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भुल जाऊँगा / bhul jaunga

  भुल जाऊँगा भुल गया हूँ मैं बचपन अपना। वो दिन दुर्दिन, वो सबसे बुरी दशा। भुल गया सुख भी और भुल गया सुखद सपना। एक दिन भुल जाऊँगा आज का दिन भी। ये परेशानियाँ और सबक भी। ये बेवजह अजनबियों से चोट सी लगती भनक भी। ये नये लोग, ये नये घाव, ये नयी चुनौतियाँ। सब भूल जाऊँगा।। जब भुल गया अपनी जन्म की दासतां। और दिन रात डराने वाले शैतान का पेहरा। वो काली डरावनी रातें और दिल चीर देने वाली बातें। तो निश्चित ही ये अफसर की फटकार। ये बाबुओं की भटकाने की मार। ये प्रेम में हार सब भुल जाऊँगा। हाँ एक दिन ये सब भूल जाऊँगा। और कौन दर्द के लम्हे याद रखते हैं। कौन कहता है कि आप सुनाओ अपने गम। सब अपने राग अलापते हैं। सब अपनी ही तो गाते हैं। लोग अपनी ही सुनाते हैं।। -कवितारानी।

कब आओगे मित मेरे / kab aaoge meet mere

कब आओगे मित मेरे जेष्ठ गया तपते-तपते, आषाढ़ सुना बिता। बिता है कोरा सावन, बिते दिन-रैना। बिते दिन-रैना।। कितने सावन बिते, कितने दिन रिते। कितने महिनें छुटे, कितने बरस जीते। अब यादों के सहारे जीना हुआ मुश्किल। जीना हुआ मुश्किल।। कब आओगे मित मेरे, तुम कब आओेगे। गिन-गिन काटे दिन अब, कब आओगे मित। कहाँ से लाऊँ सपने, कहाँ से लाऊँ यादें। सुखे पतझङ से गिरते मेरे आँसु से सुखे। सुख गई है बातें अब, याद नहीं कोई यादें। आती नहीं कुछ बातें कैसे कहे सौगाते। अब आओ तुम तो समझ सकुँ। कुछ दिन साल है जो जी सकुँ। मैं पुँछुँ इस हवा से, कहाँ है मित मेरा रे। कब आओगे मित मेरे, कब आओगे मित मेरे।। -कवितारानी।

मुझे मन मारे/ mujhe man mare

  मुझे मन मारे मुझे जग का कोई लोभ नहीं, परिवार से मेरा जोग नहीं। संजोग हुआ ना प्रेम पथ का, मैं रहा मन का मारा। मैं पथिक फिरुँ आवारा, मैं फिरुँ आवारा।। कोई मेरे साथ नहीं, कोई मेरे मन के पास नहीं। है आस लगी किसी को, कोई मेरा खास नहीं। बस यही गम का बोझ, चलता हूँ बंजारा। मैं फिरुँ आवारा, मैं फिरुँ आवारा।। जब-जब कोई जोग लगा, मन पर मेरे बोझ लगा। लगा उसे या लगा रब को, छुटा बंधंन आवारा। मैं फिरुँ आवारा, मैं फिरुं आवारा।। एक नजर मिली मन ढोल उठा, लगा जैसे पपीहा बोल उठा। जैसे सावन कि फिर झङ लगे, जैसे बादलों कि ओट लगे। लगा जैसे सावन होगा खत्म ना दुबारा। मैं फिरुँ आवारा, मैं फिरुँ आवारा।। कुछ दिन का वो सावन, फिर सिहरन भरा साळा था। फिर से पतझङ जाग उठा, फिर मन सावन गा रहा। मैं फिरुँ आवारा, मैं फिरुँ आवारा।। ये जग के मोह मारे है, समय काल मेरे खा रहे है। मिलता मोह का साथी सच्चा, मुझे मन करे ये कच्चा। मुझे मन मारे, करे मुझे बेसहारे, मैं जग मैं उङता चलता। मैं फिरुँ आवारा, मैं फिरुँ आवारा।। -कवितारानी।  

राह मेरी मुश्किलों भरी | Raah meri mushkilo bhari

राह मेरी मुश्किलों भरी मैं पथिक पुराना अपनी धुन का, पथरीले पथ का रहा पारखी। जानता हूँ जाना कहाँ-कहाँ रूकना, राह भले हो मेरी मुश्किलों भरी।। एक ठौर रुकना मैने सिखा नहीं, मेरे ईश्वर का उपकार भूला नहीं। माटी से उठ आगे तक आया, राह मेरी मुश्किलों भरी रही पर ये बढ़ आया।। अब सुन्दर सपना और नजदीक है। राह मेरी काफी कट चुकी है। सीढ़ियों सा जान निचे देख रहा हूँ। मैं मुश्किलों भरी मेरी राह निहार रहा हूँ।। मैं पथिक भ्रष्ट और श्रेष्ठ समूह का, हर जन को समझा परखा हूँ। जानता हूँ कौन कितना बुरा है। कौन मेरे काम का है और कौन नाम का है।। मैं सबको साथ लेकर चलता, रुकता पल भर और आगे बङता हूँ। जानता हूँ दूर तक जाना है। राह भले हो मुश्किलों भरी मुस्कुराना है।। एक ठोर पर अभी रुका हूँ। समय से सही होने के फेर में हूँ। जानता हूँ कब आगे बढ़ना है। राह मेरी मुश्किलों भरी साहस भरना है।। -कवितारानी।

पथिक खुद को ना भटका | Pathik khud ko na bhatka

  पथिक खुद को ना भटका जब कुछ ना था तो लङ रहा था ना, जीवन शिखर को पाने को अङ रहा था ना। लगा रहता पाने को सपने अपने, संघर्ष करता रहता था पाने को उन्हें। अब जब सफलता के कुछ कदम बढ़ाये, दुख की घटायें दूर करता जाये। क्यों तो अब रुक रहा है, पथिक यहाँ आके क्यों भटक रहा है।। सोंच रखी है मंजिल ऊँची, सपनों की मंजिल जब अधूरी। राह के रोङे जब हट गये, समतल भूमि पर चल रहे। सवाल है कई और है समाधान कई, करता दुखो को दान कहीं।  तो क्यों यहाँ रुक रहा, अपनी मेहनत से क्यों भटक रहा।। किया शुरू जब कुछ ना था, ईश्वर भरोसे सफर कटना था। साथ कोई ना पास कोई था, अपने दम पर ही जब चलना था। जब हल ना था तो चल रहा था, अब तो सिख गया, अब क्यों रुक रहा। अब पथिक क्यों अटक रहा, अपनी राह से क्यों भटक रहा।। इतिहास सबका पन्नों में दर्ज, जो कुछ ना है उसी को अर्ज। ना तुझपे कोई कर्ज, रखता शांत तु अपने फर्ज। फिर क्यों ना करता खुद को मानवता के शिखर पर दर्ज। क्यों अब खुद ही झूक रह, पथिक यहाँ आके क्यों भटक रहा।। ये राह दूर तक की ठानी थी, सीढ़ी-दर-सीढ़ तुझे बढ़नी थी। सुविधा के आयाम गढ़ने थे, मंजिल सपनों की पाने को, पन्ने पढ़ने ...

तुझे क्या लेना दुनिया से | tujhe kya lena duniya se

  तुझे क्या लेना दुनिया से तू खुश अपने जहाँ से, तुझे क्या लेना दुनिया से। तू मस्त मगन खुद में, तुझे क्या लेना मुझ से। तू भूली बिसरी मेरी दुनिया, क्यों याद करे मुझे। तू खुश अपने जहान में, तुझे क्या लेना दुनिया से।। आया सावन झूम के, क्या लेना जेठ आषाढ़ से। भाया पावन प्रेम किसी का, क्या लेना देना पवन से। मधुर सपने औझल, जो साजन बने तन के। तुझे क्या लेना दुनिया से, तू खुश है अपने जहान से।। तू भूली मधुर यादें, क्या लेना गुजरी बातों से। तू भूली आँसु की रातें, क्या लेना विरह वेदना से। जो गुजरा गया गुजर वो, भूला बिसरा यादों से। क्या लेना दुनिया से, तुझे क्या लेना दुनिया से।। रहे खुश तु, बन सावन तु खुश रखे अपनी दुनिया को। कहे मन यही, खुश रहे तु अपनी दुनिया में। भूले तू मुझे, भूले बिझङे कल को। तुझे लेना दुनिया से।। तु बङे आगे, मस्त होके, रहे खुश संसार में। तु रहे खुश अपने संसार में। तु खुश अपने जहान में। तुझे क्या लेना दुनिया से।। -कवितारानी।

सब यहीं रह जाना है / sab yahi rah jana hai

सब यहीं रह जाना है सारी कोशिशें, सारी बंदिशे, सारी कहानियाँ, सारे किस्से। सब यहीं रह जाना है। दिन-दिन कर मरना, वो अकेले आहे भरना, वो मिन्नतें। सब यहीं रह जाना है। क्या मिला जो वक्त खोया, क्या रहा जो वक्त खोया। सब कुछ आज की किमत कह जाना है, सब यही रह जाना है।। वो बाढ़ के दिन, वो सुखे की तङप, वो बसंत की बहार। वो पतझङ की आङ, सब यूँ ही कह जाना है, सब यहीं रह जाना है।। वो साथ बहुत रहा मेरे, वो दूर बहुत था मुझसे। वो मेरी जान बनी, उसने मेरी जान ली। वो अनजान मेरे समय था, वो जान पहचान का मेरे पास था। वो काम बहुत आया मेरे, वो दोखेबाज रहा हमेशा। सब किस्से कहते गुजर जाना है, वक्त के बाद सब मिट जाना है। जो पाया यहाँ, यहीं छोङ जाना है, सब यहीं रह जाना है।। मेरे दिन बचपन के आततायी रहे, जैसे जीये मर-मर जीये। मेरा यौवन फुलित रहा, मैंने कमाया और दान भी किया। मेरे किये को कुछ ने अच्छा कुछ ने बुरा कहा। मेरे एकान्त को सबने बुरा ही कहा। मेरी सफलता के कई साथी रहे, मेरी असफलता के कई राजी रहे। मेरी डायरी में आज-कल लिखता रहा। कभी प्रकाशित हो ये ना कहा, क्या पता ये भी मिट जाना है। बारीश आनी सब घुल जानी है। सब यह...

कुछ ना कहो / kuchh na kaho

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कुछ ना कहो कुछ ना कहो कोई मुझसे, कुछ ना कहो। मैं भुल रहा हूँ औकात अपनी, उलझ रहा हूँ कहीं और कहीं। मुझे उससे निकलने दो, मुझे मुझमें आने दो। अभी कुछ ना कहो, कुछ दिन कुछ भी ना कहो।। रह गया मुझमें दबा, मेरा जलता जीया। जल गया जीते हुए, मेरा प्यारा पीया। जल गया है सपना, रहा ना पास कोई अपना। मुझे अपने आप से आकर मिलने दो। मुझे खुद से सवाल करने दो, रहने दो। मुझे खुद में रहने दो, कुछ ना कहो अभी। कुछ ना कहो।। आयी हवा बह-बह के पुरब से, मैं बैठा अकेला यहाँ। पश्चिम में, पर्वत के नीचे दबा जा रहा हूँ मैं। अपने वजुद को खोता जा रहा हूँ मैं। चिंता कर रहा अब कहीं मिट ना जाऊँ मैं। मुझे अपने गाँव-शहर जाने को, मन करता है मेरा। लुट जाने को, लुट जाने दो, मुझे लुटने दो। खुद को पहचान सकुँ इतना मौका दो। अभी कुछ कहो, कुछ दिन, कुछ ना कहो।। हो गयी पीर पराई, आँसुओं से लङाई। मुस्कान छोङ गई, छोङ गयी खुशी भी। दुःख के दिन बीते, अब उलझन नई। नई-नई उलझनों को सुलझानें दो। जिन्दगी की लय में उतर जाने दो। जीने दो अकेले मुझे, मुझे अकेले रहने दो। अभी कुछ ना कहो, कुछ दिन कुछ ना कहो। कुछ ना कहो।। -कवितारानी।

जाओ तुम / Jao tum

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जाओ तुम जाओ जी आपसे क्या शिकायत करें। गम तो अपनों ने गहरे दिये, आपसे क्या बगावत करें।। गये  कई छोङ तुम भी छोङ जाओ। साथ अपनों ने कभी ना दिया, तुम भी छोङ जाओ।। आये याद तो भी दुबारा ना मिलना। अच्छा वक्त गुजरा, दुबारा वक्त ना बरबाद करना।। जाओ जी अपनी फितरत कहीं ओर आजमाओ। हम जो पक्का रिश्ता चाहते हैं हमें ना आजमाओ।। यकिन करो हम ना बुलायेंगे अब। जिन्दगी से सिखा है कैसे दुर रखें गम।। मौज-मस्ती की अपनी आदत कहीं और ले जाओ। खुशी मिले जिससे उसके पास जाओ।। रहने दो बहानें और समझाइश करना। हम समझतें हैं भटकाव के बाद क्या है करना।। अपनी याददाश्त की पर्ची बनाओ तुम। मुझे सब याद है मुझे याद ना दिलाओ तुम।। सफर इतना ही था समझ जाना तुम। समझ गया हूँ मैं उसे ना जानना तुम।। जाओ आजाद हो मेरी ओर से तुम। खुश रहो जहाँ रहो यही कहना है तुमसे बस।। -कवितारानी।

I am waiting for you

I am waiting for you So long, It has so long to see you. It will never end, I am staring way. Where are you? I am waiting for you. Where are you? There will be peace, And no pain, I hope so. I am living in half of that, And bearing pain.  And looking for you. Where are you? Where are you? I have suffered long time without you. Life has stuck here on you. I always pray for you. Where are you? No desire requires now. No need to live more. Nothing is more important than you. Where are you? I want long live peace with you. I want long life with you. I just want relief. Nothing is possible without you. Where are you? I am waiting for you. -kavitarani1

वो तुम थी / vo tum thi

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वो तुम थी वो सुर्ख होंठ और उनपे छाई लाली, वो स्पर्श कोमलता, वो मादकता, वो मधुरता। याद मुझे बाहों में भरकर उसका चुमना। वो बङी-बङी आँखें, वो काजल, वो आँखों की गहराई, वो शर्माना, वो ईतराना। याद है मुझे घण्टों तक नयन लङाना। वो माथे की बिन्दी, वो धनुष जैसी बोहें, वो इठलाती लट, वो गले की माला, वो गाल डिंपल। याद है मुझे उसकी सादगी और रहना बङा सिम्पल। वो दंभ भरना, उसका हॅसना, उसका रोना, उसका भाव खाना और बहाना बनाना। याद है मुझे एक-एक पल प्यार का मेरे बढ़ते जाना। वो मेरे लब्ज, वो उसके उलझे शब्द, वो मेरी तारिफें और उसकी मुझे खो देने की गुंजाईशे। याद आता है  मुझे उसका बरताव बदलते रहना। वो उसका बहाना बनाना, वो मुझे अकेले में बुलाना, बातों से बलट जाना, मुझसे लङते जाना। याद है मुझे उसका मुझे लगातार ना अपनाना। वो तेरी फितरत, और मेरी कुदरत, वो तेरा बार-बार बदल जाना, वो मेरा हर बार मनाना। याद है मुझे अपने रिश्तों का बिगङ जाना। वो मेरा टुटना, मिन्नतें बार-बार करना, वो तुम्हारा कठोरतम रुख अपनाना। याद है मुझे तुम्हारा मुझे मरते छोङ जाना। वो करके बहाना याद करना, झठा दुख सुनाना, वो तुम्हारा मुझे दोष दिय...

याद आती है / Yaad aati hai

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  याद आती है जब घनें काले बादल घिर आते हैं। बिजलियाँ गिरती, बादल गरजते जाते हैं। आँधियों से पेङ भयानक से हिलते हैं। अकेले में रह मुझे डर लगता है। सोंचु किसी की भी सब हट जाता है। बचपन की गलियों-आँगन में मन चला जाता है। आती है सदायें इन तुफानों सी फिर। फिर याद तेरी आती है।। सोंचना चाहूँ किसी अपनें की। जो रहे साथ, रहे आस-पास उस सपने की। मेरे हर मिले शख्स से बस नफरत की याद आती है। जो कभी दुखाये दिल और भाये फिर ऐसी बस तु आती है। याद आती है तेरी यही आँखे भर आती है।। घनी धुप में आँचल तलाशता हूँ। कहीं छाँव मिले ऐसा आसरा देखता हूँ। कुछ ठण्डी फुहार देख खींचा चला भी जाता हूँ। कुछ शीतलता पाकर और कठोर दण्ड पाता हूँ। पछताता हूँ फिर लु से जब जल ही जाता हूँ। ना कठोर बन पाता ना छाँव का आनन्द ले पाता हूँ। फिर कहीं लौट बचपन याद आता है। वो कठोर बातें और प्यार याद आता है। फिर तु मुस्कुराती है और गालों पर नमीं आ जाती है। फिर तुम्हारी याद छा जाती है। फिर सारी मुस्कीलें भूला दी जाती है।। -कवितारानी।

खुश रहो तुम / khush rho tum

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खुश रहो तुम मिलते रहते लोग कई सफर में। मिली कई तुम जैसे सफर में। कुछ खास था तुममें जैसे था कईयों में। अच्छी चली बातें अपनी दोनों में। कोई छुपी बात ना थी दोनों में। फिर कुछ यूँ हुआ,  कि तुम लङकियों जैसे भाव खाने लगी। स्वाभाविक ही तुम बदल जाने लगी। कोई तो आया था बीच में। या मन भर गया था इस रीत में। ज्यादा कुछ कहता उससे अच्छा था दुर जाऊँ।  जितना समझता था, समझा पाऊँ। पर तुम मान चुकी थी अब कुछ नहीं है। अपने बीच था ही क्या और क्या ही है। तो मैंने भी मान लिया जो तुमनें माना। खुश रहो तुम यही कहना सयाना। अब बात ना होगी कुछ प्यार सी अपनी। जैसे गये लोग तुम भी जाओ। खुश रहो तुम, खुब मुस्कुराओ।। -कवितारानी।

मुकद्दर मेरा / mukaddar mera

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  मुकद्दर मेरा चेहरे पर हॅसी देख लोग खुश थे। वो बचपन लाचार मासुमियत भरा था। साथ ना देकर बेचारा कहता। जग मेरी मुस्कान  को खुशी कहता था।। कौन जानता जख्म है भी या नहीं। देख हालात सब हौंसला देते बस था यही। था ना साथ कुछ सिवा तब भी खुद के ही। हाय मुकद्दर मेरा लेता रहा फिर करवट।। मेहनत की खुब नींद औझल की। भूल अपनों को और जख्मों को, सपने की बात की। मुस्कान जमी थी जैसे बचपन की। अकेला खङा था और आस दुआ की।। बदले हालात रहम हुई रहमत ईश्वर की। घर बदला, हालात बदले, बदली खोई मुस्कान भी। अपने सपने को पाने को कुछ चढ़ाई की। मुकद्दर मेरा लोग हॅसी देख कहते आपकी ही बात की।। अनजान लोग, अनजान हॅसी दबी सी। जलते खामोशी से कुछ-कुछ सादगी की बात की। मैं चलता, करता अपना काम कुछ कहे कोई बस शाँति थी। मेहनत में कमी पर सपनों की छाँव थी।। कम समय, बंदिशे साथ रहने की। चलता रहता हूँ बढ़ने की सोंच रखी थी। जलने वाले बढ़ने लगे, बचपन की हॅसी गुम सी। हाय मुकद्दर मेरा असली खुशी कम थी।। -कवितारानी।

हो प्यार कोई / Ho pyar koi

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हो प्यार कोई मिले ना सच्चा प्यार, मिले ना कोई दिलदार, रहे ना कोई यार। रहे खुशियाँ साथ। हो कोई गम, कोई मौसम कोई दिन बहार। रहे खुशियाँ साथ।। वो झूठा सही मेरा बनकर रहे, जो सुने मुझको और मुझसे कहे। दूर ही रहे भले वो, पर प्यार कहे। हो प्यार कोई, हो झुठा ही सही, हो मन साफ, जो समझे साथ। रहे कोई ऐसा हार।। मैं कहूँ सब उससे, वो कहे सब मुझसे, ना जीने- मरने की कसमें, ना हो दिल चीरने की बात। वो साथ दे मेरा, मैं साथ दूँ उसका, वो सुन ले दिल की। चाहे ना हो दिल की, रहे कोई ऐसा साथ।। हो प्यार कोई झूठा ही, जो छोङ ना बीच में कहीं। जो छोङ जाये ना बार-बार। हो उसकी कमी जो रहे साफ दिल ही, चाहे दिल में ना हो सच्चा प्यार। रहे खुशियाँ में साथ।। गम के सागर मैं कर लूँ पार, रह लूँ अकेले रह बार। बस कोई गीला ना, हो कोई शिकवा ना, ना शिकायतें आम। रहे खुशियों में साथ, हो ऐसा प्यार कोई।। -कवितारानी।

झुठी यारियाँ | Jhuthi yariyan

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झुठी यारियाँ  बङी बेखबर थी, वो मुझसे खबर कहती। रात-दिन चलती दिल दारियाँ, दिल-दारियाँ।। अपनी मन की कहती, मेरी मन की सुनती। देती बातां पर म्हारी तालियाँ, बातां पर तालियाँ।। चली ना लम्बी फिर, घुटने लगी। बेवजह वजहें बनने लगी, वजहें बनने लगी।। बहाने कर जाती दूर, दूर रहती करती मजबुर। मजबुर कर दिया पुछने को उपाधियाँ, ये कैसी यारियाँ।। पुछता खबर चिढ़ सी जाती फिर दारियाँ। लग ही रहा फिर हुई मुझे झुठी यारियाँ।। मैंने कह दिया पुछना हाल अब। आते ना मैसेज ना जाते मैसेज अब।। पुछन हाल कर दिया फिर। बीजी आती रही कहना क्या रहा फिर।। समझ आ गया मिल गया यार हाँ। मुझसे हुई थी उससे झुठी यारियाँ, झुठी यारियाँ।। छोङ जग जाना ना, हुआ दर्द गहरा  ना। ना हुई कोई बैचेनी इस बार हाँ।। सिख गया जीना मैं, दोखे खाके रहना मैं। जान गया क्या होता मन लगाना, क्या होता प्यार हाँ।। खुश हूँ मैं खुश वो रहे चाहे जैसे वो। रहूँ चाहे जैसे मैं, रहे जग जैसे रे।। चलती रही दुनियाँ, चलती रहे जिन्दगानियाँ। सिखाती रहे जीना, मजबुत बनकर रहना, ये झुठी यारियाँ।। -कवितारानी।

बङी बेकद्र रही / badi bekadra rahi

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बङी बेकद्र रही जो कहते रहे मेरे अपने हैं, वो कभी समझ ना सके मेरी अपनी। जो कहते रहे मुझमें समझ नहीं, वो कभी मानें नहीं मेरी। बङी बेकद्र रही मेरी उस जमानें में, जब बङी जरुरत थी मेरी कद्र की। बङी मुश्किल थी जिन्दगी मेरी उस जमानें में, जब आसान थी जिन्दगी मेरी।। होंसलों को बटोर तुफानों को पार कर आया अब। जहरीले दंश सहते-रहते भी बच आया अब। जो कहते थे नालायक, बोझ, निठल्ला, आवारा वो सब। कहतें हैं मैं बदल गया किनारों पर आकर अब।। जो काटते थे मधुर मुस्कान पर भी, वो मुस्कुरातें हैं। जो निचा दिखा-दिखा डाटते थे, वो निचे हैं। बङी बेकद्री से पिटा जाता था जब, अब भूल सब कद्र करते हैं। जो मुश्किल है भूल जाना मेरे लिये, उसे सब भूल ही गये।। आसमान पर पंख फैलाये उङ रहा हूँ अब। जमीन पर रह गये वो देखते हैं सब। मेरी ऊँचाई ज्यादा नहीं पर अहसास हो गया है। बङी बेकद्र करी उन्हें कुछ अहसास हो गया है।। जो गुजर गया जमाना, मैं उसे गुजरा मान लेता हूँ। जो सहे दर्द मैंने उन्हें ठीक हुआ मान लेता हूँ। पर भुले ना जाते मन पर लगे घाव मेरे, जो भूल गये लोग। बङी बेकद्र रही जिन्दगी जो होनी थी कद्र भरी। बस आता रहता यही याद।। -कवितार...

मुझे मुझमें रहने दो / mujhe mujhme rahne do

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मुझे मुझमें रहने दो हो मेरे अपने मुझे महसुस करने दो। बहती रगों के खुन से ना परिचय दो। होने दो वो बेहतरीन जो हो साथ मेरे। जो बीता कल है मेरा मुझे भुल जाने दो। मैं आजकल फिर रहता नहीं खुद में। मुझे मुझ में रहने दो।। कहना चाहूँ बहुत कुछ मुझे कहने दो। रहना चाहूँ अकेला मुझे अकेला रहने दो। सुनना चाहूँ प्यार के शब्द मुझे सुनने दो। जो मिला नहीं अपनापन कभी मुझे वो जीने दो। खिंचो ना वापस अपने जाल में मुझे दुर रहने दो। मैं हूँ नहीं खुद में, मुझे मुझ में रहने दो।। समझाऊँ कैसे-कैसे मैं जीता रहता हूँ। अपने सुने मन को आबाद कहता रहता हूँ। अकेलापन मुझे खाता है उसे समझाने दो। आप लोग जो समझ ना सके कहीं और समझाने दो। भर चुका है मन अब मुझे इसे खाली करने दो। मैं रहता नहीं खुद में आजकल, मुझे मुझ में रहने दो।। कहूगाँ नहीं अब फिर कुछ आगे से। ना पुछुँगा कभी फिर आगे से। सलाह साथ भी अपना अपने पास रहने दो। मैं जी लूँ जरा इतना सा अकेला रहने दो। कहो ना कुछ-कुछ ना समझाओ अब। मैं आजकल विषाद में रहता हूँ। मैं खुद में आ सकुँ इतना कहने दो। मुझे मुझ में रहने दो।। - कवितारानी।

आओ साथ चलें / Aao sath chale

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आओ साथ चलें बङे सहज ही मिल जाता हूँ, भाव नहीं रखता हूँ। कुछ चुनिंदा साथ रखता हूँ, कुछ ही को दिल में रखता हूँ। जानता हूँ मिट जाऊँगा, समय के चक्र में पिस जाऊँगा। फिर भी बेहतर को बढ़ता हूँ, खुशी के लिये लङता हूँ।। बङे सरल हैं भाव मेरे, बङी आसान दुनिया है। बहुत कुछ सपनें हैं, कुछ ही मेरे दिल में हैं। वो जो सजाये रखे हैं, वो गुलदस्ते अब पुराने हैं। कुछ नये फुल चुनें हैं, वो थोङे मतवाले हैं।। आसान नहीं सफर मेरा, इसलिये अकेला चलता हूँ। एक प्यार भरी मुस्कान के लिये, दर-दर घुमता हूँ। वो जो लोग मिले सफर में, दिल की दीवारों पर हैं। कभी आये दिल तक तो, उन सबको दिखाने हैं।। कमजोर नहीं हूँ मैं, बस ऐसा समझा जाता हूँ। मेरे सहज भाव से अक्षर छोङ दिया जाता हूँ। बुरा मानता नहीं किसी का, कौन जग में साथ है। रहा अकेला अब तक जो, जानता हूँ एकान्त ही बसेरा है।। मिले जो सफर में, उनसे ये कहना है। ना मिले मुकाम साथ तो भी, हॅसके साथ चलना है। लिखा भाग्य का कौन मिटाता है, अपना मन साफ है जग भी गाता है। चलो जो साथ तो कुछ बताता हूँ, रहो पास तो साथ मुस्कुराता हूँ।। चलो जो साथ चल सको, कल फिर नया सवेरा है। आये दिन नयी बात ह...

कोमल कलि | komal kali

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कोमल कलि रह दिन की तरह मेरी शुरुआत थी। आज भी वही जिन्दगी की सौगात थी। बस चल ही रहा था अपने काम को। कि दिख गई कोमल कलि सुबह ही। लगा ही जैसे कोई आम ना थी।। सुडौल काया और सौम्यता लिये। अपने काम में व्यस्त वो और हम मिले। अहसास मेरे आने का हुआ उसे भी था। पर गर्व से जीवन लिए उसने देखा ना था। उसकी नित कर्म लय मुझे भा गई।  वो सुबह की मधुरता और वो कलि छा गई।। मेरा दुखी सा चेहरा खिला था। मेरे मन पर पङा सुखा आज गीला था। खोई हुई राह पर में मंजिल को पहुँच गया। आज कुछ क्षण देख मधुरता मन खिल गया। लगा जैसे भीषण गर्मी में कुछ बुँदे गीर गई।। एक अच्छी शुरुआत और दिन अच्छा। काम में व्यस्त रहा मन लगा अच्छा। जानता हूँ फुलों की उम्र दिन से ज्यादा नहीं होती। यहीं सोंच की फिर दिखे तो देंखेगे और नहीं जाती। जो मन की खुशी थी वो जी ली उसी क्षण को। धन्यवाद ईश्वर का और उस कलि का जो थी सुबह को। मैं रत फिर अपनी धुन में, वो कहीं अपनी धुन में।। -कवितारानी।

देख राहों को | dekh raho ko

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देख राहों को फुल देखुँ मैं, देखुँ पत्तो को। धुप देखुँ मैं देखुँ तारों को। कितनी निराली है ये दुनिया, दुनिया देखुँ जो। सुन मुसाफिर फिर मैं कहता जो। अपनी धुन मैं चल पर देख ले राहों को। कहीं छाँव घनी, कहीं देख तङागो को। चमकती धुप में देख-देख रेत के पहाङो को। जाना है तो छा भले पर निहार ले राहों को। कहीं है ढेर मिट्टी का कहीं ऊँचे है पर्वत।  कहीं है घाँस की राह कहीं है पत्थर जो। पानी की आयी राह, रूक खैल राहों को। जाना है दुर राही देख ले राहों को। मस्त है गाँव के सुन ले इनके गानो को। पहनावा है अनमोल मोल ना लगे राहियों को। कुछ पल रुक रहा तो सोंच ना काँटो को। निकल गया दुर अब तो सोंच ना गुजरे लोगो को। रहने दे पत्थर की ठोकर को रख अनुभवों को। पग-पग बदले रंग धरा-तु देख राहों राहों को। जाना अभी बहुत दुर लगा मन राहों को। कोई बने साथी ले चल साथ लोगों को। अच्छा लगे तो सुन चुन ले खास बाहों को। ले कोई बोझ रख बस ओज वालों को। जो रहे भेद में उसे रख भेद वालों को। जाना है दूर तक तो चल मौज में, राहो को। मौज में चल ऐ राही देख दिखे जो राहों को।। -कवितारानी।

मैं भ्रमर | main bramar

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मैं भ्रमर  काला कलुटा, मन मैला, मैं छोर कहाँ रूकता। कभी इस फुल, कभी उस फूल एक पर कहाँ टिकता। दोष मुझ पर होते सारे, लोग कहते फुल हारे। मैं भ्रमर मंडराता, मन ही मन अभागा कहलाता।। मौज कहे जग मेरा, ओज बस पल भर का। फूल ना शरण देता, भूखा रखता तो उङता। मैं हर बाग भाग-भाग कर चरता रहता। मैं भ्रमर भ्रम में रहता अपनी हर फुल को कहता।। कलियाँ होती इठलाती, फुल बन इतराती। रस जरा सा पाकर ही, गर्व से सिर ऊँचा उठाती। श्रृंगार देख-देख खुबसुरती, चुन ली जाती सुंदरता सारी। मैं भ्रमर मद का प्यासा-प्यासा ही रहता मंडराता।। कुछ फूल खिलते मदमस्त होते, हवा में खुद मौज करते। धूप सहते हवा सहते, भ्रमर को बैठने ना देते। शाम होती होती मुर्झाते है, एक पल सुबह को पछताते हैं। मैं भ्रमर भुखा कुछ ना कहता, जो मिलता उसे लेता।। देख तितलियाँ खिंचा जाता, नव फुल पर मोहित होता हूँ। सुन आवाज फुल लुट जाते, मेरे काले रंग से दूर जाते हैं। रंग बिरंगी तितलियाँ रहती और रहते फुलों के प्यारे। मैं भ्रमर वन को जाता रह अकेले जग को गाता।। मैं भ्रमर प्यासा का प्यासा, बचे रस को चख आता। रहता अपनी धुन में ही, कहता कभी तो खुद से ही।। -कवितारान...

तू ना समझे | tu na samjhe

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  तू ना समझे कब तक देखूँ रास्ता, कब तक तुझे देखूँ। ना दिखती तू कहीं, ना नजर है मिलती।। कब तक सुनूँ तुझको, कब तक पास रखूँ। ना मिलती कभी मुझको, ना हाथ बढ़ाती हो।। तेरी चाहतों का सिला मिल गया है। तू नहीं मेरा ये समझ आ गया है।। दूर ही रहूँ तुझसे यही भला है। तू नहीं मेरा यही समझ आ रहा है।। कब तक इंतजार करता रहूँ मैं, कब तक तुझे पढ़ता रहूँ। ना कभी तू आई मिलने, ना समझ तु आ रही है।। कब तक सपने सजाऊँ, कब तक आस रखुँ। ना नींद उङती मेरी, ना इच्छा पूरी होती।। कब तक मनुहार करूँ, कब तक मनाऊँ मैं। ना तू समझ पाती कभी, ना मैं मना पाऊँ।। जितने थे दिन साथ, पूरे हुए हैं। तू अपनी राह चल, मुझे अपनी राह रहने दे।। रह तू खुश अपनी जिन्दगी में। रह लूँगा मैं अपनी खुशी में।। -कवितारानी।

कसौटी जिन्दगी में | kasoti jindagi mein

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कसौटी जिन्दगी में कसौटी है जिन्दगी की, जिन्दगी की कमी है। मिला मुझे कुछ-कुछ की गमी है।। चाहा मैंने जिसे वो मिला किसी ओर को। किसी और की चाहत मुझको मिली।। रही कमी जीने में जिसकी कमी है। रह गई प्यास बाकि यही गमी है।। तेरी चाहतों की लगी झङी है, जब देखुँ मुङकर मैं। वहीं तू खङी है। रही जिन्दगी में मेरे कमी है, कसौटी जिन्दगी की ये। जिन्दगी की कमी है।। छोङ पिछे जग वो आगे बङ आया मैं। यादों को भुलाते-भुलाते भागा चला आया। आयी ना खुशियाँ यही एक कमी है। मिली ना चाहत मेरी यही एक गमी है।। मेरी जिन्दगी की ये कैसी घङी है। चाहा जिसे मन से वो दूर खङे हैं। रही जिन्दगी मेरे बन के तू कमी है। मिलकर रह ना पाया साथ तेरे यही गमी है।। कसौटी जिन्दगी की, जिन्दगी में कमी है। मिला मुझे कुछ और कुछ और की मुझे गमी है।। बस कसौटी जिन्गी में है।। -कवितारानी।

मेरी शामें | meri shame

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मेरी शामें दिन, दुपहर, शाम मेरी। बसर ना होती ये पहेली। क्या-क्या यत्न प्रयत्न अठखेली। क्या चाह क्या राह मेरी। कट रहे पल और छिन रहे दिन। उम्र का हिसाब नहीं। चाहे जो मन मिला वो खिताब नहीं।। कोशिशें हर पहर बेहतर बनने की। आदतें ले जाते और सपनों की। खिंच लेती दुनिया हसीन। और देखता दुनिया के दिखते सीन।। सब अपने स्वार्थ के गढ़े हैं। अपनी धून में अपने राग पर अङे हैं। याद करते वो जिन्होने कभी याद ना किया। जिन्होने साथ दिया वो तकते रहते हैं। मैं अभी भी रसमय की राह पर। कराह लिये मन चल रहा पर। वो बात नहीं जो सपने में हैं कहीं। मेरी दुपहर में ना रात रात में नींद कहीं। वही दौङ सुबह की। वही शाम की तन्हाई भी। कसर ना होती पूरी कभी। बसर ना होती पहेली अभी। मैं वैसे बेहतर जी रहा हूँ। पर आज भी गम पी रहा हूँ। मेरी शामें गुजरी है कभी। आज कल कटती है मुश्किल से ही।। -कवितारानी।

खुद से नाराज हो जाऊँ | Khud se naraz ho jau

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खुद से नाराज हो जाऊँ मैं सोंचता हूँ मैं आज खुद से नाराज हो जाऊँ। कहूँ ना किसी से ना किसी को समझाऊँ। एकान्त में बैठ रूठा सा हो जाऊँ। मनाऊँ ना खूद को ना किसी को बताऊँ। सोंचता हूँ आज नाराज ही रह जाऊँ।। बहुत खूश हूँ बाहर के जग को बताऊँ। कोई चाहे ना दिल से मैं सबको चाहूँ। सुने ना कोई मेरी मैं सबकी सुनता जाऊँ। अकेले में बैठ फिर से अपनी गाऊँ। सोंचता हूँ ऐसे ना बदलूगाँ।  क्यों ना खुद से नाराज हो जाऊँ।। जानता हूँ फिर कोई नहीं मनायेगा। पता चले तो भी कोई पास ना आयेगा। दुखी सा चेहरा लेकर जाऊँ तो भी कोई साथ ना आयेगा। जानता हूँ यही सोंच थोङा घबराऊँ। पर कुछ तो मन फिर सच्चे जग से लगाऊँ। सोंचता हूँ क्यों ना आजमाऊँ। मन करता है आज खुद से नाराज हो जाऊँ।। कान्त हूँ एकान्त को फिर पाऊँ। शांत था अशांत को दूर कर जाऊँ। सह लूँ दर्द थोङा-थोङा खूद समझ जाऊँ। कुछ अच्छा होगा सोंचकर आज ये आजमाऊँ। सोंचता हूँ आज खुद से नाराज हो जाऊँ।। -कवितारानी।

स्व उल्लेखनीय हो | swa ullekhit ho

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स्व उल्लेखनीय हो  हो खुबसुरत यही खुब है। शब्दों से परिचय ना हो। चाँद चाँदनी से चमकता। महक की जरूरत ना हो।। हो बिसाद यही साज है। सुरो से परिचय ना हो। रवि किरणों से रोशन। स्वर्ग की आभा ना हो।। हो बेमिसाल यही मिसाल है। सालों से गिनती ना हो। फुल ताजगी से भरा। खुशबु की पूर्ति ना हो।। हो सुरीली यही गीत है। संगीत से परिचय ना हो। अप्सरा रूप से भरी। नृत्य की जरूरत ना हो।। हो गार्गी यही खुब है। ज्ञान से बखान ना हो। वेद ज्ञान से सुजता। व्याख्या की जरूरत ना हो।। हो अद्भूत यही खुब है। दर्शकों की जरूरत ना हो। प्रियसी प्रेम से पावन। प्रेम बखान की जरूरत ना हो।। -कवितारानी।

शिकायत है | shikayat hai

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  शिकायत है मेरे लब्ज अधूरे रह जाते है। और मन के भाव अनछुए रह जाते है। तुम तो अपनी बातें कहला लेती हो। और मेरी एक भी ना सुनती हो। तुम्हें जो बोलना होता बोल देती हो। और जब मुझे बोलना होता है टोक देती हो। कोई काम या मन का बहाना बनाती हो। बस मेरी बारी में ही चली जाती हो।। तुम्हें जो देखना होता है देखती हो। मेरी इच्छा होती वो देखने से रोकती हो। मेरे मन के भाव अधूरे रह जाते हैं। ऐसे हर बार मेरे काम भी अधूरे रह जाते है। मन रूठ जाता है रोज मन में रखकर। और जब तुम्हें सुनाता हूँ तुम नहीं सुनती हो। ऐ जिन्दगी बहुत शिकायतें है तुमसे।। पर बहुत प्यारी हो तो नहीं करते। छोङ नहीं सकते जानती हो। तभी तो अनदेखा करके रखती हो। पर फिर भी मेरे मन में दबी रही। और जो कही ना गई वो सब बाकि है। शिकायतें है।। -कवितारनी । 

जिन्दगी तु | zindagi tu

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  जिन्दगी तु  तुम हो तो साँसे है, धड़कन है मुझमें।  तुम हो तो बातें है, नींद है रातों में।  तुम हो तो मुस्कान है, खुशी है मुझमें।  तुम हो तो दिखता सवेरा और दिन का पहरा । तुम में ही तो अक्ष है मेरा ठहरा। जाऊँ कहाँ जाऊँ छोङ तुझे। तुझ बिन रह पाऊँ ना जग में।  तुम बिन चलता ना मेरा समय का पहरा। तुझ से ही उम्र का समय मेरा ठहरा। तुम हो तो प्रेम है रस है मुझमें।  तुम हो तो प्यास है, बुख है मुझमें।  तुम हो तो रब है, सब है पास में।  तुम हो तो मंजिल है, और कई रास्ते।  तुझ बिन बढ़ पाऊँ ना एक शब्द आगे। तुझ बिन मेरी नींद ना खुलती। सपने आते ना कोई आती। तुझसे ही रोशन है अंधेरा मेरा संसार।  मिला क्या ना मिला सब तुझसे अहसास। तू बङी खास है मेरी प्यास है। तू मेरी ख्वाहिशों में पहले। मेरी रूह पर काया पर तेरे पहरे। तू मेरी जान है तू मेरी दुनिया।  तू ही खुदाया, तू ही दिया। जिन्दगी तू मेरी माया और है काया। तू ही मेरी जान है। जिन्दगी तू मेरी पहचान है।। -कवितारानी।

जिन्दगी मुझे बता | zindagi mujhe bta

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जिन्दगी मुझे बता    ऐ जिन्दगी तु ही बता, किसे मन लगाऊँ मैं।  मेरे अथक प्रयास को सोचूँ,  या सोचूँ उसने गुजरते जमाने की । मुझे समझ  ऐ जिन्दगी  किसकी सुनूँ मैं बातें? मेरे अनाथ जीवन के संबंधियों का, या साथी जो रोज पराया करते उनकी । किसे कहूँ हाल मन के बता, किसकी सुनूँ ये बता, मेरे जीवन के रह रहे अजनबियों की,  या जो वापस मिलेंगे उन परायों की । मुझे दिखा मेरे भविष्य  ऐ जिन्दगी मुझे दिखा, मेरे खास रहें तो कौन खास, कौन जायेंगे मेरे जीवन के साथ।  किसको अपना कहूँ  किसको मानू अपना यहाँ,  मेरे रहे पास उन दोखे देने वालों को , या मेरे दर्द ना समझने वाले लोगों को । मुझे कुछ समझ नहीं  नहीं कोई आस जिंदगी,  क्या है मेरे पास, क्या रहेगा मेरे पास । ऐ जिन्दगी मुझे बता,  कैसे मन जीत पाऊँ मुझे बता ।। kavitarani1  252