खुश रह | Khush rah
खुश रह खुश ही था दिन भर का, अपना काम कर रहा था मन से मैं । सोंचा चलो किसी का भला सोंचे, अपने दिये काम से ज्यादा कर ले । पर जानता था मुक्त की चीज की कदर कहाँ, कौन पुछे भलाई को यहाँ । वही हुआ समझने की नौबत रही, बात खुद पर ही आती रही । क्यों ज्यादा सोंच काम करता हूँ, जिन्हें जरूरत नहीं उनकी सोचता हूँ । क्यों मैं अपनी शक्ति खो रहा, दुखी मन लेकर क्यों दिन खो रहा । कदर पैसों वालों की है जग में, मेहनत बिन पैसे करना फिजुल है । जमाना कलयुग का है रवि, क्यों सतयुग सा मन लेके जीता है । खुश रह बस अपने हिस्सा का लेकर, मान पर बस अपनी सुनकर । कठोर ना बन सके तो छोड़ दे, अपना काम कर, कुछ समय पर छोड़ दे । उनके भाग का वो खायेंगे, वो अपना का कर्म पायेंगे । तु अपना काम करना अब, व्यर्थ धर्म पर ना पड़ना अब । सिख समय की काम ले, खुश रह और रब का नाम ले ।। Kavitarani1 152