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शिखर पर | Shikhar par

शिखर पर  श्रेष्टता के शिखर को त्याग कई । राह मुश्किल बड़ी,  दिक्कतें आम कई । शीखर पर जाकर सुविधायें कई । रहना शिखर पर रूक कर रहना, आसान नहीं । मानवता के मार्ग में उपाय जीने के कई, सफलताओं के आयाम कई, मिले आसान कुछ,  सबकी सोंच यही । चलते रहने में समझ मेरी, रूकना मेरी फितरत नहीं । एक जीवन, एक सार, मिले मंजिल ऊँचाई भरी । पानी है शिखर चुनौती,  अब जीने की राह यही । जानता हूँ शिखर को पाने हेतु त्याग कई, राह पर आगे भी मुश्किल कई । Kavitarani1  297

ये शाम | Ye shaam

ये शाम  पर्वत स्थिर अपनी जगह  पर, आबु पर छाई घटायें बहुत । गर्जन बादल शीर्ष को छुपाते, में परित्यकता के गाँव की छत पर । सुर्यास्त आज नहीं,  ये आषाढ़ ही चल रहा । मन शांत है, खुश सा है । कोई गम, कोई दम नहीं । सब शांत है, ये शाम है । कुछ बुँदे हल्की हो गीर गई । शीतलता का माहौल कर गई । छायादार मौसम है । सब आलीशान है । ये शाम है । Kavitarani1  29 5

वही गर्मी है | Vahi garmi hai

वही गर्मी है  फर्श मार्बल का है,  मजबुत मकान है । पंखे नये है,  हवायें दे रहे है । अभी आराम महसुस कर ही रहा था । अभी बचपन को भूल ही रहा था । कि मौसम हुआ महरबान । लगने लगी उमस, बङी गर्मी । और याद आ गया वो जहान । वही गर्मी, वही मकान । वो खेलू की छत,  वो मिट्टी की दीवारें,  वो सीमेंट का उखड़ा फर्श । वो चार पाई,  वो असंग की सुगंध । वो लू के थपेड़े, वो जुगाड़ी पंखे की हवा । वो मेरा आराम करना । बिना शिकायत पढ़ते रहना । ठीक वैसे - जैसे पढ़ रहा अभी । वही गर्मी है । ये वैसे ही गर्मी है । Kavitarani1  290

हम वही सताये हुए रहे | Hum vahi sataye hue rahe

हम वही सताये हुए रहें  महफिलें विरान, फिर से परेशान,  हम वही गम खाये हुए,  हम वही सताये हुए रहे फिर । वो कल ही मिली थी, जिसकी खुब तारीफें की थी, वो जो लगने लगी ही थी अपनी, फिर हुई अनजान, हम समझ भी ना सके, हम समझ भी ना सके फिर, क्या हुआ गुनाह ? क्या रही बात ? बस रह गये अकेले,  हम फिर से उन्ही में अभी,  वही सताये हुए । गये जो उनका गम नहीं,  इच्छायें जगी बात वही, वही रास्ते अलग हुए,  जो जीवन भर साथ रहने वाले से मिले थे, छोड़ गये हमें कर किसी के लिये कुरबान, हम बैठे यूँ ही गम खाये हुए,  हम वही सताये हुए  ।। Kavitarani1  289

पंछी | Panchhi

पंछी  है कैद से आजाद,  है खुद में आबाद, घूम रहा पंछी मतवाला, बस वो और उसका है ऊपरवाला,  जानता है सब सब मानता है । है कुछ आसमां में,  जमीन को पहचानता है । है क्या मन में,  क्या उमंग में,  समझ रहा है, कह रहा है,  खुद को, जी रहा है जग को, लगता अभी कुछ कमी है,  जङो ने उसे छोड़ा नहीं है,  टहनियों में भी उलझा है,  है अभी भी अटका कही, पंछी भटका है, अटका कहीं । कहने को आजाद है,  जुल्म से आजाद है , पर पहरेदार कई, लग रहा है, पहरेदार कई । Kavitarani1  286

जैसा तुम कहो / jaisa tum kaho

  जैसा तुम कहो  प्यार नी होना फिर, बात नी होनी । कहने दे जो तुझको है कहनी । अब वापस में आऊँ और कहूँ बात जो तुम्हें सुननी । जैसे तुम कहो अब वो बात नी होनी । सुन ली बहुत, अब सुननी नहीं । दूर-दूर, रह-रह दूरी ही रखनी । बनायी थी जो बात अब बिगड़ गई । जैसा तुम कहो, अब मुझे नहीं कहनी । सीधी-साधी चल रही, चलने ना दी । मासुमियत मेरी, तेरे दिल में नी गयी । दोस्तों के चक्कर में खोई रही । अच्छे से रहते - रहते बुरी हुई । यही तुम्हें पंसद तो यही सही । जैसे तुम कहो, वैसे ही होनी । अब बात खत्म बस यही कहनी ।। Kavitarani1  285

उड़ने दो / udne do

उड़ने दो  माना पाला बड़ा प्यार से, रखा हमेशा दुलार से, दर्द से दुर रखा -रखा साथ लाड़ से, अपना उसे अब करने दो, उग आये पंख, तो उड़ने दो । है खुला आसमां सारा, लगता है बड़ प्यारा, रखा आपने भी इसे प्यार से,  फर्ज निभाया प्यार से,  अब उग आये है पंख इसे, तो ना उन्हे ना व्यर्थ होने दो, चाह है उड़ने की तो उड़ने दो । दुर से वो याद करेगी, मन को भायेगी प्यार करेगी, चाहोगे आप भी,  कभी आये मिले, और कुछ पल साथ रह, वो अपना जीवन जीये, अब हो गई बड़ी आ गये पंख,  अब उसे उड़ने दो । क्या हक हमारा आजादी पर, जो मिला हमें वही आजादी पर, जो है उसका उसे पाने दो, जीवन सघंर्ष हो या बसर जाने दो, है पंख उसके अपने अब, तो अब उसे उसकी मर्जी से,  उड़ने दो ।। Kavitarani1  277 

कहना है तुमसे ही / Kahna hai tumse hi

कहना है तुमसे ही  मजबुर नहीं आज मैं,  ना दोष कोई रखता हूँ  । कोई जरा सा प्यार से कहे, बस वहीं मैं बसता हूँ ।  है जमाने में लोग कई,  सुनाने को दोस्त कई । पर इस दिल को कहना है तुमसे ही,  साथ रहना और सुनना है तुमसे ही । मुझपे वश नहीं किसी का, और मन मेरे वश में नहीं  । सुखा रेगिस्तान सा जहाँ मेरा, फूलों को रखना हेसियत में नहीं ।   जानता हूँ किस्मत नहीं सहज की, मैं भी कोई अब आम नहीं  । पर दिल जिसको चाहे, उसके लिये मैं कुछ भी नहीं । समझे ना कोई - कोई फर्क नहीं,  समझे बस तु कहना यही । कहना है तुमसे जो कहना , सुनना है तुमसे जो सुनना है । हो हाल कोई,  हो बात कोई,  खुसी तुमसे ही,  गम तुमसे ही,  कहना है तुमसे ही ।। Kavitarani1  275

लड़कियाँ / Ladkiyan

  लड़कियाँ  बात करती है कुछ दिन ही, मन लगे तब तक ही, मन भर जाने पर गायब हो जाती है । और ज्यादा कहो तो चिढ़ जाती है । समझ जाये की वो क्या चाहती है । कहे तो नाराजगी बताती है ।   शर्माओ तो पागल कहती है । और खुलकर कहो तो ना पसंद की बताती है । हाँ, ये लड़कियाँ अपनी चलाती है । कोई बेहतर हमसे मिल जाये तो । हर बात पर बिगड़ने लगती है । अगर खुद का मन लग रहा हो तो, समय नहीं, व्यस्त हूँ कहती है । मन नहीं लगता तो व्यथा सुनाती है । सुनो उनकी तो प्यार जताती है । प्यार से कहते रहो तो मुखरने लगती है ।  और कुछ ना कहो तो भी, एक समय बाद बिगड़ने लगती है । पर जाती नहीं अगर आप जाने ना दे, और अच्छे दोस्त बनें रहे, आपका लुक मायने रखता है,  और मनोरंजन पर ही इनसे रिश्ता टिकता है । ये बातें मेरे अनुभव की है , कि कैसी हो गई लड़कियाँ आजकल की,  हाँ, ये लड़कियाँ आज कल की । Kavitarani1  273

मेरा विरह | mera virah

मेरी विरह शांत हवा तुफान बन गयी, लहरें अब विकराल बन गयी, जो दीप जलाये थे ज्योति को, वो ज्वालायें बन गयी । में विक्रान्त रूप लिये बैठा , बिन मिले ही विरह जी बैठा, मेरा एकान्त परेशान है, मेरा दिल हैरान है । किसे कहूँ- कहाँ जाऊँ,  विरह गीत लिखूँ और गाऊँ, अपने मन को समझाऊँ,  मैं कैसे अपना हाल बताऊँ । वो मन मोहकता जलाती है,  मधुर बातें तड़पाती है,  मेरा अकेला मन रूसता है, सब देख मन खिजता है । मैं कैसे एकान्तवासी बन जाऊँ,  भरा इच्छाओं से कैसे अधुरा गाऊँ,  मैं कैसे स्व विरह जी पाऊँ,  मैं कैसे सब बताऊँ  ।। Kavitarani1  271

मैं स्वार्थी नहीं हूँ | main swarthi nhi hun

  मैं स्वार्थी नहीं हूँ  स्वार्थी नहीं हूँ,  बस अपनी धुन में रहता हूँ,  कोई कहे तो सुन लेता हूँ,  कोई पूछे तो कह देता हूँ,  जो कोई प्यार से देखे हँस देता हूँ,  जो नफ़रत करे, उससे दूर रह लेता हूँ, कुछ अंर्तमुखी हूँ,  कुछ बर्हिमुखी हूँ,  अपनी दुनिया में रहना पसंद मुझे,  मैं स्वार्थी नहीं हूँ  । Kavitarani1  270

हिम्मत है अभी | Himmat hai abhi

  हिम्मत है अभी  थोड़ा थका सा महसूस करता हूँ । हाँ मैं अकेला महसूस करता  हूँ । एक और पायदान ऊपर हूँ । हाँ मैं पहले से बेहतर हूँ । पर लगता है कभी-कभी निराशा छा जाती है । अब भी मुझे मेरी जिन्दगी की फिक्र सताती है । हाँ सोचता हूँ मेरे कल के बारे में । मैं कोशिश करता हूँ अपने बारे में । अभी भी अच्छे मुकाम की राह में हूँ । हिम्मत है कभी-कभी मैं मंजिल की राह में हूँ । हाँ लगता है एक दिन जीत जाऊँगा । इसी जीवन में लक्ष्य पाऊगाँ । उस ऊँचाई से सबको देखना है । जो रह गये पिछे उन्हें राह दिखानी है । ये मेरी कहानी है । इसे शानदार बनानी है । हिम्मत है अभी । अभी मेरी जंग बाकि है  ।। Kavitarani1  269

मन की | man ki bat

  मन की... कहीं मन की मन में ना रह जाये । कहीं मन की मन में ना मर जाये । हाँ डरता हूँ,  अब खुलकर कहता हूँ,  थोड़ा चिढ़ा सा रहता हूँ,  मैं विरह सहता हूँ  । कहीं सपनें सपनें ना रह जाये । कहीं अपने मन में ना मर जाये । कहीं अधुरा ही ना रह जाऊँ  । मैं इच्छाओं से डरूँ, कहूँ ना किसी से व्यथा, व्यथा दर्द खुद पी जाऊँ,  हाय ! पीड़ा भारी है  । मन पर लोक भारी है । कहना क्या उम्र जाती है  । मेरे से कितनों की बात निराली है।  ये सोंच के घबराऊँ, कहीं तन का प्यासा ना मर जाऊँ  । हाय में एकान्त ही ना रह जाऊँ  । Kavitarani1  272

सपनों के शहर में | Sapno ke shahar mein

सपनों के शहर में  सब मेरे अपने है, सारे मेरे सपने पुरे है, हर कोई खास है, जो चाहा वो पास है, प्यार है, बहार है, मौज है,  ओज है, मेरे सपनों के शहर में । किसी से कहना ना पड़ता, कोई ना आपस में लड़ता, जो मिलता अपना, जो सोंचो सब मिलता, ना कोई फरेब है, कोई ना ऐब है, खाओ जितने सेब है, सब कुछ यहाँ सेफ है,  मेरे सपनों के शहर में । हाँ मेरे अपनों के शहर में ।। Kavitarani1  263

मन में क्यों सुखा है | man mein kyun sukha hai

मन में क्यों सुखा है  बारिश है, सब तर है,  हवा शीतल और नम है, खुश है जीव सारे, खुशहाल है आलम सारा, फिर मन में क्यों सुखा है । हवायें तेज है,  बादलों में वेग है,  पर्वत भी नम है, बाहर बङी उमंग है,  फिर मन में क्यों सुखा है ।   शौर है पशु-पक्षियों का, लोगों की अठखेलियाँ है,  आनंद है मौसम का, तन का भी मौज है,  फिर मन को क्या खोज है । बुँदे बारिश की,  सुगंध है मिट्टी की,  गीत है पवन के, हरीयाली की चादर है, आनंद के सुर है, फिर मन क्यों असुर है । मन में क्यों असुर है । मन में क्यों सुखा है ।। Kavitarani1  261

बेपरवाह है | Bepravah hai

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बेपरवाह  हो बड़ी बेपरवाह तुम । कहती हो क्या । सब समझ आता है मुझे । कुछ कहता नहीं तो क्या । क्या-क्या ना कह पास लाता तुझे । हाँ, ये मेरी कमजोरी है । मिलती नहीं हमजोली है । मिल जाती टोली पर, हटके मिले वो चाहिये मुझे । तुझे परवाह नहीं,  और मुझे इसका गम नहीं । हूँ अकेला, छेला, अपनी जीवन बेला में, मैं रेला, जानता हूँ कब क्या करना है । वश नहीं मन पे, यही एक झमेला है । पर तु जो हो पास, कहती हो अपनी बात, बात में प्यार तो नजर ना आता, आता है प्यार साथ लम्हों पे, और तेरी बेपरवाह जिन्दगी पे । यही तो कुछ खास है, तु बेमिसाल है, पर तू बड़ी बेपरवाह है,  तू लापरवाह है ।। Kavitarani1 259

तुझे परवाह नहीं | Tujhe parvah nhi

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तुझे परवाह नहीं  सुन ! कहता है क्या दिल । ख़्वाहिशों का जहान दिखाऊँ तुझे । आ पास बैठ मेरे, सपनों का महल दिखाऊँ तुझे,  ज्यादा कुछ पास नहीं,  पाया है क्या-क्या खोया,  सुनाऊँ तुझे । हाँ, पता है मुझे,  मुझे नहीं आता रिझाना तुझे,  ना बातें प्यारी, ना प्यार जताना आता मुझे,  तुझे परवाह नहीं, नहीं पता मुझे। चल छोड़ इसे; कुछ और सुनाऊँ तुझे । अपनी मैंने खुब कही, चल सुना अब सुन लू तुझे । क्या चल रहा लाइफ में,  कुछ अपने अंदाज में बताओ मुझे,  हाँ मुझे परवाह है तेरी, तुझे परवाह नही मेरी, इसे छोड़ साथ लम्हे और बताऊँ तुम्हें ।। Kavitarani1  258

भौर का आलम / bhor ka alam

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भौर का आलम  सब भूल - भाल के, अन्तर्मन देखूँ जो । शीतरता, मधुरता, ताजगी, सादगी खोजूँ जो, प्रकृति की गोद में जाके जाऊँ में,  देख इसकी सुंदरता कहूँ,  इसके सिवा और चाहूँ क्या । ये उगता सूरज, नम धरती, हरे पत्ते, ये पक्षियों की आवाजाही और चहचहाहट, पपिहे की आवाज और मोर का यूँ छतों पर नाचना, और मंद-मंद मुस्कान देती ताजगी भरी हवा, कुछ पल प्रकृति की गोद में बेठूँ जो, सब भूल एक सुकून चाँहू जो, अनायास ही सब मिलता है । यहाँ सब फूलों सा खिलता है । शांत मन, शांत तन, शांत हवा में,  सुबह की चाय की सिसकियों में,  कुछ खास नहीं बस मन के शब्द उकेरे है । ऐ जिन्दगी मैंने ये भौर के शब्द कहे है ।। Kavitarani1  257

शाम जरूर होगी | Sham jarur hogi

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शाम जरूर होगी  है धुप तो क्या ?  शाम ना होगी । तेज बारिश है तो क्या ?  बारिश खत्म ना होगी । मिट गई सर्दी और गर्मी भी, क्या रात नहीं होगी । है भ्रम में जग सारा, है भ्रम में जग सारा, धुप है बहुत,  मै सब्र नहीं करता, पर जानता हूँ, शाम जरूर होगी । फिर दिन निकलेगा, फिर नयी उमंग होगी । है उमस बहुत अभी, ये गर्मी एक दिन खत्म जरूर । है धार तेज नदिया की, होगी खत्म बारिश तो, ये दरिया भी पार होगी । तु सब्र कर ऐ पथिक, तु हिम्मत रख है राही, है तेज धुप तो क्या,  शाम नहीं होगी । शाम जरूर होगी ।। Kavitarani1  268

मैं पथिक / main pathik

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  Click here to see video मैं पथिक अशांत, एकांत, अधुरा, निर्जन वन का बसेरा, विचलित, भ्रमित, कसेरा, विरान् मन पर ठहरा, मैं पथिक पथ पर, चलता, दौड़ता और ठहरा । पथ भ्रम, मति भ्रम, भ्रमित जग का पहरा, हठ धर्म, नित कर्म, अथक मन का सहरा, स्थिर प्रज्ञ, होकर अज्ञ, चल रहा मैं पथिक सोंच गहरा । अंधकार, हाहाकार, प्रहार, जीवन भर तन कहता रहा, पीड़ा अपार, डोकर हार, मन कई  बार सहता रहा, जान सार, मान हार, मैं पथिक डर चलता रहा । स्व साहस, स्व स्वांस, स्व अनुयायी, बन खुद का अनुयायी, कर संभाल, पग संभाल, पथ सवांर, बस सहता, बढ़ता रहा, मैं पथिक अपनी मंजिल को बढ़ता और अपनी धुन में चलते रहा ।। Kavitarani1  253

मेरी थी क्या खता / meri thi kya khata

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Click here to see video मेरी थी क्या खता  फिर से सुनाने को कोई नहीं पास । अपनें गम बतानें को आया नहीं कोई रास । फिर तुम्हें ही सुनाता हूँ ऐ जिन्दगी । तुही सुन क्या शिकायत है अपनी बंदगी ।। कहने को फिर खास थी । वो दोस्त जैसी मन की साफ थी । कर दिया काॅल अपनी बताने को । सुन रहा था जब तक था सुनने को । फिर मेरी बारी आयी कहने की । कही खुलकर अपनी ही । बस मान बैठा खास सा उसे । दिल से बता बैठा पास का उसे । मस्ती मजाक ही तो थी । चिढ़ गई और रूठ गई । अब तु ही बता ऐ जिन्दगी । इसमें मेरी क्या खता थी ।। दिलबर मान दिल के हाल सुनाना मुश्किल । अपना जान खिलखिलाना और मुश्किल । लड़ना-झगड़ना आम रहा था और क्या करता । बात ही तो की थी खुलकर और मेरी थी क्या खता ।।   Kavitarani1  249

मैरी जैरी है / meri jerry hai

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   Click here to see video मेरी जैरी है  मस्ती खोर, शैतान है,  अपनी खुशियों से अनजान है,  है तो लड़की ही वो , खुब है और खुबसुरत है, मेरी लाइफ में एक जैरी है । समय साथ आती है,  बीस बरस की हूँ गाती है,  बात करो समझदारों सी तो, जाने क्यूँ मुँह फुला जाती है,  टिकती नहीं जगह एक, ना मन पर ज़रा सा काबु है, बहुत खुब है वो, वो मेरी जैरी है । दौड़ भाग करती रहती है,  बच्चों में खैलती, गिरती है,  दुबली - पतली सी है,  पर साड़ी में अम्मा लगती है,  बहुत मजेदार बोलती है,  आता नहीं ज्यादा पर, शब्दों को बड़ा तोलती है,  कहती है खास कई दोस्तों को,  पर खुद की ही उसे पड़ी रहती है,  अपने घर वालों की लाड़ली है,  जाने कैसे मेरे से आ मिली है,  सुनती है, सुनाती है, लड़ती है, हाँ  ! मेरे पास अभी मेरी जैसी है  ।। Kavitarani1  242