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जय राम जी। jai ram jee

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Jai ram jee - click here to see video जय राम जी। मन मुर्छित, ध्यान भंग  होयो। देख सुरत राम, रवि रोयो।। नीर निरंतर नयन होयो। खुशी का पल म मन खोयो।। नजर एक टक तस्वीर प अटकी। सब दुख - दर्द भूल बस सुरत खटकी।। कसा मनमोहक म्हारा राम सज्या ह। पुण्य भाग पायो, कि दख्यो राम दरबार कसो ह।। फुलां स ज्यादा राम की सुरत प्यारी। भाव नयनां को देख म्हारी हिम्मत हारी।। ह जो सब न्योछावर राम न। बस अब जीवन काम आ जाव राम न।। नमन वा सारा नी, जो मर मिट्या राम को। आशीष, साधुवाद वाई जो ले आया राम को।। मन भारी, तन प्यासो सुरत निहार क। बस अब दर्शन करां, अयोध्या जा क राम का।। जय राम। श्री राम । जय जय राम। भक्त अधुरो करजो पुरो, बाट नाळू राम जी।। जय राम जी। जय राम जी। जय-जय राम जी।। - कविता रानी।  

राम से दूर।

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  राम से दूर। हो किस मत के मतवाले। अंधे, अपाहिज या बेसहारे। समझ से परे तुम्हारे तर्क सारे। क्या कहती मति तुम्हारी, क्या तुम हारे। जब हो जग से जुङे तुम। फिर क्यों आसमान में पैर गाढ़े।। कहता जग, सब राम का। सुनता जग बस राम को। तुम भी हो हनुमान जी के सहारे। फिर क्यों ढुंढते अपने प्यारे।। हो निर्बुद्धि, बोल बतलाते। बहके, भटके, यही दिखलाते। अपनी ही बस गाते रहते। राजनीति की अपनी पकाते। चाहे कोई हो अन्य मत का। तुम मन दुखाते राम भक्त का।। चाहिए क्या ना साफ बतलाते। सनातन को निचा दिखाते। महावीर का व्रत करते। श्रीराम से भय करते।। कैसे भक्ति और शक्ति पाओगे। लहरों के विपरित और पथ से भटकते जाओगे। जो राम से ना जुङ पाओगे। तो कुछ काम ना आ पाओगे।। - कविता रानी।

मनमानी

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  मनमानी मैं सुनता हूँ, लोग सुनाये जाते हैं। बिन पूछे बताये जाते हैं। एक पल रोक अपनी जो कहूँ। लोग मुहं फुला के चले जाते हैं।। मैं कहूँ मदद करने की, लोग लोग रुठे नजर आते है। बिन मांगे कई बार काम में दखल दे जाते हैं। काम बिगङे तो आरोपी बना देते हैं। और काम सँवर जाते तो  वाह वाही लेते है।। जब मैं अकेला रहना चाहूँ तो जीवन में घूसे चले आते हैं। बिन कहे चिपके ही जाते है। जब उदास बैठा मैं, कहूँ मेरे पास आने की। तो लोग व्यस्त होते दूर नजर आते की।। सलाह तो सारी जेब में लिए फिरते हैं। बिन कहे सुनाते ही रहते हैं। जब सही समय पर कहे बताने को। तो मैं क्या जानूं , देख ले, कह भाग जाते हैं।। ये कैसी मनमानी है। ये क्या लोगों ने ठानी है। मुझे नहीं लगता मेरी समझ की है। ना मुझे किसी को समझानी है। पर ये जबरदस्ती की कहानी है। ये मनमानी है।। - कविता रानी।

अब जीवन सहज है।

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  अब जीवन सहज है। अब ज्यादा पढ़ाई नहीं होती। ख्वाबों से अब पहले सी लङाई नहीं होती। ना कसमकस अब नींदों से होती। ना मेहनत अब पहले सी होती।। अब भी समय चल रहा है। और मैं समय की धार में बह रहा हूँ। कुछ कहते थे जीना जिसे। लगता है वही मैं कर रहा हूँ।। आशायें पंख फैलाये हैं। नयी उमंगेआती-जाती हैं। अब बस मैं ठहरा हूँ। अब मैं  जैसे लय में हूँ।। अब ज्यादा सोंचना छोङ दिया है। अब ज्यादा परवाह करना भी छोङ दिया है। अब तो जो जैसा है वैसा रहने देता हूँ। कोई बोले कुछ तो मैं भी कुछ कह देता हूँ।। अब ज्यादा सहना ना होता। बैठ अकेले अब ना रोता। हाँ  अब खोये रहना छोङ दिया है। जीवन को अब सहज ले लिया है।। - कविता रानी।

आज की बात कर | Aaj ki bat kar

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  Aaj ki bat kar - click here to see video आज की बात कर। गये गुजरे किस्सों की बात ना कर। जो छोङ गये उन लोगो की बात कर। ऐ रवि तू सुन कौन तुझे अपनी बताता है। तू आज जो साथ है, तू बस उनकी बात कर।। जो तेरे होते वो तो छोङ जाते क्यों। अपनी तारीफों में से तूझे भूलाते क्यों। ऐ रवि तू ही सोंच कौन सच साथ था। तू जो आज है उस सफर में वैसे भी कौन साथ था।। जो चले गये उनका ना अफसोस कर। जो भुल गये उनको ना तू याद कर।  ये वक्त तेरा है इसे तूने बनाया है याद रख। जो सच्चे मन से पास है बस उसे साथ रख।। तेरे चाहने वाले तेरा स्वार्थ से साथ ना देंगे। हर खुशी गम में तेरा साथ देंगे। तू बस उन्हीं के साथ हिसाब रख। तू बस आज की बात कर।। - कविता रानी।    

जब पलट कर देखता हूँ।

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जब पलट कर देखता हूँ। एक जमाना ही बदल गया। मेरा जीवन ही बदल गया। आज सुनें लम्हों में सोंचा कल को तो। पाया काफी कुछ पिछे छुट गया।। कल तक हजार मैं कमाता था। कल तक पैदल जाता था। कल तक सपनें देखता था। कल तक अकेला था मैं।। आज सब वो बिती बात है। कोई हमसाया सा साथ हैं। आज खुद की गाङी चलाता हूँ। आज मैं पहले से ज्यादा कमाता हूँ। अब कल की बातें सारी सपना लगती है। अचरज से वो भरी लगती है। सब कुछ अलग ही सा लगता है। जब पलट कर देखता हूँ मैं।। - कविता रानी।

तकदीर

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  तकदीर तह तकदीर की तराजू़। ताकत है कि तकदीर साथ।। तमाशा तकता तालुका जमानें से। तमाम रारीख़ गवाह तकदीर क्या।। तौहीन तबाह तन तराशनें से। तस्वीर तय जब तकदीर साथ।। तय तहखाना, तख्त तराशना क्या। तकलीफ़ तश रखना , तब तकदीर ख़ाश।। ताउम्र तजूर्बा तराशना चलता रहा। सब मिलता रहा जो तकदीर साथ।। - कविता रानी।

चल रही जिन्दगी।

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  चल रही जिन्दगी। कौन सगा, कौन संगी। मैल मिले बैमेल अतरंगी। जंग सी चल रही, जिन्दगी ये जंग सी। कौन भला, कौन भाला, झेल रहे हम सब अतरंगी।। भली राह-राह पर बलि, ले रही हर मनरंगी। झैल रहे बेमतलब,  लोग अजनबी - अतरंगी।। कौन भला, कौन भाला। कौन बताये रंगबधी। सब मतलब के, मतलब की ये जिन्दगी। चल रही जिन्दगी, चल रही जिन्दगी।। - कविता रानी।

उलझता जा रहा।

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  उलझता जा रहा। कोई आकर मिल रहा। कोई मिलकर बिछुङ रहा। याद है चेहरे कुछ। कुछ पन्नों के जैसे भूल रहा।। घुल गया  हूँ जीवन में। या जीवन मुझमें घुल गया। था पाप किया कभी जो। वो पाप-पुण्य बह गया।। रह गया फिर मैं। मुझमें में सिमट गया। राह तलाश रहा बाहर बाहर की। कि अन्दर औ र गहरा जा रहा।। मैं उलझता ही जा रहा। मैं उलझता ही जा रहा।। - कविता रानी।

मैं भक्त भोले का।

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  मैं भक्त भोले का। रत में अपनें आप में। विरक्त हूँ अपने आप में। नर हूँ नशा करता हूँ। नशा करता हूँ ताप में। भला चाहूँ सबका, सबको रखना चाहूँ पास में। मैं भक्त भोले का।। करुँ सब अपने मन का मैं। सुनू सबकी , सबकी सुनता रहूँ । अपनी करुँ, अपनी करता रहूँ। रहूँ धून में अपनी मैं। रहूँ खोया आप में। मैं भक्त भोले का। रहूँ मग्न अपने आप में।। - कविता रानी।

मन मेरा जा रहा।

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मन मेरा जा रहा। व़क्त चला जा रहा बहते दरिया सा। आसमान बुला रहा पूरे होते सपनों सा। एक रुक ना रही घङी मेरी। एक रुक ना रहा मन मेरा।। बन पथिक, अथक चला जा रहा। घनघोर अंधकार में मंडरा रहा। मृग तृष्णा सी जगी रहती प्यास कोई। मैं तङाग पार कर -जिया जा रहा।। बदलती तस्वीर को सहेज कर। तकदीर को बदलता देख कर। अवधारणायें नयी-नयी बना रहा। छूट चुका पिछे जो उसे भूलाता जा रहा।। कच्चा मन का पक्का तन का मैं। अधूरा सिखा हूँ पर रण का मैं। इस धरा के कण-कण पर गा रहा। जहाँ आती आवाज़ देश की वही जा रहा।। ठहरा नहीं, ना ठहरने का मन होता। तन पर ही सारा धन होता। हकीकत को ऐसे ही साथ ला रहा। अपना रास्ता खुद बनाता जा रहा।। था दरिया साथ राहें मिली। पर्वतों से हिम्मत-ताकत मिली। हवाओं से सिखता जा रहा। मैं मन का मारा चला जा रहा।। - कविता रानी।  

हम राही वो।

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हम राही वो। जो पल भर में दुख समझ ले। सुख की चाह को राह दे। हम राही वो जो साथ दे।। हो दुख-सुख पास रहे। दुनिया हो कैसी ही खास रहे। मन के साफ रहे। तन के खास रहे। हम राही वही जो दिल में रहे।। हो पल बुरे तो राह दिखायें। हो पल हसीन तो मदहोशी दिखायें। हम सफर रहे, साथी रहे। हम राही वो जो साथ रहे।। - कविता रानी।  

खोया सा रहता हूँ।

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  खोया सा रहता हूँ। क्या हिसाब लगाऊँ, क्या है पास मेरे। जिंदगी जी रहा और अहसास मेरे।। किसे कहूँ ्अब स्थिर सा रहने लगा हूँ। जो उङने की सोंचा था, बैठा रहने लगा हूँ।। कहीं गुम सा हूँ मैं। कहीं खोया हूँ मैं।। ये चित्त कहीं लगता नहीं आजकल। कुछ खास लगता नहीं आजकल।। अब कल के दुख याद भी नहीं आते हैं। और लोग बेवजह मेरे लिए मुस्कुराते हैं।। मैं कहाँ खुश रहता हूँ। आजकल मैं खोया सा रहता हूँ।। - कविता रानी।

अब बेरंग सा मैं।(ab berang sa main)

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  अब बेरंग सा मैं। शांत हूँ, नीरस हूँ, खोया हूँ मैं। इस बेरंगी दुनिया में उलझा हूँ मैं। रंग कई छाये दुनिया में। रंगीन था जहाँ कभी। अब बेरंग मैं।। थी आवाजें कई बुलाने को, मन में उमंगे थी जीने को, सोंच कई, रंग कई, लिये था मैं। खोया हुआ किसी कोने में। अब बेरंग सा मैं।। आशायें कईं थी कुछ करने की। जीत की खुशी थी, हार की नमी थी। कहीं आना जाना मन भाता था। अब अकेले रह जीता मैैं। अब बेरंग सा मैं।। ना गम कोई खास है मेरे, ना नम आँखें है मेरी, सुर्ख सी जिंदगी, शुष्क सा मन रहता है, कहानियाँ कई. रंग कई बताने को, पर जीने को, बेरंग मैं।। - कविता रानी।

याद नहीं।

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  याद नहीं। वो आँखों की मस्तियाँ. वो जुल्फों की तारिफें, वो बिते दिन,  वो बेताबी, अब याद नहीं। वो फोन का इंतज़ार, वो मैसेज का प्यार, वो घंटों की बातें, वो याद रखनें की कसमें, कुछ याद नहीं , कुछ याद नहीं । वो अठखेलियाँं, वो शैतानियाँ. वो मस्ती भरी चोंरियां, और मजबूरियाँ, अब याद नहीं, अब याद नहीं।। -कविता रानी।

जीया जाये ना (jiya jaye na)

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जिया जाये ना। बिन विश्वास, बिन श्वास, आस बिन। रहा जाये ना, जिया जाये ना। जिया जाये ना।। साथी सगे, सगे मित्र बिन। कुछ कहा जाये ना, रहा जाये ना। बाती बिन, बिन दिये, दीपक कहा जाये ना। जला जाये ना।।  बिन पानी, बिन साहस, राह बिन। चला जाये ना, चला जाये ना।। बिन सपनें, बिन अपनें, संतोष बिन। जिया जाये ना, रहा जाये ना।। नित नियम, मेहनत बिन, आगे बङा जाये ना। आगे बङे बिन, मंजिल पाये बिन, रहा जाये ना, रहा जाये ना।। - कविता रानी। 

मंजिल अभी बाकि है। (manjil abhi baki hai)

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मंजिल अभी बाकि है।  रुक गया हूँ, मैं हारा नहीं। सोंच रहा हूँ, लक्ष्य छोङा नहीं। बस एक पल की दूरी है। वो उङान मेरी अधूरी है। वो सपना मेरा बाकि है। वो मंजिल मेरी बाकि है।। एक ख्वाब सजाया था जो बचपन में। उसे पाना है मेरे जीवन में। उसकी चाहत है वो पूरी करनी है। मूझे मेरी कहानी पूरी करनी है। है जिसमें मेरी रानी साथ। आराम, ख्वाब, और राज़। खास लोगों की है उसमें बात। वो जिन्दगी जीनी है एक बार। मेरी मंजिल की दूरी है। और राह की मज़बूरी है। बस कुछ दिन जरुरी है। बस कुछ दिन जरुरी है। अभी जिन्दगी मेरी बाकि है। अभी मंजिल मेरी बाकि हैॆ।। - कविता रानी। 

ओ पंछी!

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ओ पंछी  ओ पंछी बावरे। उङ जा अकेले। ओ पंछी बावरे। दूर गगन साथी है, साथी पवन। सुन साँवरें, उङ जा अकेले।। वो भोर का सूरज आया अकेला। जायेगा अकेला, धूल दुपहर करेगा। डूबेगा अकेला, शाम, गोधूलिवेला लायेगा अकेला। ओ पंछी बावरे। सुन जा क्या कह रहा मनवा। रहना है अकेला, जाना है अकेला। उङ जा अकेला।। वो धूल -दोपहर, रात, शाम। उङती चलती है हर पहर। रुकना ना आता इसे गवा संग। जब संग है तेरे पवन, तो उङ जा संग। उङ जा अकेला पवन के संग। उङ जा अकेला।। ओ पंछी बावरे। उङ जा ्अकेले। उङ जा अकेले। दूर गगन में, उङ जा ्अकेले।। -कविता रानी।

स्काउट बनो

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  स्काउट बनो। प्रकृति की गोद में अगर सिखना है। जीवों के हित को अगर सोंचना है। अपनें देश, धर्म से जूङे रहना है। मानवता को अगर निखारना है। तो स्काउट बनो। स्काउट बनो।। यहाँ प्रशिक्षण नहीं, प्रकृति से जुङते हैं। मोज और खोज में रमते हैं। रोज नये खैल खेलते हैं। व्यस्तता में मस्त रहना सिखते हैं। यहाँ कुछ दिन में जीवन के स्काउट बनते हैं।। देश की माटी का लगाव दिखता है। यहाँ नई  प्रतिभाओं का ज्ञान दिखता है। नये जीवन उपदेश यहाँ मिलतें हैं। हर जीवन के अनुभव सुनने को मिलतें हैं। यहाँ कई स्काउट मिलतें हैं।। विश्वसनीयता का भाव यहाँ जगाया जाता है। वफादारी का पाठ पङाया जाता है। भाईचारे की सिख दी जाती है। यहाँ साहस, प्रेरणा की बात की जाती है। स्काउट में गुणों को निखारा जाता है।। बिन छत बिस्तर के रहते हैं। हाथ से खुद बनाकर खाते हैं, पैदल चाल का आनन्द लेते हैं। इशारों को सिखते हैं, नये-नये गठजोङ सिखते हैं। स्काउट में नये-नये खैल, गीत, नीनाद सिखते हैं। इसीलिए कहते हैं. जीवन को करना है आसान तो, स्काउट बनो। स्काउट बनो।। -कविता रानी।  

मेरा सिखना जारी है।

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मेरा सिखना जारी है। मेरा सिखना जारी है,  फिर नई तैय्यारी है। मैं रुका नहीं ना रुकने की कोई बात है।। मैं कल ही आया हूँ, अपनें प्रशिक्षण में खोया हूँ। वहाँ कि हवा में बंधा हूँ, अभी जैसे मैं नया हूँ।। मांऊट आबू की वो ठंडाई याद है, दिन की धूप याद है। सुबह का व्यायाम याद है, दिन की क्लास याद है।। मैं अपनें आप में अभी सिमटा हूँ, दुनिया से अलग महसुस करता हूँ । मुझे भौर का उठना अच्छा लगने लगा है। और रात को जल्दी सोना जमने लगा है।। समय पर काम अब आदत बन गई है। व्यवस्थित चीजों को रखना जम गया है।। मुझे मेरी टोली परिवार सी लगती है।  फोन कर पूछता हूँ भाई तबीयत कैसी है।। वो शुरुवात के पंजीकरण की याद है। वो अंत की सर्वधर्म प्रार्थना याद है।। यादों के नये किस्से लिख आया हूँ। मैं स्काउट कैंप में बहुत सिख आया हूँ।। अभी ये जैसे शूरुवात है, मेरा सिखना अभी जारी है। आगे के प्रशिक्षण कर और खुद को निखारना है। मुझे और आगे सिखते रहना है।। मैं घर आकर रुका नहीं, ना रुकनें की बात है। मेरा सिखना अभी जारी है, फिर नई तैय्यारी है।। -कविता रानी।

अच्छा लगा ।

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  अच्छा लगा। इस जीवन की भाग दौङ में। लगी रहती इस होङ में। मैं कईयों को पीछे छोङ आया। मैं हर जगह कुछ दिल तोङ आया।। लगा जैसे वो भूल गये होंगे। मेरे संदेशो को पाकर रुठ गये होंगे। क्या याद रहा होगा उन्हें मैं अब। सब व्यस्त होंगे जीवन में अब।। तब ही एक संदेश मैंने पाया। अंधेरे में जैसे दीप जला पाया। फिर वो मुस्कान और सवाल आये। जीवन के मधूर लम्हें भाये।। अच्छा लगा जान कर कि कोई याद करता है। बेमतलब भी इस दुनिया में कोई रहता है। सादगी से उसकी मन खिल उठा। याद कर उस सफर को मैं हसने लगा।। ये अच्छा था की कुछ लोग मन के मिले। इस दुर्गम राह कुछ पल मेरे साथ चले। उन्हे अब याद कर दुआ देता रहता हूँ। अच्छा लगा कहकर मन हरता हूँ।। - कविता रानी।

खामोशियाँ शौर बन गई।

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  खामोशियाँ शौर बन गई। खामोशियाँ शौर बन गई,  मदहोशियाँ मौज बन गई,  शाम तक थी तन्हाई जो, आज हमसफर संग ओज बन गई।  नादानियाँ सयानी हो गई, अठखेलियाँ कमाई बन गई,  रोज खोजते थे जिन्दगी जो, आज राह ही वो बन गई।  वक्त बदला जमाना बदला, बदल गये मायने हर चीज के, अब हर कोई लगता जैसे, बात करता हो खीज के। स्वार्थ सिध्द रिश्ते नाते बनते हैं, हर दिन नये नये लोग मिलते हैं, साथ सबका काम तक रखते हैं, आज कल सुबह से शाम तक जीते हैं। खुमारियाँ अब खो गई,  लगता है जिन्दगी कुछ रुक गई,  कल तक था जुनून जो, आज सरल सी रेखा बन गई।  तन्हाईयाँ भीङ बन गई,  खामोशियाँ शौर बन ।। - कविता रानी।

वो शाम बाकि है।

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  वो शाम बाकि है। भौर भूल गया हूँ, दिन की चढ़ाई याद रहती है। तपती धूप में बस अभी जी पाता हूँ। आगे बढ़ता हूँ, सब सहता हूँ। जानता हूँ दोपहर है। जानता हूँ अभी गोधूलि बाकि है। अभी शाम बाकि है। वो शाम बाकि है।। जब किस्से कई होंगे। मेरे हिस्से कई होंगे। वो आलिशान घर होगा। मेरा खुद का जहाँ होगा। कुछ काम ना बाकि होगा। कुछ खास ना बाकि होगा। बस यादें होगी। यादों की मुलाकातें होगी। वो दिन का अंत होगा। रात की आहट होगी। बढ़ते दिन की ओर देखता। मैं आज सोंचता। कि वो शाम बाकि है।। -कविता रानी।

और आगे बढ़ जाता हूँ मैं | Aor aage bad jata hun main

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  MOTIVATIONAL VIDEO - see here, click here और आगे बढ़ जाता हूँ मैं  कुछ देर कल की सोंच रुक जाता हूँ मैं। अपने जीवन के अंधेरे में उलझ जाता हूँ मैं। अपने आज और कल से लङ जाता हूँ मैं। रहूँ किस ओर सोंच में पढ़ जाता हूँ मैं। कुछ ना हल मिलता मुझे आज कल का। कुछ ना ज्यादा कर पाता हूँ मैं। ठहरे रहने का आदी नहीं हूँ शुरू से। आदत से मजबूर भूलते भूलाते जाता हूँ मैं। अपनी फिक्र करता और आगे बढ़ जाता हूँ मैं। जानता हूँ फिर कोई ना होगा। पास मेरे कोई ना होगा। यही याद कर सिहर जाता हूँ मैं। यही सोंच आगे बढ़ जाता हूँ मैं।। -कविता रानी।

सत्कर्म मुश्किल | Satkarm mushkil

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Satkarm mushkil - See video here   सत्कर्म मुश्किल।  हे कर्म पथ मुश्किल, हे धर्म पथ मुश्किल।  जहाँ धरा पर है विपरीत धङा, वहाँ सत्कर्म मुश्किल। । अटी पङी है धरती गहरे गड्डों से, चलना बङा है मुश्किल। सटी पङी है धरती गहरे जख्मों से, बचे रहना बङा मुश्किल। । हो कायाकल्प सत्य का झूठ, रुठे रहना भी मुश्किल।  हो मार कृत्य की पङी, खुंटे पर अङे रहना भी मुश्किल। । सिखे जहाँ सन्मार्ग पर मर मिटना, कुमार्गी होना मुश्किल।  सिखे जहाँ सत्कर्मी रहना, वहाँ कुकर्मी बनना मुश्किल। । हो रगों में भरी ईमानदारी, वहाँ बेईमानी भरना मुश्किल।  स्वतंत्रता की उमंगो  में जन्में, धुर्त की सुनना मुश्किल। । हे दूत ईश्वर के जन्में, धूर्त की सुनना है मुश्किल।  हे पुत जन्में सपुत बनने, मार्ग कपुत का चुनना मुश्किल। । हे संगत चार दिन की, कुमति से डरना कहाँ मुश्किल।  हे बदलता समय अक्सर, सुमति को बनाये रखना मुश्किल। । हो मार्ग राक्षसों से भरा, खुशहाल रहते जीना है मुश्किल।  कलियुग के भार से जग भरा, सतयुग की सोंच रखना है मुश्किल। । जब चुन लिया मार्ग सत्य का, असत्य को चुनना है मुश्कि...

जिन्दगी | Life

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  Zindagi - click here to see video ज़िन्दगी   चोट खाई है कई, दर्द पता है मुझे। ठोकर लगने का मलाल पता है मुझे। हार कर कई बार बैठा हूँ मै। धोखे कई खाकर बैठा हूँ मैं। मुझे ना समझाओ ऐ दुनिया वालों; की क्या होता है खोने का डर।। मुझे ना बताओ ऐ दुनिया वालों। कि क्या होता है अपनों का फर्ज।  हर अपने को पराया पाया है मैंने। हर अपने खास से दोखा खाया है मैंने। अब दर्द नहीं खोने का, ना पाने की ज्यादा खुशी। जिन्दगी चले अपनी धुन में, बस यही कमी। मन की करुं, मै करुं अपनी। चलती रहे जीवन की ये हस्ती। मुझे ना सिखाओ ऐ दुनिया वालों, क्या है जिन्दगी? मुझे ना सिखाओ ऐ दुनिया वालों, क्या है बन्दगी? -कविता रानी।

क्या वो तुम हो | kya vo tum ho

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  Kya vo tum ho - click here to see video क्या वो तुम हो। जिसे जीवन का भार सोंपना है। मेरे दिल और दिमाग सोंपना है। मेरी खुशियों का हिस्सा बनना है। जिसे मेरे दुखों का भागी होना है। क्या तुम हो।। मेरे अधुरे लब्जों को पूरे करने वाली। मेरे सुने जीवन को भरने वाली। मेरी आशाओं के दीप जलाने वाली। क्या वो तुम हो।। क्या तुम ही मेरी सुबह की चाय हो। क्या तुम ही मेरे शाम हो। क्या तुम ही मेरी रात हो। क्या तुम ही मेरी रानी हो। क्या वो तुम हो।। जिसे अक्सर सपनों में महसुस किया। अक्सर जिसे पाने का ख्वाब देखा। जिसे चाहा है खुद से ज्यादा। जिसे मांगा है मंजिल से ज्यादा। क्या वो तुम हो।। मेरी ख्वाहिशों का शिखर। मेरी चाहत की कदर। मेरी उम्मीद और घर। क्या वो तुम हो।। -कविता रानी। ( KR)

मैं हारा नहीं | Main hara nahi

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  Click here to see video मैं हारा नहीं। था बेसहारा मैं। अकेला मन का मारा मैं। रूका नहीं, थका नहीं, चलता रहा अपनी धुन में। रहा बेसहारा, पर हारा नहीं मैं।। थी दौङ मेरी, दौङता रहा। जाना था दूर, बढ़ता रहा। आये मोङ कई, पर मुङा नहीं। गिरा, उठा, चला रुका नहीं। मिला किनारा, सहारा नहीं। बह गया मैं, पर हारा नहीं।। चुनौतियाँ कई आती रही। जिंदगी जैसे आजमाती रही। मैं बाधाओं से डरा नहीं। जीता रहा हर पल, मरा नहीं। आखिर तक चलता रहा मैं, मैं हारा नहीं।। हो और बाधाएं तो लङ लुंगा। शिखर मिलने तक मैं चल लुंगा। हो साथ कोई या नहीं। मैं रहा अकेला हारा नहीं।। होंसले से बढ़ता आया हूँ। खुद की किस्मत लिखते आया हूँ। खुद की हिम्मत बनते आया हूँ। लङता रहा समय से मै, पर हारा नहीं मैं।। -कविता रानी। (KR)

कैसे इंसान हो / Kaise insan ho

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  Kaise insan ho - click here to see video कैसे इसांन हो। जब होते देख जुल्म तो, मन कह उठा दर्द से। कैसे इंसान हो! दिल है की नहीं कुछ! कुछ शर्म तो बची होगी। या कुछ समझ बाकि रही होगी। मेरा ना सोंच सके कोई बात नहीं। पर अपनी ना सोंच सके , ये क्या बात हुई।  जो बोल बोले भूला नहीं। कङवे घूट पीना आसान नहीं। जो हुआ अतीत में कभी कहीं। वो भूल जाना आसान नहीं। पर भूल सब याद करता हूँ। मै हूँ परिवार समाज में कहता हूँ। जो है जीवन में सहता हूँ। जो है नहीं तुम बिन कहता हूँ। कि कहीं कोई दिल है कि नहीं। अपनी समझ है कि नहीं। कुछ शर्म बाकि है कि नहीं।। कैसे एक सच्चे मन को ठुकराते हो। कैसे एक बईमान बन जाते हो। जो भला चाहे करना, बुरा करते हो। क्यों इंसान सा बरताव नहीं करते हो। कैसे इंसान हो।। - कविता रानी। (KR)

चिङियाएं / chidiyayen

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  Chidiyayen -click here to see video चिङियाएं खोल पंख उङती है। खिलखिलाकर हॅसती है। समझती है बातों को सब मेरी। बेमतलब उङा करती है। ये चिङियाएं यहीं घूमा करती है।। अंदाज इनके निराले हैं। अठखेलियाॅ इन्हें आती है। बङी खूब जमकर रहती है। ये चिङियाएं यहीं घूमा करती है।। दाने-दाने कर खाती है। हर बात पर कुछ बतलाती है। मेहनत का रंग इन पर जमता है। इन चिङियाओं का यहाॅ घरोंदा है। सबके मन को भाती है। समय पर ये आती है। हर पल मस्त रहती है। ये चिङियाएं यहीं घूमा करती है।। - कविता रानी। (KR)