संदेश

जनवरी, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जाती उम्र / Jati umr

चित्र
Jati umr - video dekhe   जाती उम्र  बीत गये दिन अल्हड़, दुपहर बाकि है । साँझ की फिक्र सताती, रात डराती है । ऊझली किरण पूरब, पश्चिम को जाती है । चढ़ती दुपहर धूप, दिन बताती है ।। चाँदनी की चौखट, तारे गिनाती है । भौर की सुध खोई, रात जगाती है । अल्हड़ जवानी खाती, उम्र कटती जाती है । लिखती कहानी कोरी, कलम घटती जाती है ।। भौर का तारा आता, राह दिखाता जाता । जाता अँधेरा कहीं, कुछ समझ ना आता । मृगतृष्णा में खोया, कृष्ण अकेला कोई । समय की बेला में, अंखियाँ जो रोई ।। बीत गया अँगना, खैल पुराने बीते । गाँव - चौखट बदली, मन के सब रीते । रीत पुरानी बदली, मन भी बदला है । तन का प्यासा सावन, बरखा पे अटका है ।। महक सुहानी बगीया, दुर कहीं है । खींच रही है खुशब, मन कहीं है । साँझ का मारा, रात से डरता है  । मन बावरा अकेला, भौर से चिढ़ता है ।। कट गया बचपन, यौवन बाकि है । उम्र की चिंता खाती, जरा डराती है ।  जौश जवानी आती, कभी जाती है । ऊजला रूप लाती, कभी चिढ़ाती ।। आशाएँ जगाती - बढ़ती, मिटती जाती है । नई उम्मीद लेके, जिन्दगी कटती जाती है ।। Kavitarani1  13

सुन मेरी सुन | Sun meri sun

चित्र
सुन मेरी सुन - विडिओ देखे  सुन मेरी सुन  सुन बावरी सुन, मैं कहता हूँ इतना तुझे चुन। कोई ओर पर मन नहीं आता,  अब मैं क्या करूँ की मैं तुझे नहीं भाता । मेरी आदत खराब तुझे मान बैढता अपना । बातों -बातों में सुनाता सपना अपना । सपनें में तुम कल भी आई, अभी जैसे ही चिढ़ी और इतराई । अब क्या कहूँ तेरे नखरे भारी, कोई नहीं मेरा यह लाचारी । बैठ पास दुर काॅल करती, फिलींग बताओ या हॅसी छुड़ाओ, तुम बस चिढ़ती । अब क्या करे इसपे तुम ही बताओ। छोङ सब अभी बस मेरी सुन, सुन, मेरी सुन । राहें मुश्किल है, बस मेरी राह तु चुन। हो रही सुबह या शाम, चढ़ रहा दिन जिन्दगी बन रही आम, ना दाम कर, ना कर मोल, मेरे सच्चे अहसास को चुन, मेरी सुन, मेरी सुन  । Kavitarani1  12

बावरी रैना | Bavari raina

चित्र
बावरी रैना - विडिओ देखे बावरी रैना   ओ बावरी रैना, ढुब जा तू। ओ बावरी रैना, ढुब जा तू। रोशनी ढुबी दिन ढल गया है, चाँदनी गयी मावस चढ़ गया है। चढ़ गयी है नींदिया माथे। माथे बिंदिया अढ़ गई है। रुकी जाये सांसे, जो तू चल रही है।। ओ बावरी रैना, ढूब जा तू। सो जाये नैना, जो ढूब जा तू। बिती विभावरी जाग री मैं सोते जागते, करवटों में कट रही रात ताकते। तके जाँऊ रैना, जागे जो तू। चली जा बावरी, ढूब जा तू। संध्या ढूबी वैसे ढूब जा तू। ओ बावरी रैना, ढूब जा तू।। वैरी पिया ने अँखिया खोली, माथे बिंदिया लायी, ओढ़ी माथे। साथ है ना कोई, नैना रोते। रोती जाये अंखिया, रतिया निहारे। सितारों की सेज सजाये दिन सा रात कटे। ढुब गया है चाँद, तू ढुब जा रे। भौर आने दे, तू भी जा रे। भौर आने दे, तू भी जा रे। जा ढुब जा रतियाँ भौर बुलाये। ओ बावरी रैना, तू ढुब जा रे।। - kavitarani1 

साल मेरे | Saal mere

चित्र
साल मेरे : कविता का विडिओ देखने के लिए यहाँ दबायें   साल मेरे  घटते हैं या बढ़ते हैं । ये साल कैसे गिनते हैं । मैं रोज - रोज कर दिन गिनूं । और महिनों में साल चुनूँ ।। गिनने से होता क्या । पता नहीं उम्र घटती है या बढ़ती । सारे एक - एक कर इकत्तीस हुए । साल जीवन के पार तीस हुए ।। कैसे इनका बखान करूँ । मैं साल घटाऊँ या जोड़ करूँ । अपने दिनों का मैं क्या तोड़ करूँ । अपने सालों का मैं क्या मोल करूँ ।। बढ़ते - घढ़ते है ,उम्र में साल कैसे जुड़ते है । सवाल यही आता है । कभी मन घबराता तो , कभी मन खुश होता जाता है ।। अब बच्चा नही तो , युवा कहूँ या बूढ़ा कहूँ । यहीं सोंच सवाल है  । दिन जैसे कटते है । साल जैसे कटते है । ये साल इकत्तीस मेरे । गटते है या बढ़ते है  ।। Kavitarani1  96

इकत्तीस साल | 31 | thirty one

चित्र
31 saal - video dekhe   इकत्तीस साल  सांसो का आना जाना वही है । दिन का ढलना वही है । वही शामें सूर्यास्त दिखाती हुई । वही सुबह सूर्योदय लाती हुई । पर मैं बदल गया हूँ । अब इकत्तीस का हो गया हूँ ।। अब मैं नये दशक को जी रहा हूँ । अब मैं नये सपने बुन रहा हूँ । पर अभी भी मैं अकेला हूँ ।   अभी भी अपने खास की तलाश में हूँ । अभी भी अपनी प्यास में हूँ । अभी भी मैं होंस में हूँ । दुःखो का आना पहले से कम है । जो दशक तक जीये वो दिन कम है । कम ही है लोगों से मैल जोल मेरा । कम ही है लोगों पर भरोसा मेरा । पर अब भी मेरे भरोसे के बाकि है । वो मेरे खाश अभी तक बीस में है । और अब मैं इकत्तीस में हूँ । अब मैं इकत्तीस का हो गया हूँ ।। हाँ उम्र का ही तो सवाल है । ढलती जाने पर ही तो बवाल है । पर अभी भी मैं अपने स्टाफ में जवान हूँ । हरकतों से नादान ही हूँ । समझ अभी भी आनी बाकि है । लोगों में कोई सानी बाकि है । बाकि है  साल कई मेरे । कई ख्वाहिशें पूरी करनी बाकि है । आज भी मैं पहले सा लिखता हूँ । आज भी मैं पहले सा लिखता हूँ । गम छुपाने को किस्से गढ़ता हूँ । सिरीयस हुआ नहीं उसके बाद कभी । ...

मैं अकेला | main akela

चित्र
मैं अकेला - कविता का विडिओ देखे मैं अकेला  रात काली डराती हैं, नींद प्यारी बुलाती है । बुलातें है सपनें, औझल नींद कराते हैं । एकान्त मन बैठा, लम्हें पुराने कराहते हैं । रोना मन अब भूल गया है । यादों में अभी सपनें जमा हैं । सपनों की सेज सुहानी है, यादों में कांटे पुरानें हैं  । भूल कर सब बस मन सपनें पाना चाहे ये । समझाऊँ कैसे मैं, डगर वो बड़ी मुश्किल है । खोना तन का चैन चाहूँ ना । बातों में अपने रह पाऊँ ना । अँधेरी है डगर अब भी, अब भी यादों का बिछोना है । और मंजिल कहे मुझे अभी नहीं सोना है । अधूरी नींद, अधूरा हर सफर रहता है । मन के कोनों में कल कहता है । तन पर समय का पहरा रहता है । दिन धूप - धूल उड़ती रहती है, जल - जल शाम आती है । शामें एकान्त मुझे छोड़ जाती है, जग की बातें याद आती है । पथ भटकाकर लोग मिलना चाहे मुझे । मैं बावरा अकेला कहूँ ये । मैं बावरा अकेला जिऊँ रे ।। Kavitarani1  10

मेरे हमसफ़र | Mere humsafar

चित्र
  Mere humsafar - video dekhe मेरे हमसफ़र राही मेरे, राहगीर मेरे । मन मेरे, मंदिर मेरे । तुम साथ हो, तुम ही सफर । मेरे हम सफर, मेरे हमसफ़र ।। सुःख मेरे, दु:ख मेरे । मन मेरे, बोल मेरे । वेग मेरे, संवेग मेरे । मेरे हमसफ़र, मेरे हमसफ़र ।। दिन मेरे, रात मेरे । ठोर मेरे, छोर मेरे । हर विचार में, हर बात में । मेरे हमसफ़र, मेरे हमसफ़र ।। भौर मेरे, शाम मेरे । राग मेरे, ताल मेरे । हर धुन और सुर सार मेरे । मेरे हम सफर, मेरे हमसफ़र  ।। मेरी दुनिया के साथ ।  मेरी दुनिया के बाद । बस आस तुमसे । मेरे हमसफ़र,  मेरे हमसफ़र ।। Kavitarani1  224

मेरे सगे कई | mere sage kai

चित्र
कविता सुनने और देखने के लिए यहाँ दबायें   मेरे सगे कई  था अकेला : अकेला हूँ । सगे साथीयों के साथ खैला हूँ । अकेला हूँ, थोड़ा मन मैला हूँ । रहे कई साथ, मेरे से भगे भी कई । मिला जहाँ साथ, हुए मेरे से दगे भी कई । यहीं से जाना की नहीं सही यहाँ नहीं । मैं अकेला तो नहीं, पर मेरे सगे कोई नहीं  । जब सुनूं लगता है सब बस मेरे हैं । देखुँ उनके चेहरे लगता मेरे लिये उकेरे है । पर कहता हूँ जब साथ देने की तो वो टेरे है । रहता नहीं फिर पास कोई और मैं कहता मेरे सगे कई  ।। दुख सुख भी तो कोई बात नहीं  । दे सकूं इन्हे दात ऐसे हालात नहीं  । नहीं सिखा किसी को सिला देना । जो पहना है मैंने सब अपना था लेना  । अब मुझे भी किसी से लेना - देना नहीं  । अब बस सब मेरे मन का है किसी का कहना नहीं  । मिला साथ तो साथी कहूँगाँ । कहूगाँ ना गैर क्योंकि जानता हूँ मेरे सगे कई ।। Kavitarani1

जिन्दा लाश हूँ मैं | jinda Lash

चित्र
जिन्दा लाश हूँ मैं -   जिन्दा लाश हूँ मैं  एक लाश सा जिन्दा हूँ । लोग कहते मूर्दा तू । कैसे कहूँ जिन्दगी कि, तुझसे शर्मिन्दा हूँ मैं । जो अनमोल थे जज्बात,  यूँ ही लूटा आया हूँ  । अपने ही कातिल को याद करता हूँ  । कैसा परिन्दा हूँ  मैं । साँस चल रही है मेरी । पानी पी रहा हूँ  । सब कुछ भूलकर भी , जैसे मूर्दा हूँ मैं  । वो विश्वास का खुन हुआ  । वो प्रेम मर चुका । बस अहसास बाकि है  । यादों में दफ्न कई राज है । जो मार कर गया वो आजाद है । कैसे इंसान हूँ मैं  । अपने कातिल के साथ हूँ मैं  । बस बित गये हादसे को । कुछ भूला नहीं हूँ मैं  । बस एक लाश सा जिन्दा हूँ मैं  । अपने कातिल के पास हूँ मैं  । Kavitarani1  45

पोथी पढ...ज्ञान आव कोनी | Pothi pad pad gyan aav koni

चित्र
  दो पोथी पढ़ ज्ञान आव कोनी - विडिओ देखे पोथी पढ ... ज्ञान आव कोनी  दो पोथी पढ़, जग फुल्यों समाव् कोनी । कोनी मान् जो, समझ् इन्सान ही इंसान की कोनी ।।  दो पोथी पढ़...। ढाई आखर पढ़ गर्व करजो कोनी । कोनी मान् , जो रखे  मन में  इमान् कोनी ।।  दो पोथी पढ़...। वो सरकारी नौकर जमीन् प टेक पाव कोनी । कोनी मान् , जो खुद का मन की कर पाव् कोनी । आयो बाबु बण, गाँव को गँवार,  फुल्यो समाव् कोनी । कोनी मान् , जो रखे घमण्ड, मन म खोई को सम्मान कोनी ।। ओ मास्टर बण ग्या, बन मास्टर फुला समाव कोनी । कोनी मान, जो पढ़ सक मन, बाल- गोपाल कोनी । राजा बैढ्या, सेठ बैठ्या, किसान सा कोई लोग कोनी । कोनी मान, बेईमान वे जो समझ लोगां का हाल कोनी ।।  दो पोथी पढ़ ... ओ गाँव को छोरो फड़ ग्यों, क्यो विदेश फड़ बा ग्यो । फढ़ - लिख आयो कोनी बस ग्यो विदेश मा । विदेशी बोले गाँव म लोग - इंसान कोनी । पैदा कर्यो डांडा न और विदेश इंसान बण ग्यो ।। दो पोथी पढ़ इंसान कोई बण पाव कोनी । कोनी मान् जो सम्मान जननी, जद भूमि दे पाव कोनी ।। पर देश जा क पिसा कमाया । कमाया मान सम्मान खुब लोगां ही दिखाया । ...

बस तेरी आस है | Bas Teri Aas hai

चित्र
  बस तेरी आस है - विडिओ देखे बस तेरी आस है  फिर नई दुआओं ने हाथ फैलायें है । बिती बातें पुरानी हुई,  ये आज की कहानी है । याद करूँ शुरू से तो हर दौर में ऐसा होता है, बचपन में पास होने से शुरू होकर, प्यार पाने की कोशिशों में भी मन रोता है । वो दौर नौकरी की मन्नतो का भी आया है, और फिर घर वाली के लिये मन जाग आया है, आगे चलकर मकान की आस पायी है, और किलकारियों की बारी आयी है, हर बार अंतिम इच्छा सा लगता आया है, पर मन पर बोझ सब बन आया है । फिर मिन्नतों और दुआओं में याद किया है । मैंने ईश्वर को हमेशा याद किया है । और आशीर्वाद उनका, कृपा भी पाई है । सारी मुश्किलें सामने और मेरी तरफ खुदाई है । मेरे ईश्वर को मैं फिर में याद करता हूँ । फिर नई दुआओं कि बात करता हूँ, आशीर्वाद की दरखास्त है, मेरे ईश्वर सुन ले ये मेरी आस है, नई दरखास्त है बस तेरी आस है ।। Kavitarani1  220

स्वयं से | Swayam se

चित्र
स्वयं से - विडिओ देखें   स्वयं से. कोई स्वयं से कैसे भाग सकता है ।  कैसे कोई अपने आप को भूला सकता है । यदि कोई ऐसा कहता भी है,  या बताता है, कि वो अपने आप में नहीं,  तो वो मजबुर है । या वो विचलित है ।। पागल को तो कुछ याद नहीं रख पाता,  बोल नहीं पाता,  ना ही जी पाता है,  तो वो पागल तो नहीं । हाँ वो खुद में उलझा है । अपने और अपनों में उलझा है । वो अपने मन की नहीं कर पा रहा है । वो कहने को आजाद है, पर बदिशो में है ।। पंख है, उड़ान है, पर स्वच्छंद राहें नहीं है । एक मार्ग है जो दुनिया के हिसाब का है । बस उसी पर चलना है, वही करना है । फिर जब मन आवाज करता है, तो संघर्ष होता है,  और फिर मन को मारना, और मन कहाँ मरता है,  ये तो तन के साथ है । फिर यहीं से ये बातें आती है, 'मैं अपने आप से भाग रहा हूँ।' 'करना चाहता हूँ बहुत कुछ कर नहीं पा रहा हूँ ।' मैं अपने आप भुलाने की कोशिश कर रहा हूँ ।' और ये कार्य दुनिया के कठिनतम कार्यो में से एक है । कोई स्वयं से कैसे भाग सकता है ।। Kavitarani1  214

समय बदल गया | Samay badal gya hai

चित्र
समय बदल गया है - विडिओ देखे   समय बदल गया  जो मन की पीङा हर लेते हो । जो तन का मेले धो देते हो । जो सभ्य समाज के निर्माता हो । जो ज्ञान प्रकाश के ज्ञाता हो । वो शिक्षा के पुंज खो गये हो । अब तो ऐसा लगता है, वो ज्ञान कुंज खो गये हो ।। अब तो ऐसा लगता है,  भेष बदले भेड़िये हैं । भेड़ के रूप में सियार है । बात बड़ी-बड़ी करते हैं। पीठ पीछे षड़यंत्र करते हैं , अपनी ही डिंगे हांकते है , कुछ पूछने पर मारते है ।। शब्दों का मैल ना रहा । गुरू - शिष्य का कोई खैल ना रहा । अब एक रोटी कमाने वाला है । ज्ञान पिपाषु, मन का मारा है । ना शिष्य में शिष्टता को पाता हूँ । ना गुरू में गौरव देख पाता हूँ । ये समय का सारा खैल हुआ । ये बुरे वक्त का मैल हुआ । मैं भी अपनी ही अब करता हूँ । जीवन में सत्य को हरता हुँ । जैसे जो है वैसा करता हूँ ।। Kavitarani1  208

कोहरे तू हट जा | kohare tu hat ja

चित्र
  कोहरे तू हट जा - विडिओ देखे कोहरे तू हट जा तप-तप धूप दिन चढ्या। तप-तप अलाप शाम घडया। रातां न दब रजाई घङया कटिया। वहीं भौर ने कोहरा ढकया। कोहरा तू हट जा रे। बावरे नैना राह तके। कोहरे तू हट जा रे।। म्हारे पिया ने बुलावे पुरवाईयाँ। मैं देखूँ दिन भर रतियाँ। छाया सुबह सुं तू बेरिया। कोहरे तू हट जा रे। बावरी नजरां मई कोसे। कोहरे तू हट जा रे।। राह ने ढके तू, दिखे ना रास्ता। आवे कोई ले संदेशा रे। सर्दी ने जीव लियो। लियो जीव एक प्रेम रसिया। जप-जप नाम जिवङा तङपे रे। तङपे ठण्ड से काया रे। तप-तप दिन शाम, कटे रात सोंच सुबह रे। देख-देख राह दिन बिते। ढकी कोहरे में राह मन तङपे। कोहरे तू हट जा रे। बावरे नैना राह तके। कोहरे तू हट जा रे।। - kavitarani1 

मेरा आप | mera aap

चित्र
मेरा आप - विडिओ देखे   मेरा आप  जब - जब मैं अकेले में अपने आप में होता हूँ,  तो मैं बस अपने आप में होता हूँ । और वो आप मुझे दुनिया का श्रेष्ट मानव बना देता है, और मैं उस पल की कल्पना में खो जाता हूँ । ये सब बस सोंचने से शुरू होता है, और खत्म उत्साह के नये संचार पर होता है । कई बार मुझे लगता आया है ये सब सच होगा, रवि जो एक तारा है वो सितारा बनेगा । आखिर ये कल्पनाएं ही है जो मुझे अलग रखे हुए है, और मुझे कुछ करने की प्रेरणा देती है । वरना तो ये समाज, ये लोग मुझे रोकते है, ये चाहते हैं में इनसे नीचे रहूँ बस इनमें रहूँ । मैं इन्हें छोड़ना नहीं चाहता, पर मैं इन्हें ऐसे रहने भी नही देना चाहता । मैं और मेरा संसार शानदार है, वहाँ प्रेम है, विश्वास है, समझ है आनंद है । और मेरा आनंद मेरे और मेरे संसार में है, इन सब की खुशी और सामर्थ्य में  है । पर ना ये मुझे कुछ मानते है ना करने देते है । और तो और ये मुझे रोकते है भटकाते है । पर जब में अकेले में होता हूँ,  अपने आप में होता हूँ, तो इन सबसे परे होता हूँ,  और अपने आप में होता हूँ ।  वो श्रेष्ट है,  महान है,...

मिली नहीं हीर सी | Mili nhi Heer si

चित्र
मिली नहीं हीर सी - विडिओ देखे मिली नहीं हीर सी घट-घट घूम, पी आयो पीर ही। मनें पूछे जग; मिली क्यूँ नी हीर जी।। कि; मिली कहीं हीर जी? हीर नी पूछी जद मन पसरायो । आँख्या न आँसू छूपा, शब्दाँ न छूपायो । पसीजो जो हिवड़ो जो, बोल भी नी पायो । यादाँ न खोयो, मनड़ो बोल भी नी पायो । खेव किन्ही कसा, कसी मिली हीर जी । कसी थी वा, खाँ मिली थी वा हीरनी । घट - घट घूम - घूम पीर नी छुपायो । बिती खई मनड़े  , मन ही छुपायो । मन की मन ही बतायो । नैना न काजल रमा, मृगनयनी भायी । होंठा न लाली जमा, मुस्काती आयी । हिरणी चाल ले क, लट गालां प लटकाई । मीठा बोल बोल, मन प थी छाई । हिर-हीर बन मन प आती ही आई । हिवङा न भाती ही जन्मा की कहाई । हीर मिली, हीर पीर बन मन प छाई । दन बित्या कोनी की रंग अपना प आई । भूल रास्ता सारा,भूल मने गई । वा हीर पीर दे क, जाण कहा गई  । बैठ्यो अकेलो मन घबरायो । याद कर-कर उणी घणो बुलायो । आयी - गई वा जसा पीर बङ गई । अब भूल वा गई  ।। हीर भूली, बावलो सो कर गई । पल-पल आँसु भर क, खुद दुजी नाव तर गी । समय रो चकरो घूमतो घूम्यो । आ मिल्यो फेर स उई हिवङो । बंद दरवाजा लिख्या दुखङा डायरी । ...

मकर संक्रान्ति पर

चित्र
मकर संक्राति पर - विडिओ देखे   मकर संक्रान्ति पर  उड़ रही पतंगे सब ओर  । संगीत का शौर है हर छत पर । झूम रहे लोग हर ओर । खुश लग रहे सब मकर संक्रान्ति पर  ।। मैं बैठ दूर अपने गाँव से । देख रहा पतंगे अपनी  छत से । गुन रहा संगीत एक धुन से । याद कर रहा बचपन गाँव मन से ।। काश मैं भी पतंग बन जाऊँ । ऊडूँ मस्त हवा में और गोते खाऊँ । डोर कोई काटे ना इतना साहस कमाऊँ । जो झेड़े मुझे उसकी पंतग काट गिराऊँ ।। शौर करूँ अपनी मस्ती में  । झूमूँ अपनी जीत की खुशी में  । डील दूँ अपनी पतंग को खुले आसमां में  । आजाद फिरूँ में ऊँचाईयों में  ।। धूप का डर ना ठण्डी हवाओं का । दुपहर की परवाह ना सांझ की । तिल , मोतीचूर के लड्डू खाते हैं । मस्ती से छत पर पतंग उड़ते और खैलते है । मकर संक्रांति पर ।। Kavitarani1  93

कोई बने ढोर | koi bane dor

चित्र
  कोई बने ढोर  कोई बने डोर मेरी, मैं पतंग बन उड़ जाऊँगा । दूर गगन तक जाके, मैं हवा पर लहराऊगाँ । हवा का रूख का पता लगाके, मैं सबसे आगे जाऊगाँ । जो डील देगा कोई, मैं सबसे जीत जाऊगाँ । कोई बने डोर मेरी, मैं सबसे लड़ जाऊगाँ । नई ऊँचाई  छुकर, मैं सबको काट गिराऊगाँ । जो थामें रखे मेरी सांसे, मैं उड़ता ही जाऊगाँ।  सब लोग देखे मुझको, मैं ढौर तेरी गाऊगाँ । अपने जीवन का नाम करके, उड़ाने वाले को दोहराऊगाँ । कोई मिले उड़ाने वाला, मैं दूर तक उड़ जाऊगाँ । बिना थके दूर गगन जाके, अपना परचम लहराऊगाँ । कोई बने ढोर मेरी, साहस से उड़ता जाऊगाँ । हवा को चीरते हुए मैं, आसमान पर लहराऊगाँ । कोई काटे ना डोर मेरी, मजबुत बन उड़ता जाऊगाँ । आसमान का परिंदा निर्जीव, मैं आसमान से गिर जाऊगाँ । कोई छोड़े ना डोर मेरी, मैं तब तक उड़ता जाऊगाँ  । खिचें जो ढोर मेरी, तो ही निचे आऊगाँ ।। कोई बने डोर मेरी, मैं आसमान पर जाऊगाँ  । खुली पतंग बन, मैं आसमान पर छाऊगाँ ।। Kavitarani1  11

पर | Par

चित्र
पर - विडियो देखे   पर   मैं अंधेरे से नहीं डरता,  पर भय उजाला ना होने का है । काँच की कस्ती से नुकसान नहीं मुझे, पर जोखिम जख्म लगने का है । कहने को तो सब ठीक ही है जीवन में मेरे, पर जो निरंतरता नहीं रहती जीने में, टिस उसकी है ।। मैं गिरने से नहीं डरता,  पर भय गहरे गढ़ढो का है । हालातों से चार हाथ होते रहे हैं मेरे , पर बदकिस्मत हूँ कहीं; ये डर लगता है । जानता हूँ सब है साथ मेरे हर समय, पर किसी मोड़ पर अकेलेपन के भाव से मन डरता है ।। मैं हारने से नहीं डरता, पर जीत पर खुश ना हो पाने से भय लगता है  । मेहनतकस हूँ मैं,  पर आलस घर ना कर जाये इससे डर लगता है  । हालातों को दोष नहीं देना चाहता मैं,  पर जो हाल ना बता पाये उससे मन रूठा रहता है  ।। Kavitarani1  212

किसे कहूँ | kise kahun

चित्र
Kise kahun- video dekhe किसे कहूँ किसे कहूँ किससे छुपाऊँ। अपनी बातों को कैसे बिछाऊँ। रख- रख मन पर मन हुआ भारी। पास नहीं कोई ऐसा यार ना कोई ऐसी यारी। चाहिए मुझे एक प्यारी मेरी दुलारी। खोज-खोज जिसे मेरी हिम्मत गई मारी। है कोई कहीं जो आके कह सके। साथ मेरे रहे और मुझे समझ सके।। पहली बात तो मुझे इन झमेलों में नहीं पङना। वो अकेले में मेरी सांसो का हो जाता थमना। चाहूँ मैं जमना और दुनिया में रमना। कम ना आंकता मैं खुद को किसी से। कह दे कोई तो तोङ दूँ मैं नहीं कम हाँ।। पर रह- रह यादों में कोई आ जाती है। ना चाहूँ फिर भी विचारों पर छा जाती है। मेरी रूह गाये ना गाये पर काया बुलाती है।। आती है रह-रह मुझे याद कोई जो छुपी जाती है। उसका बनना चाहूँ और जीना चाहूँ साथ मैं। पर जाने क्यूँ कह ना पाता और किसे कहूँ। किसे कहूँ किसे छुपाऊँ। उलझन में उलझा जाता हूँ। बैठ अकेले कभी सुनता हूँ। कभी खुद के गाने बनाता हूँ। मैं टाइम पास करता जाता हूँ। किसे कहूँ।। - kavitarani1 

बकवास लोग | Bakvas log

चित्र
  बकवास लोग- विडिओ देखें बकवास लोग  ये आलाप नहीं, सत्य है । मेरे भुगते हुए कृत्य है । मैं ऐसे में ही रहते आया हूँ ।  मैं भाग्य ऐसा ही लिखाया हूँ ।। बात ये मेरे साथ की । मूर्खों की, या हालात की । मेरे साथ वालों की ये गाथा है । उनकी बुराई के सिवाय कुछ नहीं आता है ।। नर की ही जो बात करूँ । सारे नरभक्षी है लगते है । नारियों में राक्षसी बसी, लगती है । सारी नालियाँ है, बुराईयां इनमें फसी हैं ।। हर वक्त बकवास है करते रहते । हर बात में गंदगी भरते रहते । एक चालाक, एक धुर्त, एक जोकर है ।  तो एक लोमड़ी, एक सियार, एक नेवला है ।। ढींगे बड़ी-बड़ी हांकते रहते हैं । बात स्वार्थ की करते रहते हैं । दुसरो के मन को ढंसते हैं ।  साफ छवि खुद को कहते है । ।  मैं अकेला इनमें खुद को पाता हूँ । कभी हॅसता हूँ कभी सुनाता हूॅ । मुझे इनमें से कोई नहीं भाया है । बस बकवास लोग यही कह मन पाया है ।। Kavitarani1  207

अपनी गाथा | Apni gatha

चित्र
  अपनी गाथा  धरती पर आये कई साल हो गये । किसी संघर्ष की अब बात नहीं । अपने काम के अलावा कोई बात नहीं । कई बरस बिताये थे दबिस में कहीं । नये चुनाव से फिर उड़ान भरी ।  परीक्षाऐं दे मास्टर बने । छोड़ मास्टरी फिर नयी राह चुनी । ताना था जमाने का की कृपा हुई । नई परीक्षा दी और पास भी हुई । पश्चिम से दौङ पूरब को आया । निचले पद पर जाकर अब ऊपर को आया । सफर जिंदगी का जोरदार रहा । पढाई के साथ काम भी किया । कोई कम नहीं कोई कोशिश बेहतरीन की की  । जिसमें नहीं हुआ पास पर मेहनत ओर की । सुबह से शाम और अपनी धुन में जाते हैं  । शादीशुदा जिंदगी में गर्म रोटी खाते है  । मकान खुद का - कर्ज खुद का उठाते हैं । बचत खुद की चल रही है । साथ भागदौड़, समाज और मौज चल रही है । अब सपने शिखर के अब कभी-कभी आते है । सोच रहे मौका मिले तो लेखनी को आजमाते है  । पर अभी अपनी गाथा बनाते है  । अपनी गाथा सुनाते है । Kavitarani1  204

यादों में | Yadon main

चित्र
  यादों में - विडियो देखे यादों में  करवटों में रात बिती, यादों में दोपहर । आपकी यादों से निकले कैसे लगती है ये कहर ।। दिन लगते है छोटे जैसे हो कोई पहर । कहने को है सब साथ पर हो जैसे जहर ।। आसान नहीं रहना यहाँ गाँव हो या शहर । फिर अकेले दिन मुश्किल कर देता है पहर ।।  हो चुका हूँ आदी दुखो का इनका नही असर । पर आ चुकी है यादें सामने कैसे ना हो असर। । यादों में खोये बैठे है बीती नहीं चार दोपहर । हर दिन लगने लग गया है जैसे हो कहर ।। Kavitarani1  195

आज फिर.. Aaj Fir

चित्र
आज फिर- विडिओ देखे आज फिर... बैठा हूँ अकेला यूँ ही । शांत करने को मन को ही ।। ढ़लता है सूरज एक ओर को । उमढ़ते है बादल दुसरी ओर को । में निहार रहा क्षितित को ही । सोंच रहा चित्त हो शांत यही । आज फिर बैठा हूँ अकेला यूँ ही।। आजकल वो बचपन की गलियाँ याद आने लगी । मेरा घर आँगन और सहेलियाँ याद आने लगी । कही उलझा रहा मन अकेला में जो । आज वो अनसुलझी पहेलियाँ याद आने लगी ।। मैं बैठा था अकेला आज यूँ ही ।  शांत करने को मन को ही । और अशांति मन की खाने लगी । आज फिर पुरानी बाते याद आने लगी ।। फिर घूम आया मैं यौवन को । थे जो सारे झमेले मंडराने लगे वो । थी परेशानियाँ और बेबस था जो ।  आज, उलझा हूँ और हूँ बस में यो ।। पर सोच रहा जमाने की और अपनों की । कहीं रूढ़ ना जाये कोई चलती रही यहीं ।  क्यों उलझा रहता जब अपने हाथ कुछ नहीं ।  बैठा हूँ अशांत मन को ।  बैठा हूँ अकेला ही ।। Kavitarani1  191

लाचार सा मैं | Lachar main

चित्र
लाचार सा मैं - विडिओ देखे लाचार सा मैं  वक्त के आगे बेबसी हूँ या लाचार हूँ खुद से।  समझ ना पा रहा क्यों नाराज हूँ खुद से।। समय गुज़रता जा रहा और सपने आँखो में अटके पड़े हैं।  बेबसी है या लापरवाही कि अटके पड़े हैं क्षितिज पर।। वो मंजर जो भयावह था जी लिया कभी का । तब ना बेबस होके रूके ना आज, फिर क्यूँ लाचारी।। लग रहा मैं कहीं अधूरा ख्वाब लिये यहाँ से चला ना जाऊँ। । जो बेरूखी सी अटकी पङी जिन्दगी उसी में अटका ना रह जाऊँ।। ये गवारा ना होगा जो में ऐसे ही भूला दिया जाऊँ। । नागवार ये भी की कुछ कर भी ना पाऊँ।। कह देता है मन की वश में नहीं कुछ भी मेरे जो मैं करूं। इसीलिए लगता है मुझे, कि जैसे हूँ लाचार मैं।। करता हूँ कुछ वो अब लाचारी ही है जो में मन से ना करूं।  लगने लगा है एक पड़ाव ज्यादा लंबा हो गया । सुकून है पर खुद के ख्वाब से से लड़ रहा ।। ज्यादा कुछ ख्वाहिश नहीं ना मांग हैं कुछ ज्यादा पाने की।  बस जो ख्वाब में है वो मिल जाये संतोष है उसमें ही।। अभी मेरे हाथ में नहीं यही बेबसी है मेरी । किस्मत के भरोसे या वक्त के वश मे है जिन्दगी मेरी। । Kavitarani1  168

ये कैसा बोझ मनका | ye bojh mere man ka

चित्र
ये कैसा बोझ मन का - विडियो देखे  ये कैसा बोझ मन का। ध्यान-ध्वस्त-धरा-अस्थिर , ऊसर-ऊर्जा-उपेक्षित-क्षीर । पीर-पराई-पावस-बन , बरसी-बरखा-सावन-जन । तन-तांडव-तरसे-तरस , मन-मानव-माने-मनस । कोस-कोष-कोप-कोपित , रोस-रोज-रोके-रोपित । आतंक-अंतर्मन-अंतहीन-आये , अचरज-अजर-अमर-डराए । भाव-भाग-अभागे-भान, मन-मानव-बन अनजान।  कर्म-धर्म-मर्म-मारे, तीर-तीज-तीर-हारे। ये कैसा जाल शब्द का, ये कैसा बोझ मन का।। - Kavitarani1   

Sath kuchh na jayega | साथ कुछ ना जायेगा

चित्र
साथ कुछ ना जायेगा - विडियो देखे साथ कुछ ना जायेगा। क्या ही लेकर आया है,  क्या ही लेकर जायेगा। मन का मोह छोङ रे बंधे, साथ ना कुछ जायेगा।। कोङी-कोङी माया जोङी, पल-पल कर दुनिया छोङेगा, छोङा ना मोह रे बंधे,  कब सच समझ पायेगा, सब यही रह जायेगा बंधे, साथ ना कुछ जायेगा।। क्या ही तेरा तुझसे लागे, क्या ही तेरा तुझमें रह पायेगा, माटी से मिला है सबकुछ,  सब माटी में मिल जायेगा, मन का मोह छोङ रे बंधे, साथ ना कुछ जायेगा।। बन जा मन का सच्चा बंधे, सत्य ही गुण गायेगा, राम का नाम ले बंधे, राम में मिल पायेगा, साथ ना लाया कुछ भी, साथ ना ले जायेगा। साथ ना कुछ जायेगा।। - kavitarani1 

Ye bol mere man ke | ये बोल मेरे मन के

चित्र
ये बोल मेरे मन के - विडियो देखे   ये बोल मेरे मन के। घाव गहरे- गहरे पहरे, आकर सारे ठहरे मेरे सहरे, बन निशान या लकीरे आम ये , कह रहे बोझ जो हुए तन के, ये बोल मेरे मन के। भोर पहर ठहर सोंच रहा, या दुपहर में अकेले खोज रहा, शाम पहर खोये नज़ारे नयन के, रात सोये बिन हुए अँधेरे, कह रहे बोल मेरे मन के। कर्कश कोरी बात हुई , बिन सुने ही कह दी सुनी , अनसुने सब बोल बन के , काट रहे चक्कर मेरे तन के , कह रहे बोल मेरे मन के। नयनो का रहा छोर कहीं , बात कहीं नज़रों का छोर कहीं , खोई खोई-सी शक्ल कहती ये , मन के रोग कहती है , कहती ये बोल मेरे मन के। कर्म पथ पर भरी है , दुविधा बहुत सारी है , कहने को ये भाग बुरे कहता है , ये तन धीरे धीरे सब सहता है , कहता है ये बोझ मेरे मन के। सुखी जग मैं में दुखी , आनंद में मेरे बेरुखी , उल्लास अंत तक भये ना , मन मेरा मुस्काये ना , खोज अधूरी हर बार मेरे तन की , क्योंकि ये भोज मेरे मन के। और  सुन रहे हो आप; बोल मेरे मन के।। - kavitarani1

भोर भये | Bhor bhaye | morning

चित्र
भौर भये - विडिओ देखे   भोर भये  भोर भये दिन पनघट बिते , मुझे कल की चिंता सताये है । आज की मुझको फिक्र रही ना , मधुर धुन सुनने को मन तरसाये है । मिल गया सुख, दुख बिते , समझ परे ये निंदिया कौन चुराये है । साथी, सुखी सब मैल सुख है , दुःख, अहम या सपना खाये । रास नहीं, कुछ खास नहीं , पास है सब, फिर क्यों मन घबराये है । मान कहे, सम्मान कहे, राज मुझे भाये , आये कई, भटकाये कई, फिर क्या मन चाहे है । बित रहे दिन, महीने साल ये , बैर खुद से क्यों मन करता जाये । आन रखो भान मेरा, भान होवे कुछ बिगड़े है , रित्ता आया, रिक्त हुआ, क्या मन चाहे है ? भोर भये मन चिढ़े शाम को बिता पाये है , कटती जा रही जीवन लीला उलझन मन बनाये है । भोर भये दिन पनघट बिते । मुझे कल की चिंता सताये है ।। Kavitarani1  160

भूला नहीं | bhula nahi main | Didn't forget

चित्र
भूला नहीं मैं  - विडिओ देखे भूला नहीं  पगदण्डी बचपन की, खैत की मेर  मेरी । काली गाय देवंती और उसकी बछिया प्यारी । वो पुराना घर और उसके लिये मेरे सपनें । अपना घर और उसके लिये मेरे सपनें । आसान नहीं कुछ भी संजोये रखना । भूला नहीं मैं जो भी बनाया था मैंने अपना ।। साथ वो अल्हड़ों का, मिजाज वो कुल्हड़ो का । राज खास दोस्तों के, साज अपने और अपनों के । तारों भरी रात के तारे सारे, मुझसे मिलते वो सपने सारे । भूला नहीं मैं, याद है मुझे वो अपने प्यारे ।। चिड़िया प्यारी जो पास थी आई मेरे । मेरे हरी तोते की बातें सारी । मेरे मोहल्ले के भाग दौड़ और सबकी हौड़ । याद है मुझे भुला नहीं मैं । भूला नहीं मैं।। अब बस यादें है और जो भूला नहीं साथ है । अब बस वो बातें है और जीये वो याद है । कुछ खास हासिल नहीं की भूला नहीं । सपनें थे जो छोटे पा लिया भी जी लिया भी । अब बस आराम है और ये जीवन है और, साथ यादें है जो भूला नहीं मैं  ।। Kavitarani1  159