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संध्या सार | sandhya saar

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संध्या सार एक ओर गुरू शिखर, जो कह रहा स्थिर रहो, डटे रहो, गर्व से बने रहो। दुजी ओर ढुबता सुरज, सारी आकांक्षाओं को समेट, अस्थिरता, नश्वरता का बखान कर रहा। एक ओर मन है, जो स्वतंत्रता की पुकार कर रहा, सम्मान को तलाश रहा। दुजी ओर तन है, जो नश्वरता का भय दिखा, जाते समय की दुहाई दे रहा। है उलझन एकान्त करे क्या, शांत मन पर तन का बोझ बयान,  कहाँ जाये लिखता मैं। शाम हो गई फिर, फिर उस आध्यात्म की ओर, कमाऊँ या कर्म करूँ, मैं करूँ क्या। एक ओर जङ पहाङ,  एक ओर ढलता रवि, जर्जर चट्टानें, अस्थिर समय करूँ क्या। आज फिर क्षितिज पर निगाह, पुरब की ओर देख रहा, पश्चिम को जीता ओर बताऊँ क्या।। -कवितारानी।

एक मुस्कान और राज कई | Ek muskan aor raj kai

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 एक मुस्कान और राज कई  मासुम सी शक्ल पर अक्ल नहीं । मासुख सी अदा पर कोई फिदा नहीं । सीधी सी होती बात और दात कई । एक मुस्कान प्यारी और राज कई। । दर्द गहरे है ठहरे कई-कोई अर्ज नहीं। मर्ज सहरे है पहरे कई-कोई दर्ज नहीं। रोज होती नई मुलाकात और कोई याद नहीं। फिर एक मुस्कान और रहते राज कई। । तारीफों के पुल बंधते, लब्ज ठहरते नहीं। काफिलों के आगे चलते, दाखिले खुद के नहीं। कसमकस और आजमाईशें ख्वाब के लिए कई।  सुरत पर एक मुस्कान और राज कई। । संगेमरमर से ताज बखुब पर महल नहीं। समंदर मे राज है खुब पर महल नहीं। चाँदनी है बखुब और चाँद पर दाग कई। सिरत है एक मुस्कान और राज कई। । पहल सी जिन्दगी पर परीणाम नहीं। महक सी बंदगी पर परीमाप नहीं। बढ़ती रहती बातें और रहता सार कहीं। फिर भी एक मुस्कान और उसपे राज कई। । तलाश बस एक और पास कई।  मंजिल एक चाह और मुकाम कई।  संतोष एक आस और कोई आस नहीं। रहे एक मुस्कान और रहे भले राज कई। । आजकल चलती रहती जिन्दगी बस यूँ ही। चेहरे पर एक मुस्कान और दिल में राज कई। । -कवितारानी। Kavitarani1  250

मुझे खुलकर मुस्कुराना है | mujhe khulkar muskurana hai

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  मुझे खुलकर मुस्कुराना है  किसी के दबाव से ऊपर उठकर। आजाद जिन्दगी को पाना है । छोटी-मोटी खिटपिट से दूर रहकर। सपनों को पूरा करना है।  ज्यादा कुछ मांगा नहीं अभी तक। बस मुझे खुलकर मुस्कुराना है। । वो दबी सी हँसी मुझे नहीं भाती । चिढ़चिढाहट भरी जिंदगी रास नहीं आती । लोगों की परवाह।कर काम करना नहीं आता । मुझे घूट-घूटकर जीना नहीं आता । अपनी धुन में काम करना है । मुझे खुलकर मुस्कुराना है।  जब सपनों का जहान होगा । कोई अपना बस अपना साथ होगा। उन्ही से जिन्दगींको मंजिल पर ले जाना है।  सारी बाधाओं को हिम्मत से पार करना है।  ज्यादा कुछ मांगा नहीं अभी तक । बस मुझे खुलकर मुस्कुराना है। । इस स्वार्थी जग को भूल जाना है।  अपने चाहने वालों को गले लगाना है।  आशाओं के बादलों पर सच का परचम लहराना है। सपनों को हकीकत कर जाना है।  बस एक ही जिन्दगी है मेरे पास तो । इसमें मुझे खुलकर मुस्कुराना है ।। Kavitarani1  248

क्यों लोग रुठ जातें है | kyon log ruth jate hai

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क्यों लोग रूठ जाते हैं  कोई कहता मैं बात नहीं करता। कोई कहता मैं साथ नहीं रहता। कोई कहता मैं सुनता नहीं उनकी। कोई कहता मैं उनकी चलने नहीं देता।। अब अपने दुख कहूँ किससे। अब तु ही सुन ऐ जिन्दगी।  कोई समझता नहीं मुझे कि पूँछूँ मैं।  कि क्यों लोग रूठ जाते हैं। कि क्यों लोग समझ नहीं पाये हैं। । जब बात करता हूँ तो चलने नहीं देते। साथ देता हूँ तो दूर कर देते। पास बैठ सुनूँ तो चूप नहीं रहते। और मैं कुछ कहूँ तो चिढ़ जाते हैं। । कैसे समझाऊँ इन्हें ऐ जिन्दगी मैं।  मुझे सच्चे लोग पसंद है। सच के मुखोटे पहन आने वालों से नफरत है। अपना कह ठोकर खाई कई बार। नजदीकियाँ बढ़ाकर रूसवाईयाँ पाई कई बार।। और मेरे सपने है जिन्हें साकार करना चाहूँ मैं।  कुछ आम लोगों से ऊपर उठना चाहूँ मैं।  मन से साफ लोगों में रहना चाहूँ मैं।  खुलकर मुस्कुराना चाहूँ मैं। । तू ही बता ऐ जिन्दगी क्या करूँ मैं।  अपनी कहने पर या साथ खुलकर जीने पर। क्यों लोग दूर जाते हैं।  क्यों लोग कुछ शब्दों में रूठ जाते है।। -कवितारानी।

जिन्दगी तुझसे खफा नहीं | Zindagi

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जिन्दगी   खफा नहीं तुझसे ऐ जिन्दगी मैं। तू है तो हूँ मैं।  ख़फा नहीं तुझसे तुझसे ऐ जिन्दगी मैं।  तू है तो हूँ मैं।  बस शिकायत है तुझसे ये। जो चाहा कभी वो मिला नहीं हैं। । ख्वाब सारे समेट बचपन जीया। आज फिर याद कर रहा क्या जहर था पिया। याद नहीं कुछ खास ऐ जिन्दगी।  पर पास नहीं कोई बंदगी। बस शिकायत है तुझसे ये। जो चाहा कभी वो मिला नहीं। । क्या पास था मेरे सोंच रहा हूँ मैं।  क्या पास रह गया सोंच रहा हूँ मैं।  जो था वो पसंद नहीं आया कभी। जो है वो सपनों सा लगता ना कभी। बस शिकायत है तुझसे ऐ जिन्दगी।  जो चाहा कभी मिला नहीं। । खफा नहीं तुझसे मैं ऐ जिन्दगी।  जो है वो कहीं से कम नहीं।  पर सपने दिये जो अनगिनत सब ही। कोसते हैं मन में पङे कहीं।  बस यही शिकायत है तुझसे जिन्दगी।  जो चाहा कभी वो मिला नहीं। । -कवितारानी। 

सब बैमेल है | Sab bemel hai

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सब बैमेल है शब्द है शब्दार्थ है, लिखे मेरे पन्नों का भावार्थ है। कहने को बहुत गर्त है, पर पढ़ने पर लगता जैसे सब व्यर्थ है। सब बैमेल है, दुनिया जैसे कोई जैल है। रास्ते है कई, मंजिले हैं कई, जाने की नहीं कोई रैल है। मन के मारे सब हारे, जाते सब अपनी ही टेल है। लगता है मुझे मेरी सोंच कर ही, सब बैमेल है।। हवायें है पूरब और मैं जाता पश्चिम को। सुर होते पुराने और मैं गाता नये को । छुट चुकी जिन्दगी को पाने के लायक है। जा रहे कहाँ, कर रहे क्या, जाना है कहाँ। सोंचे जब इन सब के बारे में तो लगता है, सब बैमेल है।। होता ऊजाला नींद आती, सुरज की रोशनी आँखे चुभाती। रात अँधेरा तन भाये, और घनी काली रात मन डराये। शीतल हवा बङी भाती, आँधी आती और डराती जाती। जो चाहे वो मिल ही जाता है, पर छोटी कमी से मन रूठ जाता है। सब पर जब सोंचे बैठ तो लगता है, सब बैमेल है।। बादल छाये मन को भाये, कङके बिजली मन सहम जाये। बारिस का मौसम तन भिगाये, कर्म पथ पर फिसलें ना डर सताये। मौज की खौज मन रोज करता, डरता रवि दिन रात को चलता। कुछ छुटता रहता कुछ आगे बढ़ता, कल से डरता क्या करता। सोंचता बैठ अकेले में जब लगता अपना सब बैमेल है। ला...

मैं भूला तो नहीं | Main bhula to nahi

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मैं भुला तो नहीं  माना की दूर रहते हो, मुझसे ना कहते हो। जिक्र ना मेरा सुनते हो, अपनी ही सदा कहते हो। पर कहीं तो कभी तो याद दिलाता होगा, कोई  तो मुझसा मिल जाता होगा। कोई शब्द ही मुझे याद दिलाते होंगे, या मेरे किस्से कहीं टकराये होगे। मुझसे पूछो क्या है मुझमें, मैं भूला तो नहीं पर याद नहीं करता तुझे।। जैसे गिरती बारिस और खो जाती है, गर्मियाँ आने पर नमी खो जाती है। जैसे होतो पूनम और चाँद खो जाता है, मावस आती अँधेरा हो जाता है। जैसे कोई फूल महकता और मूर्झाता है, अतीत में कहीं खो जाता है। वैसे मेरे गुजरे जमाने सी तुम, कहीं मुझमें ही खो गई हो। मैं भूला तो नहीं तुम्हें, पर तुम याद भी नहीं आती हो।। हाँ मौसम बदलते हैं और फिर से दोहराते है। चाँदनी रात भी हर मावस के बाद आ जाती है। नया फूल खिलता नई टहनियों पर और महकता है। पर तुम ना आओ तो अच्छा है, दूर रहो तो ही अच्छा है। क्योंकि मैं भूला तो नहीं, पर याद भी नहीं करना चाहता तुम्हें।। अब ये जीवन यूँ ही कटना है, मेरा प्यार मुझमें रहना है। जो जीना था मधूर रस साथ तुम्हारे, अब वो किसी और के हिस्से करना है। रुकी नहीं तुम जो मेरे लिए, मुझे भी नही...

लाइफ फाइट | Life fight

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लाइफ फाइट लाइफ की क्या झंड हुई पङी है। पास में रहती लङकी और एटिट्यूड पर अङी है। सोंचता मैं भी की मेरी ही घङी नहीं है। यहाँ नाचति है मोर पंख फैलाकर, भले मोरनी सङी है। वाह! जिन्दगी को क्या-क्या पङी है।। अजीब सी दास्तान गढ़ रहे हैं। छुट्टियाँ लगी है और मकान सङ रहे हैं। मौज की खोज भोज बन पच गई।  लाॅकडाउन में सबकी अच्छे से बिगङ गई।  गई  यादें सारी बचपन की, क्या दिन थे वो कोई ना कचपच थी। यहाँ तो उठ के छत पर आना। भटकना निठ्ठलों सा और चाय पीकर फिर सो जाना। बाहर जाओ तो वही बेकार की बातें। फटे जुराबों सी जुबान वाले। आता जाता कुछ नहीं और ज्ञानचंद है। ध्यान एक पल का नहीं और खुद ही संत हैं। संट है अपनी स्टाइल भी। कहना नहीं और वहाँ रहना नहीं।। अपन तो फिर घूम फिर छत पर आते। सोंचते कहीं कोई मिले बातें। दो दिन की ओर कर ले हरकतें। जाना है फिर फिर वही सपने। अपने तो अपने रहे नहीं। जो कहते नहीं कहीं वो लिखते यहीं। यही से अपना किस्सा शुरू। चलो हो गया सुबह का, अब दिन शुरु।। -कवितारानी।

लाइफ में मेरे | Life mein mere

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लाइफ में मेरे पहले ही लाइफ में बङे लफङे हैं। जहाँ देखूँ आस-पास बस पागल खङे हैं। अङे हैं अपनी बात पर कुछ बेवजह लङे हैं। कहाँ देखूँ, कहाँ सुनूँ पहले ही बखैरे हैं।। अब अपनी थोङी ज्यादा सोंचता हूँ। मैं अपनी धून में कुछ ज्यादा रहता हूँ। कहता हूँ उतना जितना सहता हूँ। फालतू की बातों से अब दूर रहता हूँ।। हाँ पता है मुझे कोई मतलब नहीं। बाहर बैठना अब जमता नहीं। मेरे जैसे अब रोज कमाते हैं। कुछ अपनी लुगाई की तो कुछ, अपने बच्चों की गाते हैं।। मेरा अभी कोई प्लान नहीं। शादी जैसी कोई मेरे ध्यान में नहीं। और लोगो को पङी मेरी। जिनकी जिन्दगी कहीं गटर में है पङी।। वो आके समझाते हैं जन्नत कहीं। कहीं है जन्नत तो बस वहीं। और आधा घन्टा दिन बन जाता है। मेरा मन साला अकेले में गाता है।। कहाँ से मन मंजिल को लगाऊँ। फिर यही सोंचता क्यूँ पागलों में जाऊँ। पहले ही कई झमैले हैं। लाइफ में मेरे बङे बखैरे हैं।। -कवितारानी।

मेरा खयाल है | mera khayal hai

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  मेरा खयाल है ये मेरा खयाल है, ये ख्वाब भी है मेरा। जैसा चाहिए तुम्हें वैसा ही नवाब है मेरा। शौक नहीं कुछ भी ऐरे गैरे, फिर किस बात के बखैरे। है पङोस में रहती तू, तू क्यूँ ऐसे रहती है। मेरी बातों को सिरीयस ले ले ना यूँ। तेरी छत का मोर रोज देख मुझे नाचता। तू किस ऐंठ में बैठी रहती, क्या कुछ समझ ना आता। समझ जरा की बंधा सीधा साधा है। पास है कई डिग्रीयाँ और सरकारी स्कूल में जाता है। हाँ कम है इनकम पर तू जमेगी ये खयाल है। अब ज्यादा भाव ना खा, ना नखरे दिखा। आता है जो बता और ना आता है जो मुझे समझा। एक जिन्दगी, एक भाव है, तेरा मेरे बारे में क्या खयाल है। जो भी है अब मुझसे कह। एक बार साथ बैठ मुझे भी कुछ कहने दे। दुख सहे मैने समझता हूँ। प्यासा हूँ पानी की किमत जानता हूँ। फिर तू तो मिनरल वाटर है मेरे लिए। तुझे कैसे मैं रखुगाँ समझ जा। आ बैठ कई कुछ बात करें। जीवन कटेगा साथ या नहीं इस पर मनन करें। करें ना फालतू बात, अगर हो विचार। तो मुझे बता, हाँ ये मेरा खयाल है। ये मेरा ख्वाब है कि कोई मिले तझसी। बस ये मेरा खयाल है।। -कवितारानी।

कोई रास ना आता | Koi raas na aata

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कोई रास ना आता मिलते है चेहरे कई, कुछ तुमसे ज्यादा, कुछ तुमसे कम से। आस लगती भी है उनसे कुछ, पर कोई असर खास नजर ना आता। भाता है जिस तरह तेरा चेहरा वैसे कोई चेहरा और ना भाता। एक तेरे सिवा दिल को मेरे कोई रास ना आता।। लुभाती है बातें कई, कई सुर समझ भी आ जाते हैं। दिल तक जाये ऐसे कई नगमें भी बन ही जाते हैं। पर जाता नहीं कोई वैसे जैसे भाये रहे थे तुम कभी। कहना बस इतना है कोई अब तुमसा रास नहीं आता।। कहते हैं लोग कई बातें कई बनती रहती है। मेरे जीवन की बेला में कहानियाँ नई जुङती है। पर जैसे बने किस्स वैसे बने किस्सो में कोई ना समाता। जैसे रास आई मन को तुम वैसे कोई रास ना आता।। बनती है बंदगी लोगो से कुछ तुमसे कम कुछ ज्यादा। खास लगती है यारी कुछ दिन, कुछ पल ही ज्यादा। खत्म ना होती दिल्लगी और अनन्त समय सा मन ना लगता। जैसा बिता समय साथ तुम्हारे वैसा कहीं ना कटता। जैसे भाई थे तुम वैसे कोई रास ना आता।। किस्से, कहानियाँ नगमे अब पुराने रह गये। लगता है जिन्दगी के मायने ना रहे। जैसे गये तुम आकर मेरी जिन्दगी में। लगता है खण्डहर को विरान कर गये।। अब कोई इस जीवन के लिए समझ ना आता। आस लगी रहती कोई पसंद आये...

आज भी अकेला / aaj bhi akela

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आज भी अकेला जिन्दगी की तह में, मैं दबा जा रहा अकेला। रोज नये दिन के साथ मैं कटा जा रहा अकेला। उम्मीदों की चाह में, नाउम्मीद रह रहा। हिम्मत बन खुद की आगे बढ़ रहा। मैं कल भी अकेला था चल रहा, आज भी अकेला चल रहा।। कोई साथी हमसफर बन ना पा रहा। कोई राहगीर मुझे जीवन के लिए ना भा रहा। आस थी कभी किसी मन के मीत की वो जिन्दा रखे जा रहा। मंजिल है कौनसी अनजान बन मंजिल को जा रहा। मैं कल भी अकेला था चल रहा, आज भी अकेला जा रहा।। कोई ताजगी भरी भौर सुहानी होगी। मेरी मंजिल मेरे हमसफर सी प्यारी होगी। सपनों को देखा था बचपन में कभी उन्हे उकेरे जा रहा। अपनी राह खुद ही मैं बनाये जा रहा। मैं कल भी अकेला था सफर में, आज भी अकेला चला जा रहा।। कई करवटें मौसम की देखी है। जिन्दगी की दि हर सलवटे देखी है। वो ख्वाब जो देखे थे कभी खुद के लिऐ मैने। उन हसीन ख्वाबों को जिन्दा रखे जिये जा रहा। मैं शांत अपनी धून में अपने एकान्त को गा रहा। मैं कल भी अकेला था सफर में अपने। मैं आज भी अकेला चले जा रहा।। -कवितारानी।

मेरी गली में / meri gali mein

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मेरी गली में  तुम आये हो मेरी गली में, जाना ना अब दुजी गली में। भुला बिसरा में वापस आया, नजरों में फिर तेरे छाया।  छाये हो फिर मेरे मन पर, जाना ना अब दूर कहीं पर।। तुम आये हो मेरे शहर में, जाना ना अब दुजेशहर में। भूल गया मैं सारी बातें, रस्में और सारी यादें। दुख देती जो भूल गया मैं, चाहत भरी सारी मुलाकातें।। तुम आये हो फिर से मिलने, शुरू करें फिर नयी बातें। मैं ना कहूँगा बिते लम्हे, तुम सुनाना अपनी जिन्दगी की सौगातें। कहना ना तुम कैसी चल रही है, जिन्दगी अपनी कैसी कट रही है।। तुम आये हो मेरी गली में, तुम आना ना मेरे घर पर। दुर से ही आह भर लेंगे, कुछ ना कहेंगे, कुछ ना सुनेंगे। नजरों से हो गुनाह, नजरें मिलाये ना, बस आहट से जी लेंगे।। जी लेंगे ये दिन भी ऐसे जैसे जीये है कई लम्हे। तुम आये हो तुम जाओगी, मेरी बाते कब समझ पाओगी। तुम कहती हो तुम कहोगी, पर मेरी बातों को कब समझोगी।। कहना ना तुम मेरे बारे में, सुनना ना तुम मेरे बारे में। जाने दूगाँ, रोक सकू ना, खूद पर वश नहीं रख सकूँगा। देखूँगा चुप चुप,चुप ही रहूँगा, मैं अपनी आह किसी से ना कहूँगा।। अजनबी बन गये जो अब अजनबी रहेंगे। जो लिखा...

तू ऐसे ना रहा कर / Tu ese na rha kar

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तू ऐसे ना रहा कर तू बेवजह यूँ रूठा ना कर, वजह देकर गुस्सा ना कर। मनाने की कोशिशें में कर लूँ, पर तू अपनी जिद पर ऐंठा ना कर। तू समझ में किस दौर में जिया, तू देख दौर क्या चल रहा। मेरी आजमाइशें इसी फिक्र में हैं, मेरी बंदिशे मेरे जिक्र में है।। मैं कल को तेरे साथ ना रह पाया, सोंच तुझे कुछ बता ना पाया।  उस कल को सोंच मान जा, गलतियाँ हो किसी की आ साथ आ।। यूँ अपनी जीत पर जश्न की ना सोंच, गुजरते हुए लम्हों की सोंच।  पल-पल मिट रही जिन्दगी आस पास, मैं हूँ अगर आस तो मेरी सोंच।  ये वक्त बुरा है कहीं मैं रहूँ या तुम, कई चले गये कहीं मैं जाऊँ या तुम। गुजरा वो जमाना जो बुरा था, गुजर ये भी जायेगा, तू गुजरे वक्त की सोंच।। मैं भूल जाऊँगा सब कही बातें, तू भी कुछ तो भूल। साथ क्या जायेगा जमाने से, क्या रह जायेगा इतना सोंच।। तू यूँ हर बात पर चिङा ना कर मेरी खतायें है क्या कहा कर। कुछ बोल सकूं मैं इतना सुन ले, प्यार के लम्हे साथ बुन ले। वो दोस्त अच्छे हैं रह ले साथ तू, पर उनमें ना रख कोई खास तू। कोई मुसझे खास हो जाये तो बता दे, पर ऐसे ना उसे-मुझे दोखा दे।। मैं सह लूँगा बस स्पष्ट कहा कर, अपनी ज...

वो मेरे गाँव के दिन | Vo mere ganv ke din

वो मेरे गाँव के दिन वो चौराहे की चाय, सब्जी मण्डी के पतासे और ढाबे का खाना। याद आता है मुझे अपने दोस्तों की टोली में समय बिताना। वो बरगद का पेङ, ताश का खैल और गप्पे लङाना। याद आता है मुझे बेवजह दोस्तों को चाङाना। वो कुऐ की जंप, मोहल्ले का हैण्डपम्प और सबको भिगाना। याद आता है मुझे मेरे गाँव का बिता जमाना।। वो सुबह की दौङ, दुसरो से होङ और जीत की जोङ बिठाना। याद आता है मुझे खैल-खैल में आपस में झगङ जाना। वो किताबों का बोझ, होमवर्क रोज और बहाने बनाना। याद आता है हर बात को दोस्तों में मजे से बताना। वो बेवजह भटकना, हर कहीं अटकना और घर पर डाट खाना। याद आता है मुझे मेरे बचपन का जमाना।। वो खैत का काम, पेङ के आम और इमली खाना। याद आता है मुझे अपने दाँत खुद खट्टे कर जाना। वो दिन के सपने, पेङ पर अपने और पक्षियों को खिलाना। याद आता है मुझे दोस्तों संग शहद तोङना और दंश खाना। वो अपनी मौज, दौङ भाग की खौज, और बेवजह इतराना। याद आता है मुझे अपने बचपन का मंडराना।। वो कुछ खास मेरे, पार्टियाँ मेरी और टूर मेरे। याद आते हैं मुझे हर लम्हे जो खास रहे मेरे। वो उत्सव सारे, मैले सारे और जुलूस सारे। याद आते हैं मुझे ...

आओ कुछ बात बनाये | Aao kuchh baat banaye

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आओ कुछ बात बनाये ये दिन गुजर जायेंगे, ये साल गुजर जायेंगे। ये चेहरे बदल जायेंगे, ये हालात बदल जायेंगे। अपने रिश्ते बदल जायेंगे, अपने भाव बदल जायेंगे। अपनी बातें बदल जायेगी, अपनी मुलाकातें भूला दी जायेगी।। कुछ रह जायेगा गुजरा हुआ सा। कुछ अहसास करायेगा हल्का सा। जब खाली लम्हों में होंगे। जब एकान्त में खोये होंगे। वो यादें होगी बातो की। वो बातें आयेगी मुलाकातों की।। फिर हम ना होंगे साथ कभी, ना साथ होने वाले होंगे। फिर चाहेंगे कितना ही बात करना, ना बात हो पायेगी। आज वश चल रहा है, कल वश में समय के हो जायेंगे। आज पराये हैं दूरियों में, कल सच में पराये हो जायेंगे।। याद आयेंगे बिते लम्हे फिर। ख्वाबों में कभी हम आयेंगे। रोज का सताना हो ना भले। कभी सपनों में आते जायेंगे। फिर वही कहानी दोहरायेंगी। पर फिर कभी आज सी बात ना होगी।। आओ समेट ले आज को, जो मिल रहा उस सबको। परेशानियों को और बढ़ ही जाने दे, यादों को बढ़ ही जाने दे। ये जो किस्से बने वो कल साफ छवि हो, दिखे कुछ भले पर रवि हो। चुभती रोशनी नहीं, मधूर संगीत हो, यादें हो।। कुछ खास बातें बुन जाये। आओ कुछ खास यादें बन जाये। दूर रहे या पास रहे हम। ग...

उङ-उङ रे परिन्दे | Ud Ud re parinde

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उङ-उङ रे परिन्दे उङ-उङ रे परिन्दे, उङ-उङ रे परिन्दे।। क्या बैठा है डाल पर, क्यों जाता अपनी माँद में। क्यों चिपका रहता अपने माँ बाप से। उङ-उङ रे परिन्दे, उङ-उङरे परिन्दे।। पंखो से बङा लगता, लगता है सुन्दर परिन्दा। खाता पिता खुब रहता, रहता क्यों है शर्मिंदा। ना आँख का अंधा, ना पंख से पंगु। ज्ञात है ढाल ढाल, जानता है पात पात। फिर क्यों बैठा हार तू, क्यों बैठा हार तू। उङ-उङ रे परिन्दे, उङ-उङ रे परिन्दे।। हौंसले की उङान भर तु, मन में तू जोश भर। आसमान पुकार रहा, अब ऊँची तू उङान भर। कह रहा हर साकी, हर ढाल है कह रही। उल्लास भरती डालियाँ कह रही, उपहास करती शाखाऐं कह रही। सुन मन की, कर भरोसा, खुद ही उङ। उङ-उङ रे परिन्दे, उङ-उङ रे परिन्दे।। कोई साथ ना आयेगा, कोई पास ना आयेगा। आयेगी आँधी जो, उङा ले जायेगी पेङ जो। उखङ जायेगी डालियाँ, और उजङेगी माँद यों। कुछ नहीं रह जायेगा, आसमान ही बचायेगा। कर फैसला आज फिर, फिर उङान भर। उङ-उङ रे परिन्दे, उङ-उङ रे परिन्दे।। आसमान के छोर नाप, सबको पिछे छोङ डाल। रख भरोसा खुद पर ही, मान अपनी खुद की ही। आजमा ले ताकत आ, आज उङ के दिखा। चुप कर दे दुश्मनों को, खुश कर दे तू ...

हालात ए जमाना | Halat e jamana

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  हालात ए जमाना किसे पङी है दूसरों की, सबको अपना हाल सुनाना है। वक्त साथ बिताये कितना ही, दुरियाँ सब मिटा देती है।। ये कायरों का संसार है रवि, कोई तुझे सह नहीं सकता यहाँ। इनकी हाँ में हाँ तक बात करेंगे, ना कौन सुनता यहाँ।। भोलेपन में सिख सब देते हैं, पर स्वार्थ खुद का रखते हैं। डरते बहादुरों से और उनकी गलत बात भी मानते हैं।। वाह जमाने क्या फितरत बनाई, सीधो को सीधा रहने ना देता। उल्टों की करता वाह वाही, वाह क्या बात जमाई।। अब मन नहीं होता किसी से कहने का, दुखो का पहाङ मजबुत हो गया। आसानी से ढहता नहीं ये, झरनों का बहना भी रुक गया।। कब तक सुने बस मन बहलाने की, सारे अपने मन की कहते। अपने मन की करने में, दुसरे की एक ना सुनते।। कैसे बिगङे बोल है लोगो के, मुह से साथी कहते रहते हैं। काम आये दुख में कभी ऐसा अहसास ना होने देते हैं।। अपनी गाथा गाते लोग, लोगो की सुनता मैं। कब तक अपने मन का बोझ सहूँ सोचता रहता मैं।। हालात ए जमाना पहले रास आया ना अब आता है। अपनी धुन का बनकर मैं जीवन जीता जाता हूँ।। -कवितारानी।

अभी प्यास बाकी है | Abhi pyas baki hai

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अभी प्यास बाकि है जीवन सागर में ढूबकी लोग लगाते हैं। जो मिले उसमें खुश रहने के गीत रोज गाते हैं। आते है, टकराते है, और ना चाहूँ तो भी पास आकर, मुझे समझाते हैं। समझ मेरे आता नहीं, कोई गीत मेरा गाया करता नहीं। मैं समझा किसी को पाऊँ नहीं, लोग समझना भी चाहते नहीं। पर मेरी जीत अभी बाकि है, मेरे लिखे गीत अभी बाकि है। अभी पिया है कुछ रस, सफलता का जाम अभी बाकि है। मेरी बुझी नहीं प्यास अभी, अभी प्यास बुझना बाकि है।। जो है उसमें खुश हूँ, पर मौज मेरी बाकि है। जो मिला वो अच्छा है, पर पद का नशा अभी बाकि है। जो पाया वो खोना नहीं, पर जो चाहा वो मिला नहीं। जो चाहा वो अभी बाकि है, मेरी आगे बढ़ने की आस अभी बाकि है। कुछ तर हुए सपने मेरे, पर आस अभी बाकि है।। हाँ दूर है मंजिल शायद, तब ही तो दिख नही रही। धूंध तो हट गई है, पर मंजिल अभी दिख नहीं रही। रास्तों के भूल भूलैया पार किये, अब कुछ ही राहें दिख रही। लिखि तकदीर किसपर, चलेंगे तो मंजिल मिलेगी ही। थका नहीं बस आराम किया, अब ही तो अंतिम दौङ बाकि है। सफलता को चखा है बस, पर रसपान अभी बाकि है। प्यास भी बहुत है मेरी, इसलिए लग रहा है, प्यास मेरी बाकि है।। -कवितार...

पता है मुझे | Pta hai mujhe

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पता है मुझे समय से उठ जाता हूँ आजकल, पता है मुझे कोई जगाने नहीं आयेगा। अपना खाना खुद ही बना लिया करता हूँ, पता है कोई खाना बनाने नहीं आयेगा। खयाल रखता हूँ खुद का मैं, जानता हूँ कोई सहलाने नहीं आयेगा। पैसे बचा लेता हूँ अपने कल के लिए,  पता है जरूरत पर कोई काम नहीं आयेगा। लिख लेता हूँ अपने लम्हों को मैं, पता है फिर कोई याद नहीं दिलायेगा। उम्मीदें छोङ दी मेरे अच्छे की मैने, पता है मुझे जो है लिखा है हो जायेगा। मन लगाकर काम करने लगा हूँ मैं, पता है मुझे मेरा नाम इसी से होगा। ज्यादा उम्मीदें नहीं किसी से मुझे, जानता हूँ जिसे आना है बिन बुलाये आयेगा। आशान्वित कम रहता हूँ अब मैं, जानता हूँ जो है उससे गुजारा चल जायेगा। खुद की परवाह करने लगा हूँ मैं, पता है कल कोई पास नहीं आयेगा। खुलकर जीने लगा हूँ मैं, ये लम्हा गया तो फिर ना आयेगा। समय के साथ चलने लगा हूँ मैं, पता है मुझे ये समय फिर ना आयेगा। अपना खयाल रखने लगा हूँ मैं, पता है मुझे ये समय फिर ना आयेगा।। -कवितारानी।

पार्थ / Parth

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पार्थ तुम कर्म करो पार्थ, कर्म करो। वो स्वर्ग तुम्हारा है। वो बहती नदिया, वो झरने, वो झील, वो दृश्य।  वो मिष्ठान, खाद्यान्न तुम्हारा है। क्या सोंच रहे पार्थ, कर्म करो, कर्म करो। वो आकाश तुम्हारा है। अपनी लगन लगाओ, अपनी जिद करो। अपने मन की करो, वो सपनों का जहान तुम्हारा है। आगे बङो पार्थ, आगे बङो। जैसे किरणें बढ़ती है रोशन जहान करने को। जैसे निशाचर चलता अपनी धुन में। जैसे रवि खुद जलता जग हरने को। वैसे ही तुम भी, निस्स्वार्थ, निस्संकोच, निर्भय बङो। आगे बढ़ो पार्थ, आगे बढ़ो। जग किर्ती तुम्हारी बाट जोह रही। तुम्हारे अनुयायी तुम्हें देख रहे। रहो ना हताश परेशान पार्थ। कर्म करो, आगे बढ़ो, खुद से लङो। रुकावटों से ना डरो पार्थ।  उलझनों से मत डरो। कहने दो जग को, यश तुम्हारा है। छोङो उसे जो बिल्कुल नकारा है। हार से ना डरो, भीङ से ना डरो। आगे बढ़ो पार्थ, आगे बढ़ो पार्थ।  आगे बढ़ो।। -कवितारानी।

सुन मेरी / sun meri

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सुन मेरी सुनो नहीं ! सुन। अपनी ना तु बुन। ये अपने आपस की बात है। अपनी हुई नहीं मुलाकात है। पर फिर भी अपना साथ है। अपन एक दुसरे के खास है।। अब लोग कहेंगे तो कहने दे। उनकी बातें तू रहने दे। अपनी ही सुना अच्छा लगता है। हॅसी से तू बच्चा लगता है। बच्चों में तू बङा खुलता है। अपने को भी ये चलता है।। कहना था कुछ-कुछ कह गया। मुद्दे की बात से हट गया। रट गया था मैं जिसे कल रात से। सुबह होते होते जैसे भटक गया। वैसे भटका नहीं मैं, मैं अटक गया।। अब तेरा जो स्वेग है। और छोटा मेरा बेग है। इतनी किताबें रखता ना मैं साथ में। और अब तू पहेली मेरे हाथ में। साथ में बातें किसी से पहली दफा। सोंचता हूँ कहीं हो ना जाओ खफा। यही सोंच रुक जाता हूँ।। हाँ मैं सोंचता हूँ कहीं कोई गलती ना हो। और मेरी गलती पर तू पल्टी ना हो। और फिर मैं रह जाऊँ ना अकेला। जैसे पहले था वैसे ही हटेला।। फिर तू तो जानती है अपनी आदत है खराब। जो ना आये समझ उसे बोल देते रास्ता नाप। या फिर उसकी कर देते टांग खिंचाई।  पर वैसे कोई तुझसी कभी ना थी आई। । देख अपना एक अलग नाता है। जो तुझे ना आये समझ मुझे भी ना भाता है। बच्चों सा रहना तुझे भी भाता है...

जो जाना चाहे जाने दे / jo jana chahe jane de

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जो जाना चाहे जाने दे    रो रहा है? क्यों? क्यों रो रहा है? किसने कहा था बात कर?  और अपने हालात ऐसे कर। उठ वहीं और वहीं गीर। कौन कहता है उसी से बात कर। नहीं टाइम उसके पास तो, तू भी टाइम पास कर। है उसके कई तुझ जैसे, तो तू भी कई और मर। बढ़ आगे बढ़, छोङ उसे जाने दे। रोती है तो रोने दे, मुस्कुराती है तो मुस्कुराने दे। आती जाती रहती है ऐसी कई सारी। कई सारी के तो तेरे पास नंबर है। हर एक एक से बढ़कर है। भाङ में उसे तू जाने दे। जाने दे अगर जाती है तो उसे जाने दे। छोङ उसे अपनी जिन्दगी पर, उसे मुस्कुराने दे। मान ले वो थी हवा का झोंका, जो आई थी पल भर को। सहारा चाहिए था तुझी को। उसकी कोई जबरदस्ती नहीं। तेरी ही थी कोशिशे हसती वो रही। उसकी आदतें आम है, तू उसमें आम है। आते हैं कई  तुझ जैसे, तुझ जैसो का कोई  दाम नहीं। चल जाने दे, उसे अब जाने दे। दिल मजबुत कर और आगे बढ़। लङ नहीं खुद से, कर धङ पकङ। जिसे आना है आयेगा, जाने वाला जायेगा। जिन्दगी ने जो सिखाया है, सिख जा बङा काम आयेगा। सिखा ना जो तू, तो रोता ही जायेगा। टाइम बदल दे बङा मजा आयेगा। जो गये हैं वो एक दिन वापस आयेंगे। बना तक...

लोग हैं कुछ तो कहेंगे / Log hai kuchh to kahege

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कुछ तो लोग कहेंगे ऐसे कोई कहता नहीं, पर किसी के मन में रहता नहीं। सामने नहीं तो पिछे से कहेंगे, लोग है कुछ तो कहेंगे।। हाँ ये लोग है कुछ तो कहेंगे, अपने मन की ही कहेंगे। इनका काम है कहना, और चुप ना रहना।। बात का पंतगढ़ ये बनाते, अपनी ही ये कहते जाते। रहते हमेशा छुपते छुपाते, कोई पूछे आगे होके तो कुछ नहीं बताते।। अपना नाम छुपाकर जैसे मन का बोझ उतारते हैं। बिन पूछे ही अपने मन की अलापते हैं।। दुसरों की कहने में इन्हें बङा मजा आता है। हॅसकर मजा लेने में किसी का क्या जाता है।। काम के ना धाम के मरे पङे है जान के। इनको अनदेखा कर चलते हैं, समझदार इनपे नहीं पलते हैं।। जलने वाले और कहते हैं, समझदार यहाँ चुप रहते हैं। ये जानते है, लोग है, कुछ तो कहेंगे।। लोग है कुछ तो कहेंगे, लोगो का काम है कहना। लोगो का काम है कहना और चुप ना रहना।। विचारों के मरे ये बदल जाते हैं, ऋतु की तरह ये पलट जाते हैं। कल का कहा इन्हें याद ना रहता, कोई कुछ कहे, इन्हे पता ना रहता।। जिन्दा है तो जिन्दगी ये जीते हैं, किङे की तहर ही ये जीते हैं। दुसरों की कहना इन्हें भाता है, अच्छा लगे या ना पर कहते हैं।। लोग है कुछ तो कहेंगे, ...

मुझ पर जोर नहीं / mujh par jor nahi

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मुझ पर जोर नहीं इस दिल पर मेरा जोर नहीं शौर है सब और पर मुझ पर जोर नहीं, भौर है रोज मेरी पर मेरा कोई ठोर नहीं, मुझ पर किसी का जोर नहीं। हाँ मैं रोज उठ जाता हूँ किसी के उठाने से पहले, खाना बनाता हूँ किसी के कहने से पहले, जहाँ जाना होता है खुद चला जाता हूँ, पूछने की मुझे किसी से जरुरत नहीं, हाँ मुझ पर किसी का जोर नहीं। दिखे लोग मुझे और मुझे वो दिखते हैं, देख मुझे आपस में पूंछते हैं, कहते होंगे, कौन अजनबी है, पर मेरी भी किसी से अनबनी नहीं है, वो है अपने रास्ते और मेरा कोई नहीं है। दूर अपने गाँव से, खुद की नाव से, अपने चाव से, चाप चलाऊँ मैं, गाना आये ना, पर लिखता जाऊँ मैं, हाँ अकेले में गुनगुनाऊँ मैं, क्यों मुझ पर किसी का जौर नहीं। जैसे तैसे कर शाम आती है, एकान्त में जिन्दगी गाती है, वो पुरानी यादें दोहराती है, बोझ सी जिन्दगी, जोर से जीती है, और कहती है,"मुझपे है जोर कई।" पर अब मैं हूँ वहाँ और नहीं, और अभी मुझ पर कोई जोर नहीं। हाँ याद आते हैं वो दिन दुपहर शामें, कैसे मुश्किल से कटती थी मेरी रातें, कहने को पास नहीं था कोई, किसे कहूँ अपनी बातें, तभी हर पल लगता था जीना है मुश्किल,  ...

Betuki batein logo ki / बेतुकी बातें लोगों की

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  बेतूकी बातें लोगो की क्यों आने पर पुछतें हैं, "मैं आ जाऊँ क्या?" खा लेने पर पुछते हैं," मैं खा लूँ क्या?" सुनाने लगते हैं अपनी दुःख भरी दास्तान, और कहते हैं,"मैं सुनाता कहाँ?" सबसे दुखी अपने को बताकर, सब जानकर अनजान बन, सर्दी में मेरी चादर खिंचकर, रिसकर मुझे रिझाते हैं। कुछ तो आदत सा बन मुझसे दूर जाते हैं, चिढ़ातें हैं मेरी एकान्त जिन्दगी पर। तंज कस-कस कहते हैं, भरी सर्दी में पूछते है,"इतनी सर्दी कैसे है?" आज इतनी सर्दी क्यों है? हवायें चल रही है, सर्द हवाऐं चलने से सर्दी पङ रही है। मन करता है कुछ और कहने को, कैसे कहूँ कि इससे ज्यादा सर्दी तो तुमने दी। कर्ज पहले ही था मुझ पर, तुमने मेरी चादर और ले ली। मुड पहले ही था खराब मेरा, तुमनें तो मेरे समय की भी हालत खराब की। फिर भी मन में भार लिए, और सर्द हवाओं को अपने ऊपर लेकर, बातों को मन में लिए, मैं हॅसता हूँ और कहता हूँ। हाँ आज सर्दी ज्यादा है। आपके आ जाने पर भी ज्यादा है। ये सर्दी का मौसम है।। -कवितारानी।  

एकांत में यादों का पहरा / Alant mein yadon ka pahra

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एकांत में यादों का पहरा  एकान्त में शांत जिन्दगी पसरती है, आत्मा सन्नाटे से डरती है। हाँ मेरी यादें रोज सिहरती है, एक कंपकपी सी छा जाती है। आँखे घने बादलों सी बरस जाती है, फिर किसी अनजाने की याद आती है। चेहरे बिना मुझे वो भाती है, फिर मुझे उसकी बातें बुलाती है। हाँ मुझे उसकी याद आती है, मुझे उसकी याद आती है।। आती है याद बहुत हमदर्द बन, और दर्द का मेरे मर्ज बन। पर कर्ज जैसे समाज का ले रखा है, और उसी ठेके पर मेरा वजूद टिका है। मैं आगे बङ-बङ पिछे आता हूँ, तितलियों के पास जाता और इठलाता हूँ। वो तितलियाँ जैसे टिमटिमाती है, पास आती दूर जाती इतराती है। फिर वो भी मुझ पर जैसे किसी कर्ज को दिखाती है, और मैं फिर से शांत एकान्त में रह जाता हूँ । आता नहीं गाना तो सुनता जाता हूँ, नाचता हूँ, भागता हूँ, दिन काटता हूँ । फिर जब सर्दी से सिहरन है बढ़ जाती, और जिन्दगी की रातें मुश्किल से है कटती । फिर तभी तुम जैसे लोग जीवन में आते हैं, और जितनी यायनाऐं झेली जीवन में उसे दोहरातें हैं । ऐसे में बस मैं सुनता हूँ, समय गुजारता हूँ, और आप लोग अपनी ही बस सुनाते हो ।। -कवितारानी।

कुछ लोग मिलते हैं, यादों में छा जाते है / kuchh log milate hai, yadon mein chha jate hai

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कुछ लोग मिलते हैं यादों में छा जाते हैं । स्व हित, स्व पीङा पर सब ध्यान रखते हैं । पर हित, पर पीङा पर बस फबतियाँ कसते हैं । स्व विवेक, स्व ज्ञान बस स्वार्थ तक जग चलता है । पर ज्ञान, पर प्रगति जग बस जलता है ।। निस्स्वार्थ भाव कर्म पथ पर दुर्लभ जन मिलते हैं । ज्ञान गाथा पर बखान छोङ कुछ कर दिखलाते हैं । ऐसे ही जीवन सफर में कुछ लोग विरले ही मिलते हैं । जैसे आप मिले वैसे मिलकर यादों में छा जाते हैं ।। होङ छोङ बाधाओं को मोङ समय से लोहा लेते हैं । कर्म पथ पर चलकर महान त्याग को महत्व देते हैं । अन्तर्मन में ज्ञान समेट जगह को भाव देते हैं । वीरों से द्वंद्व कर मुरखों को जवाब से चित्त कर देते हैं ।। कोमल भाव, दृढ़ता और निश्चय का व्यक्तित्व रखते हैं । विकट मोङ, दुविधा और परेशानी में वो साहस रखते हैं । कुछ लोग ही जीवन सफर में ऐसे आ मिलते हैं । जैसे आप मिले इस कर्म पथ पर वैसे लोग यादों में रहते हैं ।। परोपकार कर सहज भाव से मित्रवत् रहते हैं । अनजान जगह अनजान बन देवदूत से खिलते हैं । अनदेखे किस्से सुना अनसुने को सुनाते हैं । दूर दुविधा कर हर जगह नये किस्सों को हिस्सा बनाते हैं ।। विरले ही आ मिलते कु...

तुझे सोंच कर / tujhe sonch kar

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  तुझे सोंच कर   मैं कवि तो नहीं पर कवितायें कर लेता हूँ । तुझे सोंच कर शब्दों को गढ़ लेता हूँ ।। लिख लेता हूँ अपने अनकहे लब्जों को । जी लेता हूँ तुझ संग कुछ लम्हों को ।। वो कल्पनाओं का संसार मुझे बहुत भाता है । जब तु मेरी बाहों में नजर आता है ।। शामें रंगीन और मदहोश भरी लगती है । भरी सर्दी भी बसंत सी खिलती है ।। तेरी खिलखिलाती हॅसी और चेहरा मुझे भाता है । तेरे साथ हर लम्हा सोंच कर मन खुश हो जाता है ।। याद कर तुझे कमी का अहसास होता है । कुछ देर बात करने से ही सुकून मन को होता है ।। दुरियाँ भले जिस्म की अपने दरमियान रहे । दिल की नजदीकियाँ दर्द दूर कर प्यार बयान करे ।। मेरी गुजरती हूई जिन्दगी के कई पन्ने तेरे नाम हुए । अनकहे शब्दों से कविताऐं लिखते रहे ।। तुम्हारी लिखी कविताओं में खुद को पाकर । निर्धन से धनी महसुस किया है ।। गहरे चिंतन के चेतनापुंज में खुद को पाया है । अपने भाग्य और भविष्य में रवि खोया है ।। एक कमी जो खटकती रहती थी मुझमें । अहसास अधुरेपन के पुरे होने का हुआ है ।। आज पढ़कर कुछ शब्दों को, मुझे; अपने अस्तित्व का आभास हुआ है ।। मैं रवि तो नहीं जो उदय हुआ था कभी । तु...

Sham ka nazara aor main / शाम का नजारा और मैं

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शाम का नजारा और मैं भगवा औढ़े पश्चिम, मध्य में चाँद और पूरब में गुरु शिखर । एक जहाज जा रहा ढूबते सूरज की ओर से पूरब को । मन ही मन ईच्छा हुई घर जाने की, पूरब की । घर की याद आई और गाँव की भी । फिर सोंचा कौन वहाँ मिलेगा अपना । और विचार आया कौन मेरा बचा होगा वहाँ । सर्द हवाएँ तेज हुई, सिहरन बढ़ने लगी । बङा सा पहाङ ये माउंट आबू अब अँधेरे में खोने लगा । पश्चिमी लाल चुनरिया, काले रंग में बदलने लगा । मध्य का चाँद और चमकने लगा । और वो विमान कहीं पूरब को जाने को गायब हो चुका । मैं अकेला सोंच रहा, तुम्हारे बारे में सोंच रहा । कुछ देर और बैठना चाहा था । कुछ देर और सोंचना चाहा था । फिर सर्द हवाएँ और बढ़ गई, और अँधेरा भी । फिर लोगों की सोंच आई, लोग क्या सोंचेगे मुझे अकेला देख । और मैं अपने विचारों को छोङ वही । फिर अपने रोजमर्रा के काम में लगा । खाना जल्दी खा लिया था । अब ईश्वर की आराधना का समय था । कौन मेरे अकेले का सहारा उनके सिवा । अब भी उन्हीं सा साथी, कोई मुझसे मांग रहा । कमियाँ हैं उन्हें पूरी करना चाह रहा ।। - कवितारानी ।