके बहकावे।। सफेद रंग में घिरे ये। कहते रहते अपनी सफेदी की।। काले हैं मन के ये। ये काले मन वाले।। ईष्या से भरे सारे। द्वेष मन में पाले रखते।। होड़ करते बुरी तरह से। परेशानी का सबब बनते।। कहते रहते काम आने की। काम पड़ने पर काम ना आते।। अपने ही काम को महत्व देते।  ये दिखावे में जीने वाले।। जहाँ देखो सब जगह हैं । ये काले मन वाले। । - कविता रानी।

बदल गई है तु

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  बदल गई है तु कल तेरा चेहरा देखा। काफी बदल गई है तु।  कुछ याद आया गुजरा कल। हाँ, अब वो कसक नहीं तेरे लिये। ना जगाने कोई जज्बात हैं।  वो जो दिल पर लगने वाली बात थी। वो भूला दी गई हैं अब। देखा तुझे घोर से, पहले सी नहीं है तू। काफी बड़ी दिख रही है, कितनी सही है तु। सब संभाल लिया अच्छे से, होशियार बहुत है तु। कल फोटो देखी तेरी, बदल गई है तु। । - kavitarani1

मैं दोहराता रहूँगा

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  मैं दोहराता रहूँगा  जब तक हूँ मैं दोहराता रहूँगा। अपनी जिंदगी के हर लम्हे बताता रहूँगा।  वो दर्द ही था तो क्या  हुआ।  वहाँ आनन्द  भी था तो क्या।  वहाँ जीवन संघर्ष कर रहा था। हाँ कभी मैं घुट -घुट जीता -जी मर रहा था। वो गये दिन-रात मेरे। वो बित गये अँधेरे भरे सवेरे मेरे।  पर मैं उन्हें भूलाना नहीं चाहूँगा। आखिर कैसे भी हो मेरी कहानी के हिस्से हैं।  मेरे जीवन सफर में बनें वो किस्से है। मैं अनमोल शब्दों से सजाता रहूँगा। मैं जहाँ रहूँ,मैं जैसे रहूँ, उन्हें दोहराता रहूँगा। । -कविता रानी। 

दोस्त वही, Lovely friendship

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  दोस्त वही जो बिन कहे बात समझ ले। दिल में उठे रह जज्बात समझ ले। कहने से पहले ही अपना हाथ दे। विश्वास कभी टुटने ना दे। परेशानी से कभी झूझने ना दे। खुशियों में जो साथ झूमें। मन पङे तब साथ घूमें। जो दिन की रह बात कहे। हो परेशानी तो साथ लङे। नई ऊँचाईयों पर साथ चङे। दोस्त वही जो प्यार बिना प्यारा रहे। दोस्त वही जो मोह बिना मोह करे। दोस्त वही जो मन पङे तब लङे। दोस्त वही जो मन पङे वो कहे। दोस्त वही जिससे नाराज ना रह सके। दोस्त वही जिसे मना सके। हाँ दोस्त वही जो मुझसा हो। दोस्त वही जो मनका हो।। - कविता रानी।

friendship /दोस्ती प्यारी

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दोस्ती प्यारी। मई मिल्या कुछ दोस्त प्यारा। विश्वास प खरा वे सारा। साथ वाक लाग् न्यारा। म्हार पास ह कुछ दोस्त प्यारा।। सुख-दुख म साथ आव। म्हारी सुन, मई सुनाव। समझ म्हारी मन की बातां। लम्बी होव म्हाकी बातां।। दूर रह क भी पास लाग्। मन की बस वास् लाग्। झूठ - मूठ हसी न आव्। जो हसा तो साथ हसाव।। थोङा ही ह म्हार पास यारा। थोङा ही रखुं मुं प्यारा। ज्यादा स म्हारी बन कोनी। या क जसा मल्या भी कोनी।। साथ या क मस्ती सारी। उदासी म्हारी मिट सारी। याद रेव या दोस्ती प्यारी। म्हार पास जा यारी।। - कविता रानी।  

तुम खास हो मेरे लिए।

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  तुम खास हो मेरे लिए। लाखों लोग हैं यूँ तो दूनिया में। पर कोई जमता नहीं मेरे लिए। यूँ तो हजारों हैं चाहने के लिए। पर चाहते नहीं किसी को तुम जैसे। कोई कुछ भी कहे तुम सुनना ना। क्योंकि तुम खास हो मेरे लिए।। यूँ तो कह सकते हैं किसी को भी। पर कहते नहीं इस मन के लिए। अपनाने को अपना सकते हैं किसी को भी। पर जगह नहीं मन में किसी के लिए। जो बात बनी तुम्हें सुनाने को। उसे बचाये रखते हैं तुम्हारे लिए।। नगमें कईं हैं गाने को , पर गाते नहीं किसी के लिए। जो दिल को पंसद है। बस रहना है उसी को लिए। कहनें को जग है साथ में। पर तुम खास हो मेरे लिए।। -कविता रानी।

वो रूठी सी है।

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  वो रूठी सी है। दोस्त कहु या सहेली। हाँ पर वो है पहेली। सवाल सारे उसके परिचित है। जवाब से उसके सुचित। मै चित सभाले सुनता हूँ। उसकी बातों से लम्हें बुनता हूँ। वो आजकल कुछ रुखी सी है। लगता है जैसे वो रुठी सी है। बेवजह यूँ दूर जाना किसी का। समझ आता नहीं पर आदत है। हाँ मुझे ऐसे लम्हों की आदत है।। - कविता रानी।

भूल जाऊगाँ।

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भूल जाऊगाँ। धुल उड रही , चीखे गुजँ रही। दौड भाग चल रही, छुपन छुपाई हो रही। पर बस  यादो मे, बस अहसासो मै। जब चाहूँ तब य़ाद करूँ, मे आज कर रहा। मै भूल गया बचपन सारा, जवानी भी भूल जाउगाँ। समय का साथी मै , सारथी यादो का। जब चाहूँ जिस ओर चाहूँँ,लिखूँ बाते। मन मे रखी हुई कई सारी यादे। मै जग के इस चक्रव्यूह से निकल जाउगाँ। आज नही तो कल  मै , तुम्हे भूल जाउगाँ। जैसे भूला बचपन को , ऎसे भूलाऊगाँ। मै तुम्हे भूल जाउगाँ।। - कविता रानी ।

मैं और मेरा संसार।

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  मैं और मेरा संसार। मुझसे मेरा संसार है और मेरे संसार से मैं। दोनों में कोई अंतर नहीं। क्योंकि जब तक मैं हूँ, जैसा मैं हूँ, वैसा ये। पर दोनों विरोधी से लगतें हैं। एक मैं अपनें मन की करना चाहता। और मेरा संसार बस अपनी। एक मैं हूँ जो सब कुछ पाना चाहता। और ये मुझे पाने देता बस कुछ। एक मेरे पास समय नहीं इंतजार का। और इसका समय चलता अपने हिसाब से। फिर मैं कैसे कहूँ कि मैं जी रहा हूँ अपने संसार को। मुझे लगता है ये जी रहा मुझे। मैं पंख उठाऊँ तो तेज हवायें आ जाती है। और दौङना चाहूँ तो काली घटायें छा जाती है। कुछ पल मेहनत करुं तो अंधेरा हो जाता है। चाँदनी रात का आनंद लूँ तो सवेरा हो जाता है। किसी से कहुँ तो वो सुनाता जाता है। अपने लक्ष्य बताऊँ तो राहों में कांटे बिछा जाता है। फिर कैसे मैं अपने संसार को अपना कहूँ। कैसे कहूँ मेरा संसार ही मेरा जीवन है। मैं और मेरा संसार दोनों अलग है।। - कविता रानी।

रुके बैठे हैं।

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रुके बैठे हैं। ख्वाहिशों के पुलिंदों में उलझे बैठे हैं। हम आज मुश्किलों में उलझे बैठे हैं। जीना चाहिए जहाँ आज को हमें। हम कल की फिक्र कर बैठे हैं।। कभी खुद को समझाते हैं। कभी जमानें को समझाते हैं। ये लफ्ज नहीं किस्मत के लेख है। आसानी से समझ कहाँ आते हैं।। एक हम हैं जो हम ही से लङते हैं। जमाना चाहता पिछे रखना और हम बढ़ते हैं। जाहिर है खुशियाँ सांझा करना सब से। पर लोगो की बूरी नजर से डरते हैं।। आसान है सांसे गिनना, हम गिनते हैं। मुश्किल है खुश रहना, हम कोशिश करते हैं। ये दरिया है जो बह रहा बिना रुके। कई छोटे नालों को इसमें समेटे बैठे हैं।। आज फिर खुद से बात कर बैठे हैं। तन्हाई है इसलिए कुछ लिख बैठे हैं। कई सपनें हैं संजोने को जीवन में अभी। हम सही वक्त की दरखास्त लिए बैठे हैं।। - कविता रानी।  

माटी के लाल

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  माटी के लाल ऐ माटी के लाल, माटी के लाल। सुन ले कहे क्या, कहती क्या माँ।। है दर्द सीने में, है बाजु लाल। है माटी के लाल, माटी के लाल।। जंग ना करना, ना जंग लगे लाल। धार बना तेज, तेज करले प्रकाश। देख जिसे बैरी भागे छोङ अपने भाल। शाश्त्र उठा ले, कांधे रख ले शा्ॅल। है माटी के लाल।। - कविता रानी।

मिट्टी में मिला देंगे

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  मिट्टी में मिला देंगे वीर सपुतों की माटी में कायर नी जन्में हैं। लगता है कई शत्रु सोंचते हम भी अन्धे है। वक्त की नजाकत समझ दुश्मनों को जो श्रय देते हैं। कान खोल कर सुनले जो बिन भय के लेटे हैं। मिट्टी में मिला देंगे, जो माटी के बैरी बन ऐंठे है।। ये वीर भूमि है बस वीरों की, यहाँ कायर नहीं जन्मतें हैं। बस माँ भारती के संस्कारों से ही भोले भाले लगते हैं। पर भूल कर भूल ना पाये दुश्मन , कि किस आंचल का हमनें दुध पिया। माँ चंडी और माँ काली का हर पल ध्यान किया। हम नृत्य करके भी दुश्मन को सहमा देते हैं। एक पल भी हमें गलत समझनें की भूल ना करना। मिट्टी में मिला देंगे, जो माटी से हमारी बैर किया।। ये भूमि है रणबांकुरो की, राणा की, शिवाजी की। इसपे जो किसी ने भी कभी वार किया। भूल कर भूल ना पाये दुश्मन कैसे उसका वीर काल बना। राणा की जो तलवार चली, दुश्मन घोङे सहित दो फाङ हुआ। आज भी हम रगो में वही उभाल रखते हैं। शांत है, शांति का मार्ग रखते हैं, पर जो दुश्मन के साथ बैर हुआ। मिट्टी में मिला देंगे, यही उदगार हुआ।। जय माँ भारती। जय हिंद।। - कविता रानी।

माटी रो लगाव

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  माटी रो लगाव मोहे माटी रो चाव, लगाव लागे छोको है। मोहे माटी रो प्रेम , खिंचाव मन लागे है। खिचों जाऊं अपने आप, मनैं कछु ना भाये रे। मोहे माटी रो राग, राग ना कोई भावे रे। मोहे माटी रो लगाव।। तनङो भटक्यो राह, भाव ना खीको चावे है। मनङो बैरी लाग देख, मनकां प अटक्यो चावे है। मनकां म बैरी भरया, बैर रोज दिखावे रे। करणों चाउ माटी को काम, काम खुद को करावे रे। मने माटी रो लगाव।। पग-पग बेङियाँ बांधे, जग जगह-जगह भटकावे है। डग मग - डग मग जीवन, जीवन रह पल डगमगावे है। मुं लूटणों चाहूँ देश ण, जग अपणों स्वार्थ निकलावे है। रह दन मन प बोझ, देश का काम रुकता जावे है। मोहे माटी रो लगाव।। बण सेठ साहूकार भारी, जेब जयचंद भरे रे। अधिकारी रूतबो पाक कोई, मोटो धन कमावे रे। माटी रो मोल भूल बस खुद को नाम बणावे रे। मूं मन को मारयो बैठ अकेलो, आदेशां  नो ताल गाये रे। मन प बोझ भारी राख्यो, देश न खई दयो रे। म्हारो माटी को प्रेम रोज मने उकसावे रे। मोहे माटी रो लगाव।। - कविता रानी।

जब तुम मिले

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  जब तुम मिले दुख पुराने कल की बात बने। सारे रिश्ते नाते दूर हुए। जब तुम मिले सब नया सा लगा। जब तुम मिले रास्ते नये मिले।। और क्या मांगू ईश्वर से में। घर, नौकरी और तुम ही तो थे ख्वाहिशों में। क्या ही जरुरत और करने की। जब तुम हो साथ में।। अब नयी बात है। नये जज्बात है। नये ख्वाब है। जब हम साथ है।। मैं कल को याद नहीं करता। जो मिला नहीं उसकी बात नहीं करता। मैं सब पिछे छोङ आया। जब तुम मिले तब से ये मोङ आया।। - कविता रानी।