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खामोशी | khamoshi

खामोशी  मुझे खोमोशियाँ जगाती है । याद नहीं कब शांत जगह रहा मैं,  पता नहीं कहाँ गया था मैं । शौर में ही दिन गुजरें है । मैं शांति में नहीं रहा हूँ । शायद इसीलिए शांति अन्दर से खाती है । खामोशियाँ डराती है । कोई बोलता तक पंसद ना आता, शौर मेरे समय को खाता, चिल्लाहटें आस-पास रही है,  मेरे आस-पास खामोशी नहीं रही है । इसीलिए आदत नहीं है । खामोशी घबराहट लगातार है । पर शांति की तलाश में था मैं । और शांति में जीना चाहता था मैं । आगे बढ़ने के लिये शांत होना जरूरी है । मुझे इसकी आदत जरूरी है । मुझे ख्वामोशी जगाये रखे । शांत कर आगे बढ़ये रखे । इस नयी जगह का मैं आदी होऊँ । ध्यान लगाऊं आगे बढूँ । मुझे खामोशी की जरूरत है । खामोशी मुझे जगाती है ।। Kavitarani1  58

मोहब्बत को फुर्सत की जरूरत है | mohabbat ko fursat ki jarurat hai

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मोहब्बत को फुर्सत की जरूरत है  उल्फत-ए-राज कई दफन है । मोहब्बत को फुर्सत की जरूरत है । गुल है गुलिस्तान में तो हैरान जग है । नजर ढुंढती गुल को गुलिस्तान की जरूरत है । नशा चाहिये मदमय होने को । मय की, मयखाने की, राहगीर को तलाश है । फिक्र-ए-उम्र व गुजरते जमाने की । हुस्न पर समय और वक्त की जरूरत है । अरसा बित गया नूर-ए-दीदार को । सुकून-ए-चाहत को अदाओं की जरूरत है । दर-बदर भटकते मन को जरूरत है । बाहों के कोमल हार की जरूरत है । अश्को के मोती सस्ते बहुत । मोतियों के हार को जौहरी की तलाश है । शुष्क हुई गालों की लाली वक्त के असर से । रह गई कसर पूरी करनी है  । टुट कर आइना अब चेहरा दिखता कई । हर हुस्न की तालिम और अल्फाज समझने की जरूरत है  । यूँ कई परियाँ जन्नत से निकली है हमारे लिये । पर नूरं-ए-फिदा मन को एक की जरूरत है  । हिम्मत कर पास जाये आग के । दूरी से तप रहे अब जलने की कसमकस है । बात दफन है गुल से गुफ्तगु के लिए । मोहब्बत से रूह जिन्दा करने की जरूरत है  । उल्फ़त-ए-राज कई सारे है । एक दिलदार के दीदार की जरूरत  । है हुस्न सब ओर दिखता । मोहब्बत को फुर्सत की जरूरत ...

बातें हो जाने दो | Batein ho jane do

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  बातें हो जाने दो  बातें ही तो है, हो जाने दो । कुछ ही ख़्वाहिशें है, पूरी करने दो । मिलते नही कभी ऐसे हम, सपनों में साथ रहने दो । जो गया गुजर वो समय भूल जाने दो । बातें ही तो है, हो जाने दो ।। कट रही है घडियाँ, जिन्दगी भी । बट रही है खुशियाँ, और कमियाँ भी । गम के सागर में गोते रोज लगातें है । जो है मन में कह देने दो । बातें ही तो है हो जाने दो  ।। वो ख्वाबों का शहर, अनदेखा रह जाये । बगंले, कारें और आराम रह जाये । मेरे काम और काम के फुर्सत के पल साथ गुजारने दो  । पास नहीं हो फोन से बताने दो । बातें ही तो है हो जाने दो । मन की बाहर आ जाने दो । सब्र के फल मिलने दो । अपने हाल सुनाने तो दो । मिलना ना हो कोई बात नहीं । बातें ही तो है, हो जाने दो ।। कुछ ही ख़्वाहिशें है, पूरी करने दो । मिलना मुमकीन होता नहीं, तो कहने दो । बातें ही तो है, हो जाने दो ।। Kavitarani1  56

मैं अभागा | main abhaga

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मैं अभागा  जग में भागा - भागा फिरता हूँ । मैं अभागा - अपने भाग से फिरता हूँ ।। ठोर तलाशता, मैं जागता और सोता हूँ । अपनी उम्मीदों को समेटता, मैं मिटता और गाता हूँ ।। मोह का धागा - धागा बुनता हूँ । मैं अभागा - अपने भाग्य से लड़ता हूँ ।। छोर घूमता मैं, उस ओर घूमता मैं । अपनी मंजिल का पता पूछता रहता मैं ।। मन का मारा, बेसहारा फिरता हूँ । मैं हारा, विजय पथ की पूछता हूँ ।। एक अधूरा बनना चाहूँ पूरा, मैं जग घूमता हूँ । अपनी अमर कहानी लिखने को मैं ढोलता रहता हूँ ।। मायाजाल से दूर रहता, खुद मन जाल में उलझता हूँ । अपनी कथनी पूरी करने को, मैं कर्म पथ पर चलता हूँ ।। मैं अनाथ, अपना नाथ खोजता हूँ । साथ मिले मन का बस यही कोशिश करता हूँ ।। इस जन - कभी उस जन मैं चलता रहता हूँ । मन की आवाज के दबाता मैं आधी राह चलता हूँ ।। जग का भागा, मैं अभागा फिरता हूँ । अपनी मंजिल की तलाश को चलता रहता हूँ ।। Kavitarani1  54

जीवन साथी | Jivan sathi

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जीवन साथी  तुम आये नहीं अब तक, ओ जीवन साथी मेरे । क्यों आये नहीं अब तक ? कब से मैं, बैठा रूका तुम्हारे लिये । कब से मैं, राह तखता तुम्हारे लिये । मन में छुपाया हूँ प्यार बहुत सारा ।। मन में आने नहीं दिया कोई,  कोई बनाया ना सहारा । मेरा सहारा बनों तुम,  कब से राह निहारूँ मैं ? पूछूँ जग से, क्यों आये नहीं तुम ? तुम आये नहीं अब तक, ओ जीवन साथी मेरे । कब से रोज तकता मैं सवेरे । प्रेम का सागर भर - भर छलकता । प्रेम का बना गुड्डा - गुड़िया को तकता । मिट्टी का बना नम ही रहता । सुखी जाये मिट्टी अब, नम तु कर जा । कब से मैं बैठा रूका तुम्हारे लिये । आओ साजना बात करें बैठे साथ । रह गई जिन्दगी, रहते उदास । मुस्कान बन आओ, मन पर छाओ आज । मेरी दुनिया बन, मुझको भाओ आज । इंतजार में कट गई उमरिया । दिन कटे, रात कटी, भौर-शाम कटी हाँ । तुम आये नहीं अब तक, ओ जीवन साथी मेरे । क्यों आयें नहीं अब तक  ।। Kavitarani1  53

आयेगी खुशियाँ | Aayegi khushiyan

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आयेगी खुशियाँ  आयेगी खुशियाँ, खुशियों की राह सजाता मैं । जैसे भी मिले जिन्दगी, जिन्दगी जीता मैं । ख्वाबों की गलियों में, घर बनाता मैं । मृगतृष्णा से जाके प्यास में ऐसा,  जिसको कहूँ मैं जीवन है कैसा । कोई नहीं है साथ में ऐसा,  जिसके गोद सर रख सोऊ वैसा । मिलेगा कहीं कोई साथी मन का,  मन मेरा देख रहा सपना । आयेगी खुशियाँ, राह सजाता मैं । गम को भूलाके बस खुशियाँ गाता मैं । कोई कमी है, जो रोके रस्ता मेरा । कोई कमी है, जो रोके रहते हॅसकर जीना । दुखों के झरने मिले करते गीला । आयेगी खुशियाँ, राह सजाता हूँ । अपने प्यार को पाने के ख्वाब जगाता हूँ । जाती जिन्दगानी, कटती जवानी, उम्र का बढ़ना, वक्त गुजरना, जाती यादें सारी, जाते ख्वाब, टुटते नींद मेरी, टुटती उम्मीद,  सोंचने के करते, होना क्या है खुब, खुब मैं सोंचता खुशियों की, याद आती, यादें पुरानी । आयेगी खुशियाँ,  खुशियों की राह सजाता मैं  । जो भी मिले हॅस के गले लगाता मैं । आयेगी खुशियाँ  ।। Kavitarani1  52

कब आओगे मित मेरे | kab aoge mit mere

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कब आओगी मित मेरे  जेठ गया तपते - तपते, आषाढ़ सुना बिता, बित है कोरा सावन, बित गये दिन-रेना, बिते दिन रेना । कितने सावन बिते, कितने दिन रिते । कितने महिने छुटे, कितने बरस जीते । अब यादों के सहारे जीना हुआ मुश्किल । जीना हुआ मुश्किल । कब आओगे,  मेरे मित तुम कब आओगे । गिन - गिन काटे दिन अब,  कब आओगे मित मेरे । कहाँ से लाऊँ सपने, कहाँ से लाऊँ यादे मैं । सुखे पतझड़ के गिरते मेरे आँसु से सुखे । सुख गई है बातें अब याद नहीं कोई यादें । अब आओ तुम तो समझ सकूँ । कुछ दिन - साल है जो जी सकूँ । मैं पूँछू इस हवा से, कहाँ है मित मेरा रे । कब आओगे मित मेरे । कब आओगे मित मेरे ।। Kavitarani1  302

मैं मन का मारा | Main man ka mara

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मैं मन का मारा  एक एकान्त का लेकर सहारा । बन रवि फिरूँ मारा - मारा । था कभी जो मन आवारा । लगता है जैसे अब है हारा ।। हाय लगे कभी लगे अभागा । बोझ बेवजह लगता सारा । कभी ठोकर जग पग - पग देता आ रहा । लगे कभी मैं मन का मारा ।। नित कर्म का मैं मारा । लगा रहता पुरा दिन सारा । कुछ मन में सोंचा ना जा रहा । बस समय सा चलता जा रहा ।। है अधुरा अभागा भाग्य का । जग चतुर, मन मेरा नादान रहा । नित नियम में चलता जा रहा । बस मन का मैं मरता जा रहा ।। शांत साँझ मध्यम हवा । मन ढुंढे जग दवा । जग जब औझल करे जा रहा । मन पर बोझ बढ़ता जा रहा ।। है रवि अथक पथ पर जाता । दिन भर मन रथ पर पाता । बोझ भावी जग के उठाता । लगता कभी-कभी मैं मन का मारा ।।  Kavitarani1  300

सबक सिखाना है | sabak sikhana hai

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सबक सिखाना है  मिली है मंजिल,  पर सपनों तक जाना है । जो दे तकलीफ उन्हें सबक सिखाना है । ईरादा कुछ बेहतरीन करने का । भीड़ से अलग होकर नाम कमाना है । परेशानियों से पार पाना है । जो लोग बुरे है उन्हें समझाना है । आसान नहीं सफर मेरा । क्योंकि अब मंजिल नई सफर नया, उद्देश्य शामिल है अपनी ऊँचाई के साथ । जो देते है तकलीफ , जो बेवजह सताते है । जो आलम और लापरवाही करते । जो मजबुरों को लाचार करते । जो लुटतें है लुटे हुए को । जो गरीबों को याचक बनाते है । जो परों को काटने का काम करते । जो असहायों पर दुख मड़ते । उन्हें अपने घुटनों पर लाना है । उन्हे सबक सिखाना है । मुझे उस औहदे तक जाना है । मुझे उस पद को पाना है । मुझे उन सबको सुधारना है । खुद को मजबुत करना है । कुछ लोगो को सबक सिखाना है ।। Kavitarani1  299

शिखर पर | Shikhar par

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शिखर पर  श्रेष्टता के शिखर को त्याग कई । राह मुश्किल बड़ी,  दिक्कतें आम कई । शिखर पर जाकर सुविधायें कई । रुक कर रहना शिखर पर,  आसान नहीं । मानवता के मार्ग में उपाय जीने के कई, सफलताओं के आयाम कई । मिले आसान कुछ,  सबकी सोंच रहती यही । चलते रहने में समझ मेरी,  रूकना मेरी फितरत नहीं । एक जीवन, एक सार,  मिले मंजिल ऊँचाई भरी । पाना है शिखर बस,  अब जीने की राह यही । जानता हूँ शिखर को पाने हेतु त्याग कई । और राह पर आगे भी मुश्किल कई । Kavitarani1  297

ये शाम | Ye shaam

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ये शाम  पर्वत स्थिर अपनी जगह  पर, आबु पर छाई घटायें बहुत हैं । गर्जन करते बादल पर्वत शीर्ष को छुपाते, मैं परित्यक्ता के गाँव की छत पर बैठा हूँ । लग रहा जैसे सुर्यास्त आज नहीं हो रहा ,  और अभी तो ये आषाढ़ ही चल रहा । मन शांत है, खुश सा है । कोई गम नहीं जीवन में ना कोई दम सा है । सब शांत है, ये शाम शानदार है । बादलों से कुछ बुँदे हल्की हो गीर गई । तन-मन पर शीतलता का माहौल कर गई । बादलों से छायादार मौसम खुशमिज़ाज है। सब देख मन कह रहा है। ये शाम शानदार और माहौल आलीशान है। ये शाम मजेदार है ।। Kavitarani1  29 5

वही गर्मी है | Vahi garmi hai

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वही गर्मी है  फर्श मार्बल का है,  मजबुत मकान है । पंखे नये है,  हवायें दे रहे है । अभी आराम महसुस कर ही रहा था । अभी बचपन को भूल ही रहा था । कि मौसम हुआ महरबान । लगने लगी उमस, बङी गर्मी । और याद आ गया वो जहान । वही गर्मी, वही मकान । वो खेलू की छत,  वो मिट्टी की दीवारें,  वो सीमेंट का उखड़ा फर्श । वो चार पाई,  वो असंग की सुगंध । वो लू के थपेड़े, वो जुगाड़ी पंखे की हवा । वो मेरा आराम करना । बिना शिकायत पढ़ते रहना । ठीक वैसे - जैसे पढ़ रहा अभी । वही गर्मी है । ये वैसे ही गर्मी है । Kavitarani1  290

हम वही सताये हुए रहे | Hum vahi sataye hue rahe

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हम वही सताये हुए रहें  महफिलें विरान, फिर से परेशान,  हम वही गम खाये हुए,  हम वही सताये हुए रहे फिर । वो कल ही मिली थी, जिसकी खुब तारीफें की थी, वो जो लगने लगी ही थी अपनी, फिर हुई अनजान, हम समझ भी ना सके, हम समझ भी ना सके फिर, क्या हुआ गुनाह ? क्या रही बात ? बस रह गये अकेले,  हम फिर से उन्ही में अभी,  वही सताये हुए । गये जो उनका गम नहीं,  इच्छायें जगी बात वही, वही रास्ते अलग हुए,  जो जीवन भर साथ रहने वाले से मिले थे, छोड़ गये हमें कर किसी के लिये कुरबान, हम बैठे यूँ ही गम खाये हुए,  हम वही सताये हुए  ।। Kavitarani1  289

पंछी | Panchhi

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पंछी  है कैद से आजाद,  है खुद में आबाद, घूम रहा पंछी मतवाला, बस वो और उसका है ऊपरवाला,  जानता है सब सब मानता है । है कुछ आसमां में,  जमीन को पहचानता है । है क्या मन में,  क्या उमंग में,  समझ रहा है, कह रहा है,  खुद को, जी रहा है जग को, लगता अभी कुछ कमी है,  जङो ने उसे छोड़ा नहीं है,  टहनियों में भी उलझा है,  है अभी भी अटका कही, पंछी भटका है, अटका कहीं । कहने को आजाद है,  जुल्म से आजाद है , पर पहरेदार कई, लग रहा है, पहरेदार कई । Kavitarani1  286

जैसा तुम कहो / jaisa tum kaho

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  जैसा तुम कहो  प्यार नी होना फिर, बात नी होनी । कहने दे जो तुझको है कहनी । अब वापस में आऊँ और कहूँ बात जो तुम्हें सुननी । जैसे तुम कहो अब वो बात नी होनी । सुन ली बहुत, अब सुननी नहीं । दूर-दूर, रह-रह दूरी ही रखनी । बनायी थी जो बात अब बिगड़ गई । जैसा तुम कहो, अब मुझे नहीं कहनी । सीधी-साधी चल रही, चलने ना दी । मासुमियत मेरी, तेरे दिल में नी गयी । दोस्तों के चक्कर में खोई रही । अच्छे से रहते - रहते बुरी हुई । यही तुम्हें पंसद तो यही सही । जैसे तुम कहो, वैसे ही होनी । अब बात खत्म बस यही कहनी ।। Kavitarani1  285

उड़ने दो / udne do

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उड़ने दो  माना पाला बड़ा प्यार से, रखा हमेशा दुलार से, दर्द से दुर रखा -रखा साथ लाड़ से, अपना उसे अब करने दो, उग आये पंख, तो उड़ने दो । है खुला आसमां सारा, लगता है बड़ा प्यारा, रखा आपने भी इसे प्यार से,  फर्ज निभाया प्यार से,  अब उग आये है पंख इसे, तो ना उन्हे ना व्यर्थ होने दो, चाह है उड़ने की तो उड़ने दो । दुर से वो याद करेगी, मन को भायेगी प्यार करेगी, चाहोगे आप भी,  कभी आये मिले, और कुछ पल साथ रह, वो अपना जीवन जीये, अब हो गई बड़ी आ गये पंख,  अब उसे उड़ने दो । क्या हक हमारा आजादी पर, जो मिला हमें वही आजादी पर, जो है उसका उसे पाने दो, जीवन सघंर्ष हो या बसर जाने दो, है पंख उसके अपने अब, तो अब उसे उसकी मर्जी से,  उड़ने दो ।। Kavitarani1  277 

कहना है तुमसे ही / Kahna hai tumse hi

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कहना है तुमसे ही  मजबुर नहीं आज मैं,  ना दोष कोई रखता हूँ  । कोई जरा सा प्यार से कहे, बस वहीं मैं बसता हूँ ।  है जमाने में लोग कई,  सुनाने को दोस्त कई । पर इस दिल को कहना है तुमसे ही,  साथ रहना और सुनना है तुमसे ही । मुझपे वश नहीं किसी का, और मन मेरे वश में नहीं  । सुखा रेगिस्तान सा जहाँ मेरा, फूलों को रखना हेसियत में नहीं ।   जानता हूँ किस्मत नहीं सहज की, मैं भी कोई अब आम नहीं  । पर दिल जिसको चाहे, उसके लिये मैं कुछ भी नहीं । समझे ना कोई - कोई फर्क नहीं,  समझे बस तु कहना यही । कहना है तुमसे जो कहना , सुनना है तुमसे जो सुनना है । हो हाल कोई,  हो बात कोई,  खुसी तुमसे ही,  गम तुमसे ही,  कहना है तुमसे ही ।। Kavitarani1  275

लड़कियाँ / Ladkiyan

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  लड़कियाँ  बात करती है कुछ दिन ही, मन लगे तब तक ही, मन भर जाने पर गायब हो जाती है । और ज्यादा कहो तो चिढ़ जाती है । समझ जाये की वो क्या चाहती है । कहे तो नाराजगी बताती है ।   शर्माओ तो पागल कहती है । और खुलकर कहो तो ना पसंद की बताती है । हाँ, ये लड़कियाँ अपनी चलाती है । कोई बेहतर हमसे मिल जाये तो । हर बात पर बिगड़ने लगती है । अगर खुद का मन लग रहा हो तो, समय नहीं, व्यस्त हूँ कहती है । मन नहीं लगता तो व्यथा सुनाती है । सुनो उनकी तो प्यार जताती है । प्यार से कहते रहो तो मुखरने लगती है ।  और कुछ ना कहो तो भी, एक समय बाद बिगड़ने लगती है । पर जाती नहीं अगर आप जाने ना दे, और अच्छे दोस्त बनें रहे, आपका लुक मायने रखता है,  और मनोरंजन पर ही इनसे रिश्ता टिकता है । ये बातें मेरे अनुभव की है , कि कैसी हो गई लड़कियाँ आजकल की,  हाँ, ये लड़कियाँ आज कल की । Kavitarani1  273

मेरा विरह | mera virah

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मेरी विरह शांत हवा तुफान बन गयी, लहरें अब विकराल बन गयी, जो दीप जलाये थे ज्योति को, वो ज्वालायें बन गयी । में विक्रान्त रूप लिये बैठा , बिन मिले ही विरह जी बैठा, मेरा एकान्त परेशान है, मेरा दिल हैरान है । किसे कहूँ- कहाँ जाऊँ,  विरह गीत लिखूँ और गाऊँ, अपने मन को समझाऊँ,  मैं कैसे अपना हाल बताऊँ । वो मन मोहकता जलाती है,  मधुर बातें तड़पाती है,  मेरा अकेला मन रूसता है, सब देख मन खिजता है । मैं कैसे एकान्तवासी बन जाऊँ,  भरा इच्छाओं से कैसे अधुरा गाऊँ,  मैं कैसे स्व विरह जी पाऊँ,  मैं कैसे सब बताऊँ  ।। Kavitarani1  271

मैं स्वार्थी नहीं हूँ | main swarthi nhi hun

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  मैं स्वार्थी नहीं हूँ  स्वार्थी नहीं हूँ,  बस अपनी धुन में रहता हूँ,  कोई कहे तो सुन लेता हूँ,  कोई पूछे तो कह देता हूँ,  जो कोई प्यार से देखे हँस देता हूँ,  जो नफ़रत करे, उससे दूर रह लेता हूँ, कुछ अंर्तमुखी हूँ,  कुछ बर्हिमुखी हूँ,  अपनी दुनिया में रहना पसंद मुझे,  मैं स्वार्थी नहीं हूँ  । Kavitarani1  270

हिम्मत है अभी | Himmat hai abhi

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  हिम्मत है अभी  थोड़ा थका सा महसूस करता हूँ । हाँ मैं अकेला महसूस करता  हूँ । एक और पायदान ऊपर हूँ । हाँ मैं पहले से बेहतर हूँ । पर लगता है कभी-कभी निराशा छा जाती है । अब भी मुझे मेरी जिन्दगी की फिक्र सताती है । हाँ सोचता हूँ मेरे कल के बारे में । मैं कोशिश करता हूँ अपने बारे में । अभी भी अच्छे मुकाम की राह में हूँ । हिम्मत है कभी-कभी मैं मंजिल की राह में हूँ । हाँ लगता है एक दिन जीत जाऊँगा । इसी जीवन में लक्ष्य पाऊगाँ । उस ऊँचाई से सबको देखना है । जो रह गये पिछे उन्हें राह दिखानी है । ये मेरी कहानी है । इसे शानदार बनानी है । हिम्मत है अभी । अभी मेरी जंग बाकि है  ।। Kavitarani1  269

मन की | man ki bat

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  मन की... कहीं मन की मन में ना रह जाये । कहीं मन की मन में ना मर जाये । हाँ डरता हूँ,  अब खुलकर कहता हूँ,  थोड़ा चिढ़ा सा रहता हूँ,  मैं विरह सहता हूँ  । कहीं सपनें सपनें ना रह जाये । कहीं अपने मन में ना मर जाये । कहीं अधुरा ही ना रह जाऊँ  । मैं इच्छाओं से डरूँ, कहूँ ना किसी से व्यथा, व्यथा दर्द खुद पी जाऊँ,  हाय ! पीड़ा भारी है  । मन पर लोक भारी है । कहना क्या उम्र जाती है  । मेरे से कितनों की बात निराली है।  ये सोंच के घबराऊँ, कहीं तन का प्यासा ना मर जाऊँ  । हाय में एकान्त ही ना रह जाऊँ  । Kavitarani1  272

सपनों के शहर में | Sapno ke shahar mein

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सपनों के शहर में  सब मेरे अपने है, सारे मेरे सपने पुरे है, हर कोई खास है, जो चाहा वो पास है, प्यार है, बहार है, मौज है,  ओज है, मेरे सपनों के शहर में । किसी से कहना ना पड़ता, कोई ना आपस में लड़ता, जो मिलता अपना, जो सोंचो सब मिलता, ना कोई फरेब है, कोई ना ऐब है, खाओ जितने सेब है, सब कुछ यहाँ सेफ है,  मेरे सपनों के शहर में । हाँ मेरे अपनों के शहर में ।। Kavitarani1  263

मन में क्यों सुखा है | man mein kyun sukha hai

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मन में क्यों सुखा है  बारिश है, सब तर है,  हवा शीतल और नम है, खुश है जीव सारे, खुशहाल है आलम सारा, फिर मन में क्यों सुखा है । हवायें तेज है,  बादलों में वेग है,  पर्वत भी नम है, बाहर बङी उमंग है,  फिर मन में क्यों सुखा है ।   शौर है पशु-पक्षियों का, लोगों की अठखेलियाँ है,  आनंद है मौसम का, तन का भी मौज है,  फिर मन को क्या खोज है । बुँदे बारिश की,  सुगंध है मिट्टी की,  गीत है पवन के, हरीयाली की चादर है, आनंद के सुर है, फिर मन क्यों असुर है । मन में क्यों असुर है । मन में क्यों सुखा है ।। Kavitarani1  261

बेपरवाह है | Bepravah hai

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बेपरवाह  हो बड़ी बेपरवाह तुम । कहती हो क्या । सब समझ आता है मुझे । कुछ कहता नहीं तो क्या । क्या-क्या ना कह पास लाता तुझे । हाँ, ये मेरी कमजोरी है । मिलती नहीं हमजोली है । मिल जाती टोली पर, हटके मिले वो चाहिये मुझे । तुझे परवाह नहीं,  और मुझे इसका गम नहीं । हूँ अकेला, छेला, अपनी जीवन बेला में, मैं रेला, जानता हूँ कब क्या करना है । वश नहीं मन पे, यही एक झमेला है । पर तु जो हो पास, कहती हो अपनी बात, बात में प्यार तो नजर ना आता, आता है प्यार साथ लम्हों पे, और तेरी बेपरवाह जिन्दगी पे । यही तो कुछ खास है, तु बेमिसाल है, पर तू बड़ी बेपरवाह है,  तू लापरवाह है ।। Kavitarani1 259

तुझे परवाह नहीं | Tujhe parvah nhi

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तुझे परवाह नहीं  सुन ! कहता है क्या दिल । ख़्वाहिशों का जहान दिखाऊँ तुझे । आ पास बैठ मेरे, सपनों का महल दिखाऊँ तुझे,  ज्यादा कुछ पास नहीं,  पाया है क्या-क्या खोया,  सुनाऊँ तुझे । हाँ, पता है मुझे,  मुझे नहीं आता रिझाना तुझे,  ना बातें प्यारी, ना प्यार जताना आता मुझे,  तुझे परवाह नहीं, नहीं पता मुझे। चल छोड़ इसे; कुछ और सुनाऊँ तुझे । अपनी मैंने खुब कही, चल सुना अब सुन लू तुझे । क्या चल रहा लाइफ में,  कुछ अपने अंदाज में बताओ मुझे,  हाँ मुझे परवाह है तेरी, तुझे परवाह नही मेरी, इसे छोड़ साथ लम्हे और बताऊँ तुम्हें ।। Kavitarani1  258

भौर का आलम / bhor ka alam

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Click here to see video भौर का आलम  सब भूल - भाल के, अन्तर्मन देखूँ जो । शीतरता, मधुरता, ताजगी, सादगी खोजूँ जो, प्रकृति की गोद में जाके जाऊँ में,  देख इसकी सुंदरता कहूँ,  इसके सिवा और चाहूँ क्या । ये उगता सूरज, नम धरती, हरे पत्ते, ये पक्षियों की आवाजाही और चहचहाहट, पपिहे की आवाज और मोर का यूँ छतों पर नाचना, और मंद-मंद मुस्कान देती ताजगी भरी हवा, कुछ पल प्रकृति की गोद में बेठूँ जो, सब भूल एक सुकून चाँहू जो, अनायास ही सब मिलता है । यहाँ सब फूलों सा खिलता है । शांत मन, शांत तन, शांत हवा में,  सुबह की चाय की सिसकियों में,  कुछ खास नहीं बस मन के शब्द उकेरे है । ऐ जिन्दगी मैंने ये भौर के शब्द कहे है ।। Kavitarani1  257

शाम जरूर होगी | Sham jarur hogi

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Click here to see video शाम जरूर होगी  है धुप तो क्या ?  शाम ना होगी । तेज बारिश है तो क्या ?  बारिश खत्म ना होगी । मिट गई सर्दी और गर्मी भी, क्या रात नहीं होगी । है भ्रम में जग सारा, है भ्रम में जग सारा, धुप है बहुत,  मै सब्र नहीं करता, पर जानता हूँ, शाम जरूर होगी । फिर दिन निकलेगा, फिर नयी उमंग होगी । है उमस बहुत अभी, ये गर्मी एक दिन खत्म जरूर । है धार तेज नदिया की, होगी खत्म बारिश तो, ये दरिया भी पार होगी । तु सब्र कर ऐ पथिक, तु हिम्मत रख है राही, है तेज धुप तो क्या,  शाम नहीं होगी । शाम जरूर होगी ।। Kavitarani1  268

मैं पथिक / main pathik

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  Click here to see video मैं पथिक अशांत, एकांत, अधुरा, निर्जन वन का बसेरा, विचलित, भ्रमित, कसेरा, विरान् मन पर ठहरा, मैं पथिक पथ पर, चलता, दौड़ता और ठहरा । पथ भ्रम, मति भ्रम, भ्रमित जग का पहरा, हठ धर्म, नित कर्म, अथक मन का सहरा, स्थिर प्रज्ञ, होकर अज्ञ, चल रहा मैं पथिक सोंच गहरा । अंधकार, हाहाकार, प्रहार, जीवन भर तन कहता रहा, पीड़ा अपार, डोकर हार, मन कई  बार सहता रहा, जान सार, मान हार, मैं पथिक डर चलता रहा । स्व साहस, स्व स्वांस, स्व अनुयायी, बन खुद का अनुयायी, कर संभाल, पग संभाल, पथ सवांर, बस सहता, बढ़ता रहा, मैं पथिक अपनी मंजिल को बढ़ता और अपनी धुन में चलते रहा ।। Kavitarani1  253

मेरी थी क्या खता / meri thi kya khata

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Click here to see video मेरी थी क्या खता  फिर से सुनाने को कोई नहीं पास । अपनें गम बतानें को आया नहीं कोई रास । फिर तुम्हें ही सुनाता हूँ ऐ जिन्दगी । तुही सुन क्या शिकायत है अपनी बंदगी ।। कहने को फिर खास थी । वो दोस्त जैसी मन की साफ थी । कर दिया काॅल अपनी बताने को । सुन रहा था जब तक था सुनने को । फिर मेरी बारी आयी कहने की । कही खुलकर अपनी ही । बस मान बैठा खास सा उसे । दिल से बता बैठा पास का उसे । मस्ती मजाक ही तो थी । चिढ़ गई और रूठ गई । अब तु ही बता ऐ जिन्दगी । इसमें मेरी क्या खता थी ।। दिलबर मान दिल के हाल सुनाना मुश्किल । अपना जान खिलखिलाना और मुश्किल । लड़ना-झगड़ना आम रहा था और क्या करता । बात ही तो की थी खुलकर और मेरी थी क्या खता ।।   Kavitarani1  249

मैरी जैरी है / meri jerry hai

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   Click here to see video मेरी जैरी है  मस्ती खोर, शैतान है,  अपनी खुशियों से अनजान है,  है तो लड़की ही वो , खुब है और खुबसुरत है, मेरी लाइफ में एक जैरी है । समय साथ आती है,  बीस बरस की हूँ गाती है,  बात करो समझदारों सी तो, जाने क्यूँ मुँह फुला जाती है,  टिकती नहीं जगह एक, ना मन पर ज़रा सा काबु है, बहुत खुब है वो, वो मेरी जैरी है । दौड़ भाग करती रहती है,  बच्चों में खैलती, गिरती है,  दुबली - पतली सी है,  पर साड़ी में अम्मा लगती है,  बहुत मजेदार बोलती है,  आता नहीं ज्यादा पर, शब्दों को बड़ा तोलती है,  कहती है खास कई दोस्तों को,  पर खुद की ही उसे पड़ी रहती है,  अपने घर वालों की लाड़ली है,  जाने कैसे मेरे से आ मिली है,  सुनती है, सुनाती है, लड़ती है, हाँ  ! मेरे पास अभी मेरी जैसी है  ।। Kavitarani1  242